Wednesday 16 February 2022 04:19 PM IST : By Vanita

महिलाएं या पुरुष कौन ज्यादा गॉसिप करता है, सचाई जान कर मुंह खुला रह जाएगा

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क्या वाकई महिलाएं गॉसिप करने की इतनी शौकीन होती हैं कि अपनी मेच्योर उम्र में भी हाई स्कूल की स्टूडेंट की तरह छोटी-छोटी बातों पर गॉसिप करती हों? फ्लोरिडा स्टेट युनिवर्सिटी ने तो इस पर रिसर्च ही कर डाली। स्टडी ऑथर तानिया रेनॉल्ड ने शोध के दौरान पाया कि महिलाएं उन महिलाओं के बारे में गॉसिप करती हैं, जो ड्रेसिंग और स्टाइल के मामले में उनके लिए एक चुनौती बन जाती हैं। वे उनसे तुलना करके अपने लुक्स को बेहतर रखने की कोशिश करती हैं। हालांकि ऐसी गॉसिप से किसी को नुकसान नहीं पहुंचता। पर उनके बीच खूबसूरत होना और दिखना गॉसिप का मेन मुद्दा होता है। दूसरी महिलाओं से कॉम्पिटीशन रखने का स्तर जिसमें जितना ज्यादा होता है, उस महिला के गॉसिप का स्तर उतना ही ऊंचा होता है। उनकी गॉसिप का विषय प्रेम त्रिकोण यानी किसका किससे चक्कर चल रहा है, एक से चल रहा या दो के साथ तक ही सीमित नहीं रहता। उनके बीच वर्कप्लेस में किसी को प्रमोशन और बोनस मिलना गॉसिप का रूप ले लेता है। कई बार यह किसी के लिए नुकसानदायक भी हो जाता है। 

उनकी बातों का केंद्र दूसरी महिलाओं की चाल-ढाल, रंगरूप, बोलने का तरीका, फिगर, ड्रेसेज, और रिलेशनशिप आदि रहता है। महिलाएं आसपास की घटनाओं पर नजर रखती हैं और उस पर गॉसिप करती हैं। मसलन कॉलोनी की किस महिला ने जिम जॉइन किया, किसका वजन बढ़ा, किसकी बेटी या बेटे की नजरें भिड़ी हुई हैं, किस घर में सास-बहू के बीच अनबन चल रही है, ये सारे उनकी गॉसिप के पसंदीदा टॉपिक हैं। 

दरअसल महिलाओं को बातों में रस लेना, बात को चटपटा बना कर पेश करना, मजे लेना और दूसरे को बातों का रस महसूस कराना बहुत अच्छा लगता है। उनमें माहौल और स्थितियों को भांपने की अदभुत क्षमता होती है। वे बेहतरीन ऑब्जर्वेशन पावर से लैस होती हैं। गपबाजी उनकी जिंदगी की एकरसता को तोड़ती है, उनका मन लगा रहता है। गपबाजी से उनके घर-बाहर के कामों को करने की क्षमताएं कम नहीं होती हैं। उलटे वे तो फ्रेश हो जाती हैं। गॉसिप जब नेगेटिव हो जाए, तो पछताती भी हैं। गपबाजी का मतलब उनके लिए हंसना-हंसाना और हल्का होना है।

कैलिफोर्निया रिवरसाइट युनिवर्सिटी ने 467 स्त्री-पुरुषों पर रिसर्च की, जिनकी उम्र 18-58 साल थी। उनकी बातें रेकॉर्ड कर ली गयीं। दिनभर की रेकॉर्डेड गॉसिप से पॉजिटिव, नेगेटिव और न्यूट्रल बातों को अलग किया गया। यह दुनिया में पहली बार गपबाजी पर वैज्ञानिकों द्वारा की गयी रिसर्च है। वहां जिस भी किसी के बारे में चर्चा हुई, वह वहां मौजूद नहीं था यानी गॉसिप हमेशा पीठ पीछे होती है।

