Monday 01 March 2021 02:56 PM IST : By Dr. Shashi Goel

हवनकुंड

havankund

‘‘मम्मी... सुनो ना... मम्मी कहीं चलो,’’ दोनों बच्चे निर्भय और प्रेरणा पीछे पड़े हुए थे। परीक्षा के बाद की छुट्टी थी। पढ़ा-पढ़ा कर पका दिया। ‘‘मम्मी... चलो ना...’’ पर मैं कुछ निश्चय नहीं कर पा रही थी। विमांशु तो हमेशा की तरह निर्लिप्त अपना न्यूज चैनल लगा कर बैठे थे।

‘‘इसे बंद करो एक मिनट...’’ खिसिया कर मैंने विमांशु के हाथ से रिमोट छीन कर टीवी बंद किया... ‘‘अब सुनो, बच्चे पीछे पड़े हैं कहीं चलने को, अब कुछ तो बोलो।’’

‘‘चलो, मैं कहां मना कर रहा हूं,’’ कहते हुए विमांशु का हाथ रिमोट की ओर गया, तो मैं चिढ़ कर बोली, ‘‘नहीं बिलकुल नहीं... कुछ तो बताओ कहां चलें, कैसे चलें।’’

‘‘मैं कह तो रहा हूं कहीं भी चलो जैसे तुम चाहो...’’  उबासी ले विमांशु ने दोनों हाथ ऊपर कर अंगड़ाई ली जैसे टीवी के बंद होने से एक मिनट ही में बोरियत होने लगी है।

मैं चीख पड़ी, ‘‘मैं क्या जानूं, मुझे पता है कहां चल सकते हैं, कितना समय है तुम्हारे पास... मालूम है कोई ना कोई मीटिंग या जरूरी काम निकल आएगा और मना कर देंगे।’’

‘‘मेरे पास तो समय ही समय है... हां कल तो नहीं, कल जीएम आ रहे हैं... परसों सैटरडे है। परसों का बना लो। कहीं भी चलो।’’

‘‘नैनीताल, जिम कार्बेट चलते हैं। मुझे शेर-चीता जानवर देखना अच्छा लगता है। अधिकर लोनली प्लैनेट चैनल शार्क व्हेल देखने के लिए देखती रहती हूं।’’

‘‘नैनीताल... सैटरडे हाफ डे और सनडे बस यही खाली हैं... लाना जरा चुनावी बहस जोर की है। मजा आ रहा है तुम बस 2 दिन का बना लो,’’ कह कर विमांशु फिर टीवी में व्यस्त हो गए।

निर्भय और प्रेरणा का चेहरा उतर गया, ‘‘पता है मम्मी प्रियंका साउथ अफ्रीका हो कर आयी है। कह रही थी शेर जीप की बोनट पर चढ़ जाते हैं। कुछ नहीं कहते...’’

प्रेरणा को यह तो पता नहीं था कि साउथ अफ्रीका कितनी दूर है, कहां है। उसके लिए साउथ अफ्रीका आगरा से दिल्ली की दूरी पर है। प्रियंका के पिता डॉक्टर हैं। साउथ अफ्रीका कॉन्फ्रेंस में गए थे तब परिवार भी ले गए थे।

‘‘आपके कोर्स में एसएसटी है ना... उसमें पढ़ा है ना साउथ अफ्रीका कहां है। फिर...’’

‘‘अरे मम्मी, जेट युग में सब कुछ हाेता है, सब होता है... पर ठीक है सीधे-सीधे बोलो वहां नहीं जाना है,’’ निर्भय ने बुजुर्ग की भांति कहा।

अंत में 25 किलोमीटर दूर रिजॉर्ट की बुकिंग करायी गयी। वहां एक कृत्रिम झील भी है। अच्छी जगह है। सैटरडे शाम चलेंगे, सनडे वापस।

