Monday 23 August 2021 03:00 PM IST : By Team Vanita

आपके रोने की वजह कहीं आपके हारमोंस तो नहीं

crying

कहते हैं, जिस तरह पीनेवालों को पीने का बहाना चाहिए, उसी तरह महिलाअों को रोने का बहाना चाहिए। चट से रो पड़ती हैं। मिनटों में गला भर आएगा और आंसू बहने शुरू। दिल्ली के सर गंगा राम हॉस्पिटल में क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. रोमा कपूर इसकी वजह स्त्री को समाज में नजरअंदाज किया जाना मानती हैं। उनके अनुसार, ‘‘हमारे समाज में लड़कियों की बात को तवज्जो नहीं दी जाती, इसलिए बचपन से रो-रो कर अपनी बात मनवाने की उनको आदत पड़ जाती है। कुछ महिलाअों को गुस्सा इतना आता है कि गुस्से की वजह से रोने लगती हैं। रोते-रोते झगड़ती हैं।’’ दिल्ली में न्यूरो एंड ब्रेन कंसल्टेंट डॉ. समीर कालरा बताते हैं कि ‘‘महिलाअों के ब्रेन का इमोशनल एरिया डेवलप और बहुत नाजुक होता है। इसलिए दुख हो या सुख उनके आंसू छलक पड़ते हैं। दरअसल महिला और पुरुष के हारमोनल सिस्टम एक-दूसरे से अलग होते हैं। कुछ हारमोन महिलाअों में अधिक होते हैं, कुछ हारमोन पुरुष में ज्यादा सक्रिय होते हैं। हारमोनल सिस्टम ब्रेन से कंट्रोल होता है।’’ वैज्ञानिकों का मानना है कि पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन हारमाेन आंसू रोकने का काम करता है। वहीं महिलाएं प्रोलैक्टिन हारमोन की वजह से जल्दी रो पड़ती हैं।

रोने के फायदे: रोने के बड़े फायदे हैं। आंसुअों के निकल जाने से जुकाम, चक्कर, गरदन की अकड़न, सिर दर्द दूर होते हैं। अपने ईगो की वजह से ना रोने वाले पुरुष हाई ब्लड प्रेशर और हृदय रोग से घिरे रहते हैं। महिलाएं जोर से रो कर अपनी दबी भावनाअों के तनाव को दूर कर लेती हैं और बहुत राहत महसूस करती हैं। मनोचिकित्सक डॉ. रेवती शर्मा कहती हैं कि ‘‘भावनात्मक वजह से जब भी आंसू बहते हैं, तो उदासी के साथ गुस्सा भी खत्म हो जाता है। इसीलिए जब रोना आए, रो लीजिए। रोके गए आंसू सेहत के लिए खतरनाक हो सकते हैं।’’ टीबर्ग युनिवर्सिटी में इमोशनल टीयर्स पर रिसर्च कर रहे क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट विंगरीट्स ने अपनी किताब अनरेवलिंग मिस्ट्रीज ऑफ टीयर्स में कहा है कि इमोशनल वजह से आंसू निकलने के पीछे भावनाएं होती हैं। महिलाएं सालभर में 30 से 64 बार रोती ही रोती हैं। जबकि आदमी सालभर में 17 बार ही रोते हैं। अगर कोई बिना किसी कारण के रोए, तो अजीब भले लगे, पर इसमें असामान्य बात नहीं है। कुछ महिलाएं पीरियड्स आने से 10दिन पहले और बाद में मूड अॉफ रहने पर बेवजह रोती हैं। इसकी वजह हारमोन्स ही हैं। मेनोपॉज के दौरान हारमोनल असंतुलन की वजह से मूड स्विंग्स, उदासी, तनाव और रोने जैसी अजीबोगरीब हरकतें शुरू हो जाती हैं। विटामिन बी12 की कमी की वजह से डिप्रेशन और कमजोरी पैदा होती है। जिससे मन उदास होता है और रोना आता है। रोज 7-8 घंटे नींद लेना जरूरी है। लेकिन जब नींद लगातार पूरी नहीं होती, तो टेंशन बढ़ने से दुखी हो कर रोना आता है। आंसू 3 तरह के होते हैं—रिफ्लेक्सिव, कंटीनिअस और इमोशनल। इमोशनल रूप से सिर्फ इंसान रोता है। सालभर महिलाएं इमोशनल आंसू ही बहाती हैं।

