स्त्री का उसकी कोख पर पूरा अधिकार है। वह कब मां बनेगी, बनना चाहती है या नहीं, मातृत्व से जुड़ी जिम्मेदारियां निभा पाएगी या नहीं, यह सब खुद स्त्री का फैसला होना चाहिए। वर्ल्ड कंट्रासेप्टिव डे पर जानें कि परिवार नियोजन में कंट्रासेप्टिव मेथड्स का क्या योगदान है और महिलाओं को इनके बारे में क्यों जानना चाहिए। इस बारे में जानकारी दे रहे हैं एफएचएम इंगेज के कंट्री डायरेक्टर और चीफ ऑफ पार्टी डॉ. अमित भनोट
भारत में परिवार नियोजन की शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी और यह कार्यक्रम शुरू करने वाला भारत पहला देश बना। इसका मकसद था स्त्रियों और बच्चों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाना और परिवार नियोजन के साधनों को सुलभ करना। जब गर्भनिरोध की पहली गोली बनी, तब से अब तक औरतों की दुनिया में बड़ा बदलाव आ चुका है। औरतें घर से बाहर निकल रही हैं, कैरिअर बना रही हैं और प्रेगनेंसी को लेकर उनकी सोच में बड़ा बदलाव आ चुका है। जाहिर है, इसे देखते हुए कंट्रासेप्टिव मेथड्स में भी बहुत प्रयोग किए गए हैं, इन्हें अधिक सुरक्षित और भरोसेमंद बनाने के लिए लगातार प्रयोग जारी हैं।
मातृत्व पर स्त्री का नियंत्रण
डब्ल्यूएचओ के अनुसार अगर वर्ष 2000 से 2020 तक, यानी 20 वर्षों के आंकड़े देखे जाएं तो दुनिया भर में कंट्रासेप्टिव तरीकों का प्रयोग करने वाली महिलाओं की संख्या 66.3 करोड़ से बढ़ कर 85.1 करोड़ हो चुकी है। अब महिलाएं केवल बैरियर या पिल्स पर ही निर्भर नहीं हैं बल्कि उनके पास ढेरों विकल्प हैं। लंबे समय तक चलने वाले प्रतिवर्ती गर्भनिरोधक (LARCs) जैसे इम्प्लांट्स और गर्भनिरोधक उपकरण (IUDs) सुविधाजनक और प्रभावी होते हैं। इमरजेंसी पिल्स (Ecs ईसीज) भी काफी हद तक उन्हें सुरक्षा प्रदान करते हैं। इसके अलावा कई गैर-हारमोनल तरीके भी हैं। इन विकल्पों को समझना जरूरी है। महिलाओं को यह जानने का अधिकार है कि वे खास गर्भनिरोधक का ही इस्तेमाल क्यों करें, उनके बारे में क्या-क्या जानना जरूरी है और इनके साइड इफेक्ट्स क्या हो सकते हैं।
अलग जरूरतें-अलग विकल्प
कंट्रासेप्टिव मेथड्स में हारमोनल और गैर-हारमोनल दोनों ही तरीके शामिल होते हैं। जानते हैं इनके कुछ विकल्पों के बारे में-
पिल्स (OCPs)
गर्भनिरोधक गोलियां (OCPs) या पिल का विकास 1960 से लगातार जारी है। आज 30 से अधिक ब्रांड की पिल्स मौजूद हैं, जिनमें हारमोन्स के संयोजन होते हैं। तीसरी और चौथी पीढ़ी या नई पीढ़ी की गोलियों में हारमोन की मात्रा कम होती है, जिसके कारण इनके साइड इफेक्ट्स में भी कमी देखी गई है जबकि इनके रिजल्ट प्रभावशाली होते हैं। ये पिल्स न सिर्फ मेन्स्ट्रुअल साइकिल को नियमित करते हैं बल्कि मुंहासों और कई अन्य समस्याओं से भी महिलाओं को निजात दिलाते हैं। समय के साथ ओसीपी ने न केवल महिलाओं की जरूरतों के अनुसार सुधार किया है बल्कि उनके स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखा है।