स्त्री-पुरुष दोनों गपबाज

स्त्री-पुरुष दोनों गपबाज होते हैं। पुरुष महिलाओं के बारे में मजाक में यही कहते हैं कि बिना गप्पें मारे, किसी की बुराई किए बिना महिलाओं को चैन नहीं आता है। वे या तो टीवी देखती रहेंगी या पड़ोसिनों से गप्पे मारेंगी। हमारे पास टाइम नहीं रहता और ये टाइम पास के लिए गप्पें मारती हैं। अब सवाल है कि क्या पुरुष दूध के धुले हैं, कोई गॉसिप नहीं करते? ऐसा बिलकुल नहीं है। कई बार वे पॉलिटिक्स की बातें दरकिनार करके बॉस की रस ले-ले कर आलोचना करते हैं। अपने कलीग्स की कमियां और अपनी बुद्धिमानी बघारते हैं। यहां तक कि किसी की नौकरी खतरे में डालने तक गॉसिप करते हैं। युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में साइकोलॉजी की प्रोफेसर मेगन रॉबिंस कहती हैं, ‘‘गॉसिप करना बहुत स्वाभाविक है। गॉसिप में साथ देने से संबंध मजबूत होते हैं। ये गॉसिप नेगेटिव ही हों, ऐसा बिलकुल जरूरी नहीं है। ये न्यूट्रल और पॉजिटिव भी हो सकती हैं।’’

2019 में जरनल सोशल साइकोलॉजिकल और पर्सनेलिटी साइंस में प्रकाशित एक विश्लेषण बताता है कि हर दिन 52 मिनट लोग 467 विषयों पर गॉसिप करते हैं, जिनमें से एक तिहाई बातचीत न्यूट्रल मसलन फिल्मों, महंगाई, फिटनेस और सुरक्षा पर होती है। इनमें से 15%नेगेटिव गॉसिप यानी किसी एक व्यक्ति के बिहेवियर पर टीका-टिप्पणी केंद्रित होती है। पॉजिटिव गॉसिप सबसे कम मात्रा में केवल 9% होती है। पारिवारिक और सामाजिक समारोहों में ग्रुप्स में होनेवाली गॉसिप दोस्तियों और संबंधों को मजबूत करती है। किसी की साड़ी,ड्रेस या स्टाइल पर पॉजिटिव गॉसिप हो सकती है। कुछ पढ़े-लिखे लोग तो गॉसिप को कल्चरल लर्निंग या कुछ नया सीखने का बेहतरीन जरिया भी मानते हैं। इससे उनको समाज में अपनी जगह बनाने में मदद मिलती है। मान लीजिए अगर किसी ने लोगों को धोखा दिया है, तो उसकी आलोचना आगे जा कर गॉसिप का रूप ले लेती है। लेकिन उस धोखेबाज की जानकारी दूसरे लोगों को हो जाती है और वे उसके झांसे में आने से बच जाते हैं। 

गॉसिप के फायदे

2015 में सोशल न्यूरोसाइंंस में पब्लिश एक स्टडी में वैज्ञानिकों ने माना कि जब कोई स्त्री या पुरुष अपने दोस्तों और सेलिब्रिटीज के बारे में पॉजिटिव और नेगेटिव गॉसिप सुनते हैं, तो उनके ब्रेन में प्री फ्रंटल कोर्टेक्स के एक्टिव होने से सोशल बिहेवियर समझने और उसे सही रखने का रास्ता मिलता है। दूसरों के बीच अपनी पॉजिटिव इमेज की चाहत हर गॉसिप करनेवाले में होती है। सेलिब्रिटीज के बारे में गॉसिप करना लोगों का सबसे ज्यादा मनोरंजन करता है। गॉसिप के दौरान बातें शेअर होती हैं, इससे लगता है कि दूसरा भी मेरी तरह ही सोच रखता है। तब अकेलापन महसूस नहीं होता है। अकसर बातें ही गप्पों की शक्ल ले लेती हैं। अब तो गॉसिप के सबसे सक्रिय अड्डे टि्वटर, ब्लॉग्स, फोन और टेक्स्ट मैसेजेस हैं। साइकोलॉजी के प्रोफेसर फ्रैंक टी. मैकएंड्रयू साइंटिफिक अमेरिकन में प्रकाशित अपने एक लेख में कहते हैं कि अगर पूछा जाए कि हम गॉिसप क्यों करते हैं, तो यह तो हमारे संस्कारों में तबसे शामिल है, जब हम कबीलों में रह रहे थे। किसी की चीज पसंद आना, व्यवहार में कमी, कामयाबी की सराहना जाहिर करने और कॉम्पिटीशन की भावना पैदा करने का समझदारीभरा जरिया तब भी गॉसिप थी, आज भी है।

