Tuesday 23 February 2021 04:12 PM IST : By Ritu Verma

अपना घर

apna-ghar

ऑफिस की घड़ी ने शाम के 5 बजाए, जिया ने जल्दी से अपना बैग उठाया और तेज कदमों से मेट्रो स्टेशन की तरफ चल पड़ी। आज उसका मन एकदम बादलों की तरह हवा के घोड़े पर सवार था, हो भी क्यों ना, आज उसे अपनी पहली तनख्वाह मिली थी। वह अपने घर में सबके लिए कुछ ना कुछ लेना चाहती थी। रोज शाम होते-होते वह बहुत थक जाती थी, पर आज उसका उत्साह देखते ही बनता था। आज उसको जो महसूस हो रहा था वह शब्दों में बोल नहीं पा रही थी। उसके आसपास से गुजरनेवाला हर आदमी उसकी प्रसन्नता को देख पा रहा था। आइए, अब जिया से मिल लेते हैं। जिया आज के जमाने की 23 वर्षीय नवयुवती है। सांवला-सलोना रंग, आम के फांक जैसी आंखें, सुतवां छोटी सी नाक, बड़े-बड़े रसीले होंठ और काले घने घुंघराले बाल।

सुंदरता में उसका कहीं कोई नंबर नहीं लगता था, पर फिर भी उसका चेहरा पुरकशिश है। घर में सबकी लाड़ली, जीवन से अब तक वह रूबरू ना हो पायी थी। जो चाहा वह उसे मिल गया था। बहुत बड़े सपने वह देखती ना थी, थोड़े में ही खुश थी। तेज कदमों से वह दुकानों की तरफ बढ़ी, अपने 2 साल के भतीजे के लिए उसने एक रिमोट से चलने वाली कार खरीदी। अपने पापा के लिए उनकी पसंद का परफ्यूम, मम्मी और भाभी के लिए सूट और साड़ी, भैया के लिए जब उसने टाई खरीदी, तो उसने देखा कि बस उसके पास अब कुछ ही पैसे बचे हैं। अपने लिए वह कुछ ना खरीद पायी। अभी पूरा माह पड़ा था, बस उसके पास कुछ हजार ही बचे थे। उसे उसमें ही अपना खर्चा करना था, मां-पापा से वह कुछ लेना नहीं चाहती थी।

जैसे ही वह शोरूम से बाहर निकली, पास वाली दुकान में उसे आसमानी और फिरोजी रंग के बहुत खूबसूरत परदे झांकते हुए दिखायी दिए, खिंची हुई वह वहां पर चली गयी। बचपन से उसका अपने घर में इस तरह के परदे लगाने का मन था। दुकानदार से जब दाम पूछे, तो उसको पसीना आ गया।

दुकानदार मुसकराते हुए बोला, ‘‘ये चंदेरी सिल्क के परदे हैं इसलिए दाम ज्यादा हैं, ये आपके कमरे के लुक को एकदम से बदल देंगे।’’

कुछ देर तक वह खड़ी सोचती रही फिर उसने वे परदे खरीद लिए। जब वह दुकान से बाहर निकली, तो वह बहुत खुश थी। बचपन से वह ऐसे परदे अपने घर में लगाना चाहती थी। पर मां के सामने जब भी बोला उसकी इच्छा घर की जरूरतों के सामने छोटी पड़ गयी। आज उसे ऐसा लगा, वह वाकई स्वतंत्र हो गयी है। वोट डालने का अधिकार तो सरकार ने उसे 18 वर्ष में दे दिया था, पर आज वह अपने निर्णय खुद ले सकती है।

जब वह घर पहुंची रात हो चली थी, सब रात के खाने के लिए उसका इंतजार कर रहे थे। उसने हुलस कर भतीजे को चूमा और सबके उपहार टेबल पर रख दिए। सब उत्सुकता के साथ अपने उपहार देखने लगे। अचानक मां बोली, ‘‘तुम अपने लिए क्या लायी हो?’’

