Tuesday 16 March 2021 02:50 PM IST : By Neetu Mukul

कुलवधू

kulvadhu

तान्या की शादी के बमुश्किल 2 साल ही बीते थे और उसके सपनों का उगना अभी बाकी था, जिन्हें वह अपने प्यार के आगे बिखेर देना चाहती थी। तान्या के मन में एक धुकधुकी की आवाजाही हरदम बनी रहती थी कि कहीं मयंक और उसके बीच सासू मां की वजह से कभी ना खत्म होनेवाली दूरियां पैदा ना हो जाएं, क्योंकि मयंक को हर हाल में अपनी मां की हर बात सही लगती थी। यों तो उसे ससुराल में रहने कोई परेशानी नहीं थी। सास-ससुर उसका पूरा ख्याल रखते थे। मयंक को अपने मम्मी-पापा से काफी लगाव था।

शादी के एक साल तक तो सब कुछ ठीकठाक रहा, पर जबसे उसकी देवरानी आयी है, तबसे उसका जीना दुश्वार हो गया। सासू मां की तो जैसे लॉटरी ही लग गयी, वे कभी देवरानी का सहारा ले कर तान्या को छोटी-छोटी बातों पर नीचा दिखातीं और कभी देवरानी को तान्या का सहारा ले कर नीचा दिखातीं। सासू मां की इन हरकतों से तान्या और उसकी देवरानी के बीच एक लक्ष्मण रेखा सी खिंच गयी। वैसे भी तो यह उम्र कहां दांवपेच जानती है, वह तो प्यार की सरगोशियों को या प्रेम के रतजगों को समझती है। वह अपने प्यार में मयंक की बांहों में खो जाने को बेताब रहती। हद तो तब हो जाती जब सारा दिन वह सास के तानों को झेलती और रात में अपने पति के आने का इंतजार करती। सासू मां का बस चलता, तो मयंक को तान्या के पास ना फटकने देतीं।

तान्या और उसकी देवरानी के दरम्यान खिंची लक्ष्मण रेखा दिनोंदिन बढ़ती गयी। बहरहाल, देवरानी तो महीनेभर में अपने पति के पास बरेली चली गयी। पीछे रह गयी तान्या अपने बेटे के साथ सासू मां के तानों के दंश झेलने के लिए। कभी-कभी तो सासू मां तान्या से 2-2 महीने तक बात तक ना करतीं। डाइनिंग टेबल पर भी संवाद मौन रहते। वह हमेशा मन मसोस कर रह जाती कि पता नहीं सासू मां किस बात पर घड़ी-घड़ी नाराज हो जाती हैं।

जब देवरानी बरेली से आती, तो तान्या की ड्यूटी उसकी सेवा में लगा दी जाती। सासू मां का सख्त आदेश होता, ‘‘देखो बड़ी बहू, छोटी बहू कुछ दिन के लिए आ रही है, तुम्हें उसका पूरा ख्याल रखना है। समय पर उसे खाना और रात को सोने से पहले गरम दूध देना ना भूलना।’’

तान्या को यह कभी बुरा ना लगता कि उसे देवरानी के लिए काम करना पड़ता है, पर वह यह जरूर सोचती कि काश, सासू मां ऐसा प्यार मुझ पर भी दिखाएं।
अलस भोर थी, ठंडी हवा चल रही थी। सभी अपने काम में व्यस्त थे। तान्या मठरी छान रही थी। चाची सास आने वाली थीं, सो उनके बच्चों के लिए नाश्ता वगैरह बना कर रख रही थी। मयंक फोन पर किसी से बात कर रहा था और बार-बार थैंक्यू बोल रहा था। फोन रख कर बोला, ‘‘मम्मी, मेरा प्रमोशन हो गया है और देहरादून पोस्टिंग मिली है।’’

मां की समझ में ना आया कि खुश हों या...?

बेटे की प्यारी सी कुनमुनाहट से अपने विचारों के उतार-चढ़ाव से तान्या वर्तमान में वापस आ गयी। पास लेटे बेटे को देखा, आज उसके चेहरे पर देवदूत जैसी तेजी ना थी। जब वह सोता था, तो बहुत प्यारा लगता था, पर आज बुखार की गरमी से उसका चेहरा लाल हो गया था। बदन बुरी तरह तप रहा था। तान्या बेटे को गोद में ले कर दूध की बोतल बनाने लगी, तभी फोन घनघना उठा। उसके ससुर का फोन था। तान्या ने फोन उठाया, ‘‘हेलो तान्या, मैं पापा बोल रहा हूं, कब से तुम्हारा मोबाइल ट्राई कर रहा हूं, स्विच ऑफ बता रहा है।’’

