Monday 09 October 2023 03:45 PM IST : By Ruby Mohanty

सुुसाइड नहीं है सॉल्यूशन

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बड़ी तादाद में लोग जिंदगी से जुड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, पर बावजूद इसके दुख की बात यह है कि आत्महत्या के मामले कम नहीं हुए हैं। समाचारों और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्रीज में कई किस्से मिलेंगे, जिसे देख-पढ़-सुन कर लगता है, उनके पास सब कुछ तो है, फिर आखिर कौन सी ऐसी मजबूरी या मानसिक दबाव रहा होगा कि आत्महत्या की नौबत आ गयी ! शायद यही वजह है कि देश-विदेश के मनोचिकित्सकों और शोधकर्ताअों के सामने ‘आत्महत्या’ एक बड़ी समस्या का विषय है। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर साल वैश्विक स्तर पर आत्महत्या के कारण 8 लाख लोगों की मौत हो जाती है। हर 40 सेकेंड में कम से कम एक व्यक्ति की मौत आत्महत्या के कारण होती है। 2016 में 15-29 आयु वर्ग में बीच हुई मौतों का पहला कारण सड़क दुर्घटना थी, वहीं इन मौतों का दूसरा प्रमुख कारण आत्महत्या थी। वैश्विक आत्महत्याओं के 79 प्रतिशत से अधिक मामले निम्न और मध्यम आयवाले देशों में हुए, जबकि उच्च आयवाले देशाें में प्रति लाख जनसंख्या पर आत्महत्या की दर 11.5 थी। गुरुग्राम के एथना बिहेवरियल हेल्थ की सीईओ व फाउंडर श्रद्धा मलिक बताती हैं कि इन दिनाें आत्महत्या के मामलों की जो मुख्य वजहें हैं, उन पर लोग चर्चा करने से बचते हैं। पर समय से लाेग इसे समझें और मनोचिकित्सक से मिलें, तो हालात बेहतर बनेंगे।

क्या है आत्महत्या की वजह

रोजमर्रा की कुछ ऐसी परेशानियां हैं, जिनका सामना आए दिन सभी लोग करते हैं। कुछ लोग इसे चुनौतियां समझ कर डट कर सामना कर पाने में सक्षम होते हैं, पर कुछ लोग नहीं कर पाते हैं। नतीजा, वे कई तरह की मानसिक समस्याओं से जूझते हैं, पर अब उन लोगों की संख्या बढ़ने लगी हैं, जो परेशानियों काे झेल नहीं पाते हैं और आत्महत्या करने को सही राह मानते हैं। सवाल यह उठता है कि ऐसी कौन सी बातें हैं, जिनमें उनका मानसिक संतुलन नहीं बैठ पाता? आज की तारीख में आम लोगों में आत्महत्या की मुख्य वजह अत्यधिक तनाव और तनाव की वजह से घोर अवसाद है। यह स्थिति नौकरी या काम की डेडलाइन, घर और दफ्तर में बैलेंस ना बैठा पाने, रुपयों-पैसों की किल्लत, समाज व परिवार की अपेक्षाओं से बनती है। पर सेलेब्रिटीज द्वारा होनेवाली आत्महत्या थोड़ी अलग है। शीर्ष पर पहुंच कर शीर्ष पर बनने रहने की चाहत, प्रेशर और हमेशा परफेक्ट, जवां, खूबसूरत बने रहने का तनाव उन्हें कई बार जबर्दस्त स्ट्रेस, अकेलेपन और ऑब्सेशन में धकेलता है। सच ताे यह है कि आजकल सेलेब्रिटीज अपने डिप्रेशन के बारे में खुल कर बताने लगे हैं कि वे कब से मेंटल इशू से जूझ रहे थे। बॉलीवुड स्टार दीपिका पादुकोण ने 2015 में एक इंटरव्यू में अपने डिप्रेशन के बारे में बताया। विराट कोहली भी अपने डिप्रेशन और मेंटल हेल्थ के बारे में कह चुके हैं। अनुष्का शर्मा ने भी एक दशक पहले अपने अवसाद काे स्वीकार किया। शाहरुख खान भी इससे अछूते नहीं रहे, 2010 में जब उनके कंधों की सर्जरी हुई, वे सर्जरी की पीड़ा के साथ ही मानसिक पीड़ा से भी गुजर चुके हैं। इलियाना डीक्रूज भी ऐसी परेशानी से गुजरीं। इतना ही नहीं यो यो हनी सिंह भी मानसिक विकार की चपेट में थे। आश्चर्य होता है कि सेलेब्रिटीज को कैसी मानसिक दिक्कत होती होगी?

