40 साल के रफीक मियां बेफिक्र हो अपने माॅडर्न हवेलीनुमा घर में जब शहाना को लिए पहुंचे, उसकी खूबसूरती के चर्चे दूर-दूर तक फैले। अंग्रेजी सीखी और जहीन कायदों की मालकिन शहाना को पा कर रफीक साहब की बांछें खिल गयी थीं।
2 साल फुरती से गुजर गए। अशफाक मियां की हिदायत से कलाम भी शहाना के घर तोहफे और दुकान के मुनाफे के पैसे दे आता। कलाम तो तब भी मुलाजिम था और अब भी। मगर चाचा का रफीक साहब की चाकरी करना उसे ना भाता।
शहाना के सभ्य स्वभाव की वजह से रफीक साहब दिनोंदिन शहाना के गुलाम से होते गए। पहले की दोनों बीवियां खार खायी हुई झल्लाती रहतीं। नाहिदा अपनी बेटियों पर खीझ निकालती।
शीरीन के मन में भी जहर भर गया था। ऐसे ही एक दिन जब नाहिदा बेटी पर चीख रही थी शीरीन ने टोका, ‘‘क्या होगा जीजी बेटियों पर चीख कर। ऐसा कुछ करें कि तीसरी यहां से लताड़ कर निकाली जाए।’’
‘‘वही तो शीरू। अभी तो पूत के पांव भी नहीं दिखे, बेटा हो गया, तो हम तो नाली के कीड़े से भी बदतर हो जाएंगे। दस दिन हाे गए, मेरे कमरे में झांकने तक नहीं आए,’’ नाहिदा ने अफसोस जताया।
शीरीन ने भी दुखड़ा सुनाया, ‘‘जीजी, मेरे पास तो आए उनको महीनाभर होने को आए। मैं शाम को आपके कमरे में मिलती हूं।’’
हफ्तेभर में कलाम का फिर आना हुआ। हर बार की तरह शहाना ही चाय-नाश्ता ले कर बैठक में गयी। कलाम ने अशफाक मियां के भेजे खास आम और दुकान के मुनाफे के पैसे शहाना को सौंप दिए।
शहाना के ससुराल में गैर मर्द के सामने हालांकि परदा किया जाता था, लेकिन शहाना कलाम के सामने परदा करे, शहाना को यह बात हास्यास्पद लगती थी। नाश्ता करने तक शहाना मायके वालों का हालचाल लेती।
आज भी वही था। इतने में दोनों बीवियां एक बुजुर्ग नौकरानी के साथ कमरे में आयीं। जैसे भूचाल ही आ गया। नाहिदा ने बुजुर्ग काम वाली से कहा, ‘‘देखो मौसी, नयी वाली के लच्छन ! गैर मर्द के सामने कसे हुए लिबास में बेपर्द बैठी खिखिया रही है, वह भी तब जब शौहर बाहर खट-मर रहा हो।’’
मौसी के लिए कलाम तो बस आने-जाने वाला शख्सभर था। उसे शहाना के मायके वालों के साथ कलाम के गहरे रिश्ते की बात पता ना थी।
तभी शीरीन जोर-जोर से कहने लगी, ‘‘खूबसूरती का जादू चला कर इस नापाक औरत ने हमारे शौहर पर कब्जा गांठ लिया है। बड़ी मॉडर्न होने का रोब झाड़ती है, अब पता चलेगा रफीक मियां को, बेटे के लालच में किसे घर में पनाह दे दी।’’
नाहिदा ने जोड़ा, ‘‘मौसी तुम्हीं बताओ, हमें कभी बिन बुरके के गैर मर्द के सामने देखा भी हो।’’ मौसी ने जोर-जोर से ‘ना’ में सिर हिलाया और इनकी बातों से पूरी इत्तफाक रखते हुए बाहर चली गयी। घंटे दो घंटे में इसी रिहायशी इलाके में बात इतनी फैली कि रफीक तक बात पहुंच गयी।