‘‘पापा, वो नानू को तेज बुखार है, बड़ी मुश्किल से सोया था, सो मोबाइल बंद कर दिया था।’’

‘‘तुम दोनों कब निकल रहे हो? क्या मेहमान की तरह आओगे? अगले हफ्ते मंडप है।’’

‘‘पापा, वो नयी जॉइनिंग है, तो छुट्टी मिलने में मुश्किल हो रही है।’’ और फोन कट गया।

तान्या समझ गयी कि पापा ने नाराज हो कर फोन काट दिया। उसके सबसे छोटे देवर की शादी है। लगभग सभी घर वाले बुआ, चाची, मामी, मौसी आ गयी होंगी और उसके ना पहुंचने का उलाहना दे रही होंगी।

देखा कि बेटा गोद में ही सो गया और तान्या उसे वापस लिटा कर काम में लग गयी। कार्टन खोल-खोल कर बच्चे का कुछ सामान ढूंढ़ने लगी। सारे कार्टन खोल डाले, पर सामान नहीं मिला तो गुस्से में पैर पटक कर वहीं बैठ गयी। अभी हाल ही में देहरादून शिफ्ट हुए थे। मयंक को छुट्टी नहीं मिल पा रही थी। जिस दिन यहां पहुंचे, उसे दूसरे दिन ही ऑफिस जॉइन करना पड़ा। बेटे की तबीयत भी ठीक नहीं थी, तो वह तान्या की गोद से उतरता ही नहीं।

तभी डोरबेल बजी। तान्या ने दरवाजा खोला। उसके बिखरे बाल, चेहरे पर धूल, अस्तव्यस्त कपड़े देख कर मयंक को हंसी आ गयी, ‘‘अरे मेम साहब को बुलाना...’’

‘‘क्या तुम मुझे मेड समझ रहे हो? एक तो सारा दिन काम करते-करते परेशान हो गयी। रुको, अभी बताती हूं।’’

‘‘सॉरी-सॉरी... तान्या,’’ तान्या का हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘मजाक कर हूं यार।’’ दोनों एक-दूसरे को देखते हुए हंस पड़े।

तान्या के दिमाग में ख्यालों का दरिया हिलोरें मार रहा था। पापा को कैसे समझाएं कि हम क्यों नहीं आ रहे हैं? जब तक साथ रहे, तो मयंक अपनी सारी सैलरी मां के हाथ पर रखता था। ट्रांसफर के बाद नयी-नयी गृहस्थी बसाने में जो छोटी-मोटी बचत थी वह भी खर्च हो गयी और मयंक की सैलरी भी इतनी नहीं थी कि अतिरिक्त खर्च का बोझ उठा सके। ऊपर से देवर की शादी अचानक तय हो गयी। गृहस्थी और शादी दोनों को एक साथ कैसे मैनेज करें, इसी में तान्या परेशान रहती।

बहरहाल, तान्या की असली प्रॉब्लम यह थी कि शादी की तैयारी कैसे करे? चलो, अपने लिए तो जैसे-तैसे मैनेज कर ले, पर नयी देवरानी के लिए क्या शगुन लेगी? कशमकश हो गयी, जिंदगी कैसे बसर करे, चादर काटे या पैर छोटे करे।

‘‘तान्या, तुम मन ही मन क्या बुदबुदा रही हो?’’ मयंक ने पूछा।

‘‘मयंक, तुम मेरी बात सुनते ही कहां हो? अब तुम्हीं बताओ जब सब लोग शगुन देंगे, तो मैं क्या दूंगी, कुछ तो इंतजाम करो।’’

तान्या के पास पड़ी चेअर पर बैठता हुआ मयंक बोला, ‘‘तान्या, परेशान मत हो, मम्मी ने तुम्हारे लिए कुछ ना कुछ सोचा होगा कि उनकी प्यारी बहू अपनी नयी देवरानी को क्या देगी। कल जब मम्मी से रात को बात हुई, तो कह रही थीं कि किसको क्या देना है, हम सब खरीद कर ले आए हैं।’’

‘‘पर मयंक सोचो, अगर ना लिया तो? सारे रिश्तेदार मुझ पर तंज कसेंगे,’’ तान्या रुंआसी हो गयी।

खैर, मयंक ने हमेशा की तरह उसे समझा दिया। दिल में तो अजीब सी कैफियत हो रही थी, पर अनमने ढंग से जाने की तैयारी करने लगी।

