एक कहावत है – नारी कल भी भारी थी, नारी आज भी भारी है। पुरुष कल भी आभारी था, पुरुष आज भी आभारी है। ये कहावत पढ़ने सुनने में तो अच्छी लगती है लेकिन जमीनी हकीकत से कोसों दूर है।
विश्व मानसिक स्वास्थय दिवस के अवसर पर यह समझना जरुरी है कि भारत में घर की दहलीज को लांघ तक कामकाजी बनने का सफर तय करने वाली महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ज्यादा तनाव में क्यों हैं। इस समय भारत में ये बहस जोरों पर है। इस बहस के केंद्र में हाल ही में हुई कुछ घटनाएं भी हैं।
इसी वर्ष 20 जुलाई को ऑडिट और टैक्स कंपनी अर्नस्ट एंड यंग में काम करने वाली 26 साल की एना पेरियल ने ऑफिस से घर पहुंचते ही दम तोड़ दिया। ये मामला तब सुर्खियों में आया जब एना की मां ने अर्नस्ट एंड यंग कंपनी के भारत में हेड को चिट्ठी लिखकर ये आरोप लगाया कि उनकी बेटी एना ने काम के तनाव की वजह से अपनी जान दी है। कंपनी के अधिकारियों ने आरोप से इंकार किया। इसके बाद केंद्र सरकार ने इस मामले पर जांच बिठा दी जो अभी जारी है।
भारत में समय समय पर कामकाजी लोगों की मानसिक सेहत पर किए गए सर्वे भी ये साफ संकेत दे रहे हैं कि महिलाओं के लिए घर से बाहर निकलकर काम करना एक बड़ी चुनौती है और ज्यादातर महिलाएं तनाव के साए में जीते हुए ही कामकाजी होने की इस चुनौती को पूरा कर रही हैं। सर्वे के मुताबिक 72 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं तनाव की शिकार हैं।
हाल ही में भारत में 5000 कामकाजी लोगों पर एक सर्वे किया गया – सर्वे का विषय था - इमोशनल वेलनेस स्टेट ऑफ एंप्लाइज यानी “कर्मचारियों की भावनात्मक मन:स्थिति। यह सर्वे कॉरपोरेट वेलनेस पर काम करने वाली कंपनी योर डस्ट ने 2024 जुलाई के महीने में जारी किया।
इस सर्वे में शामिल 72.2% कामकाजी महिलाएं गंभीर तनाव की शिकार पायी गयीं। तनाव के शिकार पुरुषों की संख्या 53.6% थी। तनाव के पीछे के कारण जानने भी बेहद जरुरी है। सबसे बड़ा कारण था महिलाओं को उनके काम के लिए पहचान और सराहना ना मिलना। 20% महिलाओं ने माना कि ऑफिस में उनके काम को तारीफ ना मिलने की वजह से उनका आत्मविश्वास कमजोर रहता है। जबकि ऐसा केवल 9 प्रतिशत पुरुषों को लगता था।
दूसरा कारण - काम और घर के बीच संतुलन ना बिठा पाना। यानी वर्क लाइफ बैलेंस की भारी कमी। 18% महिलाओं के लिए घर और काम के बीच संतुलन बिठा पाना चुनौती था। 12% पुरुष वर्क-लाइफ बैलेंस से जूझ रहे थे।
इसके अलावा महिलाओं के बार में राय कायम करना जैसे – शादी और बच्चों की वजह से ज्यादा छुट्टियां लेना, पुरुषों से कमतर आंका जाना, जल्दी रो देना या चरित्र पर सवाल उठाए जाना – ये वे कारण हैं जो महिलाओं को काम में असहज महसूस करवाते हैं।
कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ी, लेकिन चुनौतियां कर रही लाचार
