Tuesday 29 December 2020 03:40 PM IST : By Deepa Pandey

मासूम सवाल

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अनन्या सोसाइटी के पार्क के चक्कर लगा कर जब थक गयी, तो पार्क में लगे झूले में बैठ गयी। इस सोसाइटी में उसकी कंपनी का गेस्ट हाउस है। पिछले महीने ही वह दिल्ली से बंगलुरु शिफ्ट हुई है। उसे कंपनी का मैनेजिंग डाइरेक्टर बना कर यहां भेजा गया है। अपनी तरक्की पर रोए या हंसे, उसे समझ ही नहीं आता। चालीस की उम्र के नजदीक पहुंच गयी है, मगर नितांत अकेली। उसकी इस ऊंचाई पर उसके संगी-साथी, रिश्तेदार सभी पीछे छूट गए हैं।

‘‘आंटी, ये बच्चों का झूला है,’’ पास खड़े बच्चे ने उसके सामने आ कर हाथ नचाते हुए तुतला कर कहा। अनन्या ने उसे गौर से देखा, वह गोरा, गदबदा सा घुंघराले बालों वाला बमुश्किल 3 साल का बच्चा था। उसकी बातों ने अनन्या को भी बच्चा बनने पर मजबूर कर दिया।

‘‘मैं भी तो छोटी बच्ची हूं।’’

‘‘नहीं, आप तो इत्ते बड़े हो,’’ बच्चे ने अपना हाथ हवा में लहराते हुए कहा और असंतुलित हो कर गिर पड़ा।

अनन्या ने उसे लपक कर उठा लिया। तभी उसकी मेड भी दौड़ कर आ गयी। अनन्या उसे देख कर मुस्करा दी।

‘‘अब मैं झूलूं?’’ उसने फिर पूछा।

‘‘अपना नाम बताओ पहले,’’ अनन्या ने छेड़ा।

‘‘अन्नव,’’ कह कर वह लपक कर झूले में चढ़ गया।

‘‘अर्णव,’’ मेड ने उसे झुलाते हुए बताया।

अब तो वह हर शनिवार, रविवार की शाम का बेसब्री से इंतजार करती और अर्णव को छेड़ने के नित नए तरीके अपनाती। महीनेभर में अर्णव भी उससे घुलमिल गया, मगर वह उसके परिवार के विषय कुछ नहीं जानती थी, मेड से पूछने में हिचक लगती। वह मेड की हरकतों पर नजर रखती। मेड का किसी के साथ अफेअर चल रहा था। अकसर वह लड़का भी वहीं पेड़ के नीचे बैठा मिलता। वह सोचती, ‘लोग मेड के भरोसे नन्हे बच्चों को कैसे पार्क में भेज देते हैं, क्या इन लोगों के पास नन्हे बच्चे के संग कुछ देर खेलने का भी समय नहीं हैं?’

कुछ दिनों के बाद ही उसने देखा, अर्णव अपने पापा का हाथ पकड़ कर पार्क में आने लगा। लोग दूर से ही उन्हें पहचान सकते थे। एकदम अपने पापा की छवि लिए अर्णव अब पहले से ज्यादा उछलकूद करता दिखता। शायद मेड के अफेअर की जानकारी घर वालों को हो गयी थी। अब मेड पार्क में नहीं दिखती थी। उसके पिता के आने से उसने अर्णव के नजदीक जाना छोड़ दिया और दूर बेंच में बैठ कर उसे निहारा करती। कभी अर्णव की नजर पड़ती, तो वह ‘‘आंटी, न्यू बॉल’’, ‘‘आंटी, माय न्यू टॉय’’ कहता हुआ उसके नजदीक आ जाता।

उस दिन अर्णव अपनी दादी मनीषा के साथ, जब पार्क में आया, तो अनन्या को उसकी दादी बहुत पसंद आयीं। वे शहर के प्रतिष्ठित स्कूल के प्रिंसिपल पद से पिछले साल ही रिटायर हुई हैं। वे दोनों एक-दूसरे के साथ देर तक बातें करती रहीं।

घर आ कर अर्णव दादी के साथ बैठा टीवी देख रहा था, तो दादी ने पूछा, ‘‘इन्हीं आंटी की बातें बताते थे अर्णव?’’