पता नहीं, क्यों ससुराल में इस बार तान्या को सभी का व्यवहार कुछ बदला हुआ सा लगा। चाची, बुआ, ननद सभी उसको इग्नोर कर रहे थे। छोटी-छोटी बातों में उसे नीचा दिखाने की कोशिश करते। अभी कल ही की बात थी, मंडप के नीचे सभी औरतें गाना गा रही थीं, तभी सासू मां बोलीं, ‘‘कोई चाय-वाय का इंतजाम करो।’’

तान्या उठने ही वाली थी कि सासू मां बोलीं, ‘‘तुम तो रहने ही दो,’’ और चाची सास से बोलीं, ‘‘जाओ तुम बनाओ, मेहमानों से काम कराने की कोई जरूरत नहीं।’’

तान्या चुपचाप सिर झुका कर बैठ गयी। हद तो तब हो गयी, जब देवर की ससुराल से जो फल वगैरह आए थे, वे सारे फल एक सुंदर सी टोकरी में थे। सारे रिश्तेदार बैठे हुए थे। सभी को वह टोकरी बहुत अच्छी लगी। तान्या ने बहुत उत्साह से सासू मां से कहा, ‘‘मां, यह टोकरी मुझे दे दीजिए।’’

सासू मां बड़े तंज में बोलीं, ‘‘क्यों...? तुम इसका क्या करोगी?’’ और पास खड़ी कामवाली बाई को बड़े प्यार से बुलाया और बोलीं, ‘‘यह टोकरी तुम रख लो।’’

‘‘आती हूं,’’ कह कर तान्या फौरन उस कमरे से बाहर आ गयी। एक पल ख्याल आया कि मयंक से बात करूं, पर अगले ही पल अपनी मां की बातें याद आ गयीं, जिन्हें मन में बसा कर ससुराल में प्रवेश किया था- ससुराल में चार बातें सह कर रहना पड़ता है।

मयंक बोला, ‘‘तान्या, क्या कोई प्रॉब्लम है? तुम मुझे कुछ परेशान लग रही हो?’’

तान्या ने ‘हूं...’ कह कर बात को टाल दिया। शादी के दरम्यान जितनी भी बातें हुईं, तान्या यह सोच कर टालती रही कि खाली बातों से क्या हासिल? हर एक बात में मीनमेख निकालना तो सासू मां का स्वभाव हो गया है।

बहरहाल, शादी धूमधाम से निबट गयी। आज बहू देखने का शगुन होना था। मां ने तान्या को एक झुमकी दिखायी और बोलीं, ‘‘ये हमने बनवायी है, इसको सरला आने वाली बहू को मुंहदिखाई में देगी।’’

‘‘वाह!’’ तान्या के मुंह से निकला। सरला तान्या की देवरानी थी। ‘जब सासू मां ने सरला के लिए शगुन बनवाया है, तो कुछ ना कुछ मेरे लिए भी बनवाया होगा,’ ऐसा सोच कर तान्या खुश और निश्चिंत हो गयी।
शाम गहराने के साथ ही रिश्तेदारों ने आना शुरू कर दिया। गाना-बजाना भी चल रहा था। सारे मेहमान एक साथ हॉल में थे। बेटा परेशान कर रहा था, तो तान्या थोड़ी देर उसको ले कर अपने कमरे में आ गयी। तभी सासू मां ने एक लड़की को भेजा कि जाओ तान्या से कहो कि मुंहदिखाई की रस्म के लिए आ जाए। तान्या ने उस लड़की से कहा कि सासू मां को यहां भेज दो।

सासू मां तो नहीं आयीं, पर एक-एक करके उसे कोई ना कोई बार-बार बुलाने आ रहा था। तान्या खूब मसौदे बांधती कि अभी आ रही हूं। वह समझ नहीं पा रही थी कि खाली हाथ कैसे जाए? सासू मां सबके सामने क्यों उसे जलील करना चाह रही है। घबराहट और परेशानी के कारण उसकी आंखें लाल हो गयीं।

‘‘अरे भाई, घर की कुलवधू नहीं आ रही है।’’ हां, यही नाम दिया गया था जब वह ब्याह कर घर आयी थी। कुछ तोड़ने के लिए पत्थर जरूरी नहीं है, सिर्फ लहजा बदल लेने से बहुत कुछ टूट जाता है। मयंक भी पता नहीं कहां थे। मां पर जो भरोसा था उन्हें, इसलिए बेखबर अपने दोस्तों के साथ बिजी थे।