जिया ने मुस्कराते हुए परदों का पैकेट उनकी तरफ बढ़ाया, परदे देख कर मां बाेलीं, ‘‘यह क्या है। इसको क्या तुम पहनोगी?’’

जिया मुस्कराते हुए बोली, ‘‘मेरी प्यारी मां, इसको हम घर में लगाएंगे।’’

मां ने परदे वापस पैकेट में डाले और बोलीं, ‘‘ये सब अपने घर लगाना।’’

जिया असमंजस से मां को देखती रही, उसे समझ नहीं आया इसका क्या मतलब है। उसकी भूख खत्म हो गयी थी।

भाभी ने मुस्करा कर उसके गाल थपथपाए और बोलीं, ‘‘मैं आज तक नहीं समझ पायी, मेरा घर कौन सा है। जिया, तुम अपना घर खुद बनाना,’’ यह कह कर भाभी ने बहुत प्यार से उसके मुंह में एक निवाला डाल दिया।

आज पूरा घर पकवानों की महक से महक रहा था। मां ने अपनी सारी पाक कला को निचोड़ दिया था। कचौड़ी, रसगुल्ले, गाजर का हलवा, ढोकले, पनीर के पकौड़े, हरी चटनी, समोसे और करारी चाट। भाभी लाल साड़ी में इधर से उधर चहक रही थीं। पापा और भैया पूरे घर का घूम-घूम कर मुआयना कर रहे थे, कहीं कुछ कमी ना रह जाए। आज जिया को कुछ लोग देखने आ रहे थे। एक तरह से जिया की पसंद थी, जिस पर आज उसके घर वालों को मुहर लगानी थी। अभिषेक उसके ऑफिस में ही काम करता है, दोनों में अच्छी दोस्ती है, जिसे अब वे एक रिश्ते का नाम देना चाहते हैं।

ठीक 5 बजे एक कार उनके घर के सामने आ कर रुकी और उसमें से 4 लोग नीचे उतरे। सबने ड्रॉइंगरूम में प्रवेश किया। जिया ने परदे की ओट से देखा, अभिषेक जींस और लाइट ब्लू शर्ट में बेहद हैंडसम लग रहा था। उसकी मां लीला आज के जमाने की आधुनिक महिला लग रही थीं। छोटी बहन मासूमा बेहद खूबसूरत थी। पिता अजय सीधे-सादे व्यक्ति थे। एक तरह से देखा जाए, तो जिया अभिषेक की मां और बहन के सामने कहीं भी नहीं ठहरती थी, पर उसका भोलापन, सुलझे हुए विचार और सादगी थी, जिसने अभिषेक को उसकी तरफ खींचा था। जिया के किरदार में कहीं भी कोई बनावटीपन नहीं था।

अभिषेक ने पिता को हमेशा एडजस्टमेंट करते हुए देखा था। वह खुद ऐसा नहीं करना चाहता था, इसलिए हर हाल में अपनी मां का लाड़ला, हर बात माननेवाला अभिषेक किसी भी कीमत पर अपने जीवनसाथी के चुनाव की बागडोर मां को नहीं देना चाहता था।

जिया ने कमरे में प्रवेश किया, अभिषेक प्यारभरी नजरों से उसकी तरफ देख रहा था। वहीं लीला और मासूमा उसकी तरफ अचरज से देख रही थी, उनको जिया में कोई खूबी नजर नहीं आ रही थी। अजय को जिया एक सुलझे विचारों वाली लड़की नजर आयी, जो उनके परिवार को संभाल कर रख सकेगी। लीला ने अभिषेक की तरफ देखा, पर उसके चेहरे पर खुशी देख कर वे चुप हो गयीं। जिया को लीला ने अपने हाथों से हीरे का सेट पहना दिया, पर उनके चेहरे पर कहीं कोई खुशी नहीं थी। यह बात जिया को समझ आ गयी थी कि वह बस अभिषेक की पसंद है। अपने घर में जगह बनाने के लिए उसे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। दो माह बाद उसके विवाह की तारीख तय हो गयी।
दुलहन के लिबास में जिया बेहद खूबसूरत लग रही थी। अभिषेक और उसकी जोड़ी पर लोगों की नजर ही नहीं ठहर रही थी। लीला भी आज बहुत खुश लग रही थीं। कन्यादान करते हुए जिया के मां और पापा की आंखों में आंसू थे। वह उनके घर की रौनक थी।

