Tuesday 10 October 2023 04:21 PM IST : By Pariva Sinha

मेंटल हेल्थ थेरैपी के लिए ऑनलाइन मौजूद है मदद

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मेंटल थेरैपी लेना आज भी आम बात नहीं है। अपनी प्रॉब्लम्स के बारे में बात करने से ले कर थेरैपिस्ट के साथ सेशन बुक करने तक कई तरह की झिझक महसूस होती है। लेकिन अब सोशल मीडिया के जरिए मेंटल हेल्थ थेरैपी से जुड़ा पूर्वाग्रह टूटा है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कई पेज और साइट्स हैं, जो मेंटल हेल्थ से जुड़ी जानकारी और मदद देते हैं।

कैसे बन सकता है सेफ स्पेस

डिजिटल स्पेस में ही नहीं, फिल्मों में भी जैसे डियर जिंदगी या हाल ही में रिलीज हुए शो मेड इन हेवेन में भी किरदार अपनी रिलेशनशिप की समस्याएं अपनी थेरैपिस्ट से शेअर करती नजर आती हैं। कई फिल्मों ने भी थेरैपी को लाइफ का आम हिस्सा दिखाने की कोशिश की है। डिजिटल प्लेटफाॅर्म जैसे सोशल मीडिया पर भी अब सेल्फ केअर और थेरैपी की बातों को नॉर्मल बना दिया गया है। कई पेज ऐसे हैं, जहां थेरैपी के लिए वेरिफाइड वेबसाइट लिंक मिल जाएंगी। प्रोफेशनल थेरैपिस्ट खुद सोशल मीडिया पर हैं, जिससे उनसे संपर्क करना आसान हो गया है। सोशल मीडिया पर मेंटल हेल्थ से जुड़ा कंटेंट भी कई बार उपयोगी होता है। कई थेरैपिस्ट भी अपने पेज पर समस्याओं से जुड़ी बातें करते हैं। डिजिटल प्लेटफाॅर्म के जरिए आपके लिए थेरैपिस्ट तक और उनके लिए आप तक पहुंचना दोनों ही आसान हो गया है।

बजट फ्रेंडली

थेरैपी सेशन का महंगा होना झिझक का एक कारण था, लेकिन अब ऑनलाइन थेरैपी के कारण इस पर कम खर्च होता है। कई थेरैपिस्ट प्रोबोनो सेशन (मुफ्त में या कम शुल्क पर) भी लेते हैं। स्टूडेंट्स के लिए कई स्लाइडिंग फी होती है, जिससे सेशन की कॉस्ट कम हो जाती है।

क्यों जरूरी है थेरैपी

थेरैपी से ट्रॉमा शब्द जुड़ा है, जिसे टैबू की नजर से देखा जाता है। थेरैपी लेने के कई कारण हो सकते हैं, जो पूरी तरह से पर्सनल होते हैं। आप जो महसूस कर रहे हैं, जरूरी नहीं उसके लिए कोई डेफिनेशन या टर्म हो। अपनी फीलिंग्स शेअर जरूर करें। अगर आप थेरैपी नहीं ले सकते, किसी प्रोफेशनल से मिलने में कंफर्टेबल नहीं हैं, तो अपने फ्रेंड सर्कल में किसी ऐसे भरोसेमंद दोस्त से अपनी बात जरूर शेअर करें, जो आपके जैसी समस्याओं या हालात से गुजरा हो, वह आपकाे समझ पाएगा। अपने लिए एक सपोर्ट ग्रुप बनाएं, जिससे आप खुद को अकेला नहीं महसूस करेंगे।

पहला सेशन कैसा होगा

साइकोलॉजिस्ट आयुषी शर्मा का कहना है, ‘‘इंटरनेट पर वेंटिंग साइट भी हैं, जहां आप अपना नाम बताए बिना अपने मन की बात कह सकते हैं, लेकिन इनसे बचें।’’ वहीं काउंसिलिंग साइकोलॉजिस्ट गंताशा सांगला का कहना है, ‘‘40 की उम्र से ऊपर के लोग रिलेशनशिप और डिप्रेशन से जुड़ी समस्याओं के लिए मदद मांगने आगे आ रहे हैं।’’ थेरैपी में ना जाने की एक वजह कंफर्ट भी है। किसी को अपनी सारी समस्याएं, अपने डर और एंग्जाइटी के बारे में बताना आसान नहीं लगता, लेकिन एक्सपर्ट के अनुसार थेरैपी शुरू करने से पहले आपके चुने गए प्रोफेशनल के साथ आपको पहला इंट्रोडक्ट्री सेशन मिलता है, जो आपको कंफर्टेबल करने में आमतौर पर काफी होता है।

ध्यान रखें

सोशल मीडिया पर जितनी सही जानकारी है, उतनी ही गलत इन्फॉर्मेशन भी है। इंटरनेट पर वेंटिंग साइट भी हैं, जहां आप अपना नाम बताए बिना अपने मन की बात कह सकते हैं, लेकिन इनसे बचें।

अब सपोर्ट ग्रुप या लिसनर्स ग्रुप भी हैं, जहां थेरैपिस्ट नहीं आम लोग साथ आ कर समस्याओं को ओपन में शेअर करते हैं।