दीवाली में कोई आपको मिठाइयों से दूर रखे, तो यह किसी गुनाह से कम नहीं है। लेकिन डाइबिटीज यानी मधुमेह से ग्रस्त लोगों को अकसर मीठे से महरूम रहना पड़ता है। पहले लोग 40-45 की उम्र के बाद इस रोग के शिकार बनते थे, लेकिन अब तो कम उम्र में भी डाइबिटीज होने लगी है। आंकड़ों की नजर से देखें, तो 2021 में अपने देश में करीब 101 मिलियन लोग डाइबिटीज से ग्रस्त हैं और 136 मिलियन प्री-डाइबिटीज हैं।
जब ब्लड में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है, तो जीवन में मिठास कम होने लगती है। डाइबिटीज रोग के बारे में हमने बात की दिल्ली के सीनियर डाइबेटोलॉजिस्ट डॉ. अशोक झिंगन से।
प्रश्नः डाइबिटीज क्या है और इसके लिए शरीर का कोई अंदरूनी बदलाव जिम्मेदार है?
उत्तरः डाइबिटीज एक मेटाबाॅलिक डिजीज है। हम जो खाना खाते हैं, उसमें मौजूद कार्बोहाइड्रेट को पैन्क्रियाज द्वारा स्रावित हारमोन इंसुलिन एनर्जी में बदल देता है, जिससे हमारी बॉडी के सारे फंक्शन सुचारू रूप से चलते हैं। जब इंसुलिन की मात्रा कम हो, तो डाइबिटीज रोग उत्पन्न होता है। इसे हम टाइप 2 डाइबिटीज कहते हैं। लेकिन जब इंसुलिन बिलकुल ही ना बन रही हो, तो इससे होनेवाली डाइबिटीज को हम टाइप 1 डाइबिटीज कहते हैं। इसमें रोगी को जीवनभर इंसुलिन के इन्जेक्शन लेने पड़ते हैं। टाइप 1 डाइबिटीज अकसर बच्चों में देखने को मिलती है और इससे लगभग 10 प्रतिशत लोग ग्रसित होते हैं। बाकी 90 प्रतिशत मरीज टाइप 2 डाइबिटीज से ग्रस्त होते हैं।
प्रश्नः डाइबिटीज किस तरह के लोगों को अपनी गिरफ्त में आसानी से लेती है?
उत्तरः डाइबिटीज ज्यादातर आनुवंशिक कारणों से होती है। मोटे, हायपरटेंशन से ग्रस्त, हाई कोलेस्ट्रॉल होने पर या 40 से अधिक उम्र के लोग डाइबिटीज की चपेट में जल्दी आते हैं। हालांकि आजकल 30 साल से कम उम्र के भी काफी मरीज आ रहे हैं। मेरा मानना है कि आधुनिक जीवन के 7 गुनाह इसके जिम्मेदार होते हैं, जिनसे हर हाल में बचना चाहिए। पहला है आरामपरस्त जीवन। जब आप व्यायाम नहीं करते, तो आपको डाइबिटीज होने का जोखिम बढ़ जाता है। दूसरा है पूरी नींद ना लेना। अगर आप 8 घंटे से कम सोते हैं, तो इससे स्ट्रेस हारमोन रिलीज होते हैं, जो डाइबिटीज की वजह बन सकता है। खासकर जो लोग नाइट शिफ्ट में काम करते हैं और अगर उनके परिवार में डाइबिटीज की हिस्ट्री रही है, तो उन्हें इसके होने का खतरा अधिक है। तीसरा गुनाह है स्ट्रेस यानी तनाव।इससे स्ट्रेस हारमोन अधिक बनने लगते हैं, जो ब्लड में शुगर को बढ़ावा देते हैं। चौथा खतरा है अत्यधिक मात्रा में नमक का सेवन। बहुत अधिक नमक खाने से शरीर में फ्लुइड रिटेंशन हो जाता है।इससे हायपरटेंशन के साथ कई अन्य परेशानियां उत्पन्न हो जाती हैं। डाइबिटीज होने का पांचवां कारण है अत्यधिक चीनी का सेवन। इससे अगर आप पहले से ही डाइबिटीज के जोखिम में हैं, ताे यह खतरा और बढ़ जाता है। छठा दुश्मन है स्मोकिंग। जब आप धूम्रपान करते हैं, तो इससे इंसुलिन की कार्यक्षमता व संवेदनशीलता कम हो जाती है, जिससे डाइबिटीज हो सकती है। आठवां गुनाह है अल्कोहल का सेवन करना। ये सभी लाइफ स्टाइल से जुड़ी बीमारियों के होने का कारण बन सकते हैं।
प्रश्नः कितना हो शुगर का लेवल

उत्तरः बॉडी में इंसुलिन नहीं बन रही हो, तो शुगर का लेवल बढ़ने लगता है। अगर किसी व्यक्ति में शुगर का लेवल फास्टिंग 126-27 और पीपी 176-77 हो, तो उसमें हार्ट और आंखों की समस्या होने का जोखिम रहता है। डॉ. झिंगन बताते हैं कि नयी गाइडलाइंस के मुताबिक स्वस्थ व्यक्ति में शुगर का स्तर खाली पेट 100 के आसपास और खाने के बाद 140 से कम होना चाहिए। इससे अधिक होने पर व्यक्ति प्री-डाइबिटिक माना जाता है। प्री-डाइबिटीज होना चिंता का विषय है, क्योंकि हर साल 10 प्रतिशत प्री-डाइबिटिक मरीज डाइबिटिक में बदल जाते हैं। ये वे लोग होते हैं, जिनका वजन अधिक होता है या डाइबिटीज की फैमिली हिस्ट्री हो।
प्रश्नः जटिलताएं और जरूरी टेस्ट
