Saturday 10 October 2020 03:20 PM IST : By Meena Pandey

मौसमी फल उगा कर लाखों कमा रही हैं सीकर की संतोष देवी

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सीकर, राजस्थान की संतोष उन महिलाअों के लिए एक उदाहरण बन गयी हैं, जो अपने काम में किसी तरह का घाटा उठाने को तैयार नहीं। आज वे अनार, कीनू, नीबू, सेब की बागवानी कर रही हैं। राजस्थान सीकर में उनका शेखावटी कृषि फार्म एवं उद्यान नर्सरी रिसर्च सेंटर अब जानामाना नाम है। वे कहती हैं, ‘‘जुनून है, तो कुछ भी संभव है। मैंने और मेरे पति ने 2008 में अपनी 5 बीघा जमीन पर अनार के पेड़ लगाए, जिसमें लागत कम लगी और आय 5-7 लाख रुपए हुई। इसके बाद तो हम हॉर्टिकल्चर की राह पर चल निकले। इसमें फायदा भी मिला। पहले सेब पर हिमाचल और कश्मीर का कब्जा था, मगर अब तो राजस्थान में भी सेब उगाए जा रहे हैं। 2016 में हमारे पास इनोवेशन के लिए अहमदाबाद से सेब की पौध आयी, हमने ऑर्गेनिक तरीके से ही उसे लगाया, देखभाल की। उसका रिजल्ट और ग्रोथ बहुत अच्छी रही। हमारे बाग के एक-एक सेब का वजन 200-250 ग्राम है। ये एकदम लाल, मीठे और खूब रसीले होते हैं। हमारे यहां के सेब इतने स्वादिष्ट हैं कि फसल पकते ही लोग सीधे फार्म से खरीद कर ले जाते हैं। हम हरमन 99 प्रजाति के सेब की खेती कर रहे हैं।’’

संतोष फल उगाने के साथ अनार की कटिंग से हर साल 20,000-25,000 पौधे तैयार करती हैं। इन्हें किसान उनकी नर्सरी से ले जाते हैं। वे दावा करती हैं कि उनकी नर्सरी की पौध से अनारों की पैदावार बाहर व अंदर से एकदम लाल होती है।

बन गयीं रोल मॉडल

संतोष शहरों और गांवों की उन महिलाअों की रोल मॉडल बन गयी हैं, जो कुछ करना चाहती हैं। उनके पास अहमदाबाद, गुजरात, यूपी, एमपी से महिलाएं मिलने, सलाह लेने और पौधे लेने आ रही हैं। हॉर्टिकल्चर के बारे में जानकारी लेने कई पढ़ी-लिखी और नौकरी करनेवाली ऐसी महिलाएं भी आयीं, जो फलों की बागवानी शुरू करना चाहती हैं।

पहले संतोष भी दूसरे किसानों की तरह बाजरा, गेहूं, मोठ की खेती कर रही थीं और उसमें केमिकल खाद का उपयोग कर रही थीं। सारा पैसा खाद खरीदने में खर्च हो जाता था। बच्चों की पढ़ाई भी नहीं हो पा रही थी। तब हॉर्टिकल्चर में जाने का फैसला मजबूती से लिया। उन्होंने अपने बच्चों राहुल और नीतू को एग्रीकल्चर में बीएससी कराया। बच्चों ने एग्रीकल्चर संबंधी नए प्रयोग आजमाए और बहुत फायदा हुआ।

अब तो वे ऑर्गेनिक इन्सेक्टिसाइड भी खुद बनाने लगी हैं। संतोष के काम से प्रेरित हो कर आसपास की कई महिलाएं हॉर्टिकल्चर की ओर रुख कर रही हैं। उनकी सफलता को देखते हुए यहां पर गेहूं की फसल तैयार करने वाली महिलाएं ऑर्गेनिक फार्मिंग करना पसंद कर रही हैं, क्योंकि रासायनिक खेती में मुनाफा नहीं मिलता।

बेटी को दहेज नहीं पौधे दिए

संतोष गर्व से कहती हैं कि दहेज देने के लिए तो कर्ज लेना पड़ता, इसलिए मैंने अपनी बेटी की शादी में दहेज नहीं अनार की 551 पौध अपने समधी जी को दीं। 300 बारातियों को 2-2 पौध दीं। अब तो उनके अपने बगीचे तैयार हैं, जिससे पर्यावरण शुद्ध हो रहा है। हम भी खुश, वे सब भी खुश। बाराती अपने घरों में लगे हमारी पौध के पेड़ जब-जब देखते होंगे, हमें याद करते होंगे।

संतोष की महिलाअों को एक ही सलाह है कि वे जो कुछ करना चाहती हैं, पूरे मन और विश्वास के साथ करें। अगर वे खेती कर रही हैं, तो ऑर्गेनिक खेती ही करें। केमिकल खेती करनेवाली महिलाअों के पास कुछ नहीं बचता। बाजरा, गेहूं की खेती हर साल करनी पड़ती है। वे एेसी ही फसल उगाएं, जिनमें मुनाफा मिले।

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सालभर में संतोष देवी 3 फसलें तैयार करती हैं। सेब फरवरी में शुरू हो कर जून तक तैयार हो जाते हैं। अनार के दो सीजन होते हैं। पहला फरवरी से शुरू हो कर अगस्त, सितंबर तक और दूसरा सीजन मई-जून से शुरू हो कर नवंबर तक होता है। नीबू के 3 सीजन होते हैं। उनका सालभर का टर्नअोवर 25-27 लाख रुपए है।

ऑर्गेनिक खेती का एक फायदा यह भी है कि फल खराब नहीं होते। मौसमी, अनार का मोटा छिलका होने से बाहर से सिकुड़ता है, पर अंदर से यह एकदम ताजा रहता है। एक महीने तक अनार खराब नहीं होता है। केमिकल फार्मिंग से तैयार फल 2-4 दिनों में ही खराब हो जाते हैं।