आत्महत्या के लक्षण

दिल्ली स्थित क्राइम एडवोकेट डॉ. अनुजा कपूर के मुताबिक, ‘‘मानसिक संतुलन ना बैठा पाने की वजह चाहे जो भी हो, पर अगर आप अपने किसी करीबी को कुछ खास स्थिति में देखते हैं या खुद भी ऐसा महसूस करते हैं, जैसे ज्यादा चिंतित महसूस करना, बेहद दुखी रहना, अपने शरीर और खानपान को ले कर काफी चिंतित और दुखी रहना, हमेशा परफेक्ट बॉडी की चाहत, सोशल मीडिया का ऑब्सेशन और एंग्जाइटी, जरूरत से ज्यादा मेहनत करना, खाने-पीने और पहनने-ओढ़ने से बेजार होना, हमेशा नेगेटिव बात करना और कभी-कभी जीवन खत्म कर देने की बात कहना, जीवन निरर्थक लगना और इसके अलावा टेक्नोलॉजी का ज्यादा इस्तेमाल करना, जिनके परिणामस्वरूप अपने फोन पर या ऑनलाइन ज्यादा समय बिताने से इसकी लत और दूसरों से अलग-थलग महसूस करना, तो डॉक्टरी राय लेने से ना हिचकें।’’ आत्महत्या जघन्य अपराध है। इस अपराध की राह पकड़ने और मानसिक अवसाद से गुजरने से पहले जरूरी है कि डॉक्टर का रुख करें। मनोचिकित्सकों को अफसोस है कि लोग डॉक्टर के पास आने से हिचकते हैं।

डॉक्टर से मिलने में हिचक

भले ही बड़ी संख्या में लोगों को अपनी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ रहा है, लेकिन फिर भी उन्हें मनोचिकित्सक से मदद लेने में हिचक महसूस होती है। इसके पीछे कई वजहें हैंÑलोग सोचते हैं कि यदि वे मदद मांगेंगे, तो उन्हें कमजोर कहा जाएगा, क्योंकि समाज मानसिक स्वास्थ्य को अभी भी अच्छी तरह से नहीं समझता है। लोग इससे चिंतित रहते हैं कि यदि वे मन का इलाज कराएंगे, तो उनके दोस्त, परिवार और डॉक्टर क्या कहेंगे? कुछ ऐसा भी सोचते हैं कि इस तरह की मदद लेने का मतलब है कि वे समस्याओं को स्वयं निपटाने में सक्षम नहीं हैं। अवसाद से जूझ रहे लोग मदद मांगने से यह महसूस कर सकते हैं कि वे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण खो रहे हैं। वे नहीं जानते हैं कि मनोचिकित्सक से बात करना कैसा रहेगा और वे चिंतित होंगे कि इससे चीजें और खराब हो सकती हैं। अपने पिछले खराब अनुभव को देखते हुए वे डॉक्टर से मदद लेने की कोशिश करते तो हैं, और इसमें सफल नहीं हाेने की वजह से फिर से इसकी कोशिश करना उचित नहीं समझतेे।

हालात कैसे बेहतर बनें

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राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया रिपोर्ट, 2021 से स्पष्ट है कि वर्ष 2020 और 2021 में कोविड-19 महामारी के दौरान छात्रों द्वारा आत्महत्याओं में भारी बढ़ोतरी हुई और पिछले 5 सालों में यह लगातार बढ़ रही है। विमहंस के बाल मनोविशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र नागपाल कहते हैं, ‘‘आज के बच्चों में सोशल साइट एक्सपोजर के अलावा पढ़ाई और परफाॅर्मेंस का इतना ज्यादा प्रेशर है कि वे इसे झेल नहीं पाते। अभिभावकों को चाहिए कि वे पेरेंट्स बन कर नहीं, दोस्त बन कर बच्चों के करीब रहें। दरअसल, आत्महत्या को बढ़ने से रोकने के लिए काफी प्रयास करने की जरूरत है। हमें मानसिक स्वास्थ्य के बारे में अपनी सोच में बदलाव लाना होगा।’’

डॉ. नागपाल आगे कहते हैं, ‘‘स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में सिखाए जाने की जरूरत है, जिससे हम सब इसे बेहतर ढंग से समझ सकें और दूसरों को भी इसकी जानकारी दे सकें। सरकारें सभी स्थानों, खासकर ऐसे ग्रामीण इलाकों में, जहां मदद मिलनी मुश्किल हो, वहां मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करा कर मदद कर सकती हैं। जीवन के संघर्ष में अकेलापन महसूस ना करें, इसके लिए सामुदायिक केंद्र लोगों को सहायता प्रदान कर सकते हैं और उन्हें यह सिखा सकते हैं कि वे एक-दूसरे की मदद कैसे करें।’’

क्या बताते हैं ताजा आंकड़े

डब्लूएचओं द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में भारत में आत्महत्या की दर सबसे अधिक है। भारत की आत्महत्या दर प्रति 100,000 लाेगों पर 16.5 बतायी गयी।

राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूराे द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2021 में 1.64 लाख लोगों ने आत्महत्या की। इनमें से 81,063 लोग विवाहित पुरुष थे व 28,680 विवाहित महिलाएं थीं। ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2023 जनवरी से अगस्त महीने तक कोटा में 22 छात्रों ने सुसाइड किया।