Wednesday 23 February 2022 11:50 AM IST : By Indira Rathore

पति पत्नी को भी चाहिए थोड़ा ब्रीदिंग स्पेस

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‘‘साथ होने के लिए हमेशा पास खड़े होने की जरूरत नहीं होती। मंदिर के स्तंभ एक-दूसरे से निश्चित दूरी पर स्थित होते हैं, शाह बलूत और साइप्रस के पेड़ एक-दूसरे की छांव से अलग ही उगते हैं, छांव में नहीं। जरूरी है कि रिश्ते में आवश्यक दूरी रहे। साथ खुश रहो, लेकिन एक-दूसरे को एकांत का सुख जीने दो...।’’ -खलील जिब्रान

रिश्ता कोई भी हो, उसमें थोड़ी आजादी, ब्रीदिंग स्पेस जरूरी है, तभी वह लंबे समय तक टिकता है। लेखिका, कम्युनिकेशन कोच और साइकोथेरैपिस्ट एलेन सावेज अपनी किताब ब्रीदिंग रूम-क्रिएटिंग स्पेस टू बी अ कपल में कहती हैं कि इंटीमेट रिश्ते में जितना जरूरी करीब रहना है, उतना ही जरूरी पर्सनल स्पेस भी है। वास्तव में इन दोनों के बीच सही बैलेंस से ही रिश्ता खुशगवार बनता है।

यूनीक साइकोलॉजिकल सर्विसेज की फाउंडर गगनदीप कौर कहती हैं, ‘‘रिश्ते में मैं, तुम और हम के बीच सही बैलेंस होना चाहिए। ऐसे कई कपल्स हैं, जो मीलों दूर रहते हैं, लेकिन भावनात्मक रूप से बेहद करीब हैं। जबकि ऐसे भी कई जोड़े हैं, जो शादी से पहले बरसों साथ रहे, लेकिन शादी करते ही एकाध साल में प्यार खत्म हो गया और वे अलग हो गए। एक-दूसरे को उसकी सारी अच्छाइयों-बुराइयों, गुण-दोषों के साथ स्वीकार करने की क्षमता होनी चाहिए, उनके साथ तालमेल बिठाना आना चाहिए और एक-दूसरे को उनकी पर्सनल ग्रोथ का मौका देना चाहिए, तभी शादी का रिश्ता सफल हो सकता है।’’

एकांत का अर्थ फासला नहीं

अकसर पर्सनल स्पेस को नकारात्मक भाव में लिया जाता है। लेकिन हर व्यक्ति के लिए जरूरी है कि वह कुछ समय एकांत में रहे। यह एकांत ना सिर्फ उसके विकास के लिए, बल्कि रिश्तों के विकास के लिए भी अनिवार्य है। जिस तरह एकांत का मतलब अकेलापन नहीं होता, उसी तरह पर्सनल स्पेस का मतलब मन का फासला नहीं होता। एकांत हम खुद अपने लिए चुनते हैं, जबकि अकेलापन महसूस करने का अर्थ है कि हम किसी समस्या में हैं। कभी-कभी पार्टनर के साथ थोड़ी भावनात्मक-शारीरिक दूरी रिश्तों के लिए जरूरी होती है। इसकी वजह यह है कि कोई भी दो व्यक्ति एक जैसा नहीं सोच सकते, उनकी पसंद-नापसंद, रुचियां, नजरिया सब कुछ अलग होता है। थोड़ा ब्रीदिंग स्पेस नहीं होगा, तो दोनों का व्यक्तित्व सिकुड़ने लगेगा और आइडेंटिटी क्राइसिस होने लगेगी। रिश्ते की खूबसूरती यही है कि उसमें दोनों को ग्रो करने का समान अवसर मिले। 

