Saturday 11 February 2023 05:03 PM IST : By Indira Rathore

क्यों ना ये आईने बदल डालें

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आज जब लड़कियां खेल के मैदानों से ले कर साइंस, इंजीनियरिंग और बोर्डरूम तक अपनी निर्णायक उपस्थिति दर्ज करा रही हैं, तब क्या हमारे समाज में वह दृष्टि भी विकसित हो रही है, जो उनके चेहरे या शरीर से आगे बढ़ कर उनके हौसलों, जिजीविषा और जज्बे को सलाम कर सके?

सुंदरता सभी को लुभाती है। यह स्वाभाविक मानवीय प्रवृत्ति है कि हम सुंदरता की सराहना करते हैं। हालांकि हमारा जीवन दर्शन कहता है कि सुंदरता क्षणिक है।एक पल में प्रकृति का जो रूप हमें लुभाता है, दूसरे ही पल डरा भी सकता है। युवावस्था में सुंदर रहा व्यक्ति भी उम्र के आखिरी पड़ाव तक पहुंचते-पहुंचते निचुड़ जाता है। सुबह का खिला फूल शाम तक मुरझा जाता है। कहनेवाले यह भी कहते हैं कि सुंदरता देखनेवाले की नजर में होती है, वरना दुनिया में कुछ भी परफेक्ट या पूर्ण नहीं है। हम चाहें, तो परफेक्शन को नजर का धोखा भी कह सकते हैं।

स्त्रियों पर सुंदर दिखने का दबाव कुछ ज्यादा ही होता है। दरअसल सुंदरता की जो नपी-तुली परिभाषा हमने गढ़ ली है, उससे बाहर देखने के लिए एक नया नजरिया चाहिए, जिसे हम पैदा ही नहीं होने देना चाहते। हाल में एक परिचित नवविवाहिता ने बताया कि उस पर दुबली दिखने का दबाव इतना ज्यादा था कि शादी के 6 महीने पहले से उसने डाइटिंग शुरू कर दी, जिम जाने लगी और कई प्रयोगों पर हाथ आजमाए। भावी पति और सास ने पहले ही साफ शब्दों में कह दिया था कि शादी के दिन तक उसे कम से कम 5-7 किलोग्राम वजन कम करना होगा। वजन तो कम हुआ, लेकिन एक खास डाइट आजमाने के चक्कर में उसे जबरदस्त एलर्जी हो गयी। इस एलर्जी का असर चेहरे पर सबसे ज्यादा नजर आया, जिसे फिर मेकअप की मोटी परतों के नीचे किसी तरह छिपाना पड़ा।

हालांकि पिछले कुछ वर्षों में लड़कियों ने सुंदरता की बनी-बनायी परिभाषाओं को तोड़ा भी है। कई बड़े फैशन लेबल्स ना सिर्फ प्लस साइज फैशन ला रहे हैं, बल्कि प्लस साइज मॉडल्स को रैंप पर मौका भी दे रहे हैं। देखने में यह सकारात्मक बदलाव लगता है, लेकिन है अभी आधा-अधूरा। यह मार्केट की रणनीति का हिस्साभर है। भले ही प्लस साइज पर तमाम बड़े डिजाइनर्स काम कर रहे हों, लेकिन कई हाई स्ट्रीट ब्रांड्स ऐसे फैशन पर फैट चार्ज लेते हैं। इसका विरोध होने लगा, तो कई डिजाइनर्स ने इस चार्ज को वापस लेने की घोषणा भी की।

पिछले दिनों कई बॉलीवुड नायिकाओं सहित आम लड़कियों ने भी नो मेकअप लुक चैलेंज लिया। करीना कपूर से ले कर सोनम कपूर और माधुरी दीक्षित तक सभी अपने ‘नो मेकअप’ लुक में कैमरे के सामने आयीं। हालांकि दूसरी डिलीवरी के बाद करीना कपूर ने अपनी फोटो शेअर की, तो उन्हें ट्रोल भी किया गया। किसी यूजर ने लिखा-अरे इनकी उम्र तो अब ढल गयी है, तो किसी ने लिखा-ये क्या हाल बना रखा है। विद्या बालन जैसी समर्थ अभिनेत्री को भी अपने वजन के लिए इतनी बातें सुननी पड़ीं कि एक समय में वे डिप्रेशन में चली गयी थीं। सुंदरता के प्रति सनकी समाज को करीना कपूर जैसी नायिकाएं आईना दिखाती हैं। अपनी दोनों प्रेगनेंसी के दौरान वे अंतिम ट्राइमेस्टर तक काम करती रहीं। बढ़े हुए वजन के साथ शूट्स किए और उन्हें अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर शेअर भी किया। करीना ने कहा कि वे एक कामकाजी स्त्री हैं और किसी भी अन्य नौकरीपेशा स्त्री की तरह गर्भावस्था के दौरान काम कर रही हैं, तो इसे दिखाने में हिचक क्यों हो?

मुझे याद है, कुछ वर्ष पहले जब गुजरे जमाने की एक अभिनेत्री का साक्षात्कार लेने हमारी टीम को दिल्ली स्थित उनके आवास पर जाना पड़ा, तो उन्होंने सबसे पहले हमारे फोटोग्राफर को यह कहते हुए बाहर कर दिया कि वे सिर्फ इंटरव्यू देंगी। फोटो खिंचवाने के लिए वे तैयार नहीं थीं, क्योंकि उनका मेकअप सादा था और उनके बालों में सफेदी नजर आ रही थी। यह तब था, जब वे बरसों पहले काम छोड़ चुकी थीं। पिछले दिनों टीवी के एक रियलिटी शो में जीनत अमान आयीं, तो उनकी बातों से ज्यादा चर्चा उनके सफेद बालों की हुई। तुलना करके देखें, तो आज अभिनेत्रियों ने सुंदरता के दिखावे से काफी हद तक निजात पायी है।

सोनम कपूर ने एक बार मेकअप करते हुए अपनी फोटो शेअर की और लिखा, ‘सुबह उठने के बाद कोई भी सेलेब्रिटी वैसा नहीं दिखता, जैसा कि फिल्मों या फोटो में दिखता है। शूट से पहले हमें घंटों आईने के आगे बिताने पड़ते हैं। कई लोग इस सुंदरता को निखारने के लिए मेहनत करते हैं। हेअर स्टाइलिस्ट बाल संवारता है, तो मेकअप आर्टिस्ट चेहरे पर लीपा-पोती करता है, हर हफ्ते मुझे अपनी भवें तराशनी पड़ती हैं। शरीर के लगभग हर हिस्से में कंसीलर लगाना पड़ता है। घंटों जिम में पसीना बहाना पड़ता है, ताकि शरीर शेप में रहे। साथ में पूरी टीम रहती है, जो खाने-पीने, मेकअप से ले कर कपड़ों तक का चयन करती है। इन सबके बाद भी मैं सुंदर नहीं दिखती, तो मेरी फोटो पर फोटोशॉप में काम किया जाता है। इसलिए अगर कोई लड़की मेरी फोटो निहारते हुए यह सोचे कि वह सुंदर नहीं है, तो उसे जरूर बताएं कि सामनेवाली फोटो एक मिथ के सिवा कुछ नहीं है।’

सिर्फ अभिनेत्रियों ने नहीं, रजनीकांत जैसे मेगा स्टार और कई चरित्र अभिनेताओं ने भी सुंदरता के इस भ्रम को तोड़ा है। नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, सौरभ शुक्ला, नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे कई अभिनेताओं ने कामयाबी की ऊंचाइयां छू कर यह साबित कर दिया कि काम में दम होना चाहिए, सूरत तो बनती-बिगड़ती रहती है। एक साक्षात्कार के दौरान सौरभ शुक्ला ने कहा था, ‘कोई भी परफेक्ट नहीं होता। आप दुनिया के सबसे खूबसूरत व्यक्ति को आईने के सामने खड़ा कर दीजिए, उसे भी लगता होगा कि उसमें कुछ नुक्स है। किसी को अपने वजन से समस्या है, तो किसी को अपनी नाक से, कोई चाहता है कि काश उसकी आंखें थोड़ी बड़ी होतीं, तो कोई सोचता है कि काश वह थोड़ा गोरा होता। हम जो भी हैं जैसे भी हैं, उसे हमें स्वीकार करना चाहिए, अपने काम के बल-बूते अपनी पहचान बनानी चाहिए।’

दक्षिण भारतीय अभिनेत्री सई पल्लवी ने कुछ समय पहले एक फेअरनेस क्रीम का विज्ञापन करने से मना कर दिया। उन्हें लगता है वे भारतीय हैं और उनका स्वाभाविक रंग सांवला है। ऐसे विज्ञापन करके वे उन भारतीय स्त्रियों के लिए और समस्या नहीं पैदा करना चाहतीं, जो पहले से ही कई तरह के सौंदर्य मिथकों के साथ जी रही हैं।

जापान में एक टर्म का खूब प्रयोग किया जाता है-वाबी-साबी। यों तो इसका मतलब दार्शनिक है, लेकिन सुंदरता को यह एक अलग ही अंदाज में दर्शाता है। वाबी का मतलब है-चीजों को देखने की दार्शनिक दृष्टि और साबी का अर्थ है-चीजों की स्वाभाविक वृत्ति को समझना। अगर दोनों शब्दों को मिला कर समझा जाए, तो यह स्थिति किसी वैराग्य की तरह है, जहां कोई व्यक्ति जीवन के अधूरेपन या क्षणभंगुरता को समझ सकता है। जीवन का एक चक्र है-हर चीज जो सुंदर है, एक दिन खत्म होती है। कभी किसी कुम्हार को काम करता देखें। चाक पर उसके सधे हाथ हर बरतन पर एक ही तरह से फिसलते हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि हर चीज सुगढ़ बने। हालांकि उसका प्रेम अपनी हर रचना से एक जैसा ही होता है, उसने हर कृति पर समान मेहनत की होगी।

अब कोई बरतन टूट जाए या उसके आकार में कोई खामी दिखे, तो शायद हम उसे फेंकना पसंद करेंगे, लेकिन जापानी संस्कृति में टूटे हुए को भी ठीक करने की कोशिश की जाती है और उसकी अनगढ़ता में एक अलग तरह की खूबसूरती देखी जाती है। जीवन की स्वाभाविक लय के साथ जीना वाबी-साबी है। हर चीज किसी समय में सुंदर दिखती है, लेकिन फिर नष्ट हो जाती है। पूर्णता एक भ्रम है। परफेक्ट जैसा कुछ होता ही नहीं तो फिर इस कसौटी पर खुद को क्यों कसें। जैसे भी हैं काले-गोरे, दुबले-मोटे, नाटे-लंबे, उसे स्वीकार करें और आगे बढ़ें।

नयी लड़कियां सुंदरता की इस पाखंडी सोच को पीछे धकेलती हुई खेल के मैदानों और प्रयोगशालाओं से ले कर बोर्डरूम तक नए कीर्तिमान गढ़ रही हैं। हम अगर अब भी उन्हें गोरे-सांवले रंग या कम-ज्यादा वजन की कसौटी पर कस रहे हैं, तो यह हमारे नजरिए का दोष है। यों कहें कि हमारे आईने ही ऐसे नहीं बने, जो हमें अपना चेहरा दिखा सकें। समय रहते इस दोष को दूर कर लें, तो बेहतर होगा।