‘‘हूं... आंटी मेरे साथ खेलती थी, अब पापा के साथ नहीं आती खेलने।’’ उसकी बात पर मनीषा मुस्करा कर रह गयीं।

उन्हें अपने बेटे विहान का बचपन याद आ गया। दिल्ली के महारानी बाग में उनकी पुश्तैनी कोठी थी। संयुक्त परिवार का लंबा-चौड़ा कारोबार चांदनी चौक में फैला हुआ था। कितने लाड़-प्यार में अपने कजिंस के साथ उसका बचपन बीता। शुरू से ही कुशाग्र बुद्धि के साथ बहुत ही आज्ञाकारी रहा है। सामने की कोठी के जिंदल परिवार की सुरभि को मानो सभी ने हृदय से विहान की पत्नी के रूप में चुन लिया था। वह भी पूरे अधिकार के साथ रसोईघर, पूजाघर हो या विहान का कमरा, अपने हिसाब से सेट कर जाती। इतने सुंदर रंग संयोजन के साथ माला तैयार करती कि विहान की दादी गदगद हो उठतीं। सुरभि जितनी खूबसूरत थी उतनी ही गुणवान भी, एक ही कमी थी कि वह अपनी जिद के आगे किसी की नहीं सुनती और अपनी कमी निकालनेवालों को बिलकुल पसंद नहीं करती। बस उसकी तारीफ करते रहो, तो वह खुशी-खुशी काम करती रहती।

विहान के दिमाग में सभी ने सुरभि को उसकी भावी पत्नी के रूप में स्थापित कर दिया, जिसे उसके सरल हृदय ने स्वीकार भी कर लिया था। विहान पढ़ाई के साथ खेलकूद में भी अव्वल रहता। उसके पास सुरभि के लिए ज्यादा वक्त नहीं रहता, मगर उसके हृदय में सुरभि की एक खास जगह सुरक्षित हो गयी थी। जब वह विदेश से
मैनेजमेंट की डिग्री ले कर लौटा, तब तक हालात बदल चुके थे। सुरभि ने अपने पिता का बिजनेस जॉइन कर लिया था। अब उसे अपने पिता के बिजनेस को नयी ऊंचाइयों की ओर ले जाने का शौक सवार हो गया था। ऑफिस स्टाफ भी उसकी तुलना उसके भाई के साथ करता, तो सुरभि को अव्वल ही पाता। सुरभि ने ऑफिस में अपनी अच्छी पकड़ बना ली।

विहान जब विदेश से लौटा, तो उसके लिए ढेर सारे विदेशी तोहफे ले कर आया। सुरभि इतने सारे गिफ्ट देख कर चौंकी, उसे भोलेभाले विहान से इतने सारे गिफ्ट पाने की उम्मीद नहीं थी।

‘‘पहले यह बताओ, इतने खूबसूरत गिफ्ट चुनने की अक्ल कहां से आयी?’’

‘‘ये तो मान्यता ने पसंद कराए, जब मैंने उसे तुम्हारे बारे में बताया,’’ विहान मुस्कराया।

‘‘मान्यता पर तो तुम्हारा दिल नहीं आ गया था?’’ सुरभि ने छेड़ा।

‘‘वह शादीशुदा एक बच्चे की मां है। अपने बेटे और पति को इंडिया में छोड़ कर वहां यूके में एडवांस स्टडी के लिए दो साल के लिए आयी थी।’’

‘‘उस पैकेट में क्या है,’’ सुरभि ने विहान को एक पैकेट कपड़ों के बीच छिपाते देख लिया था और उसके हाथ से झपट लिया।

‘‘रुको, इसे मत खोलो, यह सरप्राइज है। तुम्हें शादी के बाद ही मिलेगा,’’ मगर तब तक सुरभि पैकेट खोल चुकी थी। उसके अंदर रेशमी, मलमल और शिफॉन की बेहद खूबसूरत वन पीस ड्रेस थी।

‘‘वाअो, इतनी खूबसूरत ड्रेस, तुम मुझसे क्यों छिपा रहे थे?’’

