Friday 13 June 2025 03:54 PM IST : By Team Vanita

कम उम्र में ही हो रहा है पीसीओएस

pcos-problem

आजकल की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में महिलाएं कई तरह की हेल्थ प्रॉब्लम्स का सामना कर रही हैं, उनमें से एक है पीसीओएस यानी पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम। यह कोई नयी बीमारी नहीं है, लेकिन पहले बहुत कम महिलाओं में पाई जाती थी। अब हालत यह है कि खासकर शहरों में रहने वाली युवतियों में यह बीमारी बहुत तेजी से फैल रही है। इस बारे में जानकारी दे रही हैं दिल्ली के सीके बिरला हास्पिटल में डिपार्टमेंट ऑफ आब्‍सटैट्रिक्‍स एंड गाइनीकोलॉजी में प्रमुख कंसल्टेंट डॉ. तृप्ति रहेजा-

पीसीओएस क्या है?

पीसीओएस एक हार्मोन से जुड़ी समस्या है, जिसमें महिलाओं के अंडाशय में छोटे-छोटे सिस्ट बनने लगते हैं और हार्मोन का बैलेंस बिगड़ जाता है। इससे पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं, वजन बढ़ने लगता है, मुंहासे होते हैं और बाल झड़ने या शरीर पर अनचाहे बाल आने जैसी दिक्कतें होती हैं।

भारत में पीसीओएस का बढ़ता खतरा

हाल की स्टडीज बताती हैं कि भारत में हर पांच में से एक महिला को पीसीओएस हो सकता है। यानी 20% महिलाओं को यह दिक्कत है। एक स्टडी के अनुसार, भारत में पीसीओएस की दर 9% से 36% तक है, जो कि अलग-अलग इलाकों और डायग्नोसिस के तरीकों पर निर्भर करती है। पीसीओएस का बढ़ना सिर्फ हार्मोनल प्रॉब्लम नहीं है, बल्कि यह आजकल के लाइफस्टाइल का असर है। शहरीकरण, जंक फूड खाना, बैठे-बैठे दिन गुजारना और नींद पूरी न होना – ये सब मिलकर हमारे शरीर को अंदर से खराब कर रहे हैं।

पीसीओएस बढ़ने के कारण

पीसीओएस के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे:

- अनहेल्दी लाइफस्टाइल: बाहर का तला-भुना खाना, मीठा ज़्यादा, एक्सरसाइज कम और नींद की कमी।

- लंबा चलता स्ट्रेस: ज़्यादा टेंशन लेने से शरीर के हार्मोन गड़बड़ा जाते हैं।

- केमिकल्स और टॉक्सिन्स: प्लास्टिक की चीजें, ब्यूटी प्रोडक्ट्स में मौजूद केमिकल्स भी हार्मोनल इम्बैलेंस कर सकते हैं।

- जेनेटिक्स: अगर फैमिली में किसी को पीसीओएस, डाइबिटीज या इंसुलिन रेजिस्टेंस है तो रिस्क बढ़ जाता है।

भारतीय महिलाओं में खासतौर पर इंसुलिन रेजिस्टेंस और पेट की चर्बी ज्यादा पायी जाती है, जो पीसीओएस की जड़ मानी जाती हैं।

पीसीओएस की छुपी हुई तकलीफें

बहुत सी महिलाएं सालों तक पीसीओएस की तकलीफ झेलती रहती हैं, लेकिन उन्हें पता ही नहीं चलता। लक्षणों में शामिल हैं:

- पीरियड्स का अनियमित होना या रुक जाना

- प्रेगनेंसी में परेशानी या बांझपन

- अचानक वजन बढ़ना

- चेहरे और शरीर पर ज्यादा बाल आना (hirsutism)

- मुंहासे और ऑइली स्किन

- मूड स्विंग्स, डिप्रेशन, एंग्जायटी

- भविष्य में टाइप 2 डाइबिटीज, हाई बीपी और हार्ट की बीमारी का खतरा

कई बार लड़कियों को जब किशोरावस्था में पीरियड्स देर से आते हैं या चेहरे पर पिंपल्स होते हैं, तो लोग इसे आम बात मानकर नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन ये पीसीओएस के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं।

पीसीओएस की जांच कैसे होती है?

पीसीओएस की डायग्नोसिस के लिए कोई एक टेस्ट नहीं होता। आमतौर पर डॉक्टर तीन चीज़ों को ध्यान में रखते हैं:

1. पीरियड्स का अनियमित या रुक जाना

2. शरीर में एंड्रोजन हार्मोन का ज़्यादा होना (जैसे पिंपल्स, बालों की ग्रोथ)

3. अल्ट्रासाउंड में ओवरी में सिस्ट्स दिखना

अगर इन तीन में से कोई दो लक्षण मिलते हैं, तो डॉक्टर पीसीओएस की डायग्नोसिस कर सकते हैं।

जरूरी टेस्ट्स

- अल्ट्रासाउंड: ओवरी में छोटे-छोटे सिस्ट दिखते हैं, जो दिखने में मोती की माला की तरह लगते हैं।

- ब्लड टेस्ट: हार्मोन लेवल जैसे LH, FSH, AMH, TSH, प्रोलैक्टिन, टेस्टोस्टेरोन आदि चेक करना।

- इंसुलिन और शुगर टेस्ट: फास्टिंग ग्लूकोज, एचबीए1सी और इंसुलिन लेवल से डाइबिटीज या इंसुलिन रेजिस्टेंस की जानकारी मिलती है।

- फिजिकल एग्जामिनेशन: बीएमआई, कमर का साइज़, स्किन चेक (जैसे काले धब्बे या एक्स्ट्रा बाल)।

निष्कर्ष

पीसीओएस अब कोई रेयर बीमारी नहीं रह गई है। यह आज की आधुनिक जीवनशैली से जुड़ा एक मेटाबॉलिक डिसऑर्डर बन चुका है। लेकिन अगर समय रहते इसकी पहचान हो जाए और लाइफस्टाइल में सुधार किया जाए, तो इसे कंट्रोल में रखा जा सकता है। खासतौर पर किशोरियों और उन महिलाओं में जो पीरियड्स की गड़बड़ी से परेशान हैं, उन्हें समय रहते डॉक्टर से सलाह जरूर लेनी चाहिए। जागरूकता और समय पर जांच ही इस “साइलेंट बीमारी” से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका है।