Monday 02 November 2020 12:45 PM IST : By Mamta Raina

सोच

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‘‘कितने दिन के लिए जा रही हो,’’ प्लेट से एक और समोसा चट करते हुए दीपाली ने पूछा।

‘‘रहेंगे यही कोई 8-10 दिन, और क्या?’’ सलोनी उकताए स्वर में बोली।

ऑफिस के टी ब्रेक के दौरान दोनों सहेलियां कैंटीन में बैठी बतिया रही थीं। सलोनी की कुछ महीने पहले ही दीपेन से नयी-नयी शादी हुई थी। दोनों साथ काम करते थे। कब प्यार हुआ पता नहीं चला और चट मंगनी पट ब्याह की तर्ज पर आज दोनों शादीशुदा जोड़े बन कर एक ही ऑफिस में काम कर रहे थे, बस डिपार्टमेंट अलग था। सारा दिन एक ही जगह काम करने के बावजूद उनको एक-दूसरे से मिलने-जुलने की भी फुरसत नहीं होती थी। आईटी की नौकरी ही कुछ एेसी थी।

‘‘अच्छा एक बात बताअो, तुम रह कैसे लेती हो उस जगह में। तुमने तो बताया था किसी देहात में है तुम्हारी ससुराल,’’ दीपाली आज पूरे मूड में थी सलोनी को चिढ़ाने में। वह जानती थी ससुराल के नाम से कैसे चिढ़ जाती है सलोनी।

‘‘जाना तो पड़ेगा ही, इकलौती ननद की शादी है। अब कुछ दिन झेल लूंगी और क्या,’’ सलोनी ने कंधे उचकाए।

‘‘और तुम्हारी जेठानी, क्या बुलाती हो जिसे तुम? हां भारतीय नारी अबला बेचारी।’’ दोनों हंस पड़ीं, ‘‘यार पूछो मत, क्या बताऊं। उनको देख कर मुझे किसी पुरानी हिंदी फिल्म की हीरोइन याद आ जाती है। एकदम गंवार है गंवार। हाथ भर-भर चूडि़यां, मांग सिंदूर से पुती हुई और सिर पर हर वक्त पल्लू रखे घूमती है। कौन रहता है आज के जमाने में इस तरह। सच कहूं, तो एेसी पिछड़ी औरतों की वजह से ही मर्द हम औरतों को कमतर समझते हैं, पता नहीं कुछ पढ़ी-लिखी है भी या नहीं।’’

‘‘खैर मुझे क्या। काट लूंगी कुछ दिन किसी तरह। चल, टाइम अप हो गया, बॉस घूर रहा है।’’ दोनों अपनी अपनी सीट पर लौट आयीं।

सलोनी शहर में पली-बढ़ी आधुनिक लड़की थी। दीपेन से शादी के बाद जब उसे पहली बार अपने ससुराल जाना पड़ा, तो उसे वहां की कोई चीज पसंद नहीं आयी। उसे पहले कभी किसी गांव में रहने का अवसर नहीं मिला था। दो दिन में ही उसका जी ऊब गया उस ठेठ परिवेश में। बड़ी मुश्किल से 2-4 दिन रहने के लिए दीपेन ने उसे राजी किया था।

शहर में जींस-टॉप पहन कर आजाद तितली की तरह घूमनेवाली सलोनी को साड़ी का घूंघट निकाल छुईमुई बन कर बैठना क्या रास आता। ससुराल वाले पारंपरिक विचारों के लोग थे। उसे ससुर, जेठ के सामने सिर पर पल्लू लेने की हिदायत मिली। सलोनी की सास पुरातनपंथी थी, मगर जेठानी अवनि बहुत सुलझी हुई थी।

छोटी ननद गौरी नयी भाभी के आगे-पीछे घूमती रहती थी, सलोनी गांव की औरतों की सरलता देख कर हैरान होती थी। वह खुद दिल की बुरी नहीं थी, मगर ना जाने क्यों पारंपरिक औरतों के बारे में उसके विचार कुछ अलग थे। सिर्फ घर-गृहस्थी तक सीमित रहने वाली ये औरतें उसकी नजरों में निपट गंवार थीं।

