Wednesday 03 February 2021 03:26 PM IST : By Mini Singh

डियर भाभीजान

dear-bhabhi

अशोक को ऑफिस के लिये रवाना कर सुप्रिया अभी कुछ देर सुस्ताने बैठी ही थी कि उसका फोन घनघना उठा। देखा तो उसकी जेठानी उषा का नाम स्क्रीन पर चमक रहा था। मन नहीं किया फोन उठाने का, पर उठाना पड़ा।

‘‘हेलो भाभी, प्रणाम। ’’

‘‘अरे, प्रणाम-वरनाम तो समझे, पर यह बताओ कि कब आ रहे हो तुम लोग। अब घर की बेटी की शादी है, तो क्या उसमें भी मेहमानों की तरह ही आओगे तुम लोग।’’ अपनी रुखी आवाज में उषा ने कहा। ‘‘नहीं भाभी ऐसी बात नहीं है। वो तो अशोक को छुट्टी...

‘‘देखो, छुट्टी ना मिलने का बहाना तो मत ही करो,’’ सुप्रिया की बात बीच में ही काट कर वह कहने लगी,‘‘अरे, अब क्या शादी-ब्याह में भी छुट्टी नहीं मिलेगी लोगों को। और मैं तो समझ भी जाऊंगी, पर नाते-रिश्तेदारों और आस पड़ोस वालों को क्या समझाऊंगी, बोलो जरा। अब जानती तो हो कि लोगों को बस मौका मिलना चाहिए बोलने का, सौ दफा पूछ चुके हैं सब कि अशोक का परिवार आया या नहीं। पर मैं ही यह कह कर बात दबा रही हूं कि अब उनका घर बगल में थाेड़े ही है जो चट उठेंगे और पट आ जाएंगे। वैसे मेरे देवर के पास पैसे की कमी थोड़े ही ना है, आ जाओ हवाई जहाज से,’’ कह कर उषा भाभी जोर से हंस पड़ीं और फोन रख दिया कि शादी का घर है बीसियों काम पड़े हैं तो फोन रखती हूं।

फोन रखते ही सुप्रिया व्यंग्य से मुस्करा पड़ी और बुदबुदाते हुए बाेली,‘‘हुंह... आ जाओ हवाई जहाज से। बोल तो ऐसे रही हैं जैसे हमारे घर पैसों का पेड़ लगा हो, बस हिलाया और झरझर पैसे बरसने लगे और लोग कुछ कहें ना कहें, पर ये उषा महारानी... खैर, जाने दो मैं क्यों अपना मूड खराब करूं। सास बनने जा रही हैं, पर आज भी वही पैंतरे, वही राजनीति, जरा भी नहीं बदलीं उषा भाभी। शाम को जब अशोक आया, तो उषा से हुआ सारा वार्तालाप उसके समक्ष रखते हुए सुप्रिया बोली,‘‘अगर हम उनकी बेटी की शादी पर नहीं गए तो दुनिया वाले तो बाद में, पहले तुम्हारी भाभी ही हमें जलील कर देगी सबके सामने। कहेंगी कि देखो, ये मैं नहीं लोग बोल रहे हैं।’’

‘‘अरे यार, जाने दो उनकी बातें वे तो शुरू से ऐसी ही हैं और रिजर्वेशन करा कर क्या करें जब मुझे छुट्टी ही नहीं मिल रही है तो। हां, अगर तुम चाहो तो... बच्चों को ले कर चली जाओ, पीछे से मैं आने की कोशिश करूंगा।’’

अशोक की बातों पर चिढ़ उठी सुप्रिया, बोली, ‘‘तुम कहना क्या चाह रहे हो कि मैं वहां अकेले चली जाऊं बच्चों को ले कर। ना बाबा ना, मैं नहीं झेल पाऊंगी तुम्हारी भाभी के तानों को,’’ कह कर सुप्रिया ने दूसरी करवट ले कर आंखें बंद कर लीं। अशोक ने देखा सुप्रिया टेंशन में आ गयी, तो कहने लगा, ‘‘अच्छा ठीक है तुम चिंता मत करो, नहीं होगा तो हवाई जहाज से ही चलेंगे। कल ही अपने बॉस से बात करता हूं कि कम से कम हफ्तेभर की छुट्टी दे दें,’’ कह कर अशोक ने लाइट ऑफ कर दी और कुछ ही देर में खर्राटे भरने लगा, पर सुप्रिया की आंखों से नींद उड़ चुकी थी। ना चाहते हुए भी अतीत की यादों में वह विचरने को मजबूर हो गयी।

