बर्फीली हवाओं, ठिठुरती सरदी, उखड़ती सांसों के साथ जब आप एक-एक सीढ़ी ऊपर चढ़ते हैं, तो लगता है वाकई अपने देश के जवान किस तरह यहां अपनी ड्यूटी करते होंगे। जी हां, यह है नाथु ला पास, हिमालय का एक पहाड़ी दर्रा, जो सिक्किम और दक्षिण तिब्बत की चुंबी घाटी को जोड़ता है।
14,200 फीट की ऊंचाई पर बर्फ से ढके इस इलाके में ज्यादातर माइनस में तापमान रहता है। आर्मी परमिट के बिना यहां एंट्री नहीं है। यहां एक तरफ भारत का बॉर्डर गेट और दूसरी ओर चीन का बॉर्डर गेट बना हुआ है। फोटो खींचने की मनाही भले ही हो, पर भारत माता की जय की गूंज के बीच पर्यटकों का उत्साह देखते ही बनता है। पर्यटकों का उत्साह आश्चर्य में बदल जाता है, जब यही पर्यटकों की टुकड़ी बाबा हरभजन सिंह के मेमोरियल में पहुंचती है। यह मेमोरियल जेलेप दर्रे और नाथु ला दर्रे के बीच 14 हजार फीट की ऊंचाई पर बना है। यहां चौतरफा नजर दौड़ाएं, तो कहीं कोई देवी-देवताअों की मूर्ति नहीं हैं, बल्कि लोग श्रद्धा से मेमोरियल में रखे बाबा हरभजन सिंह की मूर्ति और उनके साजो-सामान के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
कौन हैं हरभजन सिंह
हरभजन सिंह सन 1966 में भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में एक सैनिक के तौर पर भर्ती हुए। जल्दी ही उनकी पोस्टिंग सिक्किम में हुई। पर वे सिर्फ 2 साल तक ही अपनी सेवाएं दे सके। बताया जाता है कि हरभजन सिंह ड्यूटी के दौरान खच्चर पर बैठ कर जब गश्त पर गए, वहां पास में बह रही नदी में वे खच्चर समेत बह गए। दो दिन बाद अपने सिपाही साथी को उन्होंने सपने में आ कर अपनी बॉडी का ठिकाना बताया। साथी ने सपने के अनुसार बॉडी खोज ली। उसके बाद पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका संस्कार किया गया।
क्या होते हैं चमत्कार

इसके बाद रोजमर्रा की ड्यूटी में चमत्कार होने की कहानी शुरू हुई। भारतीय सेना ही नहीं चीन के सैनिकों की ओर से भी इस बात की पुष्टि की गयी कि रात के समय सीमा पर एक सरदार सैनिक की सशस्त्र छाया घूमती देखी गयी। मान्यता है कि मरणोपरांत भी सरदार हरभजन सिंह सीमा पर पूरी मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी करते हैं। इसके बाद जब भी सीमा के पास भारतीय सैनिक बंकर में लापरवाही बरतें या समय पर नहीं जागें, तो हरभजन सिंह उन्हें झिंझोड़ देते या चांटा लगा देते हैं। इसके बाद हरभजन सिंह के साथियों ने बंकर को ही मंदिर का रूप दे दिया। जो भी गंगटोक में अफसर आते हैं, वे यहां पर बाबा हरभजन सिंह के दर्शन किए बगैर नहीं जाते। उसके बाद धीरे-धीरे यह टूरिस्ट प्लेस ही हो गया। मेमोरियल में उनका ऑफिस है, जहां उनकी मां और उनकी तसवीर लगी हुई है। उनकी फाइलें और पेन आदि सामान भी यथावत रखे गए हैं। बरामदे में उनका वही काला बक्सा और उनके जूते रखे हुए हैं। रोज कमरे में रखे सामान, बेड की डस्टिंग और वर्दी साफ की जाती है। पर आप चौंक जाएंगे कि हर सुबह जूते पर कभी मिट्टी तो कभी कीचड़ लगा दिखता है। बिस्तर पर सिलवटें भी दिखती हैं मानो हरभजन जी गश्त पर जाते हैं और लौट कर कुछ देर के लिए सोते हैं।
फ्लैग वार्ता में मौजूदगी

दिलचस्प बात है कि पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार के बाद भी हरभजन सिंह के साथ भारतीय सेना ने जीवित सैनिक की तरह ही बर्ताव किया। उनकी तनख्वाह उनके घर वालों को दी जाती रही। उन्हें साल में एक बार बाकायदा छुट्टी दी जाती थी और उनका ट्रेन में रिजर्वेशन भी किया जाता रहा। दो सिपाही उनकी यूनिफार्म और सामान ले कर उनके घर जाते थे और छुट्टी खत्म होने के बाद वापस ले कर आते थे। अब जब भी सििक्कम के बॉर्डर पर इंडो-चीन फ्लैग टॉक होती है, तो चीन की तरफ से भी एक कुर्सी हमेशा हरभजन सिंह के लिए खाली रखी जाती है। उन्हें नियमानुसार प्रमोशन दिया गया। अब उनका रिटायरमेंट हो चुका है। लेकिन बाबा आज भी ड्यूटी करते हैं।