Wednesday 08 July 2020 04:13 PM IST : By Ruby Mohanty

यहां खेली जाती है मट्ठे-मक्खन से होली

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रैथल गांव से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर बारसू दयारा बुग्याल है। यह पर्यटन की दृष्टि से अंतिम अाबादी का क्षेत्र है, जहां पर सुंदर रंगबिरंगी मछलियांेंवाला तालाब है। रैथल नामक इस शांत, स्वच्छ, निर्मल व रमणीक स्थल का अानंद लेने बस से भी यहां पहुंच सकते हैं। पर्यटकों का मानना है कि दयारा बुग्याल के बराबर ढलानदार एवं बड़े घास के मैदान कहीं नहीं है। यह 28 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। इस बुग्याल में लाखों रंगबिरंगे फूल, अायुर्वेद दवाइयों में इस्तेमाल की जानेवाली दुर्लभ जड़ी-बूटियां भी पायी जाती हैं। रैथल गांव के चरवाहे अपने मवेशियों को बुग्याल की मखमली घास चराने के लिए ले कर अाते हैं। यहां अाने के बाद चरवाहे का उसी दिन लौटना मुश्किल होता है। इसीलिए वे बुग्याल में ही छोटी-छोटी छानियां (झोपड़ियां) बना कर रहते हैं। वे यहां तब तक ठहरते हैं, जब तक उनके पशु सेहतमंद ना हो जाएं। मार्च-अप्रैल तक यहां बर्फ होती है। गरमी शुरू होने पर ये यहां अाते हैं। गाय, भैंस अौर बकरियां खूब दूध देनेवाली हो जाती हैं, तो उन्हें वापस अपने गांव में ले अाते हैं। अपने सेहतमंद पशुअों के साथ खुशी-खुशी वापस लौट अाना ही उनका ‘बटर सेलिब्रेशन’ है। भले ही यह एक दिन का त्योहार है, पर इसे मनाने के लिए दो दिन पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं। पहले इसी त्योहार को ‘अंढूरी’ कहा जाता था। यह त्योहार खासतौर पर प्रकृति को धन्यवाद देने का तरीका है। इस दौरान मेले का अायोजन भी होता है। पशुअों के माध्यम से दूध के उत्पादन में वृद्धि होती है अौर इसी के माध्यम से संपन्नता अाती है। अाजकल इस त्योहार में दही हांडी की तरह मट्ठे से भरी हंडिया फोड़ने का भी चलन हो गया है।

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सभी गांववाले घेरा बना कर खड़े हो जाते हैं, रंगबिरंगी पिचकारियां उनके हाथों में होती हैं। बाल्टियों से मट्ठे में पिचकारी भर कर एक-दूसरे पर डालते हैं। स्कूल के बच्चे, महिलाएं, टूरिस्ट, गांव के चरवाहे सभी इस होली में शामिल होते हैं। वैसे रैथल में दूध की प्रचुरता ही नहीं, बल्कि सेब, अालू, राजमा की खेती भी वहां के लोगों की अाय का जरिया है। अाप वहां जाएं, तो सेब अौर राजमा-चावल का लुत्फ जरूर लें।  
कैसे मनाया जाता है
अंढूरी त्योहार मनाने के लिए चरागाह में स्वागत के लिए घर के बाहर फूल-पत्तियों से द्वार बनाते हैं अौर उस पर पूरियां लटकाते हैं। सभी रिश्तेदारों अौर पड़ोसियों को निमंत्रण दिया जाता है, जिससे उनके समाज में सभी को मालूम हो जाए कि चरवाहे अौर उनके पशु स्वस्थ हो कर बुग्याल से नीचे अा चुके हैं। पहले इस त्योहार में मेहमानों पर कीचड़ अौर गोबर फेंक कर स्वागत होता था। पर जब से अंढूरी त्योहार ने मट्ठे-मक्खन त्योहार का रूप ले लिया, तब से कीचड़ अौर गोबर की जगह सभी लोग मट्ठे को पिचकारी में भर कर एक-दूसरे पर फेंकते हैं अौर मक्खन एक-दूसरे के गालों पर लगाते हैं। उनके इस त्योहार को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन विभाग भी लोकगीत-संगीत का अायोजन करता है। इतना ही नहीं, उत्सव का उदघाटन स्थानीय विधायक करते हैं। इस मौके पर स्थानीय स्त्री अौर पुरुष पारंपरिक परिधान पहन कर अपने पारंपरिक धीमी अौर मीठी धुनों पर लोक नृत्य करते हैं।