आंखों में आंसू लिए तान्या को सामने शीशे में अपने गले में पड़ी सोने की चेन नजर आयी। शादी के समय पापा ने मां की निशानी को आशीर्वाद के तौर पर तान्या को दिया था। कहा था, ‘‘बेटा, यह तुम्हारी मां की चेन है, वह इसे हमेशा पहने रहती थी। जब वह बीमार थी, तो उसने यह कहते हुए मुझे अपने गले से उतार कर दे दी थी कि जब तान्या की शादी हो तो उसे पहना देना। अब तुम हमेशा इसे पहन कर रखना, यह तुम्हारी मां का आशीर्वाद है।’’

तब से तान्या ने इसे एक पल के लिए दूर नहीं किया। तान्या की मां उसकी शादी के कुछ ही दिन पहले चल बसी थी। चेन गले में पड़ी रहती, तो तान्या को लगता मां दिल में है और हर पल उसके साथ है।

तान्या निश्चिंतता के साथ अपने पल्लू को सिर पर रखती हुई मुंहदिखाई की रस्म पूरी करने हाॅल में पहुंची।

सासू मां ने कहा, ‘‘लो आ गयीं... घर की कुलवधू...’’ और सरला को झुमकी देते हुए बोलीं, ‘‘तान्या, तुम पहले बहू का मुंह देख लो, क्योंकि तुम बड़ी बहू हो, फिर सरला देखेगी।’’

तान्या के पास देने के लिए कुछ भी नहीं था। उसे तो इस बात की तसल्ली थी कि सासू मां ने सरला के साथ-साथ मेरे लिए भी कुछ बनवा ही लिया होगा। पर ऐसा कुछ नहीं था। तान्या अवाक सी रह गयी।

‘‘यह लो मेरा छोटा सा नजराना,’’ कहते हुए तान्या ने अपने गले में पहनी हुई मां की चेन उतारते हुए नयीनवेली दुलहन को दे दी। उसने शरमाते हुए रख ली।

‘‘क्यों, कड़ा भी तो बनवा सकती थी,’’ मां ने हमेशा की तरह तंज मारा। पर तान्या मुस्कराते हुए वहीं सबके बीच बैठ गयी।

मयंक भी दूर खड़ा तमाशा देख रहा था। वह महफिल की रंगीनियों में हंसती हुई तान्या को देख कर बोला, ‘‘खामोश चेहरे पर हजारों पहरे हैं, और मुस्कराती आंखों में जख्म गहरे हैं,’’ कह कर उसने तान्या का हाथ अपने हाथ में थाम लिया। बिना कुछ बोले मयंक की आंखों ने तान्या से बहुत कुछ कह दिया।

अगले दिन सुबह ही मयंक ने जाने की तैयारी कर ली और हमेशा की तरह मां लाड़ दिखाते हुए बोलीं, ‘‘इतनी जल्दी...’’

मयंक बोला, ‘‘मां, रिश्ते राजनीति के टेढ़ेमेढ़े रास्तों पर नहीं, बल्कि प्यार और अपनेपन की सीधी-सादी पगडंडी पर चलते हैं। यदि रिश्तों में जिद या अभिमान आ जाए, तो ये सब तो जीत जाते हैं, पर रिश्ता हार जाता है, मां...! आपने रिश्तों की मजबूत माला को बांधे रखने के बजाय खुद ही बिखेर दिया, आप तो उस माला का सबसे मजबूत मनका थीं।’’

मयंक फिर आगे बोला, ‘‘मुझे पता नहीं कि आप तान्या से हमेशा क्यों नाराज रहती हैं। वह आपको हर पैमाने से गलत लगती है। मैं अभी तक आपके साथ था... पर अब तान्या के लिए भी मेरी कोई जिम्मेदारी है। अब मैं उसको पल-पल अपमानित होते नहीं देख सकता। मुझे आज भी याद है कि आपने उसे कुलवधू का दर्जा दिया था।’’

मयंक तान्या का हाथ थाम कर गाड़ी में बैठ गया। तान्या को लगा कि यह उसके धैर्य का फल है कि बिना कुछ कहे मयंक सारी बातें समझ गए। उसे मयंक का यों अपना पक्ष लेना बहुत अच्छा लगा और मां की चेन जाने का दुख जाता रहा।

तान्या आज भी जब अपनी देवरानी के गले में मां की चेन देखती है, तो मां की याद आ जाती है और सोचती है कि एक चेन के ना होने से क्या होता है, मां का आशीर्वाद अपनी बेटी के लिए किसी सोने की चेन का मोहताज नहीं होता। फिर उसका पति तो उसके साथ है।