कुछ देशों में स्त्री-पुरुष के रोने को अजीब नहीं माना जाता। वहां पुरुष खुल कर रोते हैं। कहने का मतलब यह कि अगर हंसना सेहत के लिए अच्छा है, तो कभीकभार रो लेना सेहत के लिए खराब नहीं है। हंसने के फायदे हैं, तो रोने के भी हैं। अल्जाइमर रिसर्च सेंटर रीजन्स हॉस्पिटल के डाइरेक्टर विलियम एच. फ्रे के अनुसार, रोने के बाद इसलिए रिलैक्स महसूस करते हैं, क्योंकि इसके जरिए तनाव से पैदा होनेवाले केमिकल्स बाहर निकल जाते हैं। यह जरूरी है कि रोज नहीं, पर हम कभी-कभी तो जरूर रोएं। अपने बच्चों को रोने से ना रोकें। 

आंसू रखें आंखें सेफः अब समस्या यह है कि किसी को रोना या आंसू ना आएं, तो वह क्या करे? सिंपल प्याज काटिए। प्याज काटते समय उससे निकलने वाला रसायन सेल्यूरिक एसिड आंखों में गहराई तक जा कर आंसू के ग्लैंड्स को सक्रिय कर देता है। आंसू एंटी बैक्टीरियल व एंटी वायरल होते हैं। आंसुअों से आंखों की कोशिकाएं मजबूत होती हैं। आंसू कई बार नलिकाअों से हो कर नाक में पहुंच कर नाक में जमा गंदगी को साफ कर देते हैं। अकसर रोते हुए नाक बहने लगती है, जिससे नाक में जमा बैक्टीरिया निकल जाते हैं।

महिलाएं पुरुषों से ज्यादा और देर तक रोती हैं। वे रोते हुए ज्यादा ड्रामा करती हैं। आंखों में आंसू भर कर बोलना, हाय-हाय करना, रोते हुए बेहोशी का नाटक महिलाएं ज्यादा अच्छी तरह करती हैं। उनके आंसू सच्चे होते हैं, मगर रुलाई ड्रामेटिक होती है। 

जहां आदमी 2-4 मिनट से ज्यादा नहीं राेते हैं, वहीं महिलाअों के रोने का समय कम से कम 6 मिनट का तो होता ही है। 65 प्रतिशत महिलाएं 6 मिनट रोने के बाद सुबकना, सिसकियां लेना जारी रखती हैं। हालांकि टीनएज की लड़कियों और लड़कों को समान रूप से दुख पहुंचता है और वे समान रूप से गुस्सा होते, हंसते, खुश होते या रोते हैं। महिलाएं तब रोती हैं, जब खुद को बहुत मजबूर पाती हैं। तब उनको पुराने दिन याद आते हैं, अपनी सफलताअों की याद उनको रुला देती है। वे पति, प्रेमी, भाई, सहेली के साथ संबंध टूटने पर भी रोती हैं। रोने से समस्या हल नहीं होती, दुख खत्म नहीं होता, मगर दिल हल्का हो जाता है।

दिल्ली में सीनियर एंडोक्राइनोलॉजिस्ट हारमोन स्पेशलिस्ट डॉ. मोनाशीष साहू के अनुसार ‘‘कोर्टिसोल हारमोन और थायरॉइड हारमोन इसके लिए जिम्मेदार होते हैं। ये ब्रेन में ऐसे बदलाव लाते हैं कि महिलाअों को रोना आता है। कई बार साइकियाट्रिक हमारे पास थायरॉइड की मरीज को भेजते हैं कि वे मनोवैज्ञानिक कारणों से नहीं थायरॉइड की वजह से खुद को बहुत डाउन महसूस कर रही हैं, फ्रस्ट्रेशन में हैं और ज्यादा रो रही हैं। इसका इलाज होने पर उनको इस समस्या से छुटकारा मिल जाता है। लेकिन मनोवैज्ञानिक कारणों और लाइफस्टाइल की वजह से भी वे तनाव महसूस करती हैं, इसलिए उनके आंसू निकल आते हैं। यह भी माना जाता है कि महिलाअों के आंसुअों की डक्ट जल्दी भरती हैं, इसलिए उनके आंसू निकल आते हैं।’’