Wednesday 24 March 2021 02:22 PM IST : By Nishtha Gandhi

भारत की इन जगहों की होली नहीं देखी तो फिर क्या देखा

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अगर हम कहेंगे कि होली आ रही है, बैग पैक कीजिए और निकल जाइए घूमने, तो आप कहेंगे क्या बकवास है। होली के हुड़दंग में भी कोई कहीं जाता है भला। लेकिन हमारा कहना है कि हम जहां जाने को कह रहे हैं, वहां की होली जीवन में एक बार जरूर देखनी चाहिए। अपने देश में इन जगहों की होली जीवन में एक बार भी नहीं देखी, तो समझिए आपने कुछ नहीं देखा।

विश्व प्रसिद्ध बरसाने की होली

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‘गोरी तू लट्ठ मार...’ कुछ याद आया। हाथ में बड़ी सी ढाल पकड़े अक्षय कुमार और मोटा लट्ठ लिए सजीधजी भूमि पेडणेकर। यह सिर्फ फिल्म का सीन ही नहीं है, बल्कि हकीकत है। कान्हा के नंदगांव के छोरे बड़ी-बड़ी ढाल हाथ में ले कर आज भी कन्हैया बन कर राधा के गांव बरसाने में होली खेलने आते हैं। इन्हें हुरियारे कहा जाता है। सजीधजी गोपियां हाथ में बड़ी-बड़ी लाठियां ले कर लट्ठमार होली खेलने को तैयार रहती हैं। गुलाबी और लाल लहंगे पहन कर मुंह को घूंघट से छिपाए हुरियारिनों को कम समझने की भूल कोई ना कर बैठे। हालांकि सजधज में हुरियारों का भी कोई सानी नहीं है। प्रिया कुंड में स्नान के बाद ये हुरियारे सिर पर पगडि़यां बांध कर तैयार होते हैं। बरसाने की संकरी गलियों से होती हुई ग्वालों की टोली ढोल-ताशों के साथ जब मुख्य कृष्ण मंदिर की ओर बढ़ती है, तो गोपियां इन पर लट्ठ बरसाने को तैयार रहती हैं। इस दिन पूरा बरसाना राधे-राधे के उद्घोष से गूंज उठता है। एक-एक ग्वालिन कइयों पर भारी पड़ती है। गुलाल इतना उड़ता है कि पूरा अंबर लाल हो जाता है।

बरसाने की होली 4-5 दिन पहले से शुरू हो जाती है। इस होली के पीछे की कहानी भी कम रोचक नहीं है। कहा जाता है कि राधा के प्रेम में दीवाने कृष्ण कई और ग्वालों के साथ होली खेलने बरसाने पहुंच गए और जबरन राधा को गुलाल मल दिया। यह देख गांव वाले इतने नाराज हुए कि लाठियां मार-मार कर उन्हें गांव से बाहर खदेड़ दिया। बस तभी से लट्ठमार होली बरसाने में मनायी जाने लगी। बरसाने की लट्ठमार होली विश्व प्रसिद्ध है, जिसे देखने के लिए विदेशियों की भी भीड़ लगी रहती है। भांग, गुलाल और नाच-गाने से सराबोर इस होली को देखने के लिए होली से पहले ही यहां पहुंच जाएं।

आज बिरज में होली रे रसिया

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नंदगांव के अलावा वृंदावन और मथुरा में भी होली का खूब रंग जमता है। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर और अलग-अलग मंदिरों में फूलों की होली खेली जाती है। फाग, भजन, होली गीतों के साथ हजारों टन फूल होली खेलने वालों पर बरसाए जाते हैं। होली के इस उत्सव में अब समाज की हर धाराओं के लोगों को जोड़ा जाने लगा है। यहां के विधवाश्रमों में रहने वाली महिलाएं भी अब फूलों की होली में शामिल होने लगी हैं। हुड़दंग से परे अध्यात्म और श्रद्धा से भरा यह होली का एक अलग चेहरा है। वहीं वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर के अलावा भी अलग-अलग आश्रमों, मथुरा के द्वारकाधीश मंदिर, कृष्ण जन्मभूमि में इन दिनों आप जहां पैर रखेंगे, वहां आपको गुलाल और अबीर की मोटी चादर ही दिखायी देगी। जगह-जगह मस्ती में डूबी टोलियां ढोल बजाती हुई झूमती गाती नजर आएंगी। मस्ती के ऐसे नजारे को जीवन में एक बार तो देखना बनता ही है।

पंजाब का होला मोहल्ला

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पंजाब के आनंदपुर साहब में होली के मौके पर खास होला मोहल्ला उत्सव मनाया जाता है। यह 3 दिनों तक चलता है। सिखों के गुरु गोविंद सिंह जी ने इस उत्सव की शुरुआत की थी। इस मौके पर परंपरागत तरीके से होली मनाने के अलावा सिखों द्वारा विशाल जुलूस और उत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमें वे भरपूर शक्ति प्रदर्शन करते हैं। कुश्ती, मार्शल आर्ट, तलवारबाजी, भाला चलाना, एक्रोबेट, पगड़ी बांधने की कई प्रतियोगिताएं भी इस दौरान आयोजित की जाती हैं। घोड़ों पर कलाबाजियां खाते निहंगों को देखना वाकई एक अदभुत अनुभव है। ठेठ पंजाबी जोश, पिंड का खाना-पीना, मस्ती के बीच घूमने-फिरने का मजा लेना हो, तो यहां आएं।

