Monday 05 October 2020 02:31 PM IST : By Ruby Mohanty

पांच रुपए में बचा रही हैं पंजाब का मुक्तसर शहर डॉ. सीमा गोयल

पंजाब के मुक्तसर शहर में एक अनोखी जंग चल रही है। यह जंग शहर के लोगों और प्लास्टिक की थैलियों के बीच है। मुक्तसर के हर दूसरे घर में कोई ना कोई कैंसर और हेपेटाइटिस बी का मरीज है। इस लड़ाई को जीतने का पूरा जिम्मा मुक्तसर सिविल हॉस्पिटल की मेडिकल अॉफिसर डॉ. सीमा गोयल ने लिया है।

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मैसूर से अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब डॉ. सीमा अपने शहर वापस अायीं, तो उनके मन में लोगों के स्वास्थ्य को ले कर कुछ काम करने का जज्बा जगा। उन्होंने पिछले 4 सालों तक वहां कैंसर प्रोजेक्ट पर काम किया। डॉक्टर होने के नाते सीमा ने कैंसर की समस्या को बहुत करीब से देखा और पाया कि इस शहर के लोग जरूरत से ज्यादा प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो कैंसर की वजह बन रही है। डॉ. सीमा गोयल के मुताबिक, ‘‘प्लास्टिक की थैलियों की वजह से पूरा शहर डस्टबिन बनता जा रहा था। लोग प्लास्टिक की थैलियों में दूध लाने लगे थे। यह बहुत जरूरी हो गया था कि उन्हें प्लास्टिक अौर कैंसर के बीच के लिंक को समझाया जाए। अप्रैल 2018 से मैं 5 रुपए में धरती बचाअो कैंपेन पर काम कर रही हूं। इस कैंपेन में कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से दूर रहने के लिए प्लास्टिक की थैलियों की जगह कपड़े की थैलियों का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। मुफ्त मिलनेवाली चीज की लोग इज्जत नहीं करते। इसीलिए थैली की कीमत सिर्फ 5 रुपए ही रखी गयी है, जिससे लोग इस कपड़े की थैली के महत्व को समझें।’’

क्याें खड़ी हुई समस्या

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प्लास्टिक की थैलियां छोड़ने के इस अभियान में डॉ. सीमा के सामने सबसे बड़ी समस्या थी कि कपड़ों की थैलियों के लिए कपड़ा कहां से लाया जाए? रुपानेगांव के सोनी बाबा ने सीमा की परेशानी का हल निकाला। सोनी बाबा समाज सेवक हैं। लोग अपनी श्रद्धा से उन्हें चादर देते हैं। इसीलिए सोनी बाबा ने अपने पास रखी बहुत सी चादरें अौर बिना सिले हुए कुरते के कपड़े डॉ. सीमा को दिए, जिनसे डॉ. सीमा ने लगभग 1000 थैलियां सिलवायीं। भटिंडा के एक टेंट हाउस से भी उन्हें काफी कपड़ा मिला।

बनी है स्पेशल टीम

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इस अभियान में डॉ. सीमा का साथ सरकारी स्कूल भुल्लर अौर सानुधुन के अध्यापक, छात्राें के अलावा लोकल पत्रकार, दुकानदार अौर टेलर भी दे रहे हैं। दर्जी किरना देवी का इसमें खास योगदान है। इनमें से कुछ लोग कैंपेन के दौरान डॉ. सीमा का थैलियों के डिस्ट्रीब्यूशन, प्लास्टिक की थैलियां छोड़ने अौर कपड़ों की थैलियों के महत्व को समझाने का लाइव वीडियो शूट करते हैं अौर इसे यूट्यूब अौर फेसबुक में अपलोड करने का जिम्मा भी लेते हैं। डॉ. सीमा ने बताया कि जब उन्होंने यह कैंपेन पहली बार शुरू किया तब शहर में हड़कंप मच गया। अब हर शनिवार मुक्तसर के मुख्य सब्जी मार्केट में वे कपड़े की 50-100 थैलियां बांटती हैं अौर लोगों को अपने शहर को कैंसर फ्री रखने की जिम्मेदारी का अहसास भी कराती हैं।  

बैग में क्या है खास


5 रुपए का यह कपड़े का बैग काफी स्पेशल है। इसमें 3 कंपार्टमेंट हैं, जिनमें सब्जियों को अलग-अलग रखने की सुविधा है। इस थैली का इस्तेमाल करने के बाद इसके जैसी थैली बनवा भी सकते हैं। ऐसे एक बैग को बनाने में 20 से 22 रुपए की लागत अाती है। पर्यावरण के बचाने के इस अभियान में डॉ. सीमा को कई लोग सपोर्ट कर रहे हैं। वे थैले बनाने के लिए नए कपड़े भी दे रहे हैं। इस मुहिम में शहर के एडिशनल डिप्टी कमिश्नर जैसे कई वरिष्ठ लोग भी शमिल हैं।

कैसे मिली सफलता


मुक्तसर के सब्जी मार्केट में जरूरत से ज्यादा प्लास्टिक की पन्नियां इस्तेमाल हो रही थीं। पर 5 रुपए में धरती बचाअो अभियान की वजह से इसके इस्तेमाल में कमी अायी है। अब वहां के होलसेल डीलर डिस्पोजेबल प्लास्टिक के बरतनों की जगह जूट के बैग का अॉर्डर देने लगे हैं। इस साल तकरीबन 1290 जूट के थैलों ने प्लास्टिक की थैलियों ने जगह ले ली है।


लोगों की फरमाइश अौर महिलाअों की सुविधा को देखते हुए डॉ. सीमा ने अब पर्सनुमा कपड़े के बैग भी बनवाने शुरू कर दिए हैं, जिसे महिलाएं आसानी से फोल्ड करके बड़े बैग में रख सकती हैं या पर्स की तरह पर कंधे पर लटका सकती हैं।
मुक्तसर की सब्जी मंडी एसोसिएशन के प्रेसिडेंट अशोक गर्ग कहते हैं कि पहले वे प्लास्टिक की थैलियों में रोज 500 रुपए खर्च करते थे, जो अब घट कर 150 रुपए हो गए हैं। लोग अपने साथ अब घर से कपड़े की थैलियां भी लाने लगे हैं। सबसे अहम बात कि मुक्तसर में पहले की तुलना में कैंसर के मरीज भी कम हुए हैं। मुक्तसर के लोग अब डेयरी या दूधवालों से दूध लेने के लिए प्लास्टिक की पन्नियों की जगह दूध के डोल लाने लगे हैं। डेयरीवाले भी लोगों में उत्साह बढ़ाने के लिए शर्त रखने लगे हैं—जो लोग पन्नी की जगह डोल का इस्तेमाल करेंगे, उन्हें हर 1 लीटर दूध के साथ 50 मि.ली. दूध मुफ्त दिया जाएगा।
डॉ. सीमा कहती हैं कि यह जरूरी है कि इस कोशिश के साथ-साथ प्लास्टिक की थैलियों पर भी बैन होना चाहिए। वे अपने इस कैंपेन को लोगों के बीच चर्चा का विषय बनाना चाहती हैं और इस अभियान को आगे बढ़ाना चाहती हैं।