Thursday 15 October 2020 04:27 PM IST : By Nishtha Gandhi

महिलाओं के इस रॉक बैंड के साज़ हैं चिमटा ओखल थाली

city-babes-jaya-tiwari-oct-19

सुबह के 5 बजे जहां लोगों के घर में दूध वाला, काम वाली बाई या अखबार वाला आ कर घंटी बजाते हैं, वहीं लखनऊ की जया तिवारी के घर की घंटी बजाने वालों में शामिल हैं उनके फीमेल रॉक बैंड मेरी जिंदगी की मेंबर्स। यह इनके जैम सेशन का समय है, यानी इनकी प्रैक्टिस का समय है। लेकिन यह क्या, गाने-बजाने की प्रैक्टिस करने आए और गिटार, तबला, हारमोनियम गायब हैं। बिन वाद्य यंत्रों के प्रैक्टिस आखिर कैसे होगी? पर फिकर नॉट, अगले ही पल ये महिलाएं हंसती-खिलखिलाती हुई किचन में जाती हैं और उठा लाती हैं - चिमटा, कटोरी, थाली, चम्मच। चिमटे पर घुंघरू बंध गए, थाली और कटोरी पर चम्मच और कलछी ने सुर छेड़ दिए और गाना शुरू हो गया। बैकग्राउंड म्यूजिक दे रही है गैस पर चढ़े प्रेशर कुकर की बजती सीटी। कोई चिमटा उठाने किचन में जाता है, तो गैस पर चाय चढ़ा कर आ जाता है, तो कोई प्लेट-चम्मच बजाते-बजाते ब्रेड पर बटर लगा लेता है। थोड़ी देर बाद कपड़े चेंज किए, किचन समेटी और सब अपने-अपने काम पर चल देते हैं।

city-babes-jaya-tiwari-2

सुनने में कुछ अलग जरूर लगता है, लेकिन जब जिद की पक्की, जुनून की मारी महिलाएं कुछ करने का इरादा मन में ठान लें, तो उनका तरीका भी अलग ही होगा। इनके गाने भी सुनेंगे, तो आपके होंठों पर हंसी तैर जाएगी, लेकिन आम से शब्दों में बड़ी सी बात कहना इस बैंड की खासियत है-

प्रेशर कुकर की सीटी बजने दो, चूड़ी, बिंदी, झुमके पायल से सजने दो... मेरे हौसलों का शंखनाद बजने दो, बजने दो...

उनका हुक्का पानी बंद करा दो... जिनकी है नादानी, बूंद-बूंद जो बहा रहे हैं अमृत सा ये पानी, उनका हुक्का पानी...

टेंपो रिकशा पर बैठे जो लोग, कुहनी आंखों पर इनके ना रोक, देखो इनको, तो दो इनको टोक...

चाहे गाने के बोल हों, या चिमटे, कटोरी, चम्मच जैसे बरतनों के वाद्य यंत्र... ये सब इस बात का सुबूत हैं कि किचन में काम करनेवाली घरेलू महिलाओं को आप किसी चीज में कमतर ना समझें। वे मन में ठान लें, तो कहीं से भी सुर-ताल छेड़ सकती हैं और कुछ भी कर सकती हैं।

थिएटर का एक्सपीरियंस काम आया

दो भाइयों की एकलौती बहन जया बचपन से घरभर की लाड़ली थीं, इसलिए माता-पिता ने सपनों के पंखों को खुल कर उड़ने का मौका भी दिया। जिस घर के बुजुर्ग संगीत और नृत्य को नाच-गाना मानते हों, वहां की बिटिया म्यूजिक में डॉक्टरेट हासिल करे, थिएटर में काम करे और रेडियो जॉकी बन जाए, तो यह बड़ी बात है। वे 4 साल की उम्र से दर्पण थिएटर से जुड़ी हुई हैं। इस वजह से ना सिर्फ कॉन्फिडेंस आया, बल्कि खुद को एक्सप्रेस करना भी सीखा। जया हंसते हुए कहती हैं, ‘‘मेरी नानी ने मेरे घर आना सिर्फ इसलिए छोड़ दिया था, क्योंकि मेरी ही बिल्डिंग में एक इंटरनेशनल क्लासिकल आर्टिस्ट्स का ग्रुप रहता था। इधर वे सुबह रियाज करना शुरू करते, उधर नानी का पारा चढ़ता रहता। उन्हें लगता था कि तुम लोग कैसी गंदी जगह पर रहते हो। उसके बाद वे कभी हमारे घर नहीं आयीं।’’

