Friday 30 June 2023 11:20 AM IST : By Nishtha Gandhi

चातुर्मास: प्रकृति और जीवन के संतुलन का समय

chaturmas

सावन का महीना आते ही शुरू हो जाता है चातुर्मास, जिसे चौमासा भी कहा जाता है। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक अब 4 महीनों तक कोई शुभ काम नहीं किया जाता। साधु-संत भी किसी मंदिर, मठ, आश्रम, स्थानक में 4 महीने बिताने के लिए पहुंचने लगे हैं।

क्यों आता है चातुर्मास

ज्योतिषाचार्य पंडित भानुप्रताप नारायण मिश्र के अनुसार, ‘‘हमारे देश में कोई भी रीति-रिवाज और त्योहार बिना किसी कारण के नहीं मनाए जाते, चातुर्मास भी इनमें से एक है। हालांकि हर विशेष अवसर के पीछे कोई ना कोई कहानी जुड़ी है, लेकिन वैज्ञानिक नजरिए से देखें, तो इन 4 महीनों में मानसून अपने चरम पर होता है। तेज बारिश, अांधी, तूफान, पहाड़ों पर भूस्खलन की घटनाएं आम होती हैं। कई तरह के कीड़े-मकोड़ों का यह प्रजनन काल होता है। पहले जमाने में ना तो पक्की सड़कें होती थीं और ना ही यातायात के साधन सुलभ थे, ऐसे में दिगंबर, नागा या अन्य साधु-संतों का पैदल यहां से वहां घूमना खतरे से खाली नहीं था। कोई शुभ काम जैसे शादी, घर या दुकान का मुहूर्त करने से भी इसलिए ही मना किया गया था। इस मौसम में किसान भी अपनी फसल बो कर विश्राम की मुद्रा में रहता है। मानसून के सीजन में बीमारियां, इन्फेक्शन और एलर्जी का डर सबसे ज्यादा रहता है, ऐसे में ज्यादा लोगों का एक जगह इकट्ठा होना भी खतरे से खाली नहीं है, यह बात तो कोरोना ने भी हमें समझा दी है। यह चातुर्मास आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी से ले कर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक रहता है।’’

प्रकृति को सुनने का समय

जीवन की आपाधापी और रोजमर्रा की भागदौड़ में हर व्यक्ति इतना व्यस्त रहता है कि प्रकृति से उसका नाता टूट ही गया है। साल के 8 महीने रोजी-रोटी के जुगाड़ में रहने वाला गृहस्थ श्रावण के महीने में प्रकृति का श्रवण करे यानी प्रकृति को सुने, इसीलिए चौमासे की परिकल्पना की गयी है। ऐसा भी माना जाता है कि यह समय धरती के गर्भवती होने या फिर उपजाऊ बनने का है। इसे वैज्ञानिक रूप से देखें, तो समझ आएगा कि प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए यह कितना जरूरी है कि साल में कम से कम 4 महीने प्राकृतिक संसाधनों का दोहन व शोषण कम से कम हो। धरती के गर्भवती होने की अवधारणा के पीछे भी यही कारण छुपा है कि इन 4 महीनों में पेड़-पौधे, जड़ी-बूटियां और जीव-जंतु अनुकूल परिस्थितियां पा कर फल-फूल सकें।

मानसिक शांति की खातिर

कृषि प्रधान देश होने के कारण जब किसान 4 महीने तक कोई काम नहीं करता, तो ऐसे में उसका मानसिक रूप से परेशान होना लाजिमी है। इसलिए इस दौरान कांवड़, तरह-तरह के व्रत-त्योहार की परंपरा रही है। दरअसल, ईश्वर के प्रति यह आस्था ही है, जो व्यक्ति को जीवन में निरंतर गतिशील बनाए रखती है। देखा जाए, तो इन 4 महीनों में मनाए जाने वाले त्योहार जैसे कांवड़ यात्रा, गणेश चतुर्थी, नवरात्र मन में उल्लास ही भरते हैं। प्रकृति की पूजा करने वाले हमारे देश में इसीलिए जल से अभिषेक करना, जल में विसर्जन करने की परंपराएं रही हैं, जो यह भी बताती है कि मूर्ति विसर्जन के साथ आप अपनी कुंठाओं और नकारात्मक विचारों का भी विसर्जन करें।

ज्योतिषाचार्य डॉक्टर पूनम वेदी के अनुसार, ‘‘चूंकि पहले बहुत सुविधाएं मौजूद नहीं थीं और नमी के कारण खाने-पीने की चीजें भी जल्दी खराब होने का डर रहता था, इसलिए साल के इन 4 महीनों में इस दौरान समय-समय पर व्रत रखना और व्रत के दौरान फलाहार खाना आयुर्वेदिक रूप से आपकी हेल्थ के लिए अच्छा माना गया है। दूध, दही, अंडे, नॉनवेज, गुड़ जैसी चीजों को इस मौसम में पचाना आसान नहीं है। इस समय पशु-पक्षियों में भी कई तरह की बीमारियां होने का खतरा रहता है, इसलिए पशुओं से मिलने वाले भोजन के बजाय ऐसा भोजन खाने की सलाह दी जाती है, जो खाने में सुरक्षित हो। हरी पत्तेदार सब्जियां, बीजवाली सब्जियां जैसे बैंगन और मूली व जिमीकंद भी खाना सेफ नहीं है। ये चीजें जल्दी खराब भी होती हैं।’’

बेशक आज की स्थितियां अलग हैं, लेकिन फिर भी अगर अंधविश्वास और पूर्वाग्रहों से परे तर्क की कसौटी पर इस चौमासे को कसा जाए, तो आप पाएंगे कि प्रकृति और जीवन में संतुलन बनाए रखने का बहुत सटीक और सुंदर समय है यह चातुर्मास। आप भी इस बार पूरी आस्था से प्रकृति के साथ खुद को जोड़ें और इस चौमासे में एक फलदार वृक्ष जरूर लगाएं। वैसे यह भी कहा जाता है कि मोक्ष की प्राप्ति के लिए जीवन में कम से कम 108 पेड़ लगाएं, जिसमें फलदार वृक्ष भी शामिल हों। इसके पीछे यही कारण था कि पेट भरने के लिए साधुओं, बंजारों और जनजातियों को किसी से भिक्षा ना मांगनी पड़े। लोक कल्याण की इससे अच्छी परिकल्पना कुछ और भी हो सकती है भला !