Tuesday 21 December 2021 02:23 PM IST : By Poonam Pathak

मोस्ट वाॅन्टेड लव

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‘‘सुनो, शाम को बींस और गोभी काट कर रखना। रात के खाने में तुम्हारी मनपसंद वेज बिरयानी बनाऊंगी,’’ कहते हुए आशी ने जल्दी से अपना जूस खत्म किया। 

‘‘ओके बेबी, ये रही तुम्हारी कार की चाबी और ये रहा टिफिन। पहले पकड़ लो, वरना फिर से भूल जाओगी,’’ कहते हुए चिराग ने पत्नी को टिफिन पकड़ाया। 

‘‘अगर चाहूं, भी तो तुम मुझे भूलने कहां दोगे?’’ आशी खिलखिला उठी। 

‘‘तुम्हारे फेवरेट आलू के परांठे रखे हैं। अच्छे से खा लेना।’’

‘‘ओएमजी, आलू के परांठे ! फिर तो हो चुका मेरा खाना। ऑफिस में सभी को तुम्हारे हाथ के आलू के परांठे बहुत पसंद हैं। पिछली बार 3 परांठों में मुझे सिर्फ आधा ही खाने को मिला था,’’ आशी ने शिकायत सी दर्ज करायी।

‘‘आज 4 रखे हैं, कम नहीं पड़ेंगे। टेक केअर बेबी,’’ आशी का माथा चूमते हुए चिराग ने कहा।

‘‘यू टू जान। लव यू सो मच,’’ पर्स उठाते हुए आशी उसके कान के करीब धीरे से फुसफुसायी और मुस्कराती हुई कार पार्किंग की तरफ चल दी।

‘‘हुंह, देख रहे हो जी। सबके घरों में बेटा ऑफिस जाता है और बहू घर के काम संभालती है। पर मेरे यहां तो उलटी गंगा बह रही है। मैडम जी सज-संवर कर एक हाथ में पर्स और दूसरे हाथ में कार की चाबी घुमाती हुई काम पर निकल गयी हैं और मेरा सीधा-सादा बेटा उनकी गुलामी कर रहा है। घर से ही ऑफिस का काम करता है और दिनभर घर भी संभालता है। हाय री किस्मत,’’ बेटे को बहू के लिए टिफिन बनाते देख सामने के बेडरूम में पति राजीव के साथ बैठी चिराग की मम्मी सविता का भुनभुनाना चालू था।

‘‘छोड़ो भी भागवान, जब अपना ही सिक्का खोटा हो, तो परखने वाले का क्या दोष। कितनी बार समझाया बहू को इतनी छूट मत दे। आखिर है तो औरत जात। एक बार बाहर की हवा लगेगी, तो सिर पर बैठ कर नाचेगी, लेकिन साहबजादे को कौन समझाए। छोड़ो जाने दो, हमें क्या करना है। जब तक इच्छा है रहो, नहीं तो गांव चले चलेंगे। जब तक यहां हैं अपना मुंह बंद रखें,’’ राजीव ने सलीके से पत्नी को अपना ज्ञान परोसा। 

मम्मी-पापा की बातचीत सुन डाइनिंग टेबल साफ कर रहे चिराग के हाथ दो पल को रुके। लेकिन अगले ही पल गुनगुनाते हुए उसने अपना काम जारी रखा। यों भी अब उसे मम्मी-पापा के जहर बुझे तीरों से कोई फर्क ना पड़ता था, क्योंकि अपने भविष्य को बेहतर बनाने के लिए उसने और आशी ने यह फैसला अपनी मर्जी से काफी सोच-समझ कर लिया था। 