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पंजाब टूरिज्म विभाग द्वारा खास होला मोहल्ला टूर्स भी आयोजित किए जाते हैं, जिनमें फार्म स्टे भी शामिल रहता है। इनके अलावा कई प्राइवेट टूर ऑपरेटर्स भी होला मोहल्ला के लिए टूर्स अरेंज करते हैं। वैसे किसी लग्जरी होटल में रहने के बजाय स्थानीय लोगों के साथ घुलमिल कर होली मनाने का अलग ही मजा है। कीर्तन, शबद सुन कर गुरुद्वारे में लंगर भी जरूर चखें।

शांतिनिकेतन का बसंत उत्सव

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बंगाल के शांतिनिकेतन का बसंत उत्सव देसी और विदेशी पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है, खासकर वे लोग इस मौके पर शांतिनिकेतन आना चाहते हैं, जिनकी कला और संस्कृति में विशेष रुचि है। यहां पर बसंत उत्सव की शुरुआत गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर ने की थी। यहां की विश्व भारती युनिवर्सिटी के छात्रों द्वारा बड़ी धूमधाम से होली पर यह उत्सव मनाया जाता है। इस दौरान वहां मौजूद पर्यटकों के लिए खासतौर से टैगोर के गीतों पर डांस के अलावा और भी कई रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यह उत्सव 3 दिनों तक चलता है, जिसमें स्थानीय व्यंजन, थिएटर की प्रस्तुतियां सब शामिल रहते हैं। उत्साह से भरे छात्र मेहमानों को गुलाल भी खूब लगाते हैं।

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शांतिनिकेतन के अलावा पुरुलिया के निमिध में 3 दिन का बसंतोत्सव मनाया जाता है। यहां पर आपको स्थानीय लोगों के साथ होली खेलने का मौका भी मिलेगा और साथ ही चऊ डांस, दरबारी झूमर, नटुआ डांस भी देखने को मिलेगा। इस उत्सव की खास बात यह है कि यह इस गांव के रहनेवालों द्वारा ही आयोजित किया जाता है। होली के मौके पर यह उनकी कमाई का महत्वपूर्ण जरिया बन गया है, जो तेजी से पर्यटकों को लुभा रहा है। पर्यटकों के रहने के लिए यहां कॉटेज और पोर्टेबल टॉयलेट्स की सुविधा भी मौजूद है। निमिध पहुंचने के लिए आप कोलकाता पहुंचें और वहां से ट्रेन या बस द्वारा 5-6 घंटे का सफर तय करके यहां आसानी से पहुंच सकते हैं।

उदयपुर का शाही उत्सव

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रजवाड़ों के शहर उदयपुर में मेवाड़ के शाही परिवार द्वारा विशेष होली उत्सव का आयोजन किया जाता है। होलिका दहन से पहले शाही महल से सिटी पैलेस के मानेक चौक तक विशाल जुलूस निकाला जाता है। सजेधजे घोड़े, ऊंट, हाथी और बैंड बाजे के साथ शाही परिवार भी इस जुलूस में शामिल होता है और फिर चौक पर होलिका दहन किया जाता है। इस दौरान किया जानेवाला गैर नृत्य अपने आपमें अनूठा है। अगले दिन शाही महल के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और शाही परिवार के सदस्य होली खेलते व मिठाइयां बांटते हैं। इस दौरान कई रिजॉर्ट भी होली उत्सव का आयोजन करते हैं।

हंपी में हेरिटेज होली

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यों तो होली का त्योहार मुख्य रूप से उत्तर भारत में ही मनाया जाता है, पर कर्नाटक का हंपी इसका अपवाद है। होली के दिन यहां के शांत लोग सुबह से ही होली खेलने अपने घरों से बाहर निकल आते हैं और खूब रंग और गुलाल उड़ाते हैं। साथ में बजते ढोल की धुन पर पर्यटक भी खूब नाचते-गाते हैं। जम कर होली खेलने के बाद लोगों का हुजूम तुंगभद्रा नदी की तरफ बढ़ जाता है। अगर हंपी घूमने की आपकी भी इच्छा है, तो होली पर यहां का ट्रिप प्लान करें। कई टूर ऑपरेटर्स भी इस मौके पर आपके होली खेलने का पूरा आयोजन कर देते हैं।

मणिपुर की कल्चरल होली

फागुन की पूर्णिमा यानी होली यहां पर योशैंग फेस्टिवल के रूप में मनायी जाती है। 6 दिनों तक चलने वाला यह उत्सव मणिपुर आने वाले पर्यटकों के लिए सोने में सुहागा की तरह है। लोक नृत्य, लोक गीत के साथ नाचते-गाते कलाकार खूब गुलाल उड़ाते हैं। थाबल चौंबा डांस इस फेस्टिवल का मुख्य आकर्षण है। इसे रात के समय चांद की रोशनी में किया जाता है। इस दौरान यहां जगह-जगह आग जलायी जाती है, जिससे मणिपुर जगमगा उठता है। इस दौरान यहां पर्यटक भी खूब आते हैं।