हम जिस लॉज में रहते थे, उसके सामने से निकल कर एक सड़क बाजार की तरफ जाती थी। दायीं तरफ एक विशाल कोठी थी। लॉज दो तल्ला था। हम लोग शाम को ऊपर ही बैठते थे। हमारी आंखों में भविष्य का स्वप्निल आकाश था। हम सभी अपने खिलंदड़ेपन के लिए मशहूर थे। रोहन हमारी टीम का रोमियो था। कॉलेज में भी वह सुंदर लड़कियों के पीछे अमलतास और गुलमोहर की टहनियों को ले कर भागता था। एकाध बार तो किसी-किसी को वह थमा भी देता था। लड़की मुस्करा देती थी तो वह निहाल हो जाता था। रवि यों तो विज्ञान का मेधावी छात्र था, पर कवि था। सुमन उससे पूछ कर शेर अपनी डायरी में लिख लेता था, फिर फूल की तरह अपनी कल्पना और प्रेम के ब्लाॅग पर जहां-तहां उछालता फिरता था। इसी तरह सुधीर, विवेक, समर सभी कुछ ना कुछ खास थे। कोई अच्छा सुर साध लेता था तो कोई पेंटिंग्स बनाने में माहिर था। हम 4 बजे के आसपास बाजार के एक काॅर्नर पर चाय पीने जाते थे। कभी-कभी हमारे साथ लाॅज मालिक का लड़का किशोर भी होता था।
हमारा दुख यह था कि हमारे पीछे जो विशाल कोठी थी, उसकी खिड़कियां हमेशा बंद रहती थीं। हम चाहते थे कि कोई फिरकी वाली होती तो हमारे जोशो-जुनून में यहां भी कोई मादकता होती। रोहन इस बात से निराश रहता था, हालांकि इससे पढ़ने में शांति थी। कोठी के बाद वाले घरों की गतिविधियां हमारी नजरों से ओझल रहती थीं... हम क्या चाहते थे, यह उम्र के हिसाब से समझने वाली बात थी।
एक दिन रोहन ने किशोर से पूछा, ‘‘यार, यह कोठी किसकी है? हमेशा बंद रहती है... कोई चिड़िया... बुलबुल कुछ नहीं... हमारे हंसने-मुस्कराने का भी तो कोई मतलब हो... कितनी खामोशी रहती है...’’
किशोर हंसा, ‘‘बच्चू, उसके लिए काॅलेज ही सही है... यहां पढ़ो... रही बात कोठी की तो यह कर्नल साहब की है... वे शिमला में सपरिवार रहते हैं... इधर वर्षों से नहीं आए हैं... पहले कभी-कभार आते थे... रंगाई-पुताई करा कर लौट जाते थे... हमारे दूर के रिश्तेदार हैं... इतने अमीर हैं कि घर को रेंट पर लगाने की जरूरत ही नहीं...’’
‘‘वही तो मैं कह रहा,’’ रोहन ने दागा, ‘‘कम से कम रेंट पर भी लगा देते तो हम नौजवानों की कितनी दुआएं उन्हें मिलतीं...’’
विवेक ने टोहका मारा, ‘‘यार, पतझड़ में फूल नहीं खिलते। कर्नल साहब जानेंगे तो गोली मार देंगे।’’
किशोर ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘तुम लोग बकते रहो, कर्नल साहब तक तुम्हारी बात नहीं पहुंचेगी...’’
‘‘दिल वालों की कोई आरजू खाली नहीं जाती,’’ रोहन ने स्वांग करते हुए कहा, ‘‘देखना, ऊपर वाला एक दिन हम लोगों के दिल की आवाज जरूर सुनेगा।’’
‘‘नाॅटी बॉय,’’ किशोर ने रोहन की नाक पकड़ कर कहा, ‘‘पढ़ने आए हो कि यही सब करने... मेरे फादर को भनक लग गयी कि तुम लोग इतने शरीफ हो तो वह कल ही निकाल देगा...’’ वह भी उम्र के हिसाब से मजाक के मूड में था, ‘‘सुनो, तुम लोग अपने-अपने दिल में मोम की लड़की बना लो, और उसी से प्यार करो..."
यह रोज का गुबार था। हमारे दिल के आसमान में रंगबिरंगे आवारा बैलून उड़ते रहते, बिना पते की चिट्ठियों की तरह। तब मोबाइल युग शुरू नहीं हुआ था। डाकिया रामलाल चिट्ठियां और मनीअॉर्डर ले कर आता था। एक दिन रोहन ने मनीअॉर्डर के पैसे लेने के बाद शरारतन कहा, ‘‘अगर कोई रंगीन लिफाफा आएगा तो मेरे रूम में गिरा दीजिएगा...’’