28 वर्षीय आशी एक होनहार युवती थी, जिसने हाल ही में अपनी मेहनत और प्रतिभा के बल पर छोटी सी उम्र में इंदौर से सटे इंडस्ट्रियल एरिया पीथमपुर में एक मल्टीनेशनल कंपनी में डिप्टी जीएम की पोस्ट संभाली थी। उसकी बढ़ती जिम्मेदारी और काम के अतिरिक्त दबाव के चलते यह उन दोनों का साझा डिसीजन था कि फिलहाल चिराग घर की जिम्मेदारियां संभाल लेगा। बाद में उनके बच्चा प्लान करने पर आशी घर से काम करेगी, ताकि बच्चे को मां की प्यारभरी देखभाल और सही परवरिश मिल सके। समझदार आशी कभी भी दूध पीते बच्चे को किसी नैनी के भरोसे नही पालना चाहती थी। 

खुद चिराग भी बहुत अंडरस्टैंडिंग था। लिहाजा पत्नी के सफल कैरिअर और अपनों के बेहतर भविष्य के लिए उसने खुशी-खुशी वर्क फ्रॉम होम का चुनाव किया था। हालांकि यंग कपल अपने इस निर्णय पर काफी खुश था, पर गाहेबगाहे उन्हें अपने बड़ों के कोपभाजन का शिकार बनना ही पड़ता था।

दरअसल चिराग के पेरेंट्स पुरानी सामाजिक मान्यताओं के पक्षधर थे, जिन्हें बेटे-बहू की आधुनिक सोच और निर्णय हजम नहीं होते थे। 

पहले पहल उनके तंज कसे जाने पर चिराग व्यथित हो अपना आपा खो बैठता था, मगर आशी उसे जल्द ही संभाल लेती थी। वह जानती थी कि आधुनिक दौर के बदलाव की यह बयार धीरे-धीरे ही सही, उनके बड़ों को अपनी गिरफ्त में जरूर ले लेगी। इसीलिए वह चिराग को समझाया करती थी। पर मम्मी-पापा के चरित्र का दोहरा मापदंड चिराग की समझ के बाहर था। वह जानता था कि कैसे यही मम्मी दीदी की शादी के बाद नाते-रिश्तेदारों और आसपड़ोस में जीजा जी की तारीफ करते ना थकती थीं, क्योंकि वे घर के तमाम कामों में बराबरी से दीदी का हाथ बंटाते थे। लेकिन आज बेटे के वही काम करने पर बहू गुनहगार बन गयी थी। वह समझ ना पाता था कि यह कौन सी सामाजिक व्यवस्था थी, जिसमें दामाद के घर का काम करने पर उसकी तारीफ में कसीदे पढ़े जाते थे और अगर बेटा वही काम करे, तो वह जोरू का गुलाम कहलाता था।

बहरहाल डाइनिंग टेबल साफ कर उसने मम्मी-पापा को आवाज दी और उन्हें भी आलू के गरमागरम परांठे दही के साथ परोसे। फिर अपने लिए प्लेट लगा कर वह सीधा अपनी टेबल पर जा पहुंचा और लैपटॉप खोल कर ऑफिस का जरूरी काम निपटाने लगा। 

शाम को बींस और गोभी फ्रिज से निकाल ही रहा था कि मम्मी ने आवाज दी, ‘‘भई, अगर बहू को एतराज ना हो, तो मैं सब्जियां काट कर रख देती हूं।’’ 

‘‘कैसी बातें करती हैं आप मां। बिरयानी के लिए भला आपसे बेहतर सब्जी कोई काट पाएगा?’’ कहते हुए चिराग मन ही मन मुस्कराया और सब्जी की बास्केट मम्मी के आगे रख दी। वह जानता था कि मम्मी को मालूम है कि उसे ठीक से सब्जी काटनी नहीं आती और अकसर वह सब्जी काटते हुए चाकू से खुद को चोट पहुंचा लेता है।

देर शाम आशी ने दर्द से कराहते हुए घर में पहला कदम रखा। ‘‘क्या हुआ बेबी?’’ चिराग अपना सारा काम छोड़ कर दौड़ा। 

‘‘कुछ नहीं, रास्ते में कार में ना जाने क्या प्रॉब्लम हुई। रुक-रुक कर झटके खा रही थी। आते वक्त उसे सलीम के गैराज पर छोड़ आयी हूं। कल शाम तक मिलेगी। वहां से ऑटो पकड़ने निकली ही थी कि जाने कहां से लोहे की एक कील पैर में चुभ गयी। काफी खून भी निकला है और अब बहुत दर्द कर रहा है,’’ आशी दर्द से फिर कराह उठी। 

