कितना अच्छा है ना, ना कोई रोक-टोक, ना कोई शर्त, ना बंधन, ना संस्कार निर्वाह, ना किसी तरह का कमिटमेंट। ऐसे रिश्ता, जिसमें स्त्री-पुरुष मैरिड कपल की तरह साथ तो रहते हैं, पर रिश्ते पर कोई मोहर भी नहीं लगाते। इस बेलौस रिश्ते को ‘लिव-इन’ रिश्ते का नाम दिया गया है, जो पाश्चात्य देशों की तरह भारत में भी जोर पकड़ने लगा है। आज ऐसे युवाओं की संख्या बढ़ रही है, जो लिव-इन में रहना कंफर्टेबल मानते हैं। बावजूद इसके इस चलन को परिवार व समाज से हरी झंडी नहीं मिली। कानूनी तौर पर देखा जाए, तो जब दो लोग अपनी सहमति से साथ रहने के लिए इच्छुक हैं, तो रह सकते हैं, वे अपराधी नहीं हैं। इस बात को धीरे-धीरे परिवारवाले मानने लगे हैं, पर ऐसे परिवार अभी कम हैं।
सोशल एप इन शॉर्ट द्वारा लिव-इन रिलेशनशिप पर एक सर्वे कराया गया, जिसमें नेट सर्फ करनेवाले 1.4 लाख लाेगों के विचार सामने आए। इसमें ज्यादातर 18-35 उम्र के स्त्री-पुरुष शामिल हुए। इस सर्वे में पाया गया कि 80 प्रतिशत मिलेनियंस आज भी इस रिश्ते को समाज में एक बड़ा टैबू मानते हैं। 47 प्रतिशत मानते हैं कि लिव-इन की तुलना में शादी ज्यादा सही है। 26 प्रतिशत मानते हैं कि वे ताउम्र लिव-इन में ही बिना किसी रोकटोक के जैसा चाहें, वैसा जीना चाहते हैं। परेशानी यह है कि इस स्वतंत्रता का रिश्ते में नेगेटिव असर भी देखने को मिल रहा है, जो आए दिन खबर की सुर्खियाें का रूप ले रहा है।
वेंकेटश्वर कॉलेज, दिल्ली के समाजशास्त्री अभिजीत कुंडू के मुताबिक, ‘‘देखा जाए, तो परिवारों में भी एक तरह का बदलाव आया है। सबसे पहले देखने की बात है कि परिवार का ढांचा कैसा है, परिवार की सोच मॉडर्न व खुले विचार की है, पुरानी सोच है या फिर काफी पारंपरिक है। इस रिलेशनशिप में सबसे बड़ी परेशानी यह है कि कोई कानूनी सुरक्षा नहीं है। कपल्स के परिवार का भी दखल नहीं है। ऐसे में कपल्स के एक-दूसरे के प्रति कमिटमेंट में भी गंभीरता नहीं दिखती है।
आजादी बनाम संस्कार
ज्यादातर लिव-इन रिश्ता वे युवा ही जीते हैं, जो काफी आजादी पसंद हैं, जिनके परिवार में उनके रिश्ते को ले कर विरोध है, जो विवाह संस्कार में विश्वास नहीं करते या छोटे शहरों से महानगरों में संघर्ष के चलते लिव-इन में रहने का प्रयोग कर रहे हैं। इंटरनेशनल जरनल ऑफ रिसर्च इन सोशल साइंस एंड ह्यूमेनिटी द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में डॉ. कल्पना देयोकर बताती हैं कि युवाओं के जीवन में ‘आजादी’ सबसे ज्यादा मायने रखती है। ज्यादातर युवाओं का कहना है कि ‘डाइवोर्स का ठप्पा’ अपनी लाइफ में लगाने से अच्छा है कुछ समय लिव-इन में रह कर देखा जाए। बिना किसी कानूनी और सामाजिक बंधन के स्त्री-पुरुष का सहजता के साथ जीना ही आज के युवा की इच्छा है।
नोएडा के फार्मा कंपनी के सेल्स एग्जीक्यूटिव सूर्य प्रताप सिंह लिव-इन रिश्ते में हैं। वे कहते हैं, ‘‘मेरा रिश्ता अपनी गर्लफ्रेंड के साथ सीरियस था, हम दोनों को लगा कि आपस में साथ रह कर एक-दूसरे काे हम जान लेंगे कि हम शादी के लिए सही हैं भी कि नहीं। क्योंकि हम अपने आसपास डाइवोेर्स केस बहुत देख रहे हैं। मुझे लगता है, जब स्त्री-पुरुष साथ में रहते हैं, तो बहुत सारी दिक्कतें और सहूलियतें सामने आती हैं। कई बार दोनों पार्टनर हर तरह की स्थितियां संभालते हैं, जबकि कई बार नहीं संभाल पाते हैं और लिव-इन में रहने के बाद ब्रेक के बाद पेरेंट्स के पास वापस आते हैं और अरेंज मैरिज के लिए हामी भरते हैं। हां, कुछ कपल्स ऐसे भी हैं, जो परिस्थितियां संभाल नहीं पाते और उनके रिश्ते में मारपीट जैसी नौबत आ जाती है।’’ बेहतर है कि लिव-इन में जाने से पहले कुछ बातों को अच्छी तरह मन में बिठा लें, जिससे रिश्ते का चेहरा ना बिगड़े और अंजाम अच्छा हो।

नहीं होगा धोखा