रामलाल ने भी नहला पर दहला मारा, ‘‘आएगा तब ना...’’
रोहन का मुंह लटक गया। पर कहते हैं घूरे के भाग्य भी एक दिन फिरते हैं। जब हम नाउम्मीदी और उदासी में दिल की रेजगारी गिन रहे थे, तभी अचानक एक रात कोठी में 3-4 गाड़ियां रुकीं और खटर-पटर की आवाजें आने लगीं। हम नींद से जाग कर उन आहटों को सुनने लगे, लगा कई लोग घर के हर कोने में घूम रहे। हमें किशोर की बात याद आ गयी। तो देर से ही सही कर्नल साहब की नींद टूटी। उन्हें खयाल आया कि उनकी कोई कोठी हमारे शहर में भी है, जहां शिमला की तरह बर्फ नहीं गिरती, पर पानी दो तो पुराने झाड़ों में भी फूल निकल आते हैं। हम भोर होने की बेसब्री से प्रतीक्षा करने लगे।
हमारा अनुमान सही था। कर्नल साहब का पूरा कुनबा, नौकर-चाकर सब इधर-उधर चीजों को तरतीब दे रहे थे। रोहन चहक रहा था, वैसे उत्सुकता सब में थी। हम कर्नल साहब के परिवार का पूरा ब्यौरा चाह रहे थे, पर यह जल्दी मिलने वाली जानकारी नहीं थी। समय बीतने के साथ ही पता चलना था। किशोर से मजाक तो हो सकता था, पर कुछ पूछना शिष्टाचार के अनुकूल नहीं होता... और हम इतने अशालीन तो थे नहीं... अच्छे घर-परिवारों से होने का हमारा संस्कार हमारी दिल्लगियों के बीच भी बना रहता था। हम अपने यूनिवर्सिटी के मेधावी छात्र थे। हमारे मां-बाप ने हमें कुछ बन कर भविष्य संजोने के लिए ही यहां भेजा था। हमारा कमिटमेंट जीवन के हर हिस्से से था। पढ़ाई भी और मस्ती भी ! मस्ती तो उम्र जनित थी...
हम वाकई किसी अनहोनी का इंतजार कर रहे थे। एक दिन... दो दिन... तीसरे दिन खिड़की खुली... और सामने एक हसीन लड़की बैठी हुई नजर आयी... हम भाग कर रोहन के कमरे में आए... हमारा कमरा एक रहस्यमय आलोक की आभा से भर गया। दीवारों की आंखें निकल आयीं... तांबई रंग की एक मूर्ति हमारे सामने थी, जैसे उस पर सोने का पानी चढ़ा हो... लड़की ने हाथ हिला कर हमारा अभिवादन किया... इसके बाद कोठी में तेज रोशनी फैल गयी। फिर लड़की ने खिड़की बंद कर ली। हम देर तक खिड़की के पार झांकने की बेचैनी लिए वहीं जमे खुसुरफुसुर करते रहे। आंखों से बनी कोई चिड़िया होती हमारे पास तो हम अभी उड़ाते और कहते पूरी तसवीर ले कर लौटो... या फिर चांद के हाथों में कोई कैमरा थमाते और कहते कि वह उस कोठी की वीडियो ला कर दे... पर ऐसा कुछ संभव नहीं था। हम मन मसोस कर रह गए।
लेकिन दूसरे दिन शाम को फिर लड़की खिड़की पर नजर आयी। हमारी बांछें खिल गयीं। फिर ऐसा हर रोज होने लगा। हमें उस पल का इंतजार रहने लगा था। खिड़की खुलती और हमारी ललक सातवें आसमान पर पहुंच जाती। वह निर्निमेष ताकती रहती, जाने क्या सोचती थी, कहना मुश्किल था। जब हमें लगता कि वह लड़की नहीं कोई बुत है, पर तभी उसमें हरारत हो उठती। कभी वह हाथ हिलाती, तो कभी हथेली में गुलाब की पंखुड़ियां ले कर हमारी तरफ धीरे-धीरे गिराती... हम हवा में चुंबन उछालते... वह हंस देती। हम यह अनुमान कर बैठे थे कि वह हम लोगों की किसी बात का बुरा नहीं मानती।

उम्मीद की फिरकिनी अपनी जगह पर नाच रही थी। पिछले दो महीने से हमारे बीच यही हो रहा था। हमें डर हो रहा था कि कर्नल साहब किसी दिन बंदूक ले कर ना आ जाएं। किशोर आता तो हम उससे दूसरी बात करते।
दो महीने के बाद अचानक खिड़की हमेशा के लिए बंद हो गयी। हम बैठे रहते। पता नहीं क्या हुआ। क्यों हुआ... हम सिर्फ सोच सकते थे, जान पाना कठिन था। हो सकता है, कर्नल साहब से किसी ने कुछ कहा हो, फिर लड़की को डांट पड़ी होगी। फिर उस पर लोहे की कील लगा दी गयी होगी... पर हमारी ओर से तो ऐसा कुछ नहीं हुआ था... जिस तरह चांद को लोग देखते हैं, हम उस लड़की को देख कर सिर्फ खुश होते थे... खुशी ऐसी चीज है, जो रेत में नदी दे सकती है... मन को उड़ने के लिए चमकीले पंख दे सकती है... हसीन वादियों का अक्स... ताजमहल की याद... कुछ भी। खुश होना कोई पाप नहीं है और ना अपराध... आप किसी से उसकी खुशी कैसे छीन सकते हैं...
रोहन क्या हम सभी दुखी थे। हम लगभग कोई उम्मीद छोड़ चुके थे, तभी फिर एक शाम उधर से लड़की की लरजती हुई आवाज आयी... वह गा रही थी... पानी बरस रहा था- पंख होते तो उड़ आती रे, रसिया ओ जालिमा, तुझे दिल के दाग दिखलाती रे...
अब तय हो गया था कि लड़की क्या सोच रही है और हालात क्या हैं... रवि, विवेक, सुधीर सब परेशान हो गए। लड़की की एक झलक के लिए हम तरस रहे थे। हम जवाब देना चाह रहे थे कर्नल साहब को। इसलिए सुधीर के अर्ज पर संगीत संध्या का आयोजन किया गया था। अब जो हो, यह हमारे पाक जुनून और कर्नल साहब की दादागिरी के बीच आर-पार की जंग थी। अभी कार्यक्रम शुरू होने वाला था कि देवदूत की तरह किशोर आ गया। आते ही उसने पूछा, ‘‘कोई विशेष तैयारी चल रही है क्या बादशाहो?’’
‘‘आज हम लोग गाएंगे...’’
‘‘वाह ! फिर तो मजा आ जाएगा।’’
विवेक ने शुरू किया - तुम तो ठहरे परदेसी, साथ क्या निभाओगे, सुबह पहली गाड़ी से, घर को लौट जाओगे...
किताब-कॉपी, थाली सब म्यूजिकल इंस्ट्रुमेंट बन गए थे। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उसने फिर शुरु किया- फिरकी वाली तू कल फिर आना, नहीं फिर जाना... कि तेरे नैना हैं बड़े बेईमान से...
‘‘स्टाॅप...’’ अचानक किशोर उठ कर चीखा, ‘‘तुम लोग अपनी ओर से सरोज को कोई चोट नहीं पहुंचा सकते... वह बहुत बीमार है... वह बस दो-तीन दिनों की मेहमान है... वह इतनी अशक्त है कि अब ठीक से बैठ भी नहीं सकती...’’
एकाएक गहरा सन्नाटा फैल गया। हमारे दिल को धक्का सा लगा। अब वह खिड़की पर नहीं आएगी... अब वह हमेशा के लिए हमारी दुनिया से चली जाएगी... यह क्या कह रहा किशोर? हमने सोचा कुछ, निकला कुछ...
‘‘जानते हो... उसे थैलेसिमिया नाम का एक खतरनाक रोग है... इस रोग में शरीर में खून बनना बंद हो जाता है। फिर मरीज को हर सप्ताह ब्लड की जरूरत होती है... पिछले 18 साल से कर्नल साहब और उसके भाइयों-बहनों ने उसे खून दे कर जिंदा रखा है... उसका ब्लड ग्रुप भी दुर्लभ है...’’ किशोर लगभग रो रहा था, ‘‘बचपन में वह मेरे साथ पढ़ती थी... उसे हर्ट मत करो... उसने ब्लड चढ़वाने से इनकार कर दिया है... कहती है जब मरूंगी ही तो किसी का ब्लड क्यों बर्बाद हो... कर्नल साहब और परिवार के लोग समझा कर थक गए... तनाव और गम में यहां ले कर आ गए हैं... मैंने भी बहुत समझाया... डॉ. बनर्जी कह रहे थे कि अगर ब्लड चढ़ा दिया जाए तो वह बच सकती है... मगर वह मानती ही नहीं...’’
‘‘क्या मैं सरोज से मिल सकता हूं?’’ रोहन ने एकाएक कहा, ‘‘एक बार मुझे भी समझाने का मौका मिलना चाहिए...’’
‘‘क्यों नहीं !’’ किशोर ने कहा,‘‘जिंदगी से बढ़ कर क्या सुंदर है...’’
हम सभी किसी स्वत: स्फूर्त उत्तेजना से किशोर के पीछे हो चले। दस कदम चलने के बाद हम उस विशाल कोठी के अहाते में दाखिल हो गए। वहां हर चीज व्यवस्थित थी। फूल-पौधे और लॉन में रखी बेशकीमती कुर्सियां एवं टेबल। कर्नल चाय पी रहे थे। हमने प्रणाम किया।
वे चौंके, ‘‘क्या है?’’
‘‘अंकल,’’ किशोर ने कहा,‘‘ये मेरे लॉज के लड़के हैं, एक अर्जी ले कर आए हैं आपके पास...’’
सरोज के दोनों कैप्टन भाई भी आ गए। हमें डर लग रहा था, जाने क्या हो। अगर नाराज हो गए तो कैसी और किसकी शामत आए, पर दूसरी तरफ कोई विशाल भाव था, जो हम में उजास भर रहा था। बहुत देर तक हमारे बीच औपचारिक परिचय होता रहा। फिर किशोर ने आखिरी बात कही कि ये लड़के सरोज को ब्लड देना चाहते हैं। कर्नल के चेहरे पर व्यंग्य की एक तिरछी लकीर फैल गयी, ‘‘इट इज इम्पॉसिबल... उसे समझाया नहीं जा सकता... वह एकदम इमोशनल हो गयी है...’’
‘‘देखो, कोशिश करो,’’ उसके भाई अखिल चंद्रेश ने कहा, ‘‘अगर ऐसा होता है तो हमें तुम लोगों के प्रति आभार प्रकट करना चाहिए...’’
कर्नल साहब उठ कर टहलने लगे। सरोज को बुलाया गया। लड़कों ने अभिवादन किया तो वह मुस्करायी, ‘‘मैं आप सबको पहचानती हूं... आपने बहुत मान दिया है मुझे... ग्रेट प्लेजर... मैंने आपके नामों की कोडिंग कर रखी है...’’
‘‘मैं रोहन...’’ रोहन ने कहा, सभी हंस पड़े। वह अपनी रौ में था, ‘‘हमारी एक इल्तिजा है आपसे... हम लोग... मेरा मतलब है... जिसका भी ग्रुप मैच करेगा, आपको ब्लड देना चाहते हैं...’’
‘‘नहीं... मैं इस जिंदगी से थक गयी हूं... आई कांट टेक... मैं शांति से अब मरना चाहती हूं... मैंने डैड और ब्रदर्स को भी कह दिया है... अब और नहीं झेल सकती... आपने जितना साथ दिया, वही बहुत है... मैं शुक्रिया करती हूं...’’
‘‘सुनिए, हमारी आदत सी हो गयी है आपको खिड़की पर देखने की... अगले महीने से हमारा एग्जाम है... क्या आप चाहेंगी कि कोई सैड खबर हमारे एग्जाम पर असर डाले...? आप अपने लिए नहीं हमारे लिए सोचिए... हमारी खुशी के लिए...’’
सरोज गंभीर हो गयी। कई भाव चेहरे पर आए-गए। वह झटके से उठी और बोली, ‘‘आई एग्री... जिंदगी मेरे साथ आंखमिचौली खेल रही है...’’
हमारे भीतर खुशी की लहर दौड़ गयी। अगर कर्नल की कोठी नहीं होती तो हम नाचने लगते। पूरी जिंदगी क्या, उसका एक पल भी उतना ही हसीन है। किशोर को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। पूरा परिवार कृतज्ञता और रोमांच के भाव से भर गया था। लॉन के फूल हंसने लगे थे। हवा की सरसराहट सुनी जा सकती थी। वापस आ कर रोहन ने खिड़की पर अमलतास और गुलमोहर के फूलों की टहनियां बांध दीं।