‘‘यह मैं तुम्हें हनीमून पर देना चाह रहा था,’’ विहान ने शर्माते हुए अपना सिर खुजाया।

‘‘हनीमून को भूल जाओ, मैं इतनी जल्दी शादी करने के मूड में नहीं हूं।’’

‘‘क्यों, यही तो सही उम्र है, अगले महीने मैं भी तीस का हो जाऊंगा और तुम भी सत्ताईस की हो गयी हो। अब और कितना शादी को डिले करेंगे।’’

‘‘मुझे अपना खुद का बिजनेस सेटअप करना है। पापा के बिजनेस में सारी मेहनत मैं करूं, फिर भी क्रेडिट बेटे को दिया जाता है।’’

‘‘चलो, अपन शादी के बाद एक नया बिजनेस तुम्हारे नाम से शुरू कर देंगे,’’ विहान ने प्रस्ताव रखा, जिसे सुरभि ने सिरे से नकार दिया।

‘‘ना बाबा ना, मुझे हर काम में परफेक्शन चाहिए, यों ही जल्दबाजी का काम मुझे पसंद नहीं। शादी होगी तो पूरे धूमधाम के साथ, डिजाइनर कपड़े, गहने, खूबसूरत लोकेशन में।’’
विहान ने चुप्पी साध ली। साल दर साल गुजरते गए, मगर सुरभि की ऊंचाइयों की चाहत बढ़ती ही चली गयी। बिजनेस प्रतिस्पर्धा का चस्का ऐसा लगा कि उसे इसके अतिरिक्त कुछ ना सूझता। विहान के लिए कई रिश्ते आए, मगर सुरभि के आगे उसे सब फीके लगे। पांच वर्ष गुजर गए। सुरभि उसे दूसरों की कंपनी में काम करने के बजाय खुद का बिजनेस शुरू करने की सलाह देती। मगर विहान अपनी कंपनी में नित नयी तरक्की करता जा रहा था। विहान की कंपनी ने बंगलुरु में नयी ब्रांच खोली, तो उसे कंपनी का ब्रांच हेड बना कर भेज दिया। विहान के साथ उसकी मां मनीषा उसका फ्लैट सेटअप करने आयी थीं, मगर उनकी पुरानी सहेली ने अपने स्कूल की प्रिंसिपल का पद ऑफर कर दिया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया और दिल्ली के स्कूल से इस्तीफा दे कर बेटे के संग ही रहने लगीं। विहान के पिता अपने स्वास्थ्य के चलते पुश्तैनी बिजनेस भतीजों को पहले ही सौंप चुके थे। अपने हिस्से के रुपयों से उन्होंने इस पॉश सोसाइटी में फोर बीएचके फ्लैट ले लिया।

‘‘बड़ी मां, दूसरा कार्टून लगा दो ना,’’ अर्णव मचला।

‘‘आ जा बेटे, हम दोनों डोरीमोन देखेंगे,’’ बड़े पापा उसे गोद में उठा कर अपने कमरे में ले कर चले गए। मनीषा अपने बेटे विहान के भविष्य को ले कर देर तक सोचती रही।

उस दिन मॉल में एस्केलेटर से ऊपर चढ़ते हुए अनन्या ‘आंटी-आंटी’ सुन कर चौंक गयी। अर्णव अपने पापा की गोद में चढ़ा उसे ही पुकार रहा था। गोद से उतरते ही दौड़ कर उसके पास आ गया।