हाल में हो रही भयानक घटनाओं को देखते हुए साइकोलॉजिस्ट और लाइफ कोच डॉ. राखी अग्रवाल लिव-इन में रहनेवालों को सलाह देती हैं कि अपने पार्टनर पर विश्वास तो करें, पर अंधा विश्वास ना करें। दोनों में फर्क है। प्यार में अंधे हो कर फैसला लेने से बचें, तो बेहतर है। जिंदगी जज्बातों से नहीं व्यावहारिक हो कर जीने से चलती है। इमोशनल बैलेंसिंग का खयाल रखें ।
- ज्यादातर लिव-इन रिश्ते में रहनेवाले पार्टनर कमाऊ होते हैं, उनका खर्चा उनकी आपसी समझ पर हाेता है। कभी भी अपने अकांउट की पूरी डिटेल शेअर ना करें। अपना अकांउट अलग रखें।
- इंटीमेसी कितनी ही मजबूत क्यों ना हो, घर खर्च पहले से तय करें। परिवार से संबंध खत्म होने पर कई बार रुपए की कमी सबसे बड़ी परेशानी का सबब बनती है।
- किसी भी रिश्ते में अगर आदर नहीं हो, तो उसे वहीं ब्रेक दे दें। आत्मसम्मान की कीमत पर रिश्ता ना घसीटें। अगर किसी तरह से रिश्ता नहीं चलता है, तो कोई गलत कदम लेने के बजाय खुद को संभालने की कला अानी चाहिए। जब भी दिल और दिमाग में द्वंद्व चले, तो दिमाग की सुनें। श्रद्धा मर्डर केस में उसके दिमाग ने उसे अलग होने का पहले संकेत दे दिया था, पर दिल उसके मन पर हावी रहा। नतीजा सब जानते हैं।
- पार्टनर का झुकाव किसी अन्य की ओर देखें, तो रोकने-टोकने की कवायद बेकार है, क्योंकि व्यक्तिगत स्वतंत्रता ही लिव-इन में खास बात है। अगर लगता है पार्टनर कंट्रोल या डॉमिनेट कर रहा है, उस पर चुप होने से अच्छा है कि अलग हो जाएं।
- पार्टनर का मन कहीं और भटक रहा है, तो उसे खींचने से अच्छा है, रिश्ते को थोड़ा वक्त दें, कुछ दिन अलग रह कर देखें।
- साथी अगर किसी तरह का नशा करता है और यही नशा धीरे-धीरे आदत बनने लगा है तो संभल जाएं, यह रिश्ते के लिए खतरे की घंटी है।
- शादी से कुछ दिन पहले लिव-इन में रह कर एक-दूसरे को जानने की कोशिश है, तो शादी की तारीख, समय सब कुछ पहले से तय कर लें। अगर पार्टनर शादी से मुकरने लगा है, तो ज्यादा दबाव बनाने से बेहतर है, उसे छोड़ दिया जाए। वह विश्वसनीय नहीं है।
- सेक्स रजामंदी से होता है, पर गर्भ निरोध में भी रजामंदी होनी चाहिए। बिन ब्याहे मां बनने को आज भी परिवार और समाज सही नहीं ठहराता। अगर बच्चा हो भी जाए, तो कानून की नजर में बच्चा वैध है और उसे पिता से सारे हक मिलते हैं, पर आगे चल कर इस बच्चे का अपने अभिभावकों के साथ रिश्ता अच्छा रहे, इसकी कोई गारंटी नहीं।
- लिव-इन रिलेशनशिप में युवाओं के साथ सबसे बड़ी गड़बड़ी होती है कि वे अपने अभिभावकों को ही अपने से दूर कर देते हैं। लिहाज और डर खत्म हो जाता है, जिसका आगे चल कर उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ता है। वे लोग ऐसे रिश्ते में जीने लगते हैं, जहां वे सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं। उनमें एडजस्टमेंट स्किल बिलकुल ही खत्म हो जाती है। किसी भी बड़े का आदर जितना उन्हें करना चाहिए, वे नहीं कर पाते। उन्हें अकेले रहने की आदत
पड़ जाती है। अच्छा होगा कि अकेले रहने के बजाय
अपनों से संपर्क बनाए रखें, जिससे अगर देर-सवेर कोई जरूरत हो या माता-पिता को आपकी जरूरत हो, तो हिचकिचाहट ना हो। ज्यादा स्वच्छंदता में कई बार रिश्ता सफल हो सकता है, लेकिन कभी-कभी दरक भी सकता है, क्योंकि कोई बंधन नहीं है। समाजशास्त्री अभिजीत कुंडू कहते हैं, ‘‘लंबे समय तक लिव-इन में रहने के बाद भी लोग पूछते हैं कि शादी क्यों नहीं की? सच ताे यह है लिव-इन में रहने के बाद रिश्ते को सामाजिक तौर पर स्वीकार करने के लिए शादी करनी जरूरी है, क्याेंकि यह कानूनी हक देता है। फैमिली प्लान करना हो या जॉइंट प्रॉपर्टी खरीदनी हो, बैंक अकाउंट का नॉमिनी बनाने के लिए भी रिश्ते को कानूनी जामा पहनाने के लिए विवाह संस्कार जरूरी है और शादी का रजिस्ट्रेशन कराना भी अनिवार्य है।’’