‘‘अरे वाह रे अशोक, दुलहनिया तो बड़ी खूबसूरत है तेरी। एकदम गोरी-चिट्टी, जैसे दूध से नहा कर आयी हो,’’ मुंहदिखायी पर आयी हुई औरतों ने कहा, तो झट से उषा ने अपनी आंख के कोरों से काजल निकाल कर सुप्रिया के कान के पीछे लगा दिया और बोलीं,‘‘अब तुम लोग ऐसे नजर ना लगाओ मेरी देवरानी को,’’ कह कर उन्होंने उसकी बलैयां ले ली थीं। सुप्रिया को लगा था कि उसकी जेठानी कितनी अच्छी है। मुंहदिखायी में उषा भाभी ने भी एक बड़ा सा झुमकों का सेट उसे उपहार स्वरूप दिया और बोलीं कि यह खास उसने सुप्रिया के लिए ही बनवाया है। सच में झुमके थे भी बहुत खूबसूरत। मुंहदिखायी के बाद सभी का आशीर्वाद लेने के बाद जब सुप्रिया उषा भाभी के पैर छूने झुकी, तो उन्होंने उसे अपने गले से लगा लिया और कहने लगीं कि आज से वह उनकी छोटी बहन है और उसका स्थान उसके पैरों में नहीं, बल्कि उसके दिल में है। सुन कर गदगद हो गयी थी सुप्रिया। आज उसे एक बड़ी बहन भी मिल गयी जिसके लिए वह सदा से तरसती आयी थी।

दोनों का भरत मिलाप देख वहां खड़ी औरतें कहने लगीं, ‘‘देखाे, ऐसी भी होती हैं जेठानियां जो अपनी देवरानी से तुलना ना कर उसे बराबरी का दर्जा देती हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि सुप्रिया भागों वाली है जो उसे उषा जैसी जेठानी मिली।

चाहे घर के लोगों के लिए खाना बनाने की बात हो, आते-जाते मेहमानों की आवभगत करनी हो या फिर अन्य कोई भी काम हो, उषा आगे बढ़ कर उसकी मदद कर दिया करती थी। यह कभी नहीं सोचती थी कि वह घर की बड़ी बहू है, तो वह क्यों कोई काम करे। सुप्रिया भी बदले में एक छोटी बहन का फर्ज बखूबी अदा करती। मेकअप का कोई सामान हो या फिर उसकी महंगी साड़ी, जबर्दस्ती उसे पहनने को दे दिया करती। भले ही वह बाद में उसे वापस करती या नहीं भी करती, पर सुप्रिया को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

दिन-प्रतिदिन दोनों का प्यार बढ़ता ही जा रहा था। कोई कह नहीं सकता था कि दोनों देवरानी-जेठानी हैं। वैसे सुप्रिया भी हर काम उषा से पूछ कर ही करती थी और वह जिस बात के लिए उसे मना कर देती वह बड़ी बहन का हुक्म मान कर नहीं करती। उसे लगता वे बड़ी हैं और पहले इस घर में ब्याह कर आयी हैं, तो उन्हें सबके बारे में ज्यादा पता होगा।

भाभी के मुंह से सुप्रिया के लिए कभी ‘बाबू’ तो कभी ‘बेटा’ भी निकल जाता, जिससे उसे लगता कि भाभी उससे अगाध प्रेम करती हैं। एक दिन कहने लगीं, ‘‘सुप्रिया, देखो बाबू, बुरा मत मानना, पर कम से कम से कम लाेगों के सामने अपने सिर पर पल्लू डाल लिया करो। नहीं नहीं, मुझे कोई दिक्कत नहीं है। मुझे तो तुम ऐसी ही अच्छी लगती हो, पर मां जी ऐसा चाहती हैं कि तुम सिर ढक कर रहो। अब पुराने जमाने की है ना इसलिए।’’