‘‘आंटी, मेला बरदे है।’’

‘‘बरदे नहीं बर्थडे,’’ पीछे से उसकी दादी मनीषा ने उसे सुधारा।

‘‘जबसे इसे पता चला है कि इस महीने इसका बर्थडे है, तभी से सबको बताता घूम रहा है। आज तो अपना बर्थडे गिफ्ट लेने आए हैं ये,’’ कह कर दादी ने अर्णव को गोद में उठा लिया और ‘‘फिर मिलते हैं’’ कह कर वे तेजी से उस ओर चली गयीं, जहां अर्णव के दादा जी और पापा खड़े थे। अनन्या मुस्करा कर रह गयी, फिर उसने अर्णव के लिए रिमोट कार खरीद ली। अपनी शॉपिंग पूरी कर जब वह कॉफी पीने के लिए कैफे में आयी, तो वहां अर्णव का परिवार पहले से मौजूद था। मनीषा ने हाथ हिला कर उसे अपने पास बुला लिया और सभी से उसका परिचय कराया।

विहान उसे देख कर चौंक गया। पिछले 6 महीनों से वह उसे पार्क में देख रहा था। अर्णव उसे देख कर तुरंत दौड़ कर जाता और हाथ हिला-हिला कर ना जाने क्या कहता रहता कि वह देर तक हंसती रहती। विहान उसे घरेलू महिला ही समझता था। उसकी सादगी में ही उसका सौंदर्य छिपा था। उसे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि मैनेजिंग डाइरेक्टर की पोस्ट पर पहुंच कर भी वह मन से बच्ची ही थी। सबकी उपस्थिति से बेखबर वह अर्णव को छेड़ने में लगी रही। अर्णव भी उसके पास रखा पैकेट उलटपलट करने लगा।

‘‘हैप्पी बर्थडे अर्णव,’’ कह कर उसने रिमोट कार का पैकेट उसे थमा दिया।

अर्णव ने भी लपक कर पैकेट खोल दिया और रिमोट कार देख कर खुशी से कमर मटकाने लगा। उसकी इस हरकत पर सभी को हंसी आ गयी।

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‘‘इसके जन्मदिन पर तुम घर आना अनन्या, ऐसे नहीं चलेगा,’’ मनीषा ने कहा, तो अनन्या ने हामी भर दी।

घर आ कर अनन्या की आंखों के आगे अपने भतीजे रोहन का चेहरा घूमने लगा। उसने सोचा कि वह दिल्ली वापस लौट जाएगी। यहां घर-परिवार से दूर अकेलापन अब अखरने लगा था। उसने भाभी को वीडियो काॅल मिलाया।

‘‘अरे जिज्जी, हम तुम्हें ही याद कर रहे थे। यह देखो इस बेडरूम का मेकओवर ही कर दिया हमने, पूरा रोहन के हिसाब से फर्नीचर बनवा दिया है। ये कॉर्नर में स्टडी टेबल, ये कॉर्नर प्ले एरिया और ये रहा इसका बेड। यह देखो जिज्जी, दीवारों पे कार्टून बनवा दिए हैं।’’