जगह देख तबियत खुश हो गयी। छाेटी-छोटी फूलदार झाडि़यां, उनके नीचे बैठने के लिए मेज-कुर्सी, छोटी-छोटी हट, चारों ओर से पेड़ों से घिरा, दूर-दूर पर 3 रेस्तरां अलग-अलग। एक राजस्थानी, एक बिलकुल पश्चिमी ढंग का और एक आम। बीच में बड़ा सा स्वीमिंग पूल, स्वीमिंग पूल के किनारे आरामकुर्सियों पर जोड़े लेटे थे... एक तरफ बगीचा बना हुआ था। देख कर मैं सिटपिटा गयी, यह तो हनीमून रिजॉर्ट है। बच्चों के साथ कहां आ गए।

‘‘चलो झील की तरफ चलते हैं। बोटिंग करेंगे,’’ कह कर विमांशु झील की तरफ चल दिए। जल्दी-जल्दी उधर से निकल जाना चाह रही थी कि एक जोड़े पर नजर पड़ ही गयी। एक छतरी के नीचे बैठे थे, उड़ती सी नजर पड़ गयी, ‘‘यह नवीन किसके साथ था... नवीन ही था ना।’’

‘‘कौन? कौन नवीन...’’

‘‘ना जाने कहां रहते हैं, अरे 200 नंबर वाला नवीन।’’ जहां हम रहते हैं वहां 200 फ्लैट हैं। सातवें माले पर तीसरी बिल्डिंग में नवीन किसी बड़ी कंपनी का डाइरेक्टर है। इतना मालूम है। कई बार उसकी सुंदर पत्नी को कार में आते-जाते देखा है। बस इतना ही परिचय है नवीन से। एक खुशहाल जाेड़ा, एक प्यारी सी बच्ची।

‘‘होगा, मैंने नहीं देखा... मैं तो सामने वाली विदेशी युवती को देख रहा था। क्या फिगर है, पर देखो तो मेडिटेशन कितनी देर से कर रही है,’’ पर मेरे अंदर खलबली सी मच गयी थी... उसकी पत्नी तो कतई नहीं थी कौन थी... कोई कलीग होगी... पागल तू ध्यान से देखती... बड़ा स्कैंडल हाथ से निकल गया। मैं लौट कर देखने को हुई, तो विमांशु ने हाथ पकड़ लिया, ‘‘चलो आगे,’’ पर मुड़ कर देखा अवश्य मैंने, जोड़ा वहां नहीं था। पर जैसे वह चेहरा मेरे मन में बार-बार झांक जाता। गंदुमी सा रंग, तीखे नाक-नक्श, बड़े फ्रेम का चश्मा, खुले बाल। इतनी ही नजर पड़ी, लेकिन रात को डिस्को के सामने फिर एक बार आमना-सामना हो गया। ‘‘मम्मी, डिस्को चलेंगे।’’ निर्भय-प्रेरणा के लिए तो डिस्को डांस था, जिस पर मस्ती से नाचते थे। नए-नए गाने, डांस के नाम पर बस शरीर की कवायद है और बच्चों को तो वही अच्छा लगता है। ‘‘चलो, डिस्को रूम में ही खाना खाएंगे...’’ पर डिस्को के दरवाजे पर दरबान ने रोक दिया, ‘‘मैडम, बच्चे नहीं जा सकते।’’

‘‘क्यों?’’ बेवकूफ सी मैं दरबान का मुंह देखने लगी।

‘‘क्या हो गया तुम्हें, कहां हो तुम? चलो सामने वाले रेस्तरां में भी डांसिंग फ्लोर है... वहीं चलते हैं...’’ उधर जाते नवीन से आमना-सामना हो गया। साथ वाली युवती की कोहनी में हाथ डाल कर चल रहा था नवीन और सीधे डिस्को में घुस गया।