तरह-तरह के गॉसिपबाज 

‘‘आमतौर पर गॉसिप करने को बुरा माना जाता है। यह लोगों की एक आम सोच है,’’ कहती हैं मेगन रॉबिंस। पर हकीकत में ऐसा नहीं है। मेगन की राय में अगर गाहेबगाहे ऐसी गॉसिप में पड़ जाएं, जिसमें किसी की छीछालेदर हो रही हो, तो उसमें शामिल ना हों, उसे नजरअंदाज करें। 

गॉसिप करनेवाले दो तरह के होते हैं। एक तो वे जो गॉसिप करते हैं और दूसरे वे जो सिर्फ सुनते हैं, बोलते नहीं हैं। भले ना बोलें, पर वे गपबाजों की श्रेणी में रखे जाएंगे। एक रिसर्च में पाया गया कि जब कोई किसी गलत हरकत या अन्याय की बात सुनता है, तो उसके दिल की धड़कन बढ़ जाती है। जब वे उस गॉसिप में शामिल हो जाते हैं, तो उनकी हार्ट बीट सामान्य हो जाती है। इससे दिलोदिमाग शांत होता है। गॉसिप अच्छी-बुरी दोनों होती हैं। अकसर मतलब के लिए अफवाहें फैलाने वाले गॉसिपबाज को लोग अवॉइड करने लगते हैं। यह बात एक ग्रुप पर किए गए अध्ययन में सामने आयी। गॉसिप पॉजिटिव,  नेगेटिव, तटस्थ, चापलूसी और द्वेषभरी होती है। 

दिल्ली में साइकोलॉजिस्ट डॉ. बलबीर सिंह के अनुसार, ‘‘गॉसिप की टेंडेंसी स्त्री-पुरुष दोनों में होती है। यह एक तरह की रिलैक्सेशन थेरैपी है। स्त्री-पुरुष गॉसिप करके रिलैक्स होते हैं। गॉसिप चिंताओं को दूर करके हल्का महसूस कराती है। महिलाओं को अकसर गॉसिपबाज होने का तमगा दिया जाता है, मगर उनकी हर बात को गपबाजी से जोड़ना गलत है। वे पुरुषों की तुलना में ज्यादा समझदार, बुद्धिमान, प्रैक्टिकल, ईमानदार और मेहनती होती हैं।’’ 

वैसे भी साइकोलॉजिस्ट मेगन रॉबिंस का कहना है कि ऐसा कोई नहीं जो गॉसिप ना करता हो। रिसर्च में यह बात सामने आयी कि महिलाएं पुरुषों से ज्यादा कानाफूसी करती हैं, पर वे ज्यादातर न्यूट्रल बातें शेअर करती हैं, जो ना तो पॉजिटिव होती हैं और ना ही नेगेटिव। फिर भला अकेले महिलाओं पर गॉसिप का इलजाम क्यों? पुरुषों को भी इसमें शामिल किया जाए। 

हम गॉसिप क्यों करते हैं, तो यह तो हमारे संस्कारों में तबसे शामिल है, जब हम कबीलों में रह रहे थे। किसी की चीज पसंद आना, व्यवहार में कमी, कामयाबी की सराहना जाहिर करने और कॉम्पिटीशन की भावना पैदा करने का समझदारीभरा जरिया तब भी गॉसिप थी, आज भी है।