अनन्या अवाक सी देखती ही रह गयी, उसके मुख से बोल ही ना फूटे। छह-सात महीने ही हुए हैं उसे बंगलुरु आए और वह घर से बेदखल कर दी गयी। उसका कमरा रोहन को सौंप दिया, उसकी राय भी ना ली। उसकी कनपटियां सुलगने लगीं, आंखों से आंसू बहने लगे। वह देर तक अपनी पिछली जिंदगी के विषय में सोचती रही।
अपने घर की बड़ी बेटी होने का उसने बखूबी फर्ज निभाया। पिता की अचानक हृदय गति रुक जाने से अपनी शिक्षा के साथ दो छोटे भाई-बहन की जिम्मेदारी भी उसी के कंधों पर आ गयी। बीकॉम के साथ पार्टटाइम जॉब भी करने लगी। पिता जी की जमापूंजी से दोनों छोटे भाई-बहन की उच्च शिक्षा में कमी ना होने दी। स्वयं भी एमबीए की डिग्री हासिल की। अपने से छोटे दोनों भाई और बहन की गृहस्थी बसा कर वह भाई के परिवार के संग दिल्ली में राजी खुशी रह रही थी। उसे बुआ-बुआ कह कर पुकारनेवाला रोहन उसकी जिंदगी की खुशियों का लक्ष्य बन कर रह गया था। मगर इस प्रमोशन ने उसके सारे भ्रम तोड़ दिए। महीनेभर के बंगलुरु प्रवास के दौरान ही उसे ऐसा लगने लगा जैसे भाई की जिंदगी में उसकी कोई अहमियत ही ना रह गयी हो। पहले हफ्ते तो हर दिन फोन आए, ‘‘कैसी हैं दी?’’, ‘‘हमारा मन नहीं लग रहा’’, ‘‘रोहन बहुत याद करता है’’ आदि-आदि। मगर अब वह खुद ही फोन मिलाती, तो जैसे सब डिस्टर्ब हो जाते हैं, ‘‘जीजी, पड़ोस से विभा आयी हैं बाद में बात करती हूं’’, ‘‘बुआ, अभी मैं खेल रहा हूं, बाद में फोन करना’’, ‘‘दीदी, हम ठीक हैं आप अपना ख्याल रखना, थोड़ी देर में कॉल करता हूं, जरा प्रोजेक्ट वर्क देख लूं।’’

छोटी बहन अमृता ससुराल क्या गयी, मानो उससे ज्यादा तो कोई गृहस्थी में क्या व्यस्त होगा। उसका तो हमेशा से यही कहना है, ‘‘गृहस्थी चलाना और नौकरी करना दो अलग अनुभव हैं, मैंने तो दोनों ही देख लिए। तुम्हारे तो मजे हैं दी, पिसते तो हम जैसे हैं दो पाटों में,’’ यह सब सोचते हुए अनन्या ने ठंडी सांस ली। मां आज जीवित होतीं, तो उन्हें ही साथ ले आती। किसी से दो मीठे बोल सुनने को कान तरस कर रह गए हैं।

उस दिन उसे मीटिंग में 7 बज गए। गेस्ट हाउस लौटते समय कार में उसने मैसेज चेक किए, तो देखा मनीषा की कई काॅल और मैसेज थे। आज अर्णव के जन्मदिन का निमंत्रण भेजा था।

घर आ कर अनन्या तैयार होते समय यही सोचती रही कि अर्णव की मम्मी का जिक्र कभी नहीं होता। क्या उनका तलाक हो चुका है? क्या उसकी मां अब इस दुनिया में ही नहीं रही? ऐसा क्या है कि मनीषा उससे सभी विषयों पर खुल कर बात कर लेती हैं, मगर वे खुद अर्णव की मां का नाम भी नहीं लेतीं। वह भी उनकी उम्र का लिहाज कर ज्यादा कुछ पूछ नहीं पाती। आज वह उनके घर जा कर इस रहस्य का सुराग पाने की पूरी कोशिश करेगी। फिर अपने विचारों पर खुद ही हंस पड़ी।

जब 9 बजे उसने अर्णव के घर की काॅलबेल बजायी, उस समय कुछ मेहमान वापस जाने की तैयारी में थे, कुछ जा चुके थे। अनन्या एक बड़ा सा टेडी ले कर जब घर में दाखिल हुई, तो उसने अपना चेहरा टेडी के पीछे कर लिया और अर्णव के पास जा कर बोली, ‘‘हैप्पी बर्थडे।’’