‘‘ठीक है भाभी,’’ कह कर सुप्रिया ने तभी अपने सिर पर पल्लू डाल लिया। लेकिन उसे लगा कि यह बात उसकी सास उससे खुद भी तो कह सकती थीं ना, उषा से कहलवाने की क्या जरूरत थी? हां पता है कि वह ठीक तरह से सुन नहीं सकतीं और इशारों में ही बात समझती हैं, पर बोल तो सकती हैं। अपनी सास के प्रति सुप्रिया के मन में मीठा जहर घुल गया। सुप्रिया के बनाए खाने की घर में सभी लोग तारीफें करते, सिर्फ उसकी सास को छाेड़ कर। क्योंकि उन्हें लगता कि उनके ठीक से ना सुनने को ले कर सब उन पर हंसेंगे। यही कारण था कि वे हमेशा चुप ही रहतीं और जो भी कहना होता अपनी बड़ी बहू उषा से ही कहतीं, क्योंकि एक वही थी जिसका इशारा वे समझ सकती थीं। एक रोज उषा भाभी कहने लगीं कि सुप्रिया के हाथों का बना खाना उसकी सास को नहीं पसंद आता है। कहती हैं कि बहुत तेल-मसाला और नमक डाल कर खाना पकाती है इसलिए अब उषा ही उनके लिए खाना बना दिया करे। नहीं तो ये सुप्रिया उनकी जान ले कर छोड़ेगी। सुन कर सुप्रिया को बहुत दुख हुआ। लगा, क्या वह इतनी बुरी है कि अपनी सास की जान ले सकती है और क्या वह जानबूझ कर तेल-मसाला डालती है। वैसे ही तो पकाती है, जैसे उषा भाभी पकाने को कहती हैं, तो फिर अब वह क्या करे। सुप्रिया बोली, ‘‘तो यह बात मां जी मुझसे भी बोल सकती थी ना भाभी, आपसे मेरी शिकायत करने की क्या जरूरत थी। ठीक है भाभी, अबसे आप ही उनके लिए खाना पका दीजिएगा,’’ बड़े दुखी मन से सुप्रिया बोली। ‘‘अरे जाने दो ना, क्यों दिल पर लेती हो। बुढ़ापे में जरा सठिया गयी हैं और कुछ नहीं। वैसे भी इनकी तो आदत है शिकायत करने की। पहले मेरी शिकायत करती थीं और अब तुम्हारी,’’ ऐसी कई बातें बोल-बोल कर उषा भाभी सुप्रिया को उसकी सास के प्रति भड़काए जा रही थीं और उधर अपनी सास से कहतीं, ‘‘देख लिया ना मां, कैसी नकचढ़ी बहू आयी है। कभी यह नहीं होता कि आपके पास आ कर बैठे। जब देखो शृंगार-पटार में लगी रहती है। अरे, उसे तो आपके खांसने से भी समस्या होती है। कह रही थी रातभर नहीं सो पायी। देखना सासू मां, एक दिन वह आपके बेटे को भी आपसे दूर कर देगी। अगर मेरी बहन से अशोक की शादी कर दी होती ना, तो आज वह आपके चरणों में पड़ी आपकी सेवा कर रही होती पर अब क्या, भुगतो,’’ कह कर वे व्यंग्य से मुस्करायीं। दोनों तरफ वह राजनीति का खेल, खेल रही थीं। सास-बहू को एक-दूसरे के प्रति बुरा बना कर, खुद को वह महान साबित करना चाहती थीं। पर उसकी सास उषा भाभी की सारी चालाकियां अच्छे से समझ रही थीं कि क्यों वह ऐसा क्यों कर रही है। वे जानती थीं कि उसकी बहन से अशोक की शादी नहीं हो पायी इसलिए।

उधर सुप्रिया ने सोच लिया अब वह अपनी सास के लिए कभी खाना नहीं पकाएगी। ‘अरे, जब मेरे हाथों का बना खाना उन्हें पसंद ही नहीं, तो फिर क्यों मैं उनके आगे-पीछे ‘मां जी-मां जी’ कहती डोलती फिरूं,’ वह अपने मन ही मन बुदबुदायी। भाभी ने इतने कान भर दिए थे कि सुप्रिया को अपनी सास ललिता पवार नजर आने लगी थीं। अशोक से भी वह जब-तब यही बातें कहती रहती और हर बार वह यही समझाता कि वह उषा भाभी बातों पर ध्यान ना दे, क्योंकि जैसी वे दिखती हैं वैसी बिलकुल नहीं हैं। लेकिन सुप्रिया यह बात मानने को बिलकुल भी तैयार नहीं थी। उसे तो अपनी सास ही बुरी लगतीं और भाभी अच्छी। इस बात पर दोनों के बीच हमेशा हल्की झड़प हो जाती। सुप्रिया की नजर में उषा भाभी सच्ची और नेक औरत थीं। वह तो उनकी ही बातें सुनती और गुनती भी थी। उसे लगता कि वे जो कहती हैं उसकी भलाई के लिए ही कहती हैं और उन्हें उसकी फिक्र है।