एक रिश्ते से हजार ख्वाहिशें 

मनोवैज्ञानिक और मैरिज काउंसलर्स मानते हैं कि शादी से बहुत अपेक्षाएं रखनेवाले लोग अकसर निराश होते हैं। पार्टनर से यह अपेक्षा रखना कि वह आपको कंप्लीट कर देगा, आपकी हर ख्वाहिश पूरी कर देगा, बिना कहे आपके हर मनोभाव को समझ लेगा, आपकी हमेशा केअर करेगा, एक असंभव चाह है। ऐसी चाहतें रिश्तों में घुटन पैदा करने लगती हैं। शादी कोई फेयरीटेल नहीं, वास्तविक दुनिया में निभाया जानेवाला रिश्ता है। इसमें दो अलग-अलग परिवेश में पले-बढ़े व्यक्ति एक साथ आ कर परिवार बनाते हैं, साथ-साथ गलतियां करते हुए सीखते हैं और एक-दूसरे की हर अच्छी-बुरी चीज को स्वीकार करके आगे बढ़ते हैं। ऐसे में अगर पार्टनर को थोड़ा स्पेस ना दें, उससे अत्यधिक अपेक्षाएं रख लें और फिर उनके पूरे ना होने पर नैगिंग शुरू हो जाए, तो यह स्थिति शादी के लिए ठीक नहीं हो सकती। इसमें जल्दी ही झगड़े शुरू होने लगेंगे। नतीजा होगा, रिश्ते में दरार...।

वी और मी के बीच संतुलन 

शादी मी टाइम और वी टाइम के बीच बैलेंसिंग एक्ट है। अगर दोनों एक-दूसरे के हिसाब से खुद को ढालने में जुट जाएंगे, तो पर्सनेलिटी खो देंगे। रिश्ते में पार्टनर से की जानेवाली अपेक्षाएं एक सीमा के भीतर ही होनी चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि शादी के बाद परिवार की जिम्मेदारियों के बीच कोई अपने पुराने संबंधों, दोस्तों और हॉबीज को भूल जाए। अपनी रुचियों को दरकिनार कर दे, वह लगातार अपने अस्तित्व को भूल कर पार्टनर या परिवार के लिए ही जीता रहे। इससे रिश्ते में असुरक्षा, चिड़चिड़ाहट और संदेह बढ़ता है। कोई व्यक्ति अपने भीतर खुश नहीं रहेगा, तो परिवार को कैसे खुश रख सकता है। मी टाइम का मतलब खुदगर्ज हो जाना नहीं है, तो वी टाइम का मतलब भी यह नहीं है कि अपने लिए सोचा ही नहीं जाए। दोनों के बीच सही बैलेंस ही रिश्तों की पूंजी है। 

स्पेस क्यों है जरूरी

रिश्तों में प्यार हो,  आसक्ति नहीं। आसक्ति दूसरे पर काबू पाना चाहती है, असुरक्षित बनाती है, आत्मविश्वास खत्म करती है और रिश्ते को टॉक्सिक बनाने लगती है। जबकि प्यार दूसरे को खुश और आजाद रखना चाहता है। थोड़ा सा पर्सनल स्पेस रिश्ते को कैसे खुशगवार बना सकता है, जानें-

1. रुचियों के लिए वक्त मिलता है पर्सनल टाइम का सदुपयोग अपनी रुचियों को बढ़ाने-संवारने में किया जा सकता है। हर किसी में कोई ना कोई हुनर होता है। कोई लिखना चाहता है, तो कोई म्यूजिक या डांस सीखना चाहता है, किसी को पेंटिंग या कुकिंग में दिलचस्पी है, तो किसी को योगा-वर्कआउट भाता है। कोई पर्सनल ग्रोथ चाहता है, तो कोई सोशल सर्कल में लोकप्रिय है। इतना सब कुछ तभी हो सकता है, जब रिश्ते से थोड़ा वक्त मिले।