‘‘यह तो काफी गहरा कट है। जाओ डॉक्टर गोयल को दिखा दो और हां एटीएस का इन्जेक्शन भी लगवा लेना,’’ राजीव ने घाव देखते ही कहा। 

‘‘मैडम जी तो चोट लगा कर बैठ गयीं। अब बिरयानी का क्या होगा?’’ बच्चों के जाने के बाद सविता की आंखों में झुंझलाहट थी।

‘‘कैसी बातें करती हो भागवान ! उसने जानबूझ कर थोड़े ही कील में पांव दे मारा। वह तो वैसे ही दर्द से परेशान है। चलो, आज हम मिल कर बिरयानी बनाते हैं, वैसे भी बहुत दिन हो गए तुम्हारे हाथ का स्वादिष्ट खाना खाए हुए।’’

‘‘हां भई, अब बुढ़ापे में फिर से चूल्हा-चौका संभालो, वरना दिनभर के थकेहारे बेटे को काम में लगना पड़ेगा,’’ बड़बड़ाते हुए सविता काम में लग गयी। उसे अभी भी बहू से ज्यादा बेटे की चिंता थी। जब तक आशी और चिराग लौटे बिरयानी की खुशबू से पूरा घर महक रहा था। 

मम्मी-पापा को बिरयानी सर्व करके चिराग अपने और आशी के लिए भी एक प्लेट में बिरयानी परोसने लगा, ‘‘वो उसके पैर में अभी भी काफी दर्द है, ठीक से चला नहीं जा रहा और थकी हुई भी है। तो उसे वहीं खिला दूंगा,’’ मम्मी की आंखों में कौंधते सवाल को देख चिराग ने सफाई दी।

‘‘एक ही प्लेट में दोनों खाओगे, क्या घर में बरतनों की कमी है?’’ सविता ने चिढ़ कर पूछा।

‘‘अरे मां, कल बाई नहीं आएगी, तो बरतन तो मुझे ही धोने होंगे और फिर आप ही तो कहती थीं कि एक ही थाली में खाने से प्यार बढ़ता है,’’ कह कर मुस्कराता हुआ चिराग अपने कमरे की ओर बढ़ चला। 

बेटे का दो टूक जवाब पा कर सविता हतप्रभ रह गयी। बेचारगी से पति की ओर देखा। तो मौके की नजाकत समझ राजीव ने भरसक कोशिशें कर अपनी हंसी रोकी, वरना बेटे का गुस्सा बाप पर उतरने के पूरे आसार नजर आ रहे थे। वैसे भी पत्नी के तेजतर्रार स्वभाव के चलते अधिकतर मौकों पर राजीव चुप्पी साध जाया करते थे। कभी अपनी बात रखते भी, तो इस तरीके से कि पत्नी को बुरा ना लगे।

दो-तीन दिन में चिराग की बेहतर देखरेख से आशी का घाव जल्द भर चला। परिस्थितियों को देखते हुए बेमन से ही सही राजीव और सविता ने भी घर के कामों में हाथ बंटाया। फिर भी बेटे को बहू की देखभाल करते देख अकसर सविता चिढ़ जाती थी। उसी बीच आशी के हाल जानने के लिए उसकी मां का फोन आया। उसके बाद उन्होंने काफी देर तक अपनी समधिन सविता से भी बात की। 

उस दिन सुबह आशी ऑफिस के लिए तैयार हो ही रही थी कि उसका मोबाइल घनघना उठा। ‘‘यह मैं क्या सुन रही हूं, चिराग घर पर रहता है और तुम ऑफिस जाती हो?’’ 

‘‘हां मां, इसमें हर्ज ही क्या है। कई बार ज्यादा काम की वजह से मैं ऑफिस से लेट आती हूं, ऐसे में कोई तो घर संभालने वाला होना चाहिए।’’ 

‘‘तुम दोनों ने किसी से भी बिना पूछे इतना बड़ा डिसीजन ले लिया। आखिर नाते-रिश्तेदार क्या कहेंगे कि दामाद घर में बैठा बेटी की कमाई खा रहा है। यह तूने ठीक नहीं किया आशी, आखिर हमें समाज के बीच ही रहना है।’’

‘‘मम्मा, लोगों का तो काम ही है कुछ ना कुछ कहते रहना और फिर आपको कब से समाज की फिक्र होने लगी। याद है, जब भैया शादी किए बिना गैर जाति की लड़की को भगा कर घर ले आया था, तो कैसे बिना समाज की परवाह किए आपने उनकी चट मंगनी पट शादी करा दी थी...’’ कहते हुए आशी कुछ पल को रुकी।

‘‘पिछला कुछ वक्त हमने कितनी तंगहाली में गुजारा है। जब मेरे पास ढंग की जॉब तक ना थी, तब कहां थे आपके ये सो कॉल्ड नाते-रिश्तेदार, कोई भी हमारी मदद को आगे क्यों नहीं आया और आज जब मेरी इतनी अच्छी जॉब लगी है और हम इसे अच्छे से मैनेज करने की कोशिश कर रहे हैं, तो आप चाहती हो कि मैं घर बैठ जाऊं। नहीं मम्मा, ये हमारी जिंदगी है और इसके लिए निर्णय लेने का अधिकार भी सिर्फ हमारा है। थोड़ा बिजी हूं, बाद में बात करती हूं,’’ कह कर आशी ने कॉल कट कर दिया। 

उसका मन कसैला हो चला था। उसने बचपन से मां को अपने और भाई के बीच छोटी-छोटी बातों पर फर्क करते देखा था। आज भी भाई आवारागर्दी करते हुए भी मां की आंखों का तारा था और वह अपने सफल कैरिअर के बावजूद उनकी आंखों की किरकिरी। उसका उतरा चेहरा देख चिराग ने एक प्रश्नवाचक दृष्टि उस पर डाली। ‘‘तुम्हारी मां जो ना करें वह थोड़ा है,’’ आशी की आंखों में नाराजगी के भाव थे।

‘‘ओहो, तुम उदास मत हो, तुम्हारी मां हों चाहे मेरी, इन्हें अपना काम करने दो और हम अपना करते रहेंगे। इनकी बात को दिल से लगाने की जरूरत नहीं है। वैसे भी तुम्हारे दिल में बस मेरा ही ख्याल रहना चाहिए। समझीं जानेमन,’’ आशी की ओर आंख मारते हुए चिराग शरारत से मुस्कराया।

‘‘सच्ची, तुम नहीं सुधरोगे। अच्छा मुझे तो देर हो रही है, मैं चली अपने ऑफिस... बाय,’’ आशी फटाफट कमरे से निकलने को हुई।

‘‘अरे सुनो, एक काम तो रह ही गया।’’

‘‘क्या?’’ आशी ने पलट कर देखा।

‘‘मुंह मीठा करना... कह कर लपकते हुए चिराग ने उसे अपनी बांहों में जकड़ा और उसके होंठों पर एक जोशीला चुंबन जड़ दिया।

‘‘उफ्फ छोड़ो भी मुझे...’’ आशी कसमसायी और पति की बांहों की मजबूत गिरफ्त से छूटने का प्रयास करने लगी।

अगले हफ्ते आशी की कंपनी का एनुअल डे था। आशी के बॉस ने इस प्रोग्राम के अरेंजमेंट के लिए 4 मेंबर की एक टीम बनायी थी, जिसे आशी लीड कर रही थी। कुछ दिनों तक ऑफिस में लेट सिटिंग कर आशी ने अपनी टीम के साथ मिल कर पूरा प्रोग्राम एक सिस्टमेटिक तरीके से अरेंज किया, जिसमें सभी एंप्लॉइज, उनकी फैमिली और बच्चों के लिए कई रोचक गेम रखे गए और उन्हें जीतनेवालों के लिए आकर्षक प्राइज भी। सुबह के नाश्ते से ले कर दोपहर के लंच की शानदार व्यवस्था की गयी और सबसे आखिर में भव्य ऑर्केस्ट्रा के साथ सम्मान दिए जाने की व्यवस्था थी।

‘‘सुनो कैसी लग रही हूं मैं इस साड़ी में? कल के प्रोग्राम में यही पहनने वाली हूं,’’ जरी के बॉर्डर की ऑरेंज शिफॉन साड़ी लपेटते हुए आशी ने खुद को आईने में निहारा और चिराग को आवाज दी। 

‘‘हम्म अच्छी है,’’ लैपटॉप पर काम कर रहे चिराग ने एक नजर आशी पर डाली और फिर से अपने काम में व्यस्त हो गया।

‘‘सिर्फ अच्छी है, तुम्हारा ध्यान कहां है मिस्टर? अरे भई कल के प्रोग्राम में मेरा भी सम्मान किया जाएगा। मुझे सबसे सुंदर दिखना है। प्लीज ठीक से देख कर बताओ ना,’’ आशी ने मनुहार की।

‘‘तुम्हारे सम्मान, तुम्हारी सुंदरता देखने के अलावा भी कई काम हैं इस दुनिया में।’’

‘‘ये क्या बात हुई? मैंने तुमसे यों ही कोई बात पूछी और तुम बात को कहां से कहां ले जा रहे हो। मैंने ऐसा कब कहा कि मेरे अलावा किसी और काम की कोई वैल्यू नहीं, आखिर तुम्हें मेरी सफलता से परेशानी क्या है?’’ चिराग की ऊटपटांग बात सुन कर आशी को भी कुछ तैश आ गया। 

‘‘हां-हां मैं जलता हूं ना तुम्हारी सफलता से। अरे, तुम्हारे लिए मैंने अपना पूरा कैरिअर दांव पर लगा दिया और अब अगर तुम्हें यही लगता है, तो यही सही,’’ चिराग ने चिढ़ कर कहा।

‘‘मेरे ऊपर चिल्लाने की कोशिश भी ना करना। बेवजह की बदतमीजी मैं बर्दाश्त नहीं करने वाली।’’

‘‘अरे बर्दाश्त तो मैं कर रहा हूं तुम्हें। क्या समझती हो, तुम्हीं एक रह गयी हो कमाने वाली?’’

‘‘हां कमा रही हूं, पूरे दिन जी-तोड़ मेहनत करती हूं। यों ही मुफ्त में तनख्वाह नहीं आ जाती घर में,’’ गुस्से में आशी की आवाज कुछ तेज हो चली।

‘‘मुझे अपनी सैलरी की धौंस ना देना। मैं आज भी घर का पूरा खर्च चला सकता हूं।’’

‘‘तो ठीक है, अगर तुम्हें मेरा काम करना इतना ही बुरा लगता है, तो मैं कल ही अपनी कंपनी से रिजाइन कर देती हूं,’’ कह कर आशी सुबकने लगी।

उधर बगल के कमरे में बेटे-बहू के बीच की बहस को साफ सुनने के लिए सविता ने अपनी टीवी का वॉल्यूम काफी कम कर दिया, ‘‘हुंह... मैं जानती थी यही नौबत आनेवाली है। घर पर बैठे मर्द की कोई इज्जत नहीं होती है कमाऊ बीवी की नजरों में। देखा कैसे मेरे बेटे को जलील कर रही है। अब भी चिराग को समझ आ जाए, तो अच्छा है,’’ कहते हुए सविता ने पति के सामने अपनी भड़ास निकाली। वैसे बेटे और बहू के बीच की बहस सुन कर उसे बड़ा सुकून मिला था।

उधर चिराग ने सुबक रही आशी की ओर धीरे से पानी का गिलास बढ़ाया, ‘‘सॉरी, मेरे कहने का वह मतलब नहीं था।’’

‘‘पहले मुझे यह साफ-साफ बताओ कि हुआ क्या है? आखिर जो बातें हमारे बीच पहले से ही क्लियर हैं, उन पर बहस छेड़ने का मतलब क्या है? मैं जानती हूं कि तुम बेवजह इस तरह की बातें नही कर सकते। सच्ची बताओ, क्या तुम किसी टेंशन में हो?’’ आशी ने चिराग की आंखों में झांकते हुए पूछा।

‘‘आशी ये देखो, दो दिन पहले मेल आया है। रिसेशन के चलते कंपनी ने मेरी सैलरी 10% कम कर दी है। जिस वक्त मेरा इंक्रीमेंट लगना था, उस वक्त ये...’’ चिराग ने आशी को कंपनी का मेल दिखाया।

‘‘यू नो आशी, हमने आज तक किसी की भी परवाह नहीं की। जो सही समझा वही करने की कोशिश की। पर कभी-कभी लगता है कि कहीं हम गलत तो नहीं कर रहे? मेरा मतलब यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं तुम्हें जीवन के सारे सुख दूं। पर मैं अपनी जिम्मेदारी ठीक से उठा नहीं पा रहा। इधर हमारे पेरेंट्स हमारे इस डिसीजन से खुश नहीं हैं। अब लगता है तुम पर मैंने सारी जिम्मेदारी लाद दी है। मेरे मन में दो दिन से यही ऊहापोह चल रही है कि कहीं अनजाने में मैं अपनी जिम्मेदारी से भाग तो नही रहा हूं,’’ चिराग का स्वर गीला हो चला। 

‘‘पहले यह बताओ कि तुमने मुझे यह बात पहले क्यों नहीं बतायी?’’

‘‘तुम अपने एनुअल डे की तैयारियों में बिजी थीं, इसीलिए मैं तुम्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था।’’

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‘‘देखा मेरे भोले हसबैंड। हमें एक-दूसरे से सिर्फ प्यार ही नहीं, बल्कि एक-दूसरे की परवाह भी है। तभी तो मेरी खुशी के लिए 2 दिन से तुमने यह दर्द अपने भीतर समेटे रखा। चिराग, प्यार में जिम्मेदारियों का बंटवारा नहीं होता। जब जिसके हिस्से जो काम आए कर लिया। इसमें किसी तरह का कोई कॉम्प्लेक्स फील नहीं होना चाहिए। अरे, जब तुम घर का काम खुशी-खुशी समेट लेते हो, तो मुझे भी कमाने की जिम्मेदारी उठाने में संकोच कैसा। हमारे बीच की यही अंडरस्टैंडिंग तो हमारी सबसे बड़ी स्ट्रेंथ है, जो हमें हर पल एक-दूसरे से जुड़े होने का अहसास कराती है और यही भीना सा अहसास हमारी सच्ची खुशी और हमारे सफल जीवन का परिचायक है,’’ कहते हुए आशी ने चिराग का सिर अपनी गोद में रख लिया। 

‘‘चिराग, लोग क्या सोचेंगे, समाज क्या कहेगा, आखिर हमारी सोच की सुई यहीं जा कर क्यों अटक जाती है? अपनी खुशी को दरकिनार कर हम दिखावे की जिंदगी क्यों ढोते चले जाते हैं? नहीं चिराग, हमारे इस प्यारे से रिश्ते में किसी कॉम्पलेक्स किसी गिल्ट या दिखावे की कोई गुंजाइश नहीं है। जानू, एक बात अच्छे से समझ लो, मुझे तुम्हारी सैलरी 10% कम हो जाने से कोई फर्क नही पड़ता, बशर्ते तुम मुझे अपना 100% प्यार देते रहो। समझे मिस्टर नासमझ... प्यार कभी कम ना करना सनम... हर जुल्म गवारा कर लेंगे...’’ गुनगुनाते हुए आशी चिराग के ऊपर झुकी और शरारत से उसकी नाक को अपने होंठों में दबा लिया। 

‘‘ओके मैडम, आपका हुकुम सिर-आंखों पर, आज से ही बंदा अपना 100% शुद्ध देसी रोमांस ले कर आपकी खिदमत में हाजिर है।’’ चिराग को सलामी की पोज में अपना राइट हैंड उठाते देख आशी खिलखिला उठी। चिराग भी अब पूरी तरह से मस्ती के मूड में आ चुका था। हंसती हुई आशी पर प्यार बरसाते हुए उसने उसे कस कर अपने आगोश में ले लिया।

सुबह-सुबह बेटे-बहू को आपस में हंसते-बोलते देख सविता का मुंह एक बार फिर से लटक गया। फिर भी बुझे मन से वे और राजीव प्रोग्राम में जाने के लिए तैयार होने लगे। ऑफिस में रोज अपनी फॉर्मल ड्रेस में नजर आनेवाली आशी आज साड़ी में बेहद खूबसूरत और ग्लैमरस नजर आ रही थी। अपने कर्ल बालों का उसने एक ब्रेडेड बन बनाया था, जिसकी कुछ लटें उसके रूप को और मोहक बनाए दे रही थीं। प्रोग्राम में पहुंच कर उसने चिराग, राजीव और सविता को सभी से मिलवाया। 

निर्धारित रूपरेखा के अनुसार सभी प्रोग्राम अच्छे से निपट चुके थे। अब सम्मान समारोह की बारी थी। स्टेज पर आशी के मैनेजिंग डाइरेक्टर मिस्टर सिन्हा आ चुके थे। उन्होंने अपने सभी एंप्लॉइज का धन्यवाद अदा करते हुए खुले दिल से उनकी मेहनत की सराहना की। स्टेज पर जब बेस्ट एंप्लाई के लिए आशी का नाम पुकारा गया, तो तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूंज उठा।

‘‘दोस्तों, सबसे पहले आप सभी के प्यार का बेहद शुक्रिया। सर, इससे पहले की मैं आपके हाथों ये अवॉर्ड लूं, मैं यहां पर उसके सही हकदार को बुलाना चाहूंगी। जिसने आज तक मेरी तमाम जिम्मेदारियों को साझा किया है, मैं उसके साथ अपने इस सम्मान को साझा करना चाहूंगी। चिराग, प्लीज आओ।’’ चिराग और आशी के ट्रॉफी हाथ में लेते ही एक बार फिर से तालियां बज उठीं। 

‘‘शुक्रिया चिराग कि तुमने सदा मेरा साथ दिया। वह तुम्हीं थे कि जिसने सोसाइटी की परवाह किए बिना हमारे घर को संभाला। वह तुम्हीं थे कि जिसने घर की जिम्मेदारियों से मुक्त करके मुझे इतना वक्त दिया कि मैं बेफिक्री से अपने ऑफिस की जिम्मदारियों को निभा सकी। बस अपना साथ और प्यार यों ही लुटाते रहना,’’ चिराग को किस करते हुए आशी उसके गले जा लगी। तालियों की गड़गड़ाहट एक बार फिर से तेज हो उठी थी।

मिस्टर सिन्हा ने एक बार फिर से सभी को मुबारकबाद दी, ‘‘दोस्तो, आज आशी जैसे एंप्लाइज का कंपनी में होना हमारे लिए गर्व की बात है। अपने 35 वर्षों के अनुभव में मैंने ऐसा खूबसूरत रिश्ता नहीं देखा। आशी और चिराग जैसे युवा हमारे समाज की सोच को एक नयी दिशा दे सकते हैं। आशी उन सभी युवाओं के लिए एक मिसाल है, जो आज के आधुनिक दौर में खुली आंखों से सपने देखने और उन्हें पूरा करने की हिम्मत रखते हैं। मैं आशी को उसके आने वाले सुनहरे भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएं देता हूं।’’ तालियों के तेज शोर में इस बार सविता और राजीव के हाथ भी अपने बेटे और बहू की खुशी में शामिल हो लगातार बजते जा रहे थे।