रफीक अस्तव्यस्त हो शाम तक घर वापस आ गए और नाहिदा के कमरे में जा कर दोनों बीवियों को बुलवा भेजा। रफीक की बेटियां दोपहर को स्कूल से आ कर अभी तक अपने कमरे में सो रही थीं।
दोनों बीवियों ने रफीक के सामने उन दोनों की ऐसी पोल-पट्टी खोली, जिसकी कल्पना ना कभी शहाना ने की थी, ना कलाम ने। रफीक साहब की त्योरियां पूरे उफान पर चढ़ चुकी थीं। उन्होंने फोन से अपने बिजनेस के चेले-चामुंडों को बुलवाया और कुछ नसीहतें दीं।
शहाना ने रफीक से मिलने की कोशिश की, लेकिन दोनों बीवियों ने उसे उसके कमरे में बंद कर दिया।
कलाम आज पहले की तरह रात 10 बजे जैसे ही अपने मकान में पहुंचा, रफीक साहब के भेजे गुंडे पहुंच गए। वीराने में ले जा कर कुछ लोगों ने इतना पीटा कि पता ही ना चला कि वह कब बेहोश हुआ, कब उसे अस्पताल पहुंचाया गया और कब अशफाक मियां और उनका छोटा बेटा सुहैल उसके पास आ कर बैठे।
जब कलाम की आंखें खुलीं, तो पिक्चर की रील की तरह उसकी आंखों के आगे कल रात की याद भी खुल गयी। अशफाक मियां को सारी बातें बतायीं। कहा कि गुंडे बार-बार यही दोहरा रहे थे कि रफीक साहब की नयी बीबी पर नजरें सेंकता है। नयी बीबी से नाजायज रिश्ता कायम करता है। तुझे छोड़ेंगे नहीं।
कलाम की आंखों से आंसू बहने लगे। अशफाक मियां ने कलाम के हाथों पर हाथ रखा और दिलासा देते हुए कहा, ‘‘बेटा, हम तुम्हारी देखभाल में कमी ना होने देंगे। बेटी दी, दुकान को गिरवी रख मुनाफा दिया, उनसे जो 15 लाख लिए थे, लगभग चुकता होने को आए। दुकान की कीमत कराेड़ों की है, घाटा था, मंदा था बिजनेस, लाचारी में सौदा किया। सोचा समझदार हैं रफीक साहब, बेटी खुशहाल होगी। अपनी मेहनत से हमने जितना भी दिया है, लाख डेढ़ लाख और देने से दुकान छुड़ा सकता हूं। छोटी बेटी अभी 16 की है, 2-4 साल उसकी शादी को रुक भी सकता हूं। बेगम के रहेसहे गहने बेच दूं, तो इतने आ ही जाएंगे।’’
कलाम ने हाथ जोड़ लिए। अशफाक मियां को इज्जत देने के वास्ते उठना चाहा, तो पैर में बड़े जोरों की दर्द हुई। देखा, एक पैर में मोटा प्लास्टर चढ़ा है। कंधे के पास भी क्रेप बैंडेज बंधा है। अशफाक मियां ने उसे धीरज दिया।
रफीक साहब के पास अशफाक मियां जब उनके डेढ़ लाख ले कर पहुंचे, तो काजी को भी साथ ले गए। रफीक साहब का शहाना को ले कर भले ही खून चढ़ा हो, मगर गद्दार नहीं थे। उन्होंने दुकान के कागजात लौटा कर उन्हें आजाद कर दिया।
रफीक ने शहाना के अब्बू को आजाद कर सुकून दे दी, लेकिन शहाना को माफ नहीं कर पाए। क्या कुछ नहीं किया उन्होंने शहाना के लिए? उसकी खूबसूरती को महंगे असबाबों से, बेशकीमती जेवरों और कपड़ों से, अपने बेखौफ मर्दाने हुस्न से नवाजा। उसकी इच्छा हुई 2 साल रुक कर बेटा करें, उसे थोड़ा वक्त दें, वह भी सुना। और उसने दो टके के निहायत घटिया कलाम के साथ जिस्मानी ताल्लुकात बना डाले। बीवियों को इतनी हिम्मत नहीं होगी कि इतनी बड़ी बात यों ही कह दे। तिस पर भोली बन कर रफीक साहब को भी लूटा। रफीक साहब जब भी सोचते, आगबबूला हो जाते।