शहर में अपनी नयी गृहस्थी बसा कर सलोनी खुश थी, यहां सास-ननद का कोई झंझट नहीं था, जो जी में आता करती। कोई टोकने वाला नहीं था, तो दीपेन और सलोनी के दोस्त वक्त-बेवक्त धमक जाते। घर पर आए दिन पार्टी होती, मौजमस्ती में दिन गुजर रहे थे।

कुछ दिन पहले ही दीपेन की छोटी बहन गौरी की शादी तय हुई थी। शादी का अवसर था, घर में मेहमानों की भीड़ जुटी थी। गरमियों का मौसम, उस पर बिजली का कोई ठिकाना नहीं होता था, हाथ पंखे से हवा करते सलोनी का दम निकला जा रहा था। गांव के इन पुराने रीतिरिवाजों से उसे कोफ्त होने लगी। एकांत मिलते ही सलोनी का गुस्सा फूट पड़ा।

‘‘कहां ले आए तुम मुझे दीपेन। मुझसे नहीं रहा जाता एेसी बीहड़ जगह में, ऊपर से सिर पर हर वक्त यह पल्लू रखाे। इससे तो अच्छा होता मैं यहां आती ही नहीं।’’

‘‘श...श... धीरे बोलो सलोनी, यार कुछ दिन एडजस्ट कर लो प्लीज, गौरी की शादी के दूसरे ही दिन हम चले जाएंगे,’’ दीपेन उसे आश्वस्त करने की कोशिश कर रहा था।

सलोनी ने बुरा सा मुंह बनाया। बस किसी तरह शादी निपट जाए, तो उसकी जान छूटे।

घर रिश्तेदारों से भरा था, इतने लोगों की जिम्मेदारी घर की बहुअों पर थी। सलोनी को रसोई के कामों का कोई तजुर्बा नहीं था। घर के काम करना उसे हमेशा बेकार लगता था। अपने मायके में भी उसने कभी मां का हाथ नहीं बंटाया था, एेसे में ससुराल में जब उसे कोई काम सौंपा जाता, तो उसके पसीने छूट जाते। जेठानी अवनि उम्र में कुछ ही साल बड़ी थी, मगर पूरे घर की जिम्मेदारी उसने हंसी-खुशी उठा रखी थी। घर के सब लोग हर काम के लिए अवनि पर निर्भर थे, हर वक्त सबकी जबान पर अवनि का ही नाम होता। सलोनी भी उस घर की बहू थी, मगर उसका अस्तित्व अवनि के सामने जैसे था ही नहीं और सलोनी भी यह बात जल्द समझ गयी थी।

घर के लोगों में अवनि के प्रति प्यार-दुलार देख कर सलोनी के मन में जलन की भावना आने लगी। आखिर वह भी तो उस घर की बहू थी, फिर सब अवनि को ही इतना क्यों मानते थे। हद तो तब हो गयी जब दीपेन भी हर छोटी-बड़ी बात के लिए अवनि पुकारता।
‘‘भाभी, मेरी शर्ट का बटन टूट गया है, जरा टांक दो,’’ बाथरूम से नहा कर निकले दीपेन ने अवनि को आवाज दी। सलोनी रसोई के पास बैठी मटर छील रही थी, वह तुरंत दीपेन के पास आयी।

‘‘यह क्या ! इतनी छोटी सी बात के लिए तुम अवनि भाभी को बुला रहे हो। मुझसे भी तो कह सकते थे,’’ उसने दीपेन को गुस्से से घूरा।