अर्णव खुशी से झूम उठा और उसका हाथ पकड़ कर अपने उपहार दिखाने के लिए अपने कमरे में खींच ले गया। अनन्या सकुचाती सी उसके पीछे चली गयी। कमरे में रखे उपहारों की जगह उसकी नजर कमरे में लगी तसवीरों में अटक गयी। नन्हे अर्णव की अपने पापा, दादा, दादी सभी के साथ तसवीरें सजी हुई थीं, मगर उसकी मां की नहीं थी। अनन्या का मन बुझ गया। वह सोचने लगी, ‘कैसे लोग हैं, अर्णव की अपनी मां के साथ एक भी फोटो तक नहीं लगा रखी है।’

‘‘अनन्या, आओ डिनर कर लेते हैं,’’ मनीषा ने आ कर अर्णव को गोद में उठाते हुए कहा।

डिनर टेबल पर घर के सदस्य ही मौजूद थे, अर्णव चपर-चपर बोलता जा रहा था। अनन्या अपनी और अर्णव की मां की तुलना करते हुए सोचने लगी कि कैसे लोग हैं, जो नजर से दूर होते ही लोगों को दिलों से भी दूर कर देते हैं। वहां मेरे भाई के परिवार ने मुझे अपनी जिंदगी से निकाल फेंका, यहां अर्णव की मां को इन लोगों ने अपनी जिंदगी से दूर कर दिया है। खाने का कौर मानो उसके गले में अटकने लगा था।

‘‘खाना पसंद नहीं आया क्या?’’ मनीषा ने उसे सकुचाते हुए देख कर कहा।

‘‘वह अर्णव की मां को क्या हुआ था?’’ वह खुद को पूछने से रोक ना सकी। उसने सोचा अगर उसे सच ना पता चला, तो वह आगे से इस परिवार के साथ कोई संबंध नहीं रखेगी।

‘‘पहले तुम बताओ, तुम अर्णव के साथ इतनी जल्दी कैसे घुलमिल गयीं?’’ मनीषा ने पूछा।

‘‘मेरा भतीजा है रोहन, इसी की उम्र का। बंगलुरु आ कर मैं उसे बहुत मिस करती थी। फिर अर्णव पार्क में मिला, तो मानो मुझे रोहन वापस मिल गया। रोहन के साथ ऑफिस से आते ही मैं भी बच्ची बन कर अपनी दिनभर की थकान को भूल जाती थी। इसी वजह से अर्णव में मुझे रोहन की ही छवि दिखती, इसकी तोतली भाषा मन को गुदगुदा जाती। बस, इसी से मेरा अर्णव के प्रति लगाव बढ़ता ही गया। बच्चे तो प्रेम की भाषा ही समझते हैं। अर्णव भी अपना प्रेम मुझ पर बरसा जाता है।’’ अनन्या की बातों को विहान गौर से सुन रहा था। अर्णव उबासी लेने लगा, तो विहान उसे सुलाने के लिए ले कर चला गया।

‘‘अगर मैं कहूं कि अर्णव की ‘बायोलॉजिकल मदर’ तो है, मगर सामाजिक मान्यता प्राप्त नहीं, तो क्या तुम समझ पाओगी?’’

‘‘नहीं, मैं कुछ नहीं समझी,’’ अनन्या ने कहा।
मनीषा ने विहान के जीवन में घटी घटना से परदा उठा दिया। उस दिन को मनीषा कभी भूल नहीं भूल सकती, जब अचानक शादी का जिक्र करते ही विहान भड़क गया था, ‘‘शादी-शादी-शादी, पहले मैं बरसों तक सुरभि का इंतजार करता रहा और साथ ही आपकी जिद की वजह से जितनी भी लड़कियों से मिला हूं, उनकी शर्तें सुन कर, देख कर ऊब चुका हूं। मुझे शादी नहीं करनी बस।’’

‘‘ऐसा नहीं कहते बेटा, समय से शादी ना हुई, तो आगे परिवार बढ़ाने में मुश्किल आएगी,’’ मनीषा ने समझाया।

‘‘परिवार? हां, आपको दादी बनना हैं ना और मुझे भी पापा बनना है। सही कहा आपने। जो एनर्जी लेवल अभी है वह 10 साल बाद नहीं रहेगा। बाद में मैं भी अपने बच्चे के संग उसका बचपन कैसे एंजॉय कर पाऊंगा?’’