एक सुबह मन मार कर जब सुप्रिया अपनी सास को चाय देने गयी, तो उन्होंने उसे इशारों से अपने पास बैठने को कहा और उसकी तारीफ करते हुए बोलीं कि वह बहुत अच्छा खाना बनाती है, एकदम उनके मन माफिक। सुन कर हैरान रह गयी सुप्रिया। लगा कैसी औरत है यह। झूठी कहीं की। मेरे मुंह पर मेरी तारीफ कर रही है और मेरी पीठ पीछे मेरी शिकायत करती है। उसने कुछ जवाब नहीं दिया और वहां से चली आयी। जब भी सुप्रिया छत पर जाती, उसकी मुलाकात मिश्राइन चाची से, जिनकी छत ठीक सुप्रिया की छत से सटी थी, हो ही जाती। दोनों बैठ कर देर तक इधर-उधर की बातें करतीं। अच्छा लगता था सुप्रिया को उनसे बातें करना, क्योंकि कहीं ना कहीं मिश्राइन चाची में उसे अपनी मां की झलक दिखायी देती थी जो अब इस दुनिया में नहीं थीं। लेकिन यह बात उषा को फूटी आंख नहीं सुहाती थी। वह नहीं चाहती थी सुप्रिया उनसे बात करे। कारण कि एक बार उषा की उनसे किसी बात पर लड़ाई हो गयी थी और तबसे दोनों के बीच बोलचाल नहीं थी। दबे मुंह, मिश्राइन चाची ने कितनी बार सुप्रिया को आगाह करना चाहा कि उषा जैसे दिखती है वैसी है नहीं, इसलिए वह उसकी बातों पर भरोसा ना करे।

भाभी को भी यही डर रहता कि कहीं सुप्रिया के सामने उनकी पोलपट्टी ना खुल जाए। बस कान भरने के अपने मिशन में जुट गयीं। मौका देख कर एक दिन बोलीं, ‘‘मिश्राइन चाची दिल की बड़ी अच्छी औरत हैं और किस्मत देखो उनकी, बेटा अच्छी नौकरी पर लग गया। तीनों बेटियों की अच्छे-अच्छे घरों में शादी हो गयी। अब है ही क्या उनकी जिम्मेदारी। बस चैन की बंसी बजा रही हैं, पर एक बात उनकी मुझे अच्छी नहीं लगती, वो यह कि लोगों की बहू-बेटियों को तिरछी नजर से देखना और फिर पीठ पीछे उनकी बुराई करना। कहना मत, पर वे तुम्हारे बारे में भी कह रही थीं कि बड़ी बेहया है अशोक की पत्नी। कैसे पति के साथ चिपक कर बाइक पर बैठ जाती है। यह भी नहीं सोचती कि मुहल्ले में कितने बड़े-बुजुर्ग हैं तो जरा कायदे से रहें। अरे, पति के साथ कमरे में जो करना है करे ना, बाहर क्या छिछोरी हरकतें करती है। लगता है मां- बाप ने अच्छे संस्कार नहीं दिए।’’

सुन कर हक्कीबक्की रह गयी थी सुप्रिया। लगा, कैसे मिश्राइन चाची ने उसके लिए ऐसे शब्द बोले? वे तो उसे बेटी-बेटी कहती थकती नहीं थीं। कहां तो मैं उन्हें मां समान समझ कर हमेशा मान-सम्मान देती और वे। छी...मुझे नहीं करनी ऐसी दोहरे चरित्र वाली औरत से बात, जो मुंह पर तो लप्पोचप्पो करती है और कोई मौका मिलते ही... उस दिन से उसने मिश्राइन चाची से किनारा कर लिया। छत पर भी तभी जाती जब वे नहीं होतीं, लेकिन बेचारी चाची। वे तो राह देखतीं सुप्रिया की, आदत जो पड़ गयी थी उससे बात करने की। वे समझ नहीं पा रही थी कि क्यों सुप्रिया ने अचानक उससे बात करना छोड़ दिया। कितनी बार पूछा भी उषा से कि क्यों छोटी बहू उससे बात नहीं करती।

