Monday 03 July 2023 04:52 PM IST : By Gopal Sinha

कैसे रखें सर्वाइकल हेल्थ को फिट

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अपने देश में सर्वाइकल कैंसर यानी गर्भाशय के मुख के कैंसर से पीड़ित होनेवाली महिलाओं की संख्या दुनियाभर में सबसे ज्यादा है। हर साल सवा लाख महिलाएं भारत में सर्वाइकल कैंसर से ग्रस्त हो जाती हैं और उनमें से करीब आधी महिलाओं की मृत्यु हो जाती है, क्योंकि वे अधिकतर एडवांस स्टेज में मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए आती हैं। महिलाएं सबसे अधिक ब्रेस्ट कैंसर से ग्रस्त होती हैं। उसके बाद सर्वाइकल कैंसर का नंबर आता है। यह एक भयावह स्थिति है, जिससे बचा जा सकता है, यदि महिलाएं और परिवार के लोग सर्वाइकल हेल्थ को ले कर जागरूक हों। सर्वाइकल हेल्थ क्यों बिगड़ता है और सर्विक्स यानी गर्भाशय मुख को स्वस्थ रखने के लिए क्या-क्या उपाय किए जा सकते हैं, इस बारे में हमने बात की वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज और सफदरजंग अस्पताल की कंसल्टेंट और प्रोफेसर डॉ. सरिता श्यामसुंदर से।

क्यों बिगड़ता है सर्वाइकल हेल्थ

जब लड़की युवावस्था में कदम रखती है, तो उसके गर्भाशय मुख की कवरिंग में कुछ बदलाव होते हैं, जो हारमोन से संबंधित होते हैं। उस दौरान इस्ट्रोजन हारमोन का स्राव होने लगता है। यह सामान्य प्रक्रिया है, हर लड़की में ऐसा होता है। चूंकि यह बदलाव हर महीने होता है, तो कोई बाहरी ट्रॉमा या वायरल इन्फेक्शन हो, तो उस पर जल्दी प्रभाव पड़ता है। कई रिसर्च के बाद पता चला है कि ह्यूमन पैपिलोमावायरस (एचपीवी) सर्वाइकल कैंसर पैदा करता है। यह वायरस महिला के शरीर में तब आता है, जब सेक्सुअल इंटरकोर्स होता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि सेक्सुअल इंटरकोर्स होगा, तो एचपीवी का इन्फेक्शन होगा ही। वहीं कई बार इन्फेक्शन होता भी है, तो अपने आप क्लीयर हो जाता है। यह ऐसा ही है जैसे किसी को सरदी-जुकाम हुआ और कुछ दिनों में अपने आप ठीक हो गया। यहां हमारी इम्युनिटी काम आती है। अगर इम्युनिटी बेहतर है, तो इन्फेक्शन टिक नहीं पाएगा। लेकिन अगर यह कमजोर है, एचआईवी इन्फेक्शन है, खून की कमी है, बार-बार संक्रमण होता है, महिला स्मोकिंग करती है या मल्टीपल सेक्स पार्टनर हों, जहां अलग-अलग सोर्स से इन्फेक्शन आता है या कोई सेक्सुअल ट्रांसमिटेड डिजीज हो, तो एचपीवी इन्फेक्शन होने पर यह अपने आप क्लीयर नहीं होता। और अगर यह एचपीवी वायरस 10 साल से अधिक सर्विक्स में रह गया, तो वहां के सेल्स में बदलाव ला कर सर्वाइकल कैंसर होने का जोखिम पैदा करता है। इसे प्री कैंसर स्टेज कहते हैं। फिर इसका पता ना चल पाया और यह और अधिक समय तक गर्भाशय मुख पर रहा, तो कैंसर हो जाता है।

बचाव के उपाय क्या हैं

वैक्सीनेशन - युवावस्था शुरू होने से पहले और सेक्सुअल इंटरकोर्स शुरू होने से पहले हर लड़की का वैक्सीनेशन कराया जाना चाहिए। टीकाकरण की सबसे उपयुक्त उम्र 9 साल से 15 साल के बीच होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस उम्र को सही बताया है, क्योंकि इस उम्र में एंटीबॉडी का अच्छा रेस्पॉन्स होता है और वैक्सीन का मैक्सिमम फायदा मिलता है। वैसे वैक्सीनेशन 26 साल की उम्र तक भी कराया जा सकता है। 15 साल तक की लड़की को 6-6 महीने के अंतराल पर 2 डोज लगाए जाते हैं, जबकि 15 से 26 साल की उम्र की लड़की को 3 डोज लेने होते हैं।

अभी कुछ दिनों पहले तक सर्वाइकल कैंसर की जो वैक्सीन अपने यहां उपलब्ध थीं, वे विदेश से मंगायी जाती थीं और महंगी होती थीं।इसकी एक डोज की कीमत लगभग 2000 रुपए है। अपने देश में इस वैक्सीन का प्रोडक्शन इसी साल सीरम इंस्टिट्यूट और डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी ने मिल कर किया है और यह अपनी देसी वैक्सीन सर्वावैक नाम से 200 से 400 रुपए प्रति डोज में उपलब्ध है। सरकार भी नेशनल लेवल पर वैक्सीनेशन ड्राइव शुरू करनेवाली है। सिक्किम ने पूरे राज्य में स्कूलों में फ्री वैक्सीनेशन करा दिया है। पंजाब के कुछ जिलों में भी लड़कियों को सरकार ने टीका लगवा दिया है। दिल्ली स्टेट के हॉस्पिटल्स में भी वैक्सीन कुछ समय पहले तक उपलब्ध थी। सरकारें इस दिशा में जागरूक हैं।डॉ. सरिता कहती हैं कि यह वैक्सीन बिलकुल सेफ है। वैक्सीनेशन का कुछ देशों में पिछले 10 सालों से अधिक का डेटा है, अभी तक कोई साइड इफेक्ट नहीं दिखा है।

