
डिजिटल युग में हर कोई कंप्यूटर स्क्रीन के सामने दिन बिता रहा है। कई बार सिस्टम में फाइलों, डॉक्यूमेंट्स, पिक्चर्स, फोल्डर्स का जमावड़ा हो जाता है। डिस्क फुल हो जाती है, तो चुन-चुन कर गैरजरूरी चीजें रीसाइकिल बिन में डालनी पड़ती हैं। सिस्टम हैंग हो जाता है, तो बड़े से बड़ा इंजीनियर भी पहले सिस्टम को शटडाउन करके उसे रीस्टार्ट या रीबूट करता है। जीवन में भी कई बार ऐसे मौके आते हैं। अपने भीतर की क्रिएटिविटी को बनाए रखने, सोच-समझ को समृद्ध करने, चिंतन प्रक्रिया को समझने, कल्पना-शक्ति बढ़ाने, फैसलों पर पुनर्विचार करने या खुद को रिजुवनेट करने के लिए ब्रेक की जरूरत पड़ती है। छात्रों को स्टडी से, प्रोफेशनल्स को रूटीन दफ्तरी कामकाज से, गृहिणियों को किचन से और यहां तक कि कपल्स को भी कभी-कभी एक-दूसरे से थोड़ा पॉज लेने की जरूरत पड़ती है।
कब दबाएं मन का पॉज बटन
लगातार रूटीन दिनचर्या के बाद एक वक्त आता है, जब ऊर्जा में कमी महसूस होने लगती है। ऐसे में ब्रेक ना मिले, तो व्यक्ति में बर्नआउट के लक्षण नजर आने लगते हैं। फोर्टिस शालीमार बाग, दिल्ली में मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंसेज में क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. वारिशा कमल कहती हैं कि बर्नआउट के लक्षणों में हैं खाने-पीने की आदतों में बदलाव, एनर्जी में कमी, मन को फोकस ना कर पाना, बार-बार बीमार पड़ना, मूड में उतार-चढ़ाव, फ्रस्ट्रेशन, सिर दर्द, पेट दर्द, नींद ना आना, नशे के प्रति आकर्षण, परिवार, दोस्तों, सहकर्मियों से दूरी बनाना और प्रेरणा की कमी महसूस होना...। इनमें से 3-4 लक्षण भी नजर आने लगें, तो इसे वॉर्निंग समझते हुए रूटीन को ब्रेक करना जरूरी है।
ब्रेक का मतलब ब्रेकअप नहीं
ब्रेक का अर्थ स्थितियों से भागना नहीं है, बल्कि थोड़ा ठहरना या विश्राम करना है, ताकि नए सिरे से अपने भीतर ऊर्जा पैदा की जा सके। स्कूलों में 45 मिनट का पीरियड, दफ्तरों में लंच ब्रेक, वीकेंड छुट्टी, हॉलीडेज, त्योहार... इसीलिए बनाए गए, ताकि दिमाग को आराम मिल सके। स्टडीज बताती हैं कि रोजमर्रा के कामों से कभी-कभी खुद को डिटैच करने से स्ट्रेस और फटीग से बच सकते हैं, साथ ही इससे प्रोडक्टिविटी भी बढ़ती है।
ब्रेकटाइम में करें क्या
यह बड़ा सवाल है कि ब्रेक तो ले लें, मगर इसमें ऐसा क्या करें कि इससे वाकई लाभ मिल सके। अपने सिस्टम को रीबूट करना चाहते हैं, तो रूटीन से पूरी तरह डिटैच होना सीखें। तमाम वैज्ञानिक इस पर शोध कर रहे हैं कि थकानेवाले रूटीन के बाद ब्रेन कैसे रिएक्ट करता है। हालांकि यह साबित हुआ है कि लगातार डिमांडिंग टास्क पर काम करते रहने के बाद दिमाग का फ्यूल चुक जाता है। एक परफेक्ट ब्रेक कैसा हो, यह बहुत हद तक व्यक्ति के स्वभाव या आदतों, उसके काम के नेचर और स्थितियों पर निर्भर करता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ब्रेक के दौरान कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
1. ऐसी एक्टिविटीज चुनें, जो आपके रोजमर्रा के काम से अलग हों। ऐसा ना हो कि ब्रेक में भी दिमाग वैसे ही सोचे, जैसा वह रूटीन दिनों में सोचता है। काम का नेचर बदलना भी एक तरह का ब्रेक है।
2. जो लोग सिटिंग जॉब्स में हैं और लगातार दिमाग को इंगेज रखते हैं, उन्हें ब्रेक के दौरान ऐसा काम करना चाहिए, जो उन्हें शारीरिक रूप से थकाए। प्राकृतिक स्थान पर जा कर समय बिताएं, खेलें, दौड़ें, डांस करें, ताकि स्ट्रेस लेवल कम हो सके।
3. अगर लगातार टेक्नोलॉजी या गैजेट्स के साथ काम करते हैं, तो ब्रेक में 2-3 दिन हर गैजेट से दूरी बना लें, ईमेल चेक ना करें, ना वॉट्सएप नोटिफिकेशंस देखें, सोशल साइट्स से लॉगआउट कर लें, ताकि डिजिटल दुनिया से कुछ दिन दूर रह सकें। घूम रहे हैं, तो मोबाइल फोन के बजाय डिजिटल कैमरा साथ ले जाएं, लैपटॉप के बजाय अच्छी किताबें रखें, पानीवाली जगहों पर जाएं, पार्क में समय गुजारें या परिवार के साथ घूमें।
4. एसी में ज्यादा वक्त तक रहते हैं, तो कुछ समय धूप में जरूर गुजारें। मेंटल हेल्थ और विटामिन डी के बीच गहरा कनेक्शन है। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि दिनभर में 3-4 घंटे आउटडोर गतिविधियां जरूर करनी चाहिए। गरमी में पसीना ना आए, बारिश में भीगें नहीं और सरदियों में धूप में निकलें नहीं, तो नेचर से कनेक्शन टूट जाएगा, जो किसी भी इंसान के लिए अच्छा नहीं।
5. ब्रेक लेना आपका अधिकार है, लिहाजा मन में गिल्ट ना पालें। खुद को थोड़ा एकांत व जरूरी वक्त दें और वह करें जो करना चाहते हैं।