Wednesday 09 February 2022 04:23 PM IST : By Prachi Bhardwaj

दूसरी मम्मी

dusri-mummy

‘सुबह के लिए दाल भिगो देती हूं, कल रविवार को सबके लिए दही-भल्ले बनाऊंगी, सब खुश हो जाएंगे,’ मन ही मन सोचती हुई यामिनी रसोई निबटा रही थी। घड़ी की सूई पर आंख गयी, तो रात के साढ़े दस बज रहे थे। तभी दरवाजे की घंटी पर यामिनी हल्के पांव रखती दौड़ पड़ी। ‘‘आज जल्दी आ गए,’’ कहते ही उसे अनायास हंसी आ गयी।

‘‘क्या हुआ?’’ उसको हंसता देख पति निखिलेश ने पूछा।

‘‘तुम रात के साढ़े दस बजे दफ्तर से घर लौट रहे हो और मैं कह रही हूं कि जल्दी आ गए, बस इसी स्थिति पर हंसी आ गयी। क्या जिंदगी हो गयी है हमारी, सोचती हूं, तो मन उदास हो उठता है। सुबह जाने का समय तय है, पर तुम्हारे दफ्तर से घर लौटने का कोई समय नहीं है। हां, एक बात की गारंटी है कि आओगे देर से ही। ये विदेशी कंपनियां पैसे तो अच्छे देती हैं, पर फिर इंसान को अपनी बपौती समझ लेती हैं। ना बेचारे की कोई निजी जिंदगी, ना किसी मित्र-रिश्तेदार के यहां आने-जाने का समय, और तो और अपने बच्चों को भी अकसर बस सोते हुए ही देख पाते हैं,’’ बड़बड़ाते हुए यामिनी रोज की भांति गैस ऑन कर चपातियां सेंकने लगी।

‘‘आज बच्चों की पीटीएम थी ना, कैसी रही?’’ निखिलेश अपनी गृहस्थी में चाह कर भी कुछ खास योगदान नहीं दे पाता था। उसका सर्वोच्च योगदान था उसकी तनख्वाह, जिससे घर चलता था।

‘‘उत्कर्ष की टीचर ने कहा है कि उसे गणित में और अधिक परिश्रम करना है और सौम्या की टीचर ने बताया कि ताइक्वांडो की नयी ट्रेनिंग आरंभ होनेवाली है। उसका मन है इसलिए सोच रही हूं सौम्या को ताइक्वांडो शुरू करवा दूं। क्लास अगले हफ्ते से शुरू हो जाएगी। कल इसके लिए ताइक्वांडो की यूनिफॉर्म ले आऊंगी।’’

‘‘हां, तो ले आना। वैसे भी घर में रहती हो सारा दिन। सफाई-बरतन के लिए महरी आती ही है। घर के छोटे-मोटे काम निबटा कर चली जाना,’’ अधिकतर पतियों की तरह निखिलेश को लगता था कि यामिनी के ऊपर कोई खास जिम्मेदारी नहीं है। वह बस दफ्तरी कामकाज तक की समझ रखता था और उसी में आकंठ डूबा रहता था। 

पूरी घर-गृहस्थी को सुचारु रूप से चलाने की जिम्मेदारी अकेली यामिनी के कंधों पर थी। चाहे रोजमर्रा में राशन का इंतजाम करना हो या गृहस्थी के महीनेभर के ढेर सारे बिल, बच्चों के स्कूल की फीस भरनी हो या कभी बच्चों के बीमार पड़ने पर उन्हें डॉक्टर के पास ले जाना। 

पिछले वर्ष मामा-ससुर की लड़की की शादी थी। वहां जाने हेतु सभी की शॉपिंग, फिर टिकट बुक करवाने से ले कर दुलहन की मुंहदिखाई पर सोने के कर्णफूल खरीद कर लाने तक सब कार्य अकेले यामिनी के जिम्मे ही आए थे। क्या करें, उन्हीं दिनों जर्मनी से एक टीम निखिलेश के ऑफिस में विजिट पर आयी थी सो उसका छुट्टी लेना लगभग असंभव था। जाना भी आवश्यक था। मां ने फोन पर सख्त हिदायत दे डाली थी, ‘‘सुन लो, मामा जी के यहां जरूर पहुंचना है। तेरे पापा के जाने के बाद भैया ने हमारा साथ ना निभाया होता, तो आज हमारी क्या हालत होती, हम सोच भी नहीं सकते। तेरे पति के ऑफिस में तो कुछ ना कुछ लगा ही रहता है। कैसे भी हो, छुट्टी ले और पहुंच शादी में।’’ ससुराल के दबाव के कारण यामिनी बच्चों को ले कर पहले ही शादी में पहुंच गयी थी। वहां जा कर खूब रौनक लगायी थी उसने। निखिलेश सीधा शादी वाले दिन पहुंचा था।

मामी जी ने शिकायत करते हुए कहा था, ‘‘ऐसी क्या नौकरी हो गयी भला? इससे अच्छा तो हमारा सोनू ही रहा, इतनी बड़ी नौकरी ना सही, पर कम से कम परिवार के लिए हाजिर तो रहता है।’’

‘‘क्या करें मामी जी, आजकल का कॉरपोरेट कल्चर अपने मुलाजिमों को पैसे से अधिक तनाव देता है। दफ्तर आने का समय है, घर लौट कर जाने का कोई समय नहीं,’’ निखिलेश ने उनको बताया था, ‘‘रात के ढाई बजे भी दफ्तरों में मीटिंग होती हैं। हर हाथ में लैपटॉप और स्मार्टफोन से कर्मचारी को वक्त-बेवक्त काम में व्यस्त रहना पड़ता है। इस पर जब वह घर लौटे, तो पत्नी चाहती है कुछ सुकूनभरे पल, जिनमें दोनों साथ हों, प्यारभरी बातें हों, दिनभर की खास गपशप हो। मतलब दोनों को तनाव !’’

‘‘और क्या मामी जी, मैं तो शादीशुदा होते हुए भी अकेली सी रहती हूं,’’ यामिनी भी वार्तालाप में हिस्सा लेने लगी थी।

बस ऐसे ही भागती-दौड़ती जिंदगी सरकी जा रही थी। बच्चों को पढ़ा कर, खिला-पिला कर, कहानी सुना कर यामिनी उन्हें सुला देती। फिर देर रात बच्चों के सोने के पश्चात वह निखिलेश की प्रतीक्षा में बगीचे के चक्कर लगाती रहती। नियमित सा क्रम था यह। जब निखिलेश लौट आता, तो यामिनी उसके लिए गरम खाना बना कर परोसती।
इस बार गरमी की छुट्टियों में यामिनी की छोटी बहन युक्ता शादी के पश्चात पहली बार यामिनी के घर रहने आयी थी। यामिनी ने पूरी खुशी के साथ तैयारी की थी, किंतु युक्ता को अकेली आयी देख वह थोड़ी अचरज में आ गयी, ‘‘अकेली आयी हो? तरुण नहीं आए साथ में? तुम्हें छोड़ने कौन आया?’’

‘‘छोड़ने आने की खूब कही, दीदी ! मैं एडल्ट हूं और अपनी बहन के घर आ रही हूं, अपने आप आ सकती हूं। हम दोनों एक-दूसरे को वयस्कों की तरह डील करते हैं, अपनी स्पेस देते हैं,’’ युक्ता के कथन पर यामिनी उसका मुंह देखती रह गयी। 

अगले दिन जब बच्चे स्कूल और निखिलेश दफ्तर जा चुके थे, तब यामिनी और युक्ता बाजार घूमने निकलीं। यामिनी को अकसर अपना माथा सहलाते देख युक्ता ने टोका, ‘‘क्या हुआ दीदी, सिर दर्द है?’’

‘‘हां, अकसर नींद नहीं पूरी होती ना। तेरे जीजा जी इतनी देर से घर लौटते हैं, फिर इनके लिए गरम खाना पकाती हूं, इनके साथ खाती हूं,फिर रसोई उठाने में कुछ समय लगता है। ऊपर से सुबह तो समय से उठना ही है, बच्चों को स्कूल जो भेजना है,’’ यामिनी ने बताया।

dusri-mummy

‘‘वैसे तुम बड़ी हो और गृहस्थी में मुझसे अधिक अनुभवी भी, पर मैं देख रही हूं, तो कहे देती हूं। पता नहीं तुम इतनी देर रात तक भूखी कैसे रह लेती हो, फिर अपनी नींद और दिनभर की थकान मार कर इतनी रात को गरम खाना बनाती हो। मैं तो अपनी भूख बर्दाश्त ही नहीं कर पाती हूं,’’ अपनी बहन की इस हालत पर युक्ता ने दबे-ढके शब्दों में कहा।

‘‘मेरा भूखा रहना तेरे जीजा जी को काफी बुरा लगता है, पर बेचारे ये भी तो मजबूर हैं। क्या करें, नौकरी तो करनी ही है। और जो इंसान इतनी मेहनत करता है, क्या उसे गरम खाना भी ना मिले?’’ यामिनी के इस तर्क पर युक्ता चुप हो गयी। आखिर सबकी सोच अलग होती है।

लेकिन इस तपस्या की जिद का फल जल्द ही यामिनी की सेहत पर झलकने लगा। अपने हिस्से के काम उसे करने होते थे। रात को देर से सोना, सुबह जल्दी उठना। फिर सारे घर का काम निबटाने तक बच्चे स्कूल से लौट आते थे। रातों का इंतजार बरकरार था। मगर वह अधिकतर उदास रहती थी। शायद प्रतीक्षा करते रहने से अब वह मानसिक रूप से थकने लगी थी। इसका असर यह होने लगा था कि वह चिड़चिड़ी हो गयी थी।

रविवार की सुबह घर में सभी अलसाए पड़े थे, किंतु यामिनी गृहस्थी के कार्यों में फंसी थी। सफाई, नाश्ता, दुपहर के खाने की तैयारी आदि। सबको सुस्ताता देख उसे सब पर कोफ्त होने लगी, ‘‘सब के सब आलसी हो गए हैं। बच्चो, देखो तुम्हारे कमरे की क्या हालत हो रखी है, चलो उसे तरतीब से लगाओ। निखिलेश की अलमारी भी कितनी गंदी हो रही है, उसे भी ठीक करूंगी। कितने दिनों से इनके सिर में तेल भी नहीं लगा, आओ जी, आपकी तेल मालिश कर दूं। फिर नाश्ता भी बनाना है। अभी आलू उबालूंगी, ताकि समय पर आलू के परांठे बना सकूं... केवल ऐड में ही गृहिणी को कहते हुए दिखाते हैं कि मेरा भी संडे है,’’ कभी चिढ़ती तो कभी बड़बड़ाती यामिनी को देख युक्ता बोल पड़ी, ‘‘दीदी, संडे मनाना तुम्हारे अपने हाथ में है। जब घर के अन्य सदस्य संडे मना रहे हैं, तो तुम क्यों सारी कि सारी जिम्मेदारी स्वयं पर ओढ़ रही हो?’’ फिर प्यार से यामिनी को बिठाते हुए युक्ता आगे कहने लगी, ‘‘याद है दीदी, तुम कितनी नखरैल हुआ करती थीं शादी से पहले। अपनी पसंद का खाना ना मिले, तो खाना नहीं खाती थीं। बालों में तेल लगाने से ले कर अलमारी को सलीके से रखने तक अपना सारा काम मां से करवाया करती थीं। शायद मां की वही छवि तुम्हारे अंतस में बस गयी और जब तुम्हारे ऊपर गृहस्थी का बोझ आया, तो तुमने भी उसके नीचे स्वयं को ऐसे ही दबा लिया जैसा मां ने किया था। इसका परिणाम भी वही होगा, जो मां के साथ हुआ। तुम शारीरिक रूप के साथ-साथ मानसिक रूप से भी थक जाओगी। और चिड़चिड़ाती गृहिणी किसी को नहीं भाती, ना पति को और ना बच्चों को।

‘‘बुरा मत मानना दीदी, पर शायद तुम भूल गयी हो कि तुम जीजा जी की पत्नी हो, उनसे उम्र में छोटी, उनसे कम तजुर्बेकार। लेकिन तुमने सारी जिम्मेदारियां स्वयं पर ओढ़ लीं। तुम उनकी जीवनसंगिनी बनने के बजाय उनकी दूसरी मम्मी बन गयीं।’’ आज युक्ता की बातों ने यामिनी को झकझोर दिया। वाकई आज उसकी गृहस्थी की हर छोटी-बड़ी जिम्मेदारी उसी पर थी। उस पर भी उसके पति जब-तब ताने सुना देते कि घर में पड़ी ऐश करती रहती हो। 

‘‘यदि तुम अपनी सेहत का ध्यान नहीं रखोगी, तो तुम्हारी गृहस्थी का क्या होगा? तुम्हें समय पर खाना, सोना, काम करना चाहिए। तुम्हारे काम अलग हैं, जिनमें तुम्हारी मदद कोई नहीं करता, तो तुम क्यों अपने पति के नौकरी करने पर इतनी दया करती हो? जिम्मेदारी के पथ पर तुम दोनों ने अपनी अलग राह चुनी है, जिसमें नौकरी करना उनका काम है और घर को सुचारु रूप से चलाना तुम्हारा। रोजमर्रा के निजी काम अपने पति पर ही छोड़ो जैसे नहाने के लिए बाल्टी में नल से पानी निकालना, गुसलखाने में अपना तौलिया रखना, रोजाना क्या पहनना है, कितना खाना है आदि। तुम्हें देख कर तो ऐसा लगता है जैसे 2 नहीं, 3 बच्चों को पाल रही हो,’’ युक्ता ने अपनी बात पूरी की।
युक्ता का कथन यामिनी के अंदर उतर गया। वो सोचने लगी कि वाकई वह अपने पति को एक बच्चे की भांति पाल रही थी। वह इस प्रकार सोचती नहीं थी कि वह और उसके पति एक बराबर के तल पर खड़े हैं, जहां दोनों ने शादीशुदा जीवन की अपनी-अपनी जिम्मेदारियां बांट ली हैं। इस तरह सोचने से दोनों के तनाव कम हो जाएंगे, दोनों की एक-दूसरे के प्रति इज्जत बढ़ेगी, और कुछ खाली समय भी मिल सकेगा। शादी से पहले यामिनी को चित्रकारी का शौक था, परंतु शादी के उपरांत वह गृहस्थी के कार्यों में ऐसी फंसी कि उसके पास अपने लिए जरा भी समय नहीं था। अब युक्ता की सुझायी राह पर चल कर वह अपने लिए भी कुछ समय निकाल सकेगी।

नवंबर की हल्की बयार मौसम के संग मन को भी खुशनुमा बना रही थी। तरतीब से कटी हुई हरी घास पर उगे डहेलिया के बड़े लाल फूल यामिनी के बगीचे को चार चांद लगा रहे थे। मेक्सिको का ये फूल भारत की जमीन पर उगाना इतना आसान नहीं था। इन्हीं फूलों को यामिनी अपने उजले कैनवास पर अवतरित करती। रंगों की छटा का मनमोहक जादू ऐसा बिखरता, लगता डहेलिया की एक-एक पंखुरी जीवित हो उठी है।

‘‘तुम्हारे फेसबुक पर लगी चित्रकारी के ऑर्डरों की लाइन देख कर मन प्रफुल्ल हो जाता है, दीदी,’’ युक्ता फोन पर चहक रही थी।

‘‘यह सब तुम्हारे समझाने का परिणाम है कि मैं आज अपने जीवन को थोड़ा सा अपने लिए भी जी रही हूं। चित्रकारी ने मेरे अंदर सोए प्राणों को एकबारगी फिर जगा दिया है। और मेरी अपेक्षाओं के विपरीत इसमें तेरे जीजा जी मेरा पूरा सहयोग कर रहे हैं। उन्हें अच्छा लग रहा है कि मेरा भी अपना कुछ वजूद है। अब मैं ज्यादा खुश रहती हूं। और जब मैं खुश रहती हूं, तो पूरे घर का वातावरण खुशमिजाज रहता है। आज मैं निखिलेश की पत्नी बन कर खुश हूं। मेरी ममता के लिए मेरे पास बच्चे हैं, और निखिलेश उनके पिता, ना कि मेरी तीसरी औलाद। सच, केवल जिम्मेदारियों को ओढ़ते जाने से हमारा जीवन सार्थक नहीं होता। अंग्रेजी की वह कहावत ऑल वर्क एंड नो प्ले, मेक्स जैक अ डल बॉय एकदम सही है।’’