श्रम और रोज़गार मंत्रालय के फरवरी 2024 के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या हर साल बढ़ रही है। भारत की कुल कामकाजी आबादी में महिलाओं का योगदान देखा जाए तो कुल वर्कफोर्स यानी कामकाजी लोगों में महिलाओं का प्रतिशत 2017 में 22% था जो 2023 में बढ़कर 35.9% तक पहुंच गया। इसका मतलब ये है कि महिलाओं को काम करने की आजादी तो पहले से ज्यादा मिल रही है, लेकिन उनके लिए काम करने की स्थितियां बहुत अच्छी नहीं हैं। पुरुषों के मुकाबले महिलाएं कार्यस्थल पर तनाव झेलने के मामले में कहां टिक रही हैं, यह देखना भी दिलचस्प है।
भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय के 2022 के पीरियोडिक लेबल फोर्स सर्वे के मुताबिक 44.5% महिलाओं ने कामकाजी ना होने के पीछे बच्चों की देखभाल और घर के काम की जिम्मेदारियों का हवाला दिया। मतलब साफ है कि महिलाएं बाहर जाकर काम तो कर सकती हैं लेकिन घर में उन्हें गृहिणी की भूमिका भी निभानी है।
घर में महिलाएं अपनी जिम्मेदारी किसी को काम पर रखकर बांट पाएंगी या नहीं, यह आमतौर पर उनकी वित्तीय हालत, घर के बाकी सदस्यों की राय और उनके खुद के स्वभाव से तय होता है। घर में मदद करने वालों के बावजूद अमूमन घर संभालने की पहली जिम्मेदारी महिला की मानी जाती है।
ऐसे में महिलाएं तनाव को कम करने के लिए क्या कर सकती हैं, इस बारे में आकाश हेल्थकेयर, दिल्ली की मनोचिकित्सक डॉ स्नेहा शर्मा के मुताबिक कुछ टिप्स पर काम किया जा सकता है।
एक्सरसाइजः महिलाओं को 30 से 50 मिनट एक्सरसाइज के लिए समय निकालना चाहिए। फिर चाहे तो सैर पर जाएं, योग करें या अपनी पसंद और सामर्थ्य से जिम या जुंबा जैसी एक्सरसाइज चुनें। इसकी वैज्ञानिक पहलू ये है कि एक्सरसाइज से एंडॉरफिंस हॉरमोन रिलीज होता है जो इंसान में खुशी और सकारात्मक उर्जा के लिए जिम्मेदार माना गया है। काम के दौरान डेस्क एक्सरसाइज भी की जा सकती है।
नींद की अहमियत को समझेंः समय पर पर्याप्त नींद लेना बेहद ज़रुरी है। डॉ स्नेहा शर्मा के मुताबिक कम से कम 6 घंटे की नींद में ब्रेन सेल रिचार्ज होते हैं और शरीर रिपेयर और मेंटेंनेंस मोड में जाता है। अच्छी नींद काम करने की क्षमता भी बढ़ाती है। अच्छी नींद के लिए एक घंटा पहले मोबाइल और टीवी की स्क्रीन को छोड़ देना चाहिए और कम से कम दो घंटे पहले खाना खा लेना चाहिए।
दोस्त बनाएंः चाहे ऑफिस में या घर में, जहां संभव हो दोस्त बनाएं और उनसे समय समय पर बातें करती रहें। जरूरी नहीं कि आप हर मित्र को अपनी सभी बातें बता सकें लेकिन मन की बात साझा करने से दिल का बोझ जरुर कम किया जा सकता है। कई बार बातें करने से समस्याओं का सकारात्मक हल भी निकल आता है।
शायर सलमान अख्तर का कहना है- अंदर का शोर अच्छा है थोड़ा दबा रहे, बेहतर यही है आदमी कुछ बोलता रहे
इसलिए समय रहते दोस्तों से या मनोचिकित्सक से मदद जरुर लें। थोड़ा तनाव सकारात्मक होता है लेकिन तनाव निजी जीवन और काम की क्षमता पर बुरा असर डाल रहा हो तो समय रहते मदद लेने में ही भलाई है।