सुबह 4 बजे आया आइडिया

jaya-tiwari

रोज सुबह 4 बजे जब मैं रेडियो स्टेशन जाती थी, तो मैं देखती थी कि पास के अनाथालय में रहनेवाली लड़कियां चुपचाप अपना काम कर रही हैं। रोज देखते-देखते मेरा उनसे एक लगाव सा हो गया था। उन्हें देख कर लड़कियों को कुछ सिखाने का आइडिया आया। सबसे पहले कुछ लड़कियों को मैंने अपने घर बुला कर म्यूजिक सिखाना शुरू किया। इन अनाथालायों में जो लड़के आते थे, वे तो गोद ले लिए जाते थे, लेकिन लड़कियों को अपनी बेटी बनाने को कोई तैयार नहीं होता। इन लड़कियों को म्यूजिक सिखा कर हमने अपना बैंड बनाया। इसे नाम दिया मेरी जिंदगी। हमारे बैंड का थीम था- ‘सेव द गर्ल, एजुकेट द गर्ल।’ इसी थीम पर पहला गाना बना, जो था- हम हैं जिंदगी, बिन पंखों के उड़ सकते हैं, जीने का फन हम रखते हैं, हमसे तुम सीख लो जिंदगी...

jaya-babes-3

हालांकि इस अनाथालय की लड़कियों के साथ काम करने के लिए बहुत औपचारिकताओं की जरूरत थी, इसलिए बाद में बैंड की रफ्तार धीमी पड़ गयी। कुछ समय बाद फिर रेडियो से जुड़ी 3 लड़कियों का साथ मिला और बैंड फिर से जी उठा। शुरुआत में इन्होंने माइक्रो शोज करने शुरू किए, लेकिन तब तक इनका बैंड ज्यादा पॉपुलर नहीं हो पाया था।

जब मिला पहला ब्रेक

jaya-tiwari-1

‘‘किसी गाइनीकोलॉजिस्ट की फेअरवेल पार्टी में परफॉर्म करने का ऑफर हमारा पहला एेसा ब्रेक था, जिसने हमें पहचान दिलायी। उस समय हमारे पास सस्ता सा गिटार था और इसके अलावा किचन के बरतन, जैसे चिमटे, ओखल, गिलास, तवा, बेलन और मथानी हमारे साज़ थे। इसके बाद हमने मुड़ कर नहीं देखा। धीरे-धीरे लोग हमें बुलाने लगे और मेरी जिंदगी बैंड की बातें सुनने लगे।’’

गा-गा कर पहुंचाया संदेश

jaya-tiwari-4

यूपी पुलिस का चुप्पी तोड़ो, नेशनल हेल्थ मिशन, यूनिसेफ, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, सरकारी एनजीओ समाख्या, बीबीसी मीडिया एक्शन जैसी संस्थाओं ने अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए जया तिवारी के बैंड को चुनना शुरू किया। इन्होंने जेंडर इक्वैलिटी, चाइल्ड मैरिज, सैनिटेशन, डोमेस्टिक वायलेंस, ईव टीजिंग जैसे मुद्दों पर गांव-मोहल्लों में घूम-घूम कर खूब काम करना शुरू किया। महिलाएं इनके साथ नाच लेती हैं, बलैया ले लेती हैं, कुछ प्यार से गाल खींच लेती हैं और इसी दौरान जया उन्हें यह समझा देती हैं कि बेटी को फीड कराना भी उतना ही जरूरी है, जितना बेटों को। प्रेगनेंट महिलाएं रोज पान खा कर उसमें लगे चूने से अपनी कैल्शियम की कमी पूरी कर सकती हैं। पिंक कुरते और काली सलवार से शुरू हुआ यह सफर अब पिंक साड़ी तक पहुंच गया है। क्या वे फेमिनिस्ट हैं, पूछने पर जया हंस कर बताती हैं, ‘‘हर रॉक बैंड की तरह हमें कोई ड्रेस चुननी थी, तो बस एेसे ही हमने पिंक कलर चुन लिया। कुरता और साड़ी पहनने की वजह यह है कि जिन लोगों तक हम अपनी बात पहुंचाना चाहते हैं, वे हममें कहीं अपनी छवि देख सकें और यह तभी हो सकता था, जब हम देसी पहनावा अपनाते। इसीलिए हमने यह ड्रेस चुनी।’’