उत्तरः जब शुगर का लेवल ज्यादा होता है, तो यह शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करता है। शुगर का लेवल पता लगाने के लिए हम एचबीए1सी यानी ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन टेस्ट कराते हैं। इसकी नॉर्मल रेंज 4.5 से 5.7 तक रहती है। 5.7 से अधिक और 6.4 तक रहे, तो प्री-डाइबिटीज मानते हैं। जब लेवल 6.5 अधिक हो, तो व्यक्ति को डाइबिटीज है। डाइबिटीज के जिन मरीजों में एचबीए1सी का लेवल 7, 8 या 9 हो, तो उनमें ब्रेन स्ट्रोक, पैरालाइसिस या आंखों में रेटिनोपैथी, ग्लूकोमा होने का जोखिम रहता है। डाइबिटीज के 75 प्रतिशत मरीजों में हार्ट प्रॉब्लम हो जाती है। 30-40 प्रतिशत डाइबिटीज रोगियों में शुगर का लेवल नियंत्रण में ना रहे, तो किडनी खराब हो जाती है। 60-65 प्रतिशत मधुमेह रोगियों में पैरों में न्यूरोपैथी हो जाती है, इसमें उन्हें चलने में तकलीफ होती है, पैरों में जलन होती है। कई बार पैरों की संवेदना इतनी कम हो जाती है कि चोट लगने का भी पता नहीं लगता। डाइबिटीज की वजह से फ्रोजन शोल्डर, हियरिंग लॉस भी हो सकता है। करीब 35-40 प्रतिशत मरीजों की सेक्सुअल लाइफ भी प्रभावित होती है।
कई बार व्यक्ति थकान, शरीर या प्राइवेट पार्ट्स में खुजली होने, बार-बार यूरिन पास करने, प्यास अधिक लगने, भूख अधिक लगने, कमजोरी महसूस होने या वजन कम होने पर जांच कराता है, तो पता लगता है कि उसे डाइबिटीज है।
प्रश्नः क्या हैं बचाव के उपाय
उत्तरः डाइबिटीज लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारी है। इससे पहले कि डाइबिटीज आपको बदल दे, आप अपनी जीवनशैली बदल लें। इसमें सबसे पहला है रेगुलर एरोबिक एक्सरसाइज। रनिंग, वॉकिंग, जॉगिंग, स्विमिंग जो भी करना चाहें, करें। कम से कम 50 मिनट की एक्सरसाइज रोज करें। शुरुआत में इतना ना कर सकें, तो धीरे-धीरे समय बढ़ाइए। समय का बहाना ना बनाएं, जब भी सुबह, शाम समय मिले, व्यायाम करें। महिलाएं कहती हैं कि हम घर में इतना काम करती हैं, हमें अलग से एक्सरसाइज करने की क्या जरूरत। लेकिन पहले जमाने में महिलाएं घर के भारी काम भी करती थीं, आज वैसे काम हैं ही नहीं। घर के कामों से एक्सरसाइज की तुलना ना करें, अलग से एक्सरसाइज जरूर करें।
मोटे लोगों को वेट रेजिस्टेंस एक्सरसाइज करनी चाहिए, इससे इंसुलिन की सेंसेटिविटी बढ़ जाती है। आपको बहुत वेट उठाने की जरूरत नहीं है, एक लीटर की पानी की बोतल या 1 किलो के डंबल से भी इसे कर सकते हैं। योग और मेडिटेशन भी लाभ पहुंचाते हैं। इससे मसल्स में लचीलापन आता है और मानसिक तनाव कम होता है। 5 से 7 परसेंट वेट रिडक्शन से आप डाइबिटीज के लक्षणों में सुधार ला सकते हैं।
डाइबिटीज में डाइट का भी बड़ा रोल है। बैलेंस डाइट लें। मार्केट में मिलनेवाले डाइबिटिक अाटा, डाइबिटिक फूड के पीछे ना भागें। डाइट में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फैट होने चाहिए। सोशल मीडिया में प्रसारित-प्रचारित किसी भी नुसखे को फॉलो ना करें। खाने में 40-50 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 15-20 प्रतिशत प्रोटीन और 20 प्रतिशत फैट हो। साथ में मिनरल्स भी होने चाहिए। मोटा आटा खाएं, रिफाइंड चीजों से एकदम दूर रहें। ऑइल बदलते रहें। चावल खाना है, तो दूसरी चीजें कम कर दें। ऐसे फल खाएं, जिसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम हो। सेब, संतरा, पपीता, नाशपाती, अमरूद, मौसमी, अनार 200 ग्राम तक रोज खा सकते हैं। रोज 8-10 नट्स खा सकते हैं। शुगरफ्री से परहेज करें, इसे ज्यादा खाने से याददाश्त खराब होती है, पेट खराब हो सकता है, नींद नहीं आती है। नेचुरल मीठा जैसे अंजीर खाएं। दही, छाछ लें। थोड़ा-थोड़ा खाएं, कई बार खाएं।
डाइबिटीज होने का मतलब यह नहीं है कि जिंदगी खत्म हो गयी। आप आम के सीजन में आम खा सकते हैं, बस मात्रा का ध्यान रखें, दूसरी चीजें कम कर दें, एक्सरसाइज थोड़ी ज्यादा कर लें। हां, इन सब चीजों से आपकी डाइबिटीज कंट्रोल ना हो, तो डॉक्टर आपके वजन और आपकी कार्यशैली के हिसाब से दवाएं देंगे। जब टेबलेट से कम ना हो, तो डॉक्टर इंसुलिन इन्जेक्शन लगवाने की सलाह देते हैं। इससे क्वॉलिटी ऑफ लाइफ बेहतर हो जाती है।