उषा भाभी दिलासे के स्वर में बोलीं,‘‘अरे जाने दो ना चाची, उम्र कम है तो अक्ल भी कम ही होगी ना और नए जमाने के लड़के-लड़कियों में कहां भावनाएं होती हैं हमारी तरह।’’ उषा भाभी की राजनीति तो सुप्रिया तब जान पायी, जब वह अपनी मामी की बेटी की शादी पर उनके घर गयी थी। सुप्रिया को आया देख उसकी मामी बहुत खुश हो गयीं। लेकिन अशोक को ना देख दुखी भी हुईं। लेकिन जब सुप्रिया ने बताया कि उनका ऑडिट चल रहा है और काम खत्म होते ही वे आएंगे, तो मामी खुश हो गयीं, फिर पूछने लगीं, ‘‘और बताओ, सब कैसे हैं तुम्हारे ससुराल में। और तुम्हारी वह जेठानी उषा जी! उनका क्या हालचाल है?’’ बोल कर उसकी मामी हंसीं, तो सुप्रिया को थोड़ा अजीब लगा।

‘‘हां मामी, सब ठीक हैं और मेरी जेठानी तो बहुत अच्छी हैं। जाने क्यों कुछ लोग उनकी शिकायत करते रहते हैं,’’ सुप्रिया ने कहा, तो उसकी मामी बोलीं, ‘‘बेटा, धुआं वहीं से उठता है जहां आग लगी होती है।’’ ‘‘आपके कहने का क्या मतलब मामी?’’

मामी बोलीं, ‘‘तुमने उषा के बारे में जो कुछ सुना सही सुना। जैसी वह दिखती है, वैसी बिलकुल भी नहीं है। वह तो हर जगह तुम्हारी बुराई करती फिरती है। कहती है, ‘हम लोग शादी करके ठगे गए। लड़की तो अशोक के लायक है ही नहीं। सिर्फ रूप होने से क्या होता है? गुण भी तो होने चाहिए लड़की में। लेकिन जाने अशोक ने क्या देखा उसमें जो उससे ब्याह करने को मचल उठा।’’ ‘‘नहीं मामी, आपको जरूर कोई गलतफहमी हुई है। अरे भाभी तो हमेशा मेरी साइड लेती हैं। वे तो मुझे अपनी छोटी बहन समझती हैं।’’

‘‘सुप्रिया बेटा, जिन्होंने मुझसे यह सब बातें बतायीं, वे कभी झूठ नहीं बाेलतीं और भला क्यों झूठ बोलेंगी। अरे, उस उषा ने तो यह भी कहा कि वह अपनी छोटी बहन की शादी अशोक से करना चाहती थी, पर तुम्हारी सास ने मना कर दिया, क्योंकि एक ही घर से वे 2 लड़कियां नहीं लाना चाहती थीं। तुम्हारी जेठानी ने तो एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था कि किसी तरह अशोक से उसकी बहन की शादी हो जाए, ताकि दोनों बहनें पूरे घर पर राज कर सकें। उसने अशोक को फुसलाने की भी बहुत कोशिश की, पर उसकी दाल नहीं गली। अपनी बहन को सजाधजा कर अशोक के सामने भेजती रहती, ताकि अशोक फिसल जाए। मुझे तो यह बात समझ नहीं आती कि उसके मां-बाप कैसे हैं, जो जवान बेटी को अपनी बड़ी बेटी के ससुराल में भेजते रहते थे। शायद इसलिए कि किसी तरह उनकी दूसरी बेटी का भी बेड़ा पार लग जाए,’’ कह कर उसकी मामी ठहाके लगा कर हंस पड़ीं और सुप्रिया खुद को ठगा सा महसूस करने लगी थी। सुप्रिया को विश्वास नहीं हो रहा था कि उषा भाभी ऐसी होंगी।