सिंगल पार्टनर - सर्वाइकल कैंसर से बचने के लिए जरूरी है कि एक ही व्यक्ति से शारीरिक संबंध कायम किए जाएं। मल्टीपल सेक्स पार्टनर होने से इस कैंसर का खतरा काफी बढ़ जाता है।

कंडोम का इस्तेमाल - सेक्सुअल इंटरकोर्स के समय कंडोम का इस्तेमाल किसी किस्म के इन्फेक्शन से बचाता है। सर्वाइकल कैंसर से बचने में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है।

एसटीडी/एचआईवी इन्फेक्शन का उपचार - कोई भी यौनजनित संक्रमण हो, उसकी जांच करा कर उपचार कराना जरूरी है। इस तरह के संक्रमण को खत्म करने के लिए दोनों पार्टनर का उपचार एक साथ किया जाता है।

स्मोकिंग - धूम्रपान करनेवाली महिलाएं सर्वाइकल कैंसर की चपेट में ज्यादा आती हैं। महिलाओं को स्मोकिंग से बचना चाहिए।

रेगुलर स्क्रीनिंग - अगर आप सेक्सुअली एक्टिव हैं, तो सर्विक्स की सेहत की जांच नियमित रूप से करानी चाहिए। हर 3 साल में पैप स्मीयर टेस्ट कराना जरूरी है। एक नया टेस्ट है एचपीवी टेस्ट, जो अधिक सटीक परिणाम देता है। इसे भी 7 साल में एक बार कराना चाहिए, हालांकि यह थोड़ा महंगा है। दोनों टेस्ट कराए जा सकते हैं। अगर इन जांचों में गर्भाशय मुख में कोई असामान्यता पायी जाती है, तो दूरबीन से देखा जाता है। कोई बदलाव दिखने पर उसका इलाज तुरंत किया जा सकता है।

कई सरकारी अस्पतालों में मुफ्त स्क्रीनिंग की सुविधा है। सरकार कुछ खास सेंटर्स पर बीपी, शुगर, ब्रेस्ट कैंसर, ओरल कैंसर और सर्वाइकल कैंसर की जांच मुफ्त में कराती है। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल्स में इलाज भी होता है। सफरदजंग अस्पताल में हम गाइनी में आनेवाली महिलाओं की स्क्रीनिंग करते ही हैं, दूसरे विभागों में आनेवाली मरीजों को भी स्क्रीनिंग कर रहे हैं। ओपीडी में यह कमरा नंबर 105 में रोज 9 से 1 बजे के बीच में रोज होता है।

आसान है इससे बचना

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विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी कहना है कि सर्वाइकल कैंसर से बचने के उपाय इतने आसान हैं कि कोई भी इन्हें अपना सकता है। महिलाओंं को चाहिए कि वे खुद को और अपनी बेटियों को वैक्सीनेशन और अन्य उपायों द्वारा इस बीमारी से बचाएं। जिस तरह स्मॉल पॉक्स पूरी दुनिया से खत्म हो गया, उसी तरह सर्वाइकल कैंसर को भी पूरी तरह खत्म करने का लक्ष्य 2030 तक रखा गया है। अपने देश में अभी प्रत्येक वर्ष 1 लाख में 18 महिलाओं को सर्वाइकल कैंसर होता है, इसे 1 लाख में 4 से कम करना है।

सर्वाइकल कैंसर के लक्षण

प्री कैंसरस स्टेज के कोई लक्षण नहीं होते और इस समय उपचार भी आसानी से हो सकता है। यह स्क्रीनिंग से ही पता चल सकता है। लेकिन जब कैंसर फैल चुका होता है, तो कई शारीरिक लक्षण उभरते हैं जैसे अनियमित रक्तस्राव होना, वाइट डिस्चार्ज होना, संबंध के बाद खून आना, कमर में दर्द और मेनोपॉज के बाद ब्लीडिंग शुरू होना।

ट्रीटमेंट क्या है

प्री कैंसरस स्टेज में उपचार आसानी से होता है। दूरबीन से देखने पर यदि बदला हुआ सफेद हिस्सा दिखता है, तो उसे क्रायोथेरैपी यानी बर्फ से या थर्मल अब्रेशन यानी गरमी से जला दिया जाता है या फिर उसे निकाल दिया जाता है। इस समय यूटरस निकालने की जरूरत नहीं पड़ती। यहां तक कि मरीज को बेहोश भी नहीं किया जाता। आधे घंटे का प्रोसिजर है।लेकिन जब कैंसर हो जाए, तो अलग-अलग स्टेज में अलग-अलग ट्रीटमेंट किया जाता है। अर्ली स्टेज 1 या स्टेज 2 में सर्जरी करते हैं, जिसमें यूटरस को निकाल देते हैं। स्टेज 3, 4 या एडवांस स्टेज 2 में रेडियोथेरैपी, कीमोथेरैपी और दवाओं से उपचार किया जाता है।