2. दोस्ती-यारी भी है जरूरी। पुरुष अपने दोस्तों के साथ कुछ पल बिताना चाहते हैं, तो स्त्रियां भी अपने गर्ल गैंग या सिब्लिंग्स के साथ कंफर्ट चाहती हैं। कई लड़कियां पति के साथ होते हुए अपने दोस्तों या रिश्तेदारी में असहज महसूस करती हैं, जबकि अकेले वे ज्यादा एंजॉय कर पाती हैं। लड़कियों को शॉपिंग का मजा दोस्तों के साथ मिलता है, तो लड़कों को भी दोस्तों के साथ मौज-मस्ती भाती है। ऐसे में अगर दोनों को थोड़ा स्पेस अपने लिए मिले, तो हर्ज क्या है।

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3. रिश्ता बोझिल नहीं होता। एक रियल कपल थे, कुछ साल पहले अलग हुए, तो परिजन के साथ दोस्त भी चौंके, क्योंकि वह आदर्श जोड़ी मानी जाती थी, जिसमें पति बहुत केअरिंग नेचर का था। हमेशा पत्नी के साथ रहता, उसकी हर पसंद-नापसंद का खयाल रखता। समय के साथ खयाल इतना बढ़ा कि पत्नी का ब्रीदिंग स्पेस ही खत्म हो गया। आखिर कौन चाहेगा कि पार्टनर 24 घंटे निगरानी रखे, फिर भले ही वह प्यार की शक्ल में हो। ब्रीदिंग स्पेस से रिश्ते में जीवंतता बनी रहती है। पार्टनर केअर टेकर या बेबीसिटर नहीं है कि दूसरे की निगहबानी करता रहे।

4. सेक्स संबंध बेहतर होते हैं। शादीशुदा जिंदगी में जब दोनों पार्टनर्स अपनी-अपनी रुचियों को फॉलो कर पाते हैं, अपने वक्त की तिलांजलि दे कर दूसरे की जिम्मेदारी नहीं निभाते, बल्कि साथ मिल कर एक बेहतर परिवार की रचना करते हैं, एक-दूसरे को ग्रो करने का मौका देते हैं, थोड़ा दूर रह कर एक-दूसरे को मिस करते हैं, तो इससे उनके बीच एक अलग बॉण्डिंग पनपती है। वे अंदर से खुश होते हैं, तो सेक्स संबंधों में भी नयी ऊर्जा आती है। एक-दूसरे की सराहना करने, रुचियों, पसंद-नापसंद का सम्मान करने, स्पेस देने से पार्टनर्स वास्तव में मानसिक-शारीरिक और भावनात्मक रूप से नजदीक आते हैं। 

तलाक की वजह बन सकता है मी टाइम का ना होना 

मिशिगन युनिवर्सिटी के सोशल रिसर्च इंस्टिट्यूट की प्रोफेसर साइकोलॉजिस्ट डॉ. टैरी और्बुच ने वर्ष 1990 में यूएस में शादीशुदा कपल्स की जिंदगी पर एक शोध शुरू किया, जिसमें 375 जोड़ों के जीवन को पूरे 25 वर्षों तक स्टडी का हिस्सा बनाया गया। इतने वर्ष में पाया गया कि 46 प्रतिशत कपल्स का तलाक हो चुका था। अपने शोध के दौरान दंपतियों से हुई बातचीत में डॉ. टैरी ने पाया कि 30 प्रतिशत जोड़ों का कहना था कि उनके पास अपने लिए कोई समय ही नहीं है। ऐसा महसूस करनेवालों में पत्नियां अधिक थीं। प्रोफेसर टैरी अपने शोध के नतीजों के बारे में कहती हैं कि थोड़ा सा एकांत पार्टनर्स को अपने बारे में सोचने की मोहलत देता है। अपने शौक उभारने और घर-परिवार से जुड़ी जिम्मेदारियों से कुछ पल मुक्त होने का अहसास प्रदान करता है। जब दंपतियों के पास अपनी रुचियां, दोस्त और अपने शौक होंगे, तो वे खुश रहेंगे और जाहिर है कि यह खुशी उनके रिश्तों में भी झलकेगी। कुछ समय एक-दूसरे से दूर रहना रिश्तों की सेहत के लिए अच्छा होता है।