विदाई की बेला पर अजय ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘बहू नहीं बेटी ले कर जा रहे हैं।’’

जिया ने कुछ दिनों में यह तो समझ लिया था कि इस घर की बागडोर लीला के हाथ में है। यह घर लीला का घर है, वह घर उसके मां-पापा का था। अभी कल की ही बात थी। जिया ने ड्रॉइंगरूम में थोड़ा सा बदलाव करने की कोशिश की, तो लीला ने मुस्करा कर कहा, ‘‘जिया, तुम अभिषेक की बीवी हो, इस घर की बहू हो, पर इस घर को मैंने बनाया है, इसलिए अपने फैसले और अपने अधिकार अपने कमरे तक सीमित रखो।’’

जिया चुपचाप खड़ी सुनती रही। अभिषेक से जब भी उसने इस बारे में बात करनी चाही, उसने हमेशा यही जवाब दिया, ‘‘जिया, उनको थोड़ा समय दो, उन्होंने सब कुछ तो हमारी खुशी के लिए किया है।’’ जिया अपने मनोभावों को चाह कर भी ना समझा पाती थी। खुश रहना उसकी आदत थी और हारना उसकी फितरत में नहीं था। देखते ही देखते एक साल बीत गया।

आज जिया की शादी की पहली वर्षगांठ थी। जिया ने अभिषेक के लिए घर पर पार्टी करने का प्लान बनाया। उसने अपने सभी दोस्तों को निमंत्रण भेज दिया। तभी दोपहर में जिया ने देखा, लीला की किटी पार्टी का ग्रुप आ धमका। जिया ने लीला से कहा, ‘‘मां, आज मैंने अपने कुछ दोस्तों को आमंत्रित किया है।’’

लीला बोलीं, ‘‘जिया, तुम्हें पहले मुझसे पूछ लेना चाहिए था। मैं तो अब कुछ नहीं कर सकती हूं। तुम अपने दोस्तों को कहीं और बुला लो।’’

जिया फिर से खड़ी हुई अपने अधिकारों की सीमारेखा समझती रही। मन ही मन उसने एक निर्णय ले लिया था।

जिया ने अपने सभी दोस्तों को शाम की पार्टी के लिए घर के बदले होटल का पता वॉट्सएप कर दिया था और उसने अभिषेक को भी वहीं पर बुला लिया था। अभिषेक ने जिया को पीली और लाल कांजीवरम साड़ी और बेहद खूबसूरत झुमके उपहार में दिए थे। अभिषेक जिया जैसी सुलझे विचारों वाली जीवनसाथी पा कर बेहद खुश था। जिया को अपनी जिंदगी से कोई शिकायत नहीं थी पर फिर भी कभी-कभी वे चंदेरी के परदे उसको मुंह चिढ़ाते थे। अभिषेक उसको हर तरह से खुश रखता था, पर वह कभी भी जिया की अपने घर की इच्छा को नहीं समझ पाया था। हां, जिया ने धीरे-धीरे इस घर में हर एक दिल में जगह बना ली थी। लीला भी अब उससे खिंची-खिंची नहीं रहती थी, मासूमा की मासूम शरारतों का वह हिस्सा बन गयी थी।

आज चारों तरफ खुशी का माहौल था। दीवाली का त्योहार वैसे भी अपने साथ खुशी, हर्षोल्लास और अनगिनत रंग ले कर आता है। पूरे घर में पेंट चल रहा था। जब अभिषेक परदे बदलने लगा अचानक जिया बोली, ‘‘रुको,’’ और भाग कर वे चंदेरी के परदे ले कर आ गयी। इससे पहले अभिषेक कुछ बोलता, लीला बोलीं, ‘‘जिया, ऐसे परदे मेरे घर में नहीं लगेंगे।’’

जिया प्रश्नसूचक नजरों से अभिषेक को देख रही थी। उसे लगा वह बोलेगा कि मां, यह जिया का भी घर है, पर अभिषेक नीचे उतर गया। जिया का खराब मूड देख कर बोला, ‘‘इतना क्यों परेशान हो, एक परदे ही तो हैं।’’ पहली बार जिया की आंखों में आंसू आ गए, अभिषेक उन आंसुअों को देख कर और चिढ़ गया।
आजकल जिया का ज्यादातर समय ऑफिस में बीतता था। अभिषेक ने महसूस किया वह अपने फोन पर ही लगी रहती है और उसको देखते ही घबरा कर मोबाइल रख देती है। अभिषेक जिया को सच में प्यार करता था। वह जिया से पूछना चाहता था, पर उसको डर था कहीं सच में जिया के जीवन में उसकी जगह किसी और ने तो नहीं ले ली है।

एक शाम को अभिषेक ने जिया को कहा, ‘‘जिया, चलो शुक्रवार की छुट्टी ले लो, कहीं आसपास घूमने चलते हैं।’’

जिया अनमने ढंग से बोली, ‘‘नहीं अभिषेक, बहुत काम हैं ऑफिस में।’’

चाह कर भी अभिषेक जिया के व्यवहार में आए बदलाव को समझ नहीं पा रहा था। वह रात को भी घंटों लैपटॉप पर बैठ कर ना जाने क्या करती रहती थी। अभिषेक जैसे ही उसको आवाज देता, वह घबरा कर लैपटॉप बंद कर देती। अभिषेक जितना उसके करीब जाने की कोशिश करता, वह उतना उससे दूर जा रही थी।

ना जाने वह क्या था, जिसके पीछे जिया पागल हो रही थी। जिया के भाई ने भी उस दिन अभिषेक को फोन पर कहा, ‘‘आजकल जिया घर पर फोन ही नहीं करती, सब ठीक है ना!’’

अभिषेक ने कहा, ‘‘नहीं, आजकल ऑफिस में बहुत काम है।’’

देखते ही देखते 2 साल बीत गए। अब अभिषेक और जिया दोनों के माता-पिता की इच्छा थी कि वे अपने परिवार को आगे बढ़ाएं।

आज फिर से उनकी शादी की सालगिरह का जश्न हैं, पर आज लीला ने खुद एक दावत रखी है। जिया ने एक बहुत ही खूबसूरत प्याजी रंग की स्कर्ट और कुर्ती पहनी हुई है अौर अभिषेक की नजर उससे हट ही नहीं रही थी। सब लोग उनको छेड़ रहे थे कि वे खुशखबरी कब दे रहे हैं।

रात को एकांत में जब अभिषेक ने जिया से कहा, ‘‘जिया मेरा भी मन है,’’ तो जिया अनमने ढंग से बोली कि वह तैयार नहीं है। बेड में भी ऐसा लगा जैसे अभिषेक के पास बस उसका शरीर है। अभिषेक रातभर सो नहीं पाया।

आज वह हर हाल में जिया से बात करना चाहता था, पर जब वह सुबह उठा, जिया ऑफिस के लिए निकल चुकी थी। अभिषेक को कुछ समझ नहीं आ रहा था। ऐसा लगता था, जिया उसके साथ हो कर भी उसके साथ नहीं थी। वह हर हफ्ते उसके साथ कोई ना कोई प्लान बनाता, पर जिया को तो रविवार के दिन भी ऑफिस का काम निकल आता था। उन दोनों के बीच एक मौन था, जिसे वह चाह कर भी नहीं तोड़ पा रहा था। अभिषेक को अपनी वह पुरानी जिया चाहिए थी, पर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।

देखते ही देखते फिर दीवाली आ गयी, पूरा शहर रोशनी से जगमगा रहा है। आज अभिषेक को बहुत दिनों बाद जिया का चेहरा रोशनी सा खिला हुआ दिखा ।

शाम को जिया ने अभिषेक से कहा, ‘‘अभिषेक, आज मुझे तुम्हें कुछ कहना है और कुछ दिखाना भी है।’’

अभिषेक उसकी तरफ प्यार से देखते हुए बोला, ‘‘जिया, कुछ भी बोलना बस यह मत बोलना कि तुम्हें मुझसे प्यार नहीं है।’’

जिया खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली, ‘‘तुम पागल हो क्या, तुमने ऐसा सोचा भी कैसे !’’

अभिषेक चुपचाप मुस्करा दिया बोला, ‘‘लेकिन तुम मुझे पिछले एक साल से नेगलेक्ट कर रही हो, हम एक साथ कहीं भी नहीं गए।’’

जिया बोली, ‘‘पता नहीं तुमको समझ आएगा या नहीं, पर मैं पिछले एक साल से अपनी पहचान और अपना वजूद, अपनी जड़ें ढूंढ़ रही थी।’’

अभिषेक को कुछ समझ नहीं आ रहा था। जिया बाेली, ‘‘आज पूजा के बाद मेरे साथ चलोगे क्या?’’

अभिषेक बोला, ‘‘जरूर।’’

जिया ने गुलाबी और नारंगी चंदेरी सिल्क की साड़ी पहनी हुई थी। साथ में कुंदन का मेलखाता सेट और हीरे के कड़े और ढेर सारी चूडि़यां। आज उसके चेहरे पर ऐसी आभा थी कि सब लोग उसके आगे फीके लग रहे थे।
पूजा के बाद जिया ने अभिषेक को साथ चलने को कहा। अभिषेक ने कार की चाबी उठायी और चल पड़ा। जिया हंस कर बोली, ‘‘आज मैं तुम्हें अपने साथ अपनी कार में ले कर चलना चाहती हूं।’’

थोड़ी ही देर में कार हवा से बातें करने लगी और कुछ देर बाद कार नयी कॉलोनी की तरफ चलने लगी।

कार ड्राइव करते हुए जिया बोली, ‘‘अभिषेक, आज मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूं। तुमने हमेशा हर तरह से मेरा ख्याल रखा, पर बचपन से मेरा एक सपना था, जो मेरी आंखों में पलता रहा। मां-पापा ने कहा कि तुम्हारा घर वह होगा, जहां तुम जा कर एक घर बसाअोगी। तुम मिले, तो लगा मेरा सपना पूरा हो गया, पर अभिषेक कुछ दिनों बाद समझ आ गया कि कुछ सपने होते हैं, जो साझा नहीं होते। शादी का मतलब यह नहीं कि तुम्हारे सपनों का बोझ तुम्हारा जीवनसाथी भी उठाए। मुझे तुमसे या किसी से भी कोई शिकायत नहीं है। पर अभिषेक आज मेरा एक सपना पूरा हुआ है,’’ यह कह कर उसने एक नयी बनी सोसाइटी के सामने कार रोकी। अभिषेक चुपचाप उसके पीछे चल पड़ा।

एक नए फ्लैट के दरवाजे पर उसके नाम की नेमप्लेट लगी हुई थी। अभिषेक आश्चर्यचकित देख रहा था, छोटा, पर बेहद खूबसूरती से सजा हुआ फ्लैट! तभी हवा का झोंका आया और वही चंदेरी के फिरोजी परदे जिया के अपने घर में लहराने लगे, जहां पर उसका अधिकार एक कमरे तक नहीं, उसकी आबोहवा में भी था।