‘‘तो फिर शादी को मना क्यों करता है?’’

‘‘मां, बच्चा हम सरोगेट विधि से भी पा सकते हैं, उसके लिए शादी की जल्दबाजी क्यों?’’

‘‘कैसी बातें कर रहा है? अगर तेरे पापा ने भी यही सोचा होता, तो?’’

‘‘आपके जमाने की बात और थी मां, आपने मेरे स्कूल जाने तक अपने कैरिअर से ब्रेक लिया। मेरे स्कूल जॉइन करने पर ही आप भी दोबारा स्कूल गयीं। मेरे बंगलुरु आते ही आपने अपना पुराना जॉब छोड़ दिया, फिर नए सिरे से स्कूल जॉइन कर लिया। आजकल ऐसी लड़कियां नहीं हैं मां, अपने कैरिअर के लिए शादी, बच्चे सब भूली बैठी हैं। जिनके बच्चे गलती से हो भी गए हैं, वे आया, मेड के भरोसे छोड़ कर आती हैं, कोई विदआउट पे घर नहीं बैठना चाहता। ऐसी लड़कियों से शादी करने से बेहतर है कि अभी बच्चा घर ले आते हैं। जब अच्छी सी लड़की मिलेगी, तो शादी भी कर लूंगा।’’ मनीषा बेटे का तर्क सुन कर भौंचक्की रह गयीं।

मां-बेटे के बीच देर तक बहस चली। आखिरकार मां ने हथियार डाल दिए। उन्हें सुरभि के किसी बड़े बिजनेसमैन से शादी तय कर लेने की खबर मिल गयी थी। बेटे का हृदय दरक चुका था।
किसी भी लड़की पर उसे अब विश्वास नहीं रह गया था। विहान के प्रस्ताव को मां की हरी झंडी मिल गयी। जल्द ही नन्हा अर्णव घर आ गया। इस बार विहान ने मां को नौकरी छोड़ने से मना कर दिया और कहा, ‘‘दो साल बाद आपका रिटायरमेंट है, तब तक मैं और पापा मेड के साथ मिल कर इसे संभाल लेंगे।’’

‘‘अर्णव के घर आने से विहान भी अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गया,’’ मनीषा ने अनन्या को अर्णव के विषय में सब खुल कर बता दिया।

अनन्या को सुन कर एक झटका लगा। सरोगेट मदर्स के विषय में बहुत कुछ पढ़ा-सुना था, मगर ऐसी किसी फैमिली से वह आज तक ना मिली थी। उसे अर्णव को अपने गले से चिपका कर ढेर सारा प्यार उड़ेल देने का मन करने लगा।

‘‘अनन्या, क्या सोचने लगीं? क्या तुम्हें विहान का यह फैसला गलत लगता है?’’ मनीषा ने बेबाकी से पूछा।

‘‘नहीं, मुझे तो बस अर्णव को ढेर सारा प्यार करने का मन कर रहा है,’’ अनन्या ने मुस्कराते हुए कहा।

तभी कच्ची नींद से उठ कर आंखें मलता हुआ अर्णव ड्राॅइंगरूम में सबको ढूंढ़ता हुआ आ गया। अनन्या को बैठा हुआ देख कर दौड़ कर उसके पास आ कर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘आंटी, आज आप मेले साथ सोएंगी?’’

उसके मासूम सवाल पर अनन्या और विहान एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे।