Thursday 24 September 2020 09:16 PM IST : By Neelam Sikand

देश में 5 ऐसे मंदिरों के बारे में जानिए, जहां पुरुषों का जाना मना है

अापको यह जान कर हैरानी होगी िक देश में कुछ मंदिर ऐसे भी हैं, िजनमें पुरुष नहीं जा सकते या िफर कुछ खास िदनों या अवसरों पर उनके जाने पर रोक लगा दी जाती है। जानते हैं इन मंदिरों के बारे में-

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ब्रह्मा मंिदर (पुष्कर, राजस्थान) ः अजमेर से 15 िकलोमीटर दूर भगवान ब्रह्मा का यह एकमात्र मंदिर 14वीं शताब्दी का है। यहां गर्भगृह में शादीशुदा पुरुषों का जाना मना है। देवी सरस्वती के श्राप के कारण शादीशुदा पुरुषों को अंदर जाने से रोका जाता है। माना जाता है िक शादीशुदा पुरुष मंिदर के अंदर के िहस्से (गर्भगृह) में ब्रह्मा जी के दर्शन के िलए जाएगा, तो उसके वैवािहक जीवन में अड़चनें अाएंगी।

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अट्टूकल भगवती मंदिर (ितरुवनंतपुरम, केरल)ः इस मंिदर की मुख्य देवी कन्नकी (पार्वती) हैं, जो ‘अट्टूकल अम्मा’ के नाम से भी जानी जाती हैं। यह मशहूर पद्मनाभ स्वामी मंदिर से महज 2 िकलोमीटर की दूरी पर है। यह मंिदर हर साल होनेवाले ‘अट्टूकल पोंगाला फेस्टिवल’ के िलए मशहूर है। इसमें लगभग 30 लाख महिलाएं शािमल होती हैं। इतनी बड़ी संख्या में महिलाअों के इस धार्मिक अनुष्ठान में शािमल होने की वजह से इस मंिदर का नाम िगनीज बुक अॉफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में दर्ज है। ‘अट्टूकल पोंगाला फेस्टिवल’ हर साल जनवरी-फरवरी में 10 िदन के िलए चलता है। इसमें भोग के लिए पोंगल बनाया जाता है, जो चावल, गुड़, घी, नारियल अौर दूसरी चीजों से तैयार िकया जाता है। इसमें पुरुषों का अाना मना है।

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चक्कूलातुकावु मंिदर (अलपुझा, केरल) ः केरल के अलपुझा िजले में बना यह मंदिर देवी भगवती को समर्पित है। इसके दोनों अोर पंबा अौर मनिमाला नदियां बहती हैं। इस मंदिर में भी हर साल ‘पोंगाला फेस्टिवल’ मनाया जाता है, िजसमें हजारों महिला श्रद्धालु िहस्सा लेती हैं अौर प्रसाद के तौर पर ‘पोंगल नेवैद्यम’ बनाती हैं। इसमें भी पुरुषों का जाना मना है। इस मंदिर में ‘धनु’ के नाम से धार्मिक अनुष्ठान िकया जाता है, िजसमें महिलाएं 10 िदन के िलए व्रत करती हैं। िदसंबर के पहले शुक्रवार को िजसे ‘धनु’ कहते हैं, मंिदर का पुजारी व्रत रखनेवाली महिलाअों के पैर धोता है। पुजारी को छोड़ कर बाहरी पुरुषाें का अाना मना होता है। इस अनुष्ठान को ‘नारी पूजा’ कहते हैं।

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कन्याकुमारी मंदिर (तमिलनाडु) ः
देवी भगवती के िकशोर रूप को समर्पित यह मंदिर देश के दक्षिणतम छोर पर है। यह शक्तिपीठों में से एक है। एेसी मान्यता है िक कन्या रूप में मां भगवती ने भगवान िशव को पति के रूप में पाने के िलए महासागर के बीचोंबीच एक अलग-थलग क्षेत्र में बहुत कठिन तपस्या की थी। देवी भगवती के इस स्वरूप को ‘संन्यास की देवी’ के रूप में भी जाना जाता है। एक अौर कथा के अनुसार माता सती की स्पाइन (पीठ) इस जगह पर िगरी थी। इस मंदिर के द्वार तक संन्यासी पुरुषों को ही जाने की अनुमति है। शादीशुदा पुरुष मंदिर के परिसर में भी नहीं जा सकते।

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कामरूप कामाख्या मंदिर (असम) ः
यह  51 शक्तिपीठों में से एक है। यह मुख्य शक्तिपीठों में से एक है, क्योंिक यहां माता सती का गर्भाशय अौर योनि िगरे थे। यह मंदिर अाषाढ़ (जून) के महीने में 3 िदन के िलए बंद रहता है। ऐसा िवश्वास है िक उन दिनों यहां देवी को पीरियड्स होते हैं। इस दौरान मंिदर में केवल महिलाएं ही जा सकती हैं अौर उन दिनों केवल महिला पुजारी या संन्यािसनें ही मंदिर की देखभाल का िजम्मा उठाती हैं। 3 दिन तक कामाख्या पीठ के समीप बहनेवाली ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है। पर्यटक इस लाल पानी में कपड़ा भिगो कर घर ले जाते हैं। इसी तरह का एक मंदिर बिहार के मुजफ्फरपुर िजले में भी है।