‘‘लेकिन मामी झूठ तो नहीं बोल रही थीं। उन्हें झूठ बोल कर क्या मिलेगा भला। अपने मन में सुप्रिया सोचने लगी। उसे याद आने लगा कि कितनी बार जब वह और अशोक कमरे में होते, तो किसी ना किसी बहाने से भाभी वहां आ जातीं, जिससे अशोक खिन्न हो जाता था। बात-बात पर वह उसकी तुलना अपनी बहन नित्या से करतीं और जतातीं कि वह भी उसकी तरह ही सुंदर और समझदार है। उषा भाभी ने ही उसे बताया था कि जब वे मां बनने वाली थीं तब उनकी बहन महीनों उनके घर आ कर रही थी और यदाकदा आती-जाती रहती थी। पर यह नहीं बताया कभी कि वे अपनी बहन की शादी अशोक से करवाना चाहती थीं। बतातीं कैसे दिल में चोर जो था। उसे नहीं पता था, तो क्या अशोक भी उसके प्रति आकर्षित हुए थे। सोच कर ही सुप्रिया बेचैन हो उठी। शादी से निबटने के बाद जैसे ही लड़की विदा हुई। अशोक का इंतजार ना कर, सुप्रिया अपने मामा के लड़के के साथ अपने ससुराल चली आयी और जब उसने वहां नित्या को देखा, तो दंग रह गयी।

‘‘अरे। सुप्रिया आ गयी तुम। देखो कह रही थी मैं अशोक से कि जा कर तुम्हें ले आए, पर काम ही इतना रहता इसके पास... वैसे अच्छा किया जो खुद ही आ गयी। तुम्हारे बिना घर काटने को दौड़ रहा था। इसलिए मैंने नित्या को बुला लिया। बहुत थक गयी होगी ना बाबू तुम। नित्या, सुप्रिया के लिए अदरक वाली चाय बना कर ले आओ तो,’’ लाड़ दिखाते हुए उषा भाभी बोलीं, पर सुप्रिया यह कह कर अपने कमरे में चली गयी कि अभी चाय नहीं पीनी है, थोड़ा आराम करना है। फिर भी भाभी की फुसफुसाहट ने उसके कदम वहीं रोक दिए। वे कह रही थीं, ‘‘जाने क्यों इतनी जल्दी हड़बड़ा कर आ गयी। रहती अभी वहां।’’

जब अशोक ने सुप्रिया से कहा कि वह तो उसे लेने आने ही वाला था, फिर क्यों इतनी जल्दी आ गयी, तो सुप्रिया बोली, ‘‘वह सब छोड़ो, यह बताओ कि नित्या यहां कब आयी?’’

‘‘तुम्हारे जाने के अगले दिन,’’ अशोक बोला।

‘‘ओह। फिर तो खूब मजे लिए होंगे तुमने’’, तंज कसते हुए सुप्रिया बोली।

‘‘अरे, कैसी बातें कर रही हो तुम?’’ सुप्रिया की तरफ आश्चर्यचकित नजरों से देखते हुए अशोक कहने लगा ‘‘छोड़ो ये बातें, यह बताओ की शादी अच्छे से निपट गयी ना? और मामा-मामी मेरे बारे में पूछ रहे थे कि नहीं।’’

‘‘सब कोई पूछ रहा था और शादी भी अच्छे से हो गयी। तुम यह बताओ कि तुम्हारी शादी नित्या से होनेवाली थी कि नहीं,’’ बिना किसी लागलपेट के सुप्रिया सीधे बात पर आ गयी।

हैरानी से अशोक ने सुप्रिया की ओर देखा, ‘‘यह सब तुम्हें कैसे पता?

‘‘यह सब छोड़ो, बताओ कि तुम्हारी शादी उससे लग रही थी कि नहीं,’’ सुप्रिया ने पूछा।

‘‘हां, भाभी चाहती थीं।’’

‘‘और तुम नहीं,’’ सुप्रिया ने पूछा।

‘‘क्यों जानना चाहती हो तुम यह सब। छोड़ो ना बीती बातों को,’’ झल्लाते हुए अशोक बोला।

‘‘मैं जानना चाहती हूं बोलो ना अशोक। क्या तुम भी नित्या से शादी करना चाहते थे।’’