‘‘मुझे लगा तुम्हें यह सब नहीं आता होगा,’’ उसे गुस्से में देख दीपेन सकपका गया।

‘‘तुम क्या मुझे बिलकुल अनाड़ी समझते हो।’’ उसके हाथ से शर्ट ले कर सलोनी ने बटन टांक दिया। धीरे-धीरे उसे समझ आने लगा कि कैसे अवनि सबकी चहेती बनी हुई है। सुबह सबसे पहले उठ कर नहा-धो कर चौके में जा कर चाय-नाश्ता बना कर सबको खिलाना। बूढ़े ससुर जी को शुगर की समस्या थी। अवनि उनकी दवाई और खानपान का पूरा ध्यान रखती थी, सासू मां भी अवनि से खुश रहती, उस पर पति और 2 छोटे बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी निभाते हुए भी मजाल कि बड़ों के सामने पल्लू सिर से खिसक जाए। सुबह से शाम तक एक पैर पर नाचती अवनि सबकी जरूरतों का ख्याल बड़े प्यार से रखती थी।

घर आए रिश्तेदार भी अवनि को ही तरजीह देते थे। सलोनी जैसे एक मेहमान की तरह थी उस घर में। अवनि का हर वक्त मुस्कराते रहना सलोनी को दिखावा लगता, वह मन ही मन कुढ़ने लगी थी जेठानी अवनि से।

घर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए अब वह हर काम में घुस जाती थी, चाहे वह काम उसे आता हो या नहीं, और इस चक्कर में गड़बड़ कर बैठती, जिससे उसका मूड और बिगड़ जाता।

‘ठीक है मुझे क्या ! ये चूल्हा-चौका इन गंवार औरतों को ही शोभा देते हैं। कभी कॉलेज की शक्ल भी नहीं देखी होगी शायद, दो पैसे कमा के दिखाएं तब पता चले,’ सलोनी दिल में खुद को ही तसल्ली देती उसे अपनी काबिलियत पर गुमान था।

सलोनी के हाथ से अचार की बरनी गिर के टूट गयी थी। रसोई की तरफ आती अवनि फिसल कर गिर पड़ी और उसके पैर में मोच आ गयी। घर वाले दौड़े चले आए, अवनि को चारपाई पर लिटा दिया गया। सब उसकी तीमारदारी में जुट गए, उसे आराम करने की सलाह दी गयी, मगर उसके बैठ जाने से सारे काम बेतरतीब होने लगे।

बड़ी बुआ ने सलोनी को रसोई के काम में लगा दिया। सलोनी इस मामले में कोरा घड़ा थी, खाने में एक ना एक कमी रह जाती। सब नुक्स निकाल कर खाते और सलोनी पर घड़ों पानी पड़ जाता। वह समझ चुकी थी कि यहां वह एक बहू है, किसी मल्टीनेशनल कंपनी की टीम लीडर नहीं। उससे उम्मीद बस इतनी सी थी कि एक सुघड़ गृहिणी की तरह वह घर के काम संभाले। अवनि सलोनी की स्थिति समझती थी, वह उसे हर काम का तरीका समझाने की पूरी कोशिश करती, पर अभ्यास ना होने से उन्हें करने में सलोनी घंटों लगा देती। मंझली बुआ ने मीठे में फिरनी खाने की फरमाइश की, तो सलोनी को फिरनी पकाने का हुक्म मिला। उसके पास इतना धैर्य कहां था कि खड़े-खड़े कलछुल घुमाती, तेज अांच में पकती फिरनी पूरी तरह जल गयी।

‘‘अरे कुछ आता भी है क्या तुम्हें। पहली कभी घर का काम नहीं किया क्या?’’ सारे रिश्तेदारों के सामने मंझली बुआ ने सलोनी को आड़े हाथों लिया।

मारे शरम के सलोनी का मुंह लाल हो गया, उसे सच में नहीं आता था, तो इसमें उसका क्या दोष था।

‘‘बुआ जी, सलोनी ने ये सब कभी किया नहीं है पहले, वैसे भी वह नौकरी करती है, समय ही कहां मिलता है ये सब सीखने का उसे, आपके लिए फिरनी मैं फिर कभी बना दूंगी,’’ अवनि ने सलोनी का रुअांसा चेहरा देखा, तो उसका मन पसीज गया।

ननद गौरी की शादी धूमधाम से निपट गयी। रिश्तेदार भी एक-एक कर चले गए, अब सिर्फ घर के लोग रह गए थे। अवनि के मधुर व्यवहार के कारण सलोनी उससे घुलमिल गयी थी।

दो दिन बाद उन्हें वापस लौटना था, दीपेन ने ट्रेन की टिकट बुक करा दी। एक दिन दोपहर में सलोनी पुरानी अलबम देख रही थी। एक फोटो में अवनि सिर पर काली टोपी लगाए काला चोगा पहने हुए थी, फोटो शायद कॉलेज के दीक्षांत समारोह का था। उस फोटो को देख कर सलोनी ने दीपेन से पूछा, ‘‘ये अवनि भाभी हैं ना?’’