एलएआरसी (LARCs) : इम्प्लांट्स और आईयूडी (IUDs)
हारमोनल गर्भनिरोधक प्रेगनेंसी रोकने में शरीर के कुदरती हारमोन स्तर को बदलकर काम करते हैं। इनमें इम्प्लांट्स एलएआरसी श्रेणी में एक जबरदस्त क्रांति हैं। ये छोटी, लचीली रॉड, आमतौर पर माचिस की तीली के आकार की होती हैं, जिन्हें ऊपरी बांह में त्वचा के भीतर डाला जाता है और इससे तीन वर्ष तक लगातार हारमोन का स्राव होता रहता है, यानी तीन साल तक आप प्रेगनेंसी के डर से सुरक्षा महसूस कर सकती हैं। इम्प्लांट्स की सुविधा और प्रभावशीलता को नई मांएं महसूस कर रही हैं और ये इम्प्लांट्स लंबे समय तक प्रेगनेंसी न चाहने वाली महिलाओं के लिए जरूरी बन गए हैं।
IUD एक प्रभावी LARC विकल्प है। हारमोनल IUD से दोहरा लाभ मिलता है। एक तो प्रेगनेंसी से सुरक्षा और दूसरे यह पीरियड्स संबंधी अनियमितताओं और एंड्रोमेट्रियोसिस के लक्षणों को भी कम करने में योगदान देती है। इसके साइड इफेक्ट्स कम हैं जब यह पांच वर्ष तक स्त्रियों को प्रेगनेंसी से बचा सकती है। गैर-हारमोनल कॉपर IUD भी है, जो 10 वर्षों तक प्रेगनेंसी से सुरक्षा प्रदान कर सकता है।
और भी हैं विकल्प
कंट्रासेप्टिव पिल्स, इंप्लांट्स के अलावा बहुत से अन्य विकल्प भी आज महिलाएं आजमा रही हैं। इनमें रिंग, बैरियर और कुछ स्थायी समाधान हैं। पिल्स को लेकर अकसर महिलाओं का मानना है कि इन्हें कई बार लेना भूल जाती हैं, ऐसी महिलाओं के लिए गर्भनिरोधक योनि रिंग (CVR) एक नया विकल्प है। यह एक छोटी-लचीली रिंग होती है, जिसे महीने में एक बार वजाइना में इंसर्ट किया जाता है, इसमें हारमोन की एक निश्चित खुराक होती है। यह प्रभावी, सुविधाजनक और गोपनीयता प्रदान करने वाला तरीका है।
इसके अलावा बैरियर मेथड्स भी हैं। इनमें कंडोम का नाम सबसे पहले आता है। ये न सिर्फ अनचाहे गर्भ से सुरक्षा प्रदान करते हैं, बल्कि यौन संक्रमणों से भी छुटकारा दिलाते हैं। सबसे बड़ी चीज है कि यह टेस्टेड और आसानी से उपलब्ध है। इसके साइड इफेक्ट्स नहीं हैं और ये सबसे लोकप्रिय माध्यम है। बस समाज और पुरुषों में यह सोच हो कि परिवार नियोजन की थोड़ी-बहुत जिम्मेदारी उन पर भी है।
वैसे जो दंपती परिवार पूरा कर चुके हैं, उनके लिए नसबंदी स्थायी समाधान हो सकता है, दुर्भाग्य से आज भी हमारे समाज में इसे लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं। पुरुष नसबंदी (वेसेक्टमी) एक सरल और प्रभावी प्रक्रिया है।
आज के दौर में कहा जा सकता है कि ऐसे बहुत से विकल्प मौजूद हैं, जिन्हें अपना कर स्त्रियां प्रेगनेंसी का फैसला अपने पास सुरक्षित रख सकती हैं। इन पर लगातार रिसर्च चल रही हैं, प्रयोग हो रहे हैं ताकि ये और प्रभावशाली बन सकें और इनके दुष्प्रभावों को न्यूनतम किया जा सके। फिर भी किसी भी गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर लें।