‘‘अरे नहीं, मैं चाहता तो क्या हो नहीं गयी होती हमारी शादी। मुझे तो नित्या पसंद ही नहीं थी। हां, मेरे आगे-पीछे डोलती जरूर रहती थी और उसकी यही बात मुझे अच्छी नहीं लगती थी।’’ सुन कर जैसे राहत की सांस ली सुप्रिया ने। हंसते हुए फिर अशोक कहने लगा, ‘‘जानती हो सुप्रिया, शादी के एक दिन पहले तक भाभी मुझसे अपनी बहन से शादी करने के लिए दबाव डालती रहीं। यहां तक कहा कि अगर मैं इस रिश्ते के लिए हां बोल दूं, तो वे हमारे भागने का भी इंतजाम कर देंगी। तभी मुझे लगा कि बाप रे! ये भाभी तो बड़ी ऊंची चीज हैं। इसीलिए मैं तुम्हें उनसे दूरी बना कर रखने को कहता था। उन्हें लगता था कि इतना अच्छा लड़का है बैंक में सरकारी नौकरी है और सबसे बड़ी बात कि दोनों बहनें एक ही घर में आ जाएंगी, तो उनकी मनमानी चलेगी। लेकिन मां को यह रिश्ता कतई मंजूर नहीं था और यही कारण है कि आज भी वे भाभी की कोपभाजन बनी हुई हैं। उन्हें आज भी लगता है, अगर मां चाहतीं तो नित्या इस घर की बहू बन गयी हाेती। उनका बस चले ना तो वह मां को...’’ कहते-कहते अशोक चुप हो गया। लेकिन सुप्रिया सब समझ गयी।

इसका मतलब मामी सच कह रही थीं। भाभी ने मेरे साथ राजनीति की। चाहे मेरी ननद हो, सास हो, आस पड़ोस या रिश्तेदार, सबके समक्ष उषा भाभी ने मुझे बुरा बना दिया और मिश्राइन चाची के प्रति मेरे मन में कितना जहर भर दिया। बेचारी मां जी, वे तो सुन भी नहीं सकतीं और उसी का फायदा भाभी उठाती रहीं, सोचते हुए सुप्रिया ग्लानि से भर उठी।

एक-एक कड़ी जोड़ने के बाद सुप्रिया को समझ में आ गया कि कोई बुरा नहीं है, बल्कि यह सारा खेल भाभी का रचाया हुआ है। वह गलत समझती रही कि उषा भाभी को उससे लगाव है। जैसे बर्फ का टुकड़ा धीरे-धीरे पिघल कर पानी में तब्दील हो जाता है, उसी तरह अब उषा के लिए सुप्रिया के मन से वह प्यार और मान-सम्मान सब खत्म होने लगा था। ‘क्या पता मुझे सबकी नजरों में बुरा साबित कर, वे अपनी बहन की शादी अशोक से अब भी कराना चाहती हों,’ वह सोचने लगी। उसने अपने मन में निश्चय कर लिया कि उसे क्या करना है और क्या नहीं। ‘डियर भाभी जान अब मैं बताऊंगी आपको कि राजनीति करना किसे कहते हैं। समझ में आ गया मुझे कि किसकी बात पर भरोसा करना है और किसकी पर नहीं। और कैसे सारे बिगड़े रिश्तों को फिर से सुधार कर अपनी पहलेवाली जगह मुझे वापस पाना है।’ सोचते-सोचते जाने कब उसकी आंखें लग गयी। सुबह का उजास फैलते ही उसकी नींद खुल गयी। नहा-धो कर वह नीचे आयी और चाय बना कर सबसे पहले उसने अपनी सास को दी और उनके पांव छुए। उसकी सास ने उसे ढेरों आशीर्वाद दिए। हमेशा की तरह आज भी उषा भाभी उसे बताने आयीं कि खाना में क्या बनना है और क्या नहीं, लेकिन उसने भी गूंधे आटे को अंतिम चोट दे कर उसे मुलायम करते हुए बेफिक्री से कहा,‘‘भाभी अब आपको मुझे कुछ समझाने की जरुरत नहीं है, क्योंकि आपके साथ रहते-रहते मैंने भी सारे दांवपेंच सीख लिए हैं।’’ उसकी बात पर भाभी भौंचक्की रह गयीं। वहीं अब सुप्रिया जो भी काम करती, या तो अपनी सास से राय लेती या फिर अपने पति से। कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं हुआ उसका उषा भाभी से, उस बात को ले कर। पर हां, भाभी सब समझ रही थीं कि अब सुप्रिया पहले वाली नहीं रही। कुछ ही महीनों बाद अशोक के तबादले का ऑर्डर आ गया। लेकिन जाने से पहले सुप्रिया ने सबसे अपने अच्छे संबंध बना लिए। रिश्तों पर जो राजनीति कर रही थी उषा, वह सब धराशायी हो गया।