‘‘बेशर्म कहीं का,’’ मैं बुदबुदायी... ‘‘जरा भी इसे हिचक नहीं लग रही है। इसे डर नहीं लग रहा। इसकी बीवी को पता लगेगा, तो क्या होगा।’’ आगे बढ़ गयी तब झटका सा लगा। लाख फैशन करने पर भी कुछ-कुछ मिडिल क्लास की लग रही थी लड़की और जो कुछ पहचान पायी उस पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। टाइट पैंट और सफेद ढीले से टॉप में खटपट हाई हील में जो लड़की थी वह तो... यह कैसे हो सकता है... नहीं मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था... यह तो... सुरमा नहीं लग रही... मेरे सामने सुबह काम करके गयी 3 बच्चे की मां घूम गयी। पतली-दुबली सी सुरमा को देख कर कह ही नहीं सकते थे कि 10 साल की लड़की की मां है। रहती साफ थी, इसीलिए झाड़ू-पोंछे के साथ खाना भी बनवा लेती थी। कस कर बंधा जूड़ा, उसमें खोंसी फूल वाली पिन, प्लास्टिक के नगीने वाले कड़े। उसके कभी गाल पर सूजन होती, तो कभी हाथ पर नील।

‘‘उसे तो शराब और बच्चे पैदा करने से मतलब है। कमाना तो उसने जाना ही नहीं है।’’ सुबह ही उससे पैसे छीन लेता इसलिए पैसे घर ले ही नहीं जाती थी। लेकिन इस समय तो उसका रूप ही बदला हुआ था और वह भी नवीन के साथ, जो एक खुशहाल दंपती है। ना कभी झगड़ा, ना कभी परेशानी। फ्लैट्स में अधिकतर काम वाली बाइयां एक घर से निकल दूसरे में काम करती हैं, तो उनका समय खराब नहीं होता, ना धूपताप लगती है। उनसे हर घर की खबर एक-दूसरे को रहती है। खिड़कियां भी तो पास होती हैं। फ्लैट्स की हर दीवार के कान होते हैं। इसलिए अगर एक कटोरी भी कहीं गिरती है, तो खबर फैलती है। आज तो उस फ्लैट में एक-दूसरे पर बरतन फिके, एेसे फ्लैट में नवीन के घर की कभी कोई बात नहीं सुनी थी। मेरा सर्वांग जैसे थरथरा रहा था। मेरे पास इतनी बड़ी खबर, इतना बड़ा भेद ! अगर बता दूंगी, तो घर बिखर जाएगा। कितने दिन के लिए पूरी कॉलोनी के लिए मसाला मिल जाएगा... पर सबसे पहले तो सुरमा को हटाना है। मैं उलझन में पड़ गयी। विमांशु को बताऊं या नहीं... क्या प्रतिक्रिया होगी। एकदम अविश्वास की नजरों से मैं विमांशु को ही देखने लगी, कहीं विमांशु भी एेसे तो नहीं। कैसा सीधा सा लगता है नवीन। विमांशु को बता दूंगी, तो उसे मालूम पड़ जाएगा यह इस टाइप की लड़की है, तो... मैं यह कहती बाहर निकल आयी, ‘‘कुछ देर फव्वारे पर बैठूंगी तुम लोग कमरे में जा रहे हो, तो जाओ मैं आ जाऊंगी।’’

‘‘श्योर... मैं जाऊं थक रहा हूं। बच्चों को भी नींद आ रही है।’’
पर मेरी नींद तो उड़ चुकी थी। शरीर में थकान भी जरा सी नहीं थी, ‘‘हां-हां मुझे मालूम है, तुम्हारी चुनावी चर्चा निकल रही होगी। देखो जाओ...’’ कहती मैं फव्वारे की ओर मुड़ी। उनके रूम की तरफ जाते ही मैं डिस्को के दरवाजे पर थी। दरबान अकेला देख अचकचा गया।

‘‘अरे दस मिनट... जरा बैठूंगी।’’ उसने जाने दिया पर अजीब सी निगाहों से देखने लगा।

अंदर जो कुछ देखा उससे ब्लड प्रेशर एकदम बढ़ गया। धुअांया सा वातावरण, हर हाथ में गिलास और कपल्स की धूमधाम, डिस्को चल रहा था। सुरमा का टॉप गायब था। उसकी जगह छोटी सी लाल चोली थी और मजे से नवीन के साथ डांस कर रही थी। वे लोग देख पाएं, इससे पहले ही पलट कर मैं बाहर निकल आयी और वास्तव में फव्वारे के पास बैठने की जरूरत महसूस होने लगी थी। अच्छा, तो इसलिए अधिकतर इतवार गायब रहती है।

सुबह झील पर बोटिंग करने के लिए गए। वहां नावें थीं और एक ऊंचाई पर झरना बनाया था। ट्रैकिंग कर वहां जाना था और उसके बाद घर वापसी। पर शरीर टूटा-टूटा सा हो रहा था। जैसे उत्साह पर एक परत सी चढ़ गयी। अंदर ही अंदर उत्तेजना ने जैसे घर कर लिया।

‘‘क्या बात है, नवीन की नवीन जाने। उसके लिए तुम क्यों इतना परेशान हो रही हो,’’ अनमना सा देख कर विमांशु ने मुझे कहा।

‘‘नहीं-नहीं, उसकी कोई बात नहीं। कुछ सिर दुख सा रहा है,’’ पर समझ नहीं पा रही थी। विमांशु को कैसे बताऊं। एकदम से नयी काम वाली कोई मिलेगी भी या नहीं। काम तो अच्छा ही करती है। घर पर तो जरा भी एेसा नहीं लगा, बड़ी सीधी सी लगती है। कभी अांख भी नहीं उठाती। मैं विश्वास ही नहीं कर पा रही थी, इसीलिए तो दोबारा बार में गयी थी।
सोमवार को सुबह से मेरी नजर घड़ी पर थी। साढ़े 10 बजने लगे। तब ही से बेचैनी हो रही थी। विमांशु अॉफिस जाने लगे। अपना लैपटॉप और ब्रीफकेस उठाया और बाहर निकलने लगे। मैं दरवाजे तक जैसे जाती थी आयी और बंद करने के लिए हाथ बढ़ाया, विमांशु पलटे और बोले, ‘‘सुरमा से कुछ कहना नहीं। उसे बताना भी मत कि तुमने पहचान लिया है।’’

सन्न रह गयी। अच्छा तो विमांशु ने भी पहचान लिया था, पर कुछ कहा नहीं। क्या विमांशु जानते हैं यह सब? अब दिमाग में दूसरा कीड़ा कुलबुलाने लगा... कैसे पहचाने। कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं हुई।

11 की सूई पार करने लगी, तो मेरा माथा सनसनाने लगा। इसका मतलब है कि वह समझ गयी है कि मैं पहचान गयी हूं। किस मुंह से सामने आएगी... पैसे लेने तो आएगी ही इतना जलील करूंगी कि बस। बरामदे की कुर्सी छोड़ उठ खड़ी हुई कि वही अपने पुराने रूप में सुरमा आ खड़ी हुई। उसे देख कर फिर एेसा लगा जरा हया नहीं, कैसे आ खड़ी हुई। सारे शरीर का क्रोध मेरी अांखों में उतर आया और बोली, ‘‘सुरमा।’’

वह ठिठक गयी और मेरी ओर सीधे देखते बोली, ‘‘मैडम जी, शायद आप भी मुझे गलीज नाली का कीड़ा कह कर मन ही मन गाली दे रही होंगी। लेकिन ये सफेदपोश जितने गंदे हैं, हम तो उनके आगे बहुत पवित्र हैं। एक नवीन बाबू ही नहीं चारों ओर भेडि़ए ही भेडि़ए हैं, जिन्हें कुछ नहीं नरम-गरम गोश्त चाहिए। घर में एक-एक पैसे को तरसाने वाला बाहरी औरतों पर खूब रुपए उड़ाता है। नवीन मुझे अपनी पत्नी कह कर अपने क्लाइंट से मिलवाता है। किसी भी क्लाइंट में जब सुरूर के बाद... मेरी ओर फिसलती नजर से देखता है, तो बस जो चाहे उससे करवा लेता है। अपनी औरत के सिर पर से पल्लू भी ना हटे, पर मुझे वह नंगा नचवाता है। बताता बीवी है, उससे दर्जा बढ़ जाता है। अगर काम वाली या धंधे वाली बता देगा, तो क्लाइंट को बुरा लगेगा। उसका दर्जा घट जाएगा।
‘‘पर कल तो नवीन ही था,’’ मेरा स्वर तल्ख हो उठा। ‘‘नवीन... हां, समय-समय पर नयी जगह पर नए ढंग से ग्राहकों को प्रसन्न करना होता है। कैसे अपने को उघाड़ू, कितना दिखाऊं, कैसे मस्ती दिखाऊं, यह दिखाने ले जाता है और उसकी बीवी सब जानती है। मैं बड़े-बड़े नेताअों और बाहर के क्लांइटों के लिए उसकी बीवी हूं। नवीन की मेरी जैसी तो दसियों बीवी हैं,’’ कड़वा मुंह बनाते बोली, ‘‘मैडम जी, जैसा अन्न वैसा मन्न। मेरा आदमी कमाता होता, तो शायद... पर वह तो सुबह से कलाली पर खड़ा होता है। उस कमाई की एक रोटी भी बच्चों को नहीं खिलाती, उन्हें तो मैं मेहनत की कमाई की रोटी खिलाती हूं। वे पैसे तो उस हरामी की शराब के हवाले चढ़ते हैं या मकान के किराए वगैरह के लिए, मैं क्या करूं। आप देखती तो है मैडम एक के बाद एक मुसीबत आती है। अभी लड़की छत से गिरी तो अपने खड़ुए गिरवी रखे, सास मरी तो पैसे उठाए, लड़के का हाथ टूटा, सबसे चिरौरी की कि कुछ पैसे एडवांस मिल जाएं, तीन ही घर तो हैं मेरे। आप दोनों ने भी मना कर दिया था। इस समय नहीं दे पाऊंगी, दो दिन बाद लेना। तब नवीन मैडम से बात की, तो उन्होंने सौदा किया। उन्होंने कहा था पैसे दे दूंगी, पर आज एक पार्टी में बाबू जी के साथ चली जा, कुछ नहीं करना है। बस बैठी रहना। कपड़े मैं दूंगी। बाबू जी अपनी वाइफ कह कर परिचय कराएं, तो सिर्फ हाथ जोड़ देना, ठीक है। बस चुप बैठी रहना, क्योंकि आदमी आदमी है, कुछ बोलना नहीं है... 500 नहीं 5 हजार दे दूंगी...’’ कुछ देर रुकी फिर बोली, ‘‘मैं कोई जेवर-कपड़े-गाड़ी के लिए यह नहीं करती। केवल बच्चों के लिए करती हूं। कौन बड़ा गलीच है आप ही बताओ...’’

मैं अपने को कटघरे में खड़ा पा रही थी। याद है उस दिन सहेली के यहां लंच पर जाना था। काम के लिए खड़ी थी और सुरमा पैसे लेने आ गयी। क्रोध में मना कर दिया था, निराश लौट गयी थी। आज अपने उस क्रोध पर क्रोध आ रहा था। उस समय और कुछ नहीं बस यही था काम करूं या कि लंच पर जाऊं। यह भी मेरे जाने के समय धोखा देती है। सब बहाना है लड़के को पलस्तर कराना है। रोज कुछ ना कुछ लगा रहता है।

चुप रही, कुछ देर बाद फिर बोली, ‘‘मेरा तो जो भी हुआ, बच्चे पढ़ जाएं मेरा शरीर अब मेरा नहीं है। मैं उस समय मैं होती ही नहीं हूं। एक मां होती है और यह शरीर हवनकुंड, जो बच्चों को पालने के लिए सारी बुराइयों को अग्नि के हवाले करता जाता है।’’

मैं सन्न सी बैठी रही। कुछ देर में सुरमा ही बोली, ‘‘तो हिसाब करेंगी मैडम?’’

‘‘अंदर जा काम कर...’’ कहने के बाद जैसे मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया।