Wednesday 27 April 2022 04:23 PM IST : By Megha Rathi

सलीम की टोपी और शाजिया का इश्क

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ये हैं सलीम मियां, पेशे से दर्जी और स्वभाव से अलमस्त। अपने काम में बेहद हुनरमंद होने के कारण इनकी दुकान पर अकसर ग्राहकों की भीड़ रहती है, जिसमें ज्यादातर कई हफ्तों से अपने कपड़ों के सिलने के इंतजार में चक्कर लगा रहे हैं। उनकी शिकायतों को सुन कर सलीम भाई बहुत मीठी आवाज में उन्हें जल्दी ही कपड़े सिल कर देने का वादा करते हुए हमेशा की तरह चाय की पेशकश करते हैं। हालांकि इस बात की कोई गारंटी नहीं कि सलीम मियां उस तारीख पर अपना वादा निभा ही दें और अगर कभी ऐसा हो जाता है, तो उस दिन ग्राहक शुक्राना अदा करना नहीं भूलता।

दरअसल इस वादाखिलाफी की वजह है उनकी अजीज टोपी, जिसे वह उमसभरी गरमी में भी खुद से अलग नहीं करते। खुदा या फिर उनके परिवारवाले ही जानते होंगे कि सोते वक्त भी वह उनके सिर पर रहती है या नहीं, क्योंकि बाकी लोगों से तो उनकी मुलाकात दुकान पर ही होती है। दरअसल सलीम मियां और उनकी टोपी एक-दूसरे के किरदार का अहम हिस्सा बन चुके हैं। 

हम लोग सालों से सलीम मियां को देख रहे हैं, लेकिन उनकी कत्थई-भूरी टोपी की जगह उन्होंने कभी भी किसी दूसरी टोपी को नहीं दी। ना जाने उस टोपी से उनकी इस मुहब्बत का क्या अफसाना है, पर वे पूरी शिद्दत से इस वफा को निभाते हैं। बाजार में उनकी टोपी को ले कर कई अफवाहें भी फैली हुई हैं। कोई कहता है कि उनके अधूरे इश्क की निशानी है यह, जिसे उनकी महबूबा ने कभी खुद से अलग ना करने की कसम के साथ तोहफे में दी थी, तो कोई बताता है कि किसी पीर ने उनकी खिदमत से खुश हो कर उन्हें यह करामाती टोपी दी थी और जिस दिन से यह टोपी उनके सिर पर आयी, सलीम मियां की किस्मत भी बदल गयी। यही वजह है कि उनका टूटा-फूटा घर अब दुमंजिला मकान बन चुका है और उनको कभी किसी चीज की कमी नहीं रहती। कुछ लोग तो दावा करते हैं कि उन्होंने उस टोपी को सलीम मियां से अकेले में बात करते हुए देखा-सुना है।

अब टोपी तो बेचारी कपड़े की है, इंसान को भी जब नहाना जरूरी होता है, तो वह भी तो लगातार पहने रहने के बाद एक दिन तो धुलाई मांगती ही है। इसलिए जब टोपी मैली हो कर गंध नहीं मारने लग जाती, तब सलीम मियां का उसे धो कर सूखने का इंतजार लाजिमी होता है या फिर उनकी टोपी कभी कोई बच्चा शैतानी में छिपा दे, तो उस बच्चे की शामत तो आनी ही है, लेकिन उन दोनों ही हालात में उस दिन उनकी दुकान बंद ही रहती है।

अब एक दिन हुआ यों कि सलीम मियां अपने स्कूटर से कहीं जा रहे थे और तेज हवा में उनकी टोपी उड़ गयी। भीड़भरी सड़क पर मजबूरी में उन्होंने आगे हो कर साइड में ले जा कर अपना स्कूटर रोका और सड़क पर आते-जाते वाहनों के बीच के भागते हुए अपनी टोपी खोजने लगे। जिस जगह उनकी टोपी उड़ी थी, वहां बदहवासी में तेजी से जाते हुए एक ऑटो की टक्कर भी उनको लगी, पर उन्होंने चोट की परवाह ना करते हुए ऑटोवाले की फटकार को भी मुस्करा कर हाथ हिला कर माफी मांगते हुए नजरअंदाज कर दिया। सलीम मियां बहुत बैचेनी से अपनी टोपी हर जगह जा कर खोज रहे थे, तभी उन्होंने सड़क किनारे खड़ी एक बुर्कानशीं के हाथों में अपनी टोपी देखी। फिर क्या था,लंबे कदम भरते हुए सलीम मियां उसके पास पहुंचे और सलाम करते हुए उन्होंने उससे अपनी टोपी लौटाने की गुजारिश की। सलीम मियां बेचारे क्या जानते थे कि आज उनकी किस्मत में कुछ और बदा है। उनका बात करना हुआ और उधर आदाब करते हुए उसका अपना नकाब हटाना... सलीम मियां के लिए तो वक्त जैसे ठहर ही गया। अपनी टोपी उससे वापस लेते हुए वे अपना दिल भी उसे दे बैठे। जरा सी देर की बातचीत में ही उन्होंने उसे अपना नाम और काम बताते हुए अपना मोबाइल नंबर भी दे दिया, साथ ही दुकान पर तशरीफ लाने का न्यौता भी।

सलीम मियां को पूरा विश्वास था कि वह उनकी दुकान पर जरूर आएगी, तब वे उससे उसका पूरा पता जान कर अपने दिल का हाल भी बयां कर देंगे। टोपी सकुशल लौटाने के एवज में उन्होंने उसके और उसके परिवार की सभी औरतों के कपड़े बहुत कम दाम में सिलने की पेशकश दे डाली थी। उनका यकीन सही साबित हुआ जब 2 दिन बाद ही वह लड़की अपनी किसी बहन या सहेली के साथ उनकी दुकान पर आ गयी। सलीम मियां ने भी पूरी दरियादिली दिखाते हुए ना केवल उनका इस्तकबाल किया, बल्कि गर्मागर्म समोसे-कचौड़ी के साथ गुलाबजामुन भी उनकी खिदमत में पेश करने के लिए तुरंत शकील मियां को सिलाई मशीन से उठा कर छज्जू हलवाई के पास रवाना कर दिया।

अब छज्जू हलवाई के समोसे-मिठाई का जादू था या फिर सलीम मियां की दिलकश बातों का असर, वह यानी शाजिया अब अकसर ही किसी ना किसी बहाने से दुकान पर आने लगी। दुकान से आगे बढ़ते हुए उन्होंने झील के किनारे जा कर एक ही पैकेट से पॉपकॉर्न खाने तक की दूरी भी जल्दी ही तय कर ली। फिर क्या था, इस दूरी के खत्म होते ही सलीम मियां ने अपनी अम्मी से बात करके शाजिया के यहां निकाह का पैगाम भिजवा दिया। शाजिया के घरवालों को भला क्या ऐतराज होता। अच्छा घर और कमाऊ लड़का देख कर उन्होंने भी तुरंत हां कर दी। सेहरा बांधते वक्त भी सलीम मियां अपनी प्यारी टोपी को नहीं भूले थे। शादी की पहली रात उन दोनों ने उस टोपी का शुक्रिया अदा किया, क्योंकि उसी की वजह से वे मिले थे।

सलीम भाई की कहानी में नया मोड़ तब आया, जब उनके जन्मदिन पर शाजिया बेगम ने उन्हें एक खूबसूरत मखमली टोपी बतौर नजराना दी। बेगम का मन रखने के लिए उन्होंने कुछ देर तक तो वह टोपी पहनी, पर उसके बाद उसे अलमारी में रख कर वह अपनी पुरानी टोपी पहन कर दुकान चले गए।

रात को घर लौटने पर उन्हें आज दस्तरखान पर लजीज खाने की पूरी उम्मीद थी, लेकिन काफी देर हो जाने के बाद भी घर में कोई आहट नहीं हुई। अम्मी चुपचाप उनके आगे अरहर की दाल, सब्जी और रोटी की थाली रख गयीं।

यों तो सलीम मियां ने कभी अपना जन्मदिन मनाया नहीं था, पर अब बात अलग थी। उनको यकीन था कि शाजिया ने जरूर आज कुछ अच्छा पकाया होगा, लेकिन थाली देख कर उनका मन खराब हो गया। शाजिया भी कहीं नहीं दिख रही थी। खैर, उन्होंने सभी खयालात को दरकिनार करते हुए खाना खत्म किया और हाथ धो कर अपने कमरे में चले गए, लेकिन शाजिया बेगम तो कमरे में भी नहीं थी।

‘‘हम बताना भूल गए कि शाजिया अपने मायके चली गयी है,’’ अम्मी के बताने पर सलीम मियां हैरान रह गए, ‘‘यों अचानक, फोन तो कर सकती थी।’’

बिस्तर पर लेट कर सलीम मियां ने शाजिया को फोन मिलाया। इससे पहले कि सलीम मियां शाजिया से अपनी नाराजगी बयान करते, शाजिया ने ही भड़कते हुए आइंदा फोन ना करने की हिदायत दे दी।

‘‘अरे बेगम, पर हुआ क्या?’’

‘‘उस पुरानी टोपी में ऐसा क्या है, जो मेरे तोहफे को एक दिन भी नहीं पहन सके?’’

‘‘जानू, वह तुमने इतनी मुहब्बत से दिया था, खराब ना हो जाए, इसलिए...’’ थूक गटकते सलीम मियां बस इतना ही अपनी सफाई में कह सके थे कि शाजिया ने उनकी बात काट दी।

‘‘जबसे शादी हुई है, उस मुई टोपी के लिए तुम्हारी दीवानगी देख कर पक गयी हूं मैं। सोते- जागते, उठते-बैठते तुम्हारी वह टोपी मेरी सौतन बन कर तुम्हारी सरताज बनी घूमती है। कान खोल कर सुन लो- या तो वह टोपी या मैं... जब तय कर लो, तब उसके बाद या तो तलाकनामा भिजवा देना या फिर मुझे लेने आ जाना तुम्हारे फैसले के मुताबिक,’’ कह कर फोन पटक दिया गया, जिसकी धमक सलीम मियां के कानों में देर तक गूंजती रही।

सलीम मियां ने सपने में भी एेसा नहीं सोचा था। टोपी और शाजिया दोनों ही उनको प्रिय थे, किसी एक को चुन पाना उनके बूते के बाहर था।

‘‘देखो सलीम मियां, गृहस्थी औरत से चलती है, ना कि टोपी से। मैं कितने दिन तुम्हारी रसोई पकाती रहूंगी,’’ अम्मी भी सारी बात जानने के बाद जब-तब समझाइश देती रहती थीं। सलीम मियां सब समझते थे, लेकिन टोपी को खुद से जुदा कर पाने का खयाल भी उनको पसीना-पसीना कर देता था। दूसरी ओर शाजिया का हसीन चेहरा और उसके साथ बिताए हसीन लमहों की यादें उन्हें बेकरार कर देती थीं। बेखयाली का असर उनके काम पर भी पड़ने लगे गया था, जब उन्होंने जम्पर के कपड़े की सलवार सिल दी और सलवार की जगह जम्पर।

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तंग आ कर कुछ दिन के लिए उन्होंने दुकान ही बंद कर ली। ज्यादा तनाव के कारण सलीम मियां ने बिस्तर पकड़ लिया, लेकिन अभी तक वह कोई माकूल फैसला नहीं ले पा रहे थे। बीमारी भी इतनी बढ़ी कि हकीमों की दवा और मौलवियों की दुआ का भी कोई असर ना हो रहा था।

एक दिन अम्मी से रहा नहीं गया और उन्होंने शाजिया को फोन कर सलीम मियां की बीमारी के बारे में बता दिया। शाजिया बेगम तुरंत अपने शिकवे-शिकायत सब भूल कर नंगे पांव ही दौड़ी चली आयी। सलीम भाई का काला पड़ा चेहरा देख कर बेगम का कलेजा मुंह में आ गया। उसने अपनी जिद का ऐसा नतीजा तो सोचा तक नहीं था। सलीम मियां के सिरहाने बैठ कर उसने अपने दुपट्टे से जैसे ही उनका चेहरा पोंछा, सलीम मियां ने आंखें खोल दीं। शाजिया को अपने सामने देख कर आखिरकार उसका हाथ पकड़ कर वे फूट-फूट कर रो पड़े। मौके की नजाकत देखते हुए सभी ने उन्हें कमरे में अकेला छोड़ दिया। 

एक-दूसरे के गले लग कर रोते, एक-दूसरे के आंसू पोंछते हुए आंखों ही आंखों में माफी मांग भी ली गयी और माफ कर भी दिया गया। शाजिया बेगम की मुहब्बत और तीमारदारी रंग लायी और जल्दी ही सलीम मियां वापस दुकान पर आ गए, लेकिन टोपी... वह अब भी उनके सिर पर थी। ना... ना वह वाली नहीं, उसे तो दुकान के अंदर कांच के शोकेस में सजा दिया गया था, यह तो वह टोपी थी, जो शाजिया बेगम ने उन्हें तोहफे में दी थी।