इधर शहाना को बीवियों ने उसके कमरे में क्या बंद किया, उसने बाहर निकलना ही छोड़ दिया। अंदर कमरे में लगे गुसलखाने में नहा लेती और बाइयां मजबूरन खाना कमरे में ही पहुंचा जातीं। शहाना को बड़ा अभिमान था शौहर पर। इतना भी क्या एतबार उन पहली बीवियों पर कि शहाना को एक मुलाकात का मौका ही ना दिया जाए।
आज रात रफीक शहाना के कमरे में सोने गए। रफीक को देख कर शहाना डरी भी और चौंकी भी। जबान पे ताले थे उसके। रफीक साहब ने उसे अपने नजदीक खींचा और उसके पास ही सो गए। वह सीपी सी अंदर सिमट गयी थी। ‘इतना कुछ दिया रफीक ने, मगर विश्वास जरा भी नहीं, मन समझा नहीं, फितरत समझी नहीं। बस गहने-कपड़े और बेशकीमती सामानों से शरीर को मढ़ दिया और प्रेम की उम्मीद में मुझ पर हक जमाने लगे। दूसरे के कहे पर बेगुनाह कलाम की मार-मार कर पसलियां तुड़वा दीं। और अब फिर उसी शरीर के तकाजे से...।’
रफीक ने आशिक नहीं किसी बदला लेने वाले वहशी की तरह शहाना के शरीर के पुर्जे-पुर्जे रौंद डाले। शहाना ने अभी खुद को संभाला ही था कि रफीक ने कहा, ‘‘शहाना, तुम्हें मेरी ओर से तलाक-तलाक-तलाक।’’ शहाना पलंग पर मूर्ति सी बन गयी। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। खिलौने से भी बदतर हालत हो गयी थी उसकी, किसने नजर लगा दी उसके सुकून में।
रफीक सो चुका था सुकून से। शहाना सुबह तक जमीन पर ही पड़ी रही। सुबह 2-4 कपड़े और कुछ पैसे बैग में ले वह टैक्सी पकड़ मायके आ गयी।
अशफाक मियां ना ही इतने अकड़ू थे और ना ही जिल्लत उठा कर सिर झुकाने वाले। रफीक मियां को अच्छा बंदा जान ही ब्याह दिया था, बेटी से जान छुड़ाने को नहीं। अशफाक मियां ने शहाना को खुले दिल से आसरा दे दिया। बेटी पर भी उन्हें कलाम जितना ही भरोसा था। न चली शादी, जाने दो, कौन से बच्चे हो गए। दूसरी शादी करवाएंगे बेटी की, वह भी कहीं दूर, ताकि वह चैन से रहे।
शहाना के जाने के बाद रफीक बड़े बेचैन रहने लगे। शहाना को नजदीक से जानने के बाद दोनों बीवियों से दिल ही ना लगता, दरगाह में मारे-मारे फिरते। बिजनेस भी ढीला पड़ने लगा।
उनकी हालत देख कई दोस्तों ने उन्हें सचाई बताने की जिम्मेदारी ली। दोस्तों ने कई राज खोले, और रफीक मियां को साफ पता लग गया कि उनकी दोनों बीवियों ने काम वाली मौसी को एक हजार दे कर ये बातें चारों ओर फैलायीं। दोनों बीवियां शहाना से जलीभुनी थीं। रफीक साहब अशफाक मियां से मिलने पहुंचे और शहाना से दूसरी बार निकाह पढ़ने की बात की।
रफीक साहब की शर्मिंदगी ने अशफाक मियां का दिल पिघला दिया। वैसे भी रफीक साहब बेगैरत तो कतई नहीं थे। बेचारे ने अशफाक मियां को बिना परेशान किए कागजात लौटा दिए थे। अब बीवियां ही खार खायी थीं, तो बेचारे रफीक क्या करें।
अशफाक मियां ने शहाना को मनाने का जिम्मा लिया। तय हुआ कि कलाम को रफीक साहब की ओर से 11 हजार के नेग दिए जाएंगे और शहाना हलाला के तहत कलाम से निकाह पढ़ेगी। कलाम को रफीक साहब ने तलब फरमाया। पहला शौहर अगर तलाक के बाद उसी औरत से दोबारा शादी करना चाहे, तो उस औरत को किसी और मर्द से शादी कर जिस्मानी संबंध बनाने पड़ते हैं। बाद में जब यह दूसरा व्यक्ति उसे तय समय के बाद तलाक देता है, तब 3 महीने के इद्दत, जिसमें स्त्री को किसी बाहरी मर्द से मिलने-जुलने की मनाही रहती है, के बाद उसकी पहले शौहर से शादी हो पाती है।
कलाम इस हुक्मनामे के बाद बर्फ सा शून्य हो गया। नेग की बात सुन कलाम ने अपने कानों पर उंगली डाल ली।
‘‘क्यों?’’ रफीक साहब ने पूछा, ‘‘पैसे नहीं लिए, तो हम कैसे मानें कि निकाह पढ़ने के बाद तुम तलाक दे ही दोगे।’’
‘‘नहीं दिया तो मेरी जान ले लेना, साहब। पैसे नहीं लूंगा एतबार करो, और क्या कहूं।’’
शहाना की शहनाई उसके रग-रग में बज रही थी। वह तो उसे बचपन से चाहती है, इस सांवले को, इस अदने से कमाने वाले को, इस प्यार और विश्वास के समंदर को, इस अच्छाई के हिमालय को। कलाम से शहाना का निकाह पढ़ा गया, शहाना की मुराद पूरी हुई। रात को फूलों वाले बिस्तर पर दोनों रूहें धीरे-धीरे प्रेम की गहरी चांदनी में डूब गयीं। जिस संबंध के शक में रफीक ने कलाम को इतना पिटवाया, आज की रात उसी रफीक की मंशा से उनमें वही संबंध बने।
कलाम के सच्चे प्रेम में सराबोर शहाना आकाशगंगा सी उज्ज्वला बन गयी। शहाना उठ कर बैठ गयी। कलाम के पैर अभी तक पूरी तरह ठीक नहीं हुए थे। वह लंगड़ा कर चलता था। उसी एक जख्मी पैर पर शहाना ने अपनी कोमल उंगलियां फिरायीं। कलाम भी उठ कर बैठ गया। शहाना के सिर पर हाथ फिराया, उसे गले लगाया और फिर परे करते हुए कहा, ‘‘शहाना, मैं तुम्हें छोड़ता हूं, तलाक-तलाक-तलाक।’’
शहाना स्तब्ध रह गयी, ‘ये क्या कर दिया। क्या कर दिया मेरे मनमीत ने।’ रफीक से तलाक के लिए नेग नहीं लिया था इससे शहाना को एक उम्मीद तो थी। वह उसके लंगड़े पैर पर औंधे मुंह गिर पड़ी। तड़प के पूछा शहाना ने, ‘‘क्यों? क्यों किया ऐसा?’’
‘‘मैं नहीं सह सकता। मैं जिससे प्रेम करता हूं दुनिया उसे बदचलन कहे। मैं तलाक ना देता, तो रफीक की बीवियों की बात सच साबित हो जाती। यह तलाक नहीं शहाना, मेरे मोहब्बत की सौगात है।’’ भले ही शहाना को फिर से जिंदगी समझौता लगने लगे, लेकिन शहाना के रूह तक कलाम के मोहब्बत का पैगाम तो पहुंच ही चुका था।