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टूरिस्ट भी उनकी इस मधुर धुन पर थिरके बिना नहीं रह पाते। सच पूछिए, तो अाप जब भी वहां जाने का प्रोग्राम बनाएं, तो वहां के पारंपरिक परिधान पहन कर लोक नृत्य में शामिल हो कर अानंद उठा सकते हैं। पहाड़ों की ताजी हवाएं अापके कानों से हो कर गुजरें, तो इस ताजगी काे महसूस करें। टोपी अौर मफलर के साथ गरम कपड़े ले जाना ना भूलें।
टूरिस्ट की फेवरेट जगह
दयारा बुग्याल काफी उंचाई पर है। वहां तक पहुंचने का रास्ता खूबसूरत, रोमांचभरा अौर प्रकृति के करीब है इसलिए पर्यटकों को ट्रैकिंग के लिए अाकर्षक करता है। टूरिस्ट यहां पर मई से अक्तूबर तक जा सकते हैं। बारिश के दिनों में यहां जाने से बचें। दिसंबर से मार्च तक खासतौर पर अौली बुग्याल बर्फ से ढक जाता है। लंबे समय तक बर्फ जमे रहने की वजह से यह साहसिक खेलों के लिए उपयुक्त है। नब्बे के दशक से यहां पर स्कीइंग खेल का अायोजन हो रहा है। विदेशियों को यहां अाना बहुत अाकर्षित करता है, जिसकी वजह से ‘विलेज टूरिज्म’ को बढ़ावा मिल रहा है। टूरिस्ट गांववालों की संस्कृति को जानने अौर स्थानीय खानपान का लुत्फ लेने के लिए उनके बीच रहना पसंद करते हैं। पर्यटकों को सिर्फ यहां का बटर फेस्टिवल अौर ट्रैकिंग ही नहीं, बल्कि फूलों से खुशबुअों से भरी घाटियां भी उतनी ही अाकर्षित करती हैं।  

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फिर भी अाप कह सकते हैं कि अावागमन के साधनों के अभाव में यह पर्यटन स्थल पर्यटकों की नजर से अभी दूर है। पर्यटकों की गिनती जितनी होनी चाहिए, उतनी नहीं है। पर्यटन विभाग पर्यटकों को अाकर्षित करने के लिए पर्यटन की दृष्टि से यहां के उचित विकास की अोर ध्यान दे, ताे स्थानीय लोगों की बेरोजगारी की समस्या हल होगी। यह प्रयास स्वरोजगार के लिए भी लाभदायक रहेगा।
जाने की व्यवस्था
देहरादून से उत्तरकाशी जिले के रैथल गांव से दयारा बुग्याल के लिए ट्रैकिंग एंजॉय करने के लिए कुछ व्यवस्था अापको भी करनी होगी। टूरिस्ट अगर गाइड की मदद चाहते हैं, तो गाइड को एक दिन का 1000 रुपए देने होंगे। अपना टेंट साथ ले जा सकते हैं। पर्यटन विशेषज्ञ मानने हैं, जब भी पहाड़ पर जाएं, खाने पर बहुत फोकस ना करें। हल्का-फुल्का खाएं-पिएं। चूंकि रैथल गांव में दूध, मट्ठा की प्रचुरता है, यहां पर अाप इसका अानंद लें। कई टूरिस्ट यहां पर अपने टेंट के साथ-साथ छोटा स्टोव, दाल-चावल जैसी चीजें भी ले जाते हैं। अाप चाहें, तो रेडीमेड पैक्ड फूड भी ले जा सकते हैं।

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यहां पर गढ़वाल मंडल विकास निगम का विश्राम भवन भी है। हेलीकॉप्टर से भी रैथल गांव में जाने की व्यवस्था है, जिसका किराया 4,000 रुपए है। जो टूरिस्ट पैदल नहीं चल सकते, वे घोड़े पर भी जा सकते हैं। घोड़े से जाने का किराया 2,000 रुपए लिया जाता है। अाप प्रकृति को करीब से देखना अौर ताजगी महसूस करना चाहते हैं, तो पैदल चल कर ही रास्ता तय करें। इतनी ताजी अौर फूलों की खुशबूवाली इस जगह पर चलना वाकई खुशी देगा।

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