Tuesday 10 October 2023 04:42 PM IST : By Nishtha Gandhi

घर के बुजुर्ग कैसे रहें खुश

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आजकल के समय में जब बच्चे घर से दूर और अलग रहना चाहते हैं, ऐसे में उन लोगों के बारे में बात करना और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है, जो संयुक्त परिवार में या घर के बुजुर्गों के साथ रहते हैं। दरअसल, घर में जितने ज्यादा सदस्य होंगे, उनके बीच तालमेल की समस्याएं उतनी ही ज्यादा बढ़ेंगी। उम्र बढ़ने के साथ हमारी शिकायतें भी बढ़ती हैं। इसका सबसे बड़ा कारण असुरक्षा की भावना का बढ़ना है। सालों तक एक्टिव लाइफ जीने के बाद जब वे रिटायर होते हैं या फिर काम करने की क्षमताएं खत्म होने लगती हैं, तो वे यह सोचने लगते हैं कि अब हम बेकार हो चुके हैं, बेटे-बहू पर आश्रित हैं और अब हमें कोई पूछता नहीं है। कई बार जब वे चीजें भूलने लगते हैं, पहले की तरह सक्रिय नहीं रह पाते, तो भी खीझ कर चिड़चिड़े होने लगते हैं। इसके अलावा उम्र बढ़ने के साथ जिद भी उन पर हावी होने लगती है। इसके दो परिणाम होते हैं- या तो वे बेहद गुस्सैल, जिद्दी, चिड़चिड़े हो जाते हैं या फिर सब कुछ छोड़ कर अपने खोल में सिमटने लगते हैं। ये दोनों ही स्थितियां खतरनाक हैं। बुजुर्गों के इस स्वभाव का सीधा असर घर के बाकी सदस्यों पर भी पड़ता है। उन्हें यह लगने लगता है कि हम तो माता-पिता के लिए सब कुछ कर रहे हैं, लेकिन फिर भी इन्हें हमेशा शिकायतें रहती हैं। इसी खींचतान की वजह से घर का माहौल खराब होता है और आपसी संबंधों पर भी बुरा असर पड़ता है। इस कड़ी में सबसे ज्यादा खराब होनेवाले संबंध सास और बहू के होते हैं। कई बार सास-ससुर की जरूरत से ज्यादा दखलंदाजी पति-पत्नी के आपसी संबंध भी खराब कर देती है।

फरीदाबाद के मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. जया सुकुल का इस बारे में कहना है, ‘‘बुजुर्गों को आपके अटेंशन की जरूरत होती है। इसलिए अगर हम उनको कुछ देर अटेंशन देना शुरू कर देंगे, तो उनके बर्ताव में बहुत से बदलाव महसूस करेंगे। इसके अलावा उनके साथ बातचीत में धैर्य और संयम बरतना भी बहुत जरूरी है। फिर चाहे वह कोई ऐसी बात हो, जिस पर आपका उनसे मतभेद हो या फिर उनके व्यवहार की कोई बात बुरी लगी हो, उसे बिना गुस्सा किए धैर्यपूर्वक डील करना भी जरूरी है। बुजुर्गों में 3 डी यानी डिलेरियम, डिमेंशिया और डिप्रेशन सबसे ज्यादा आम हैं। इसके लिए जरूरी है कि नियमित उनका चेकअप कराया जाए। इससे समय रहते समस्या की पहचान भी होगी और बुजुर्गों को भी लगेगा कि आप उनका ध्यान रख रहे हैं।’’

विक्टिम मेंटेलिटी से बाहर निकलें

अकसर यह देखा गया है कि जो युवा बच्चे या दंपती बुजुर्गों के साथ रह रहे हैं, उनकी मेंटल हेल्थ भी धीरे-धीरे बिगड़ने लगती है। जाहिर सी बात है, जब घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारियां संभालते हुए भी आप दोषारोपण के शिकार होंगे, तो बुरा महसूस होगा। इसके लिए सबसे पहले जरूरी है कि आप इस गिल्ट से बाहर निकलें कि आप बुजुर्गों की अपेक्षा पर खरे नहीं उतर पाए। यह जरूरी नहीं कि आपके किए हर काम की आपको तारीफ मिले, पर यह भी जरूरी है कि हम यह ना सोचें कि घर में सबको खुश रखने की पूरी जिम्मेदारी हमारी है। आपसी बातचीत से आप भी उन्हें यह समझा दें कि आपकी उनसे क्या अपेक्षाएं हैं, आप किस हद तक उनके लिए कुछ कर सकते हैं और वे किन चीजों की उम्मीद आपसे ना करें। जहां तक हो सके, घर के छोटे-मोटे कामों की जिम्मेदारी उन पर डालें, घर के कुछ फैसलों में आप उन्हें भी शामिल करें। इसके दो फायदे होंगे, एक तो उनका कॉन्फिडेंस बढ़ेगा और दूसरा वे आपके द्वारा लिए गए फैसले की आलोचना भी नहीं कर पाएंगे। बुजुर्गों के साथ रहते हुए अपने अहं को कभी भी बड़ा नहीं बनाना चाहिए, बल्कि आपसी बातचीत का रास्ता हमेशा खुला रखना चाहिए। संभव हो, तो हर महीने कुछ पैसे उनके हाथ में जरूर रखें।