‘‘हां, फोटो उनके कॉलेज की है। भैया के लिए जब उनका रिश्ता आया था, तो यही फोटो भेजा था उनके घर वालों ने।

‘‘कितनी पढ़ी-लिखी हैं अवनि भाभी !’’ सलोनी हैरान थी।

‘‘अवनि भाभी डबल एमए हैं। वे नौकरी करती थीं, उन्होंने पीएचडी भी की हुई है। शादी के कुछ समय बाद मां बहुत बीमार पड़ गयी थीं, बेचारी भाभी ने कोई कसर नहीं रखी उनकी तीमारदारी में, अपनी नौकरी तक छोड़ दी। अगर आज मां ठीक हैं, तो सिर्फ भाभी की वजह से। तुम जानती नहीं सलोनी, भाभी ने इस घर के लिए बहुत कुछ किया है। वे चाहतीं, तो आराम से अपनी नौकरी कर सकती थीं, मगर उन्होंने हमेशा अपने परिवार को प्राथमिकता दी।’’

सलोनी जिस अवनि भाभी को निपट अनपढ़ समझती रही, वे इतनी काबिल होंगी, इसका तो उसे अनुमान भी नहीं था। पूरे घर की धुरी बन कर परिवार संभाले हुए अवनि भाभी ने अपनी शिक्षा का घमंड दिखा कर कभी घर-गृहस्थी के कामों को छोटा नहीं समझा था। सलोनी को अपनी सोच पर एक ग्लानि का अनुभव होने लगा। उसने आधुनिक कपड़ों और रहन-सहन को ही शिक्षा का पैमाना माना था।

‘‘अरे भई, कहां हो तुम लोग, बिट्टू के स्कूल के प्रोग्राम में चलना नहीं है क्या?’’ कहते हुए अवनि भाभी सलोनी के कमरे में आयीं।

‘‘हां भाभी, बस अभी 2 मिनट में तैयार होते हैं,’’ सलोनी और दीपेन हड़बड़ाते हुए बोले।

बिट्टू को अपने क्लास के बेस्ट स्टूडेंट का अवॉर्ड मिला, हर विषय में वह अव्वल रहा था। उसे प्राइज देने के बाद प्रिंसिपल ने जब मां-बाप को स्टेज पर दो शब्द कहने के लिए आमंत्रित किया, तो सकुचाते हुए बड़े भैया बोले, ‘‘अवनि तुम जाअो, मुझे समझ नहीं आता कि क्या बोलना है।’’

बड़े आत्मविश्वास के साथ माइक पकड़े अवनि भाभी ने अंग्रेजी में अभिभावक की जिम्मेदारियों पर जब शानदार स्पीच दी, तो हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

घर लौटने के बाद दीपेन से सलोनी ने कहा, ‘‘सुनो, कुछ दिन और रुक जाते हैं यहां।’’

‘‘लेकिन तुम्हारा तो मन नहीं लग रहा था, इसलिए तो इतनी जल्दी वापस जा रहे हैं,’’ दीपेन हैरान हो कर बोला।

‘‘नहीं, अब मुझे यहां अच्छा लग रहा है और मुझे अवनि भाभी से बहुत कुछ सीखना है,’’ सलोनी उसके कंधे पर टिकाते हुए बोली।

‘‘अोह तो यह बात है ! फिर तो ठीक है, कुछ सीख जाअोगी, तो कम से कम जला हुआ खाना तो नहीं खाना पड़ेगा,’’ दीपेन ने उसे छेड़ा और दोनों हंस पड़े।