Thursday 08 August 2024 10:55 AM IST : By Abha Srivastava

बंदिनी भाग-2

bandini-2

हम लोग शहर छोड़ने वाले थे। जाने से पहले मैं अमिता से मिलने गयी थी। सदा चहकने वाली अमिता बेहद उदास और चुप थी। चलने लगी, तो उसकी आंखें भर आयीं। उसके ब्याह में आने का झूठा वादा करके मैंने उससे विदा ली। समय के साथ अमिता की स्मृति धुंधली पड़ती गयी। मैंने सोचा भी ना था कंचन कि अमिता को इस रूप में देखूंगी,’’ मैं अमिता की कहानी कहते-कहते थक गयी थी।

अगले दिन कंचन ने मेरे और अमिता के मिलने का इंतजाम अपने कमरे में किया था। वह बेहद समझदारी से हमें अकेला छोड़ कर इंस्पेक्शन पर निकल गयी। कमरे में एक सन्नाटा पसरा था। वैसे तो डॉ. कंचन ने अमिता के विषय में काफी कुछ बताया था, किंतु अमिता के जीवन के इस अस्वाभाविक मोड़ की कहानी मैं उसी के मुंह से सुनना चाहती थी। उसने बताया कि ब्याह के लिए देखे गए उसके सारे स्वप्न पहली ही रात में ध्वस्त हो गए जब नशे में धुत पति ने डगमगाते हुए कमरे में प्रवेश किया। प्रथम रात्रि का प्रणयोपहार पहनाते-पहनाते ही वे लुढ़क कर सो गया। किशोरी अमिता भय से सहमी सारी रात किनारे बैठी रही। प्रथम रात्रि की मोहक कल्पनाएं धराशायी हो चुकी थीं। स्वप्न टूटते हैं किंतु ऐसे, यह तो अमिता ने सोचा भी ना था।

सुबह-सुबह तैयार हो कर वह बाहर आयी, तो पति काम पर जा चुके थे। बड़ी ननद रसोई में व्यस्त थी कि सहसा उसे वही परिचित चेहरा दिखा, जो ब्याह से पूर्व उसे पसंद कर गया था।

‘‘अम्मा, मैं कॉलेज जा रहा हूं। टिफिन तैयार है मेरा,’’ कहते हुए उस युवक ने अमिता को प्रणाम किया, ‘‘मामी, मैं विकास, भांजा लगता हूं आपका।’’ अमिता सकुचा गयी। उसी का हमउम्र भांजा।

इतने में बड़ी ननद रसोई से बाहर आ गयीं, ‘‘बहू, भइया को तो रात-दिन काम ही दिखे हैं। तुम्हें कुछ खरीदना, मंगाना हो या कहीं आना-जाना हो, तो विकास से ही कहना। हम दोनों तो अब इसी घर के प्राणी हैं,’’ वे हंसीं। उनकी निष्पाप हंसी देख कर अमिता का सारा डर जाता रहा।

लेकिन अमिता ऊबने लगी थी। पति से, घर से, एकरसता से। वह स्वयं जितनी रसप्रिया थी, पति उतने ही नीरस। उन्हें अपने बहीखातों में ही दुनिया जहान का साहित्य दिखायी देता और सुरा-सुंदरी में जीवन का रस। अमिता अपनी परीकथाअों के नायकों को खोजते-खोजते पगला जाती।

एक दिन साहस करके उसने घर में आगे पढ़ने की इच्छा व्यक्त की। थोड़ी नानुकर के बाद उसे विकास के साथ कॉलेज जाने की अनुमति मिल गयी। मानो बंद पिंजरे की चिडि़या को एक खुला आकाश मिल गया था। विकास अमिता का बेहद आदर करता था। दोनों ने हिंदी में साथ ही एमए पूरा किया। दोनों ही कुशाग्र बुिद्ध थे सो डॉ. चंद्रा के निर्देशन में शोध कार्य आरंभ किया। अमिता इतने बरसों में पति की आदतें नहीं सुधार सकी थी। पति के भटकते कदमों की आहट उसने सुन ली थी, किंतु वह पति को बांधती भी तो किस डोर से। ब्याह के इतने बरस बीत जाने पर भी उसकी कोख सूनी थी। उसकी ममतामयी बड़ी ननद गोलोकवासिनी हो चुकी थीं। ऐसे में अमिता घर में अकेले बैठे पागल ही हो जाती।

पीएचडी करते-करते अमिता कब और कैसे डॉ. चंद्रा की तरफ आकर्षित हो गयी, पता ही ना चला। उसे लगता कि वह पात्र जो अब तक उसे किताबों में मिला करता था आज सजीव हो कर डॉ. चंद्रा के रूप में उसके सम्मुख है। उनके मुख से झरते काव्य, सूक्तियां, आलेख सभी अमिता के लिए ग्रंथों के समान पूज्य थे। वे बोलते, तो अमिता एक भक्त के समान उनके वचनामृत ग्रहण करती। किसी एकांत क्षण में कभी डॉ. चंद्रा ने उससे कहा होगा कि पत्नी अब उनके लिए पहले जैसी नहीं रह गयी है। घर-गृहस्थी ने उसके जीवन का सारा रस माधुर्य सोख लिया है। नून, तेल, लकड़ी में उलझी पत्नी उनकी मानसिक क्षुधा शांत नहीं कर सकती। वे अमिता से एक प्लेटोनिक लव की आशा रखते हैं। मूर्खा अमिता इन मीठी बातों को सुन कर सातवें आसमान पर तैरने लगी।
उस दिन डॉ. चंद्रा के घर पर पार्टी थी। अमिता, उसके पति, विकास और अन्य सभी बहुमंजिला इमारत की छत पर पार्टी का आनंद उठा रहे थे। अमिता पर उस दिन शायद कोई उन्माद सवार था। किसी भी सूरत में डॉ. चंद्रा को पाना ही है और उनकी पत्नी के जीवित रहते ऐसा संभव ना था। मीठी बातों से बहला-फुसला कर वह मिसेज चंद्रा को छत की मुंडेर तक ले आयी थी। एक ही धक्के में मिसेज चंद्रा नीचे जा गिरी। मगरमच्छी आंसू बहाती अमिता जैसे ही पलटी, पीछे विकास खड़ा था। सिर से पांव तक कांप गयी थी वह। जिन आंखों में सदैव उसके लिए आदर था, वहां आज घृणा का सागर लहरा रहा था।

शायद अमिता बच भी जाती, अगर विकास गवाही ना देता। जिस डॉ. चंद्रा को वह देवपुरुष समझ रही थी, पत्नी की मृत्यु पर बिलखता वह व्यक्ति उसे बेहद तुच्छ और साधारण लगा। पुलिस आयी, मुकदमा चला और उसी दौरान अमिता को अपने गर्भवती होने का पता चला। पति ने यह कह कर उसे अपनाने से इंकार कर दिया कि ऐसी चरित्रहीन औरत के गर्भ में पल रहा बच्चा उनका नहीं हो सकता। अमिता चुप, एकदम चुप होती चली गयी। फिर कुछ दिन बाद डॉ. कंचन ने बताया कि अचानक ही अमिता को ब्रेन ट्यूमर डाइग्नोस हुआ है। उसे सिर दर्द और चक्कर आने की समस्या तो थी ही। यह उसी का परिणाम था। ऑपरेशन होना था।

अोटी में जाने से पूर्व अमिता शायद मुझसे कुछ कहना चाहती थी। डॉ. कंचन ने हमें एकांत में थोड़ा समय दिया।

‘‘मुझे कुछ हो जाए तो मेरे बेटे का ध्यान रखना, सुमि। ईश्वर करे वह मेरे जैसा ना हो। उसे एक संतुलित मस्तिष्क मिले और वह एक सामान्य जीवन जिए,’’ कह कर अमिता एकदम चुप हो गयी।

मुझे लगा एकाएक वह कितनी परिपक्व हो गयी थी। उसकी पलकों की कोर से दो बूंद आंसू टपक पड़े। मैंने उसे गले लगा कर जोर से भींच लिया। उसके सिर के सारे बाल हटा दिए गए थे। लेकिन फिर भी वह कितनी सुंदर लग रही थी। क्या यह बुझने वाले दीए की अंतिम लौ थी। उसका समय शायद इस संसार में पूरा हो चुका था। ऑपरेशन के दौरान ही उसकी नब्ज डूबने लगी थी। लाख प्रयासों के बाद भी अमिता नहीं बची। उस बंदिनी ने शरीर का ही पिंजरा छोड़ दिया था।

मैं अमिता के बेटे को गोद लेना चाह रही थी कि डॉ. कंचन ने अपनी बांहें पसार कर उस दुधमुंहे को अपने आंचल में समेट लिया। बोली, ‘‘तेरा आंचल तो पहले से ही भरा हुआ है। इस बच्चे को अपना लेने से शायद मेरे जीवन का खालीपन भर जाएगा।’’

और इस तरह कान्हा, अपने जन्म की परिभाषा को सार्थक करता हुआ अपनी यशोदा मैया के आंचल की छत्रछाया में पलने चला गया।