Friday 23 October 2020 11:45 AM IST : By Renu Mandal

भंवर

Forme 9-1

रात्रि की नीरवता बढ़ती ही जा रही थी। घर के सब लोग गहरी निद्रा में लीन थे, किंतु मेरी आंखों से नींद कोसों दूर थी। पिछले दिन से ले कर आज शाम तक की घटनाएं चलचित्र की तरह आंखों के आगे तैर रही थीं।

कल ऑफिस से लौटते हुए आरव ने कार मेरे घर से कुछ दूरी पर रोकी थी। मैंने छलछलायी आंखों से उसे देखा फिर भावुक हो कर उससे लिपट गयी। कुछ क्षण हम एक-दूसरे के जज्बातों की उष्णता को आत्मसात करते रहे, फिर आरव से अलग होते हुए मैं रुंधे कंठ से बाेली, ‘‘क्या सोचा था और क्या हो गया आरव।’’

‘‘चिंता मत करो। सब ठीक हो जाएगा। तुम कहो, तो मैं अंकल-आंटी से बात करने के लिए मम्मी-पापा को देहरादून से बुला लूं।’’

‘‘नहीं आरव, हमें कुछ दिन और प्रतीक्षा करनी होगी। अभी पापा की तबीयत पूरी तरह ठीक नहीं है।’’

‘‘जैसी आज्ञा हुजूर की, किंतु अब तनहाई की रातें झेलना मेरे लिए बहुत कठिन है।’’ शरम से मेरे गाल आरक्त हो उठे। आरव ने ज्यों ही मेरे अधरों को चूमने का प्रयास किया, हंसते हुए मैंने पीछे धकेला और झट से कार से उतर गयी। आरव ने एक ठंडी आह सी भर कर कार आगे बढ़ा दी। घर पहुंच कर मैं सीधे पापा के कमरे में गयी। उन्हें सोता देख मैं अपने कमरे में आ गयी। तभी मम्मी चाय ले कर आ गयीं, ‘‘आज काफी देर हो गयी आने में।’’

‘‘हां मम्मी, ऑफिस में काम ज्यादा था।’’

‘‘नैनसी, कल शनिवार है। तुम घर पर ही रहना। शाम को कुछ लोग आएंगे। मेरी फ्रेंड सारिका को तुम जानती हो ना, उसके बेटे करन से मैंने तुम्हारे रिश्ते की बात चलायी है।’’

‘‘क्या ! मेरे रिश्ते की बात,’’ चाय का कप मेरे हाथों से छूटते-छूटते बचा।

‘‘बहुत पैसेवाले लोग हैं। शहर में इतना बड़ा बिजनेस है। उस पर करन इकलौता बेटा है। देखना, तुम वहां राज करोगी।’’

‘‘मम्मी, मैं आपको बता चुकी हूं, मैं आरव से प्यार करती हूं और उसके अलावा मैं किसी से शादी नहीं करूंगी।’’

‘‘मैंने भी तुमसे कह दिया था, आरव से तुम्हारी शादी कभी नहीं हो सकती। तुम्हारे पापा विजातीय लड़के से तुम्हारा रिश्ता कभी नहीं करेंगे। वे पहले ही बीमार हैं। तुम्हारी ये बचकानी हरकतें पता चल गयीं, तो कहीं उन्हें दूसरा हार्ट अटैक ना पड़ जाए। अब दोबारा कभी आरव का नाम मुंह पर मत लाना,’’ सुधा ने सख्ती से कहा और कमरे से बाहर चली गयी।

कटे वृक्ष की तरह मैं बिस्तर पर गिर पड़ी। समझ नहीं आ रहा था, इस समस्या को कैसे सुलझाऊं। शाम को जब लड़केवाले मुझे देखने आए, तो दिल पर पत्थर रख कर मुझे उनके सामने जाना पड़ा। चाय-नाश्ते के पश्चात करन ने मुझसे अकेले में बात करने की इच्छा व्यक्त की। लॉन में एकटक मुझे निहारते हुए वह बोला था, ‘‘आपको देखते ही मुझे लगा था, शायद मैंने पहले भी आपको कहीं देखा है। अब याद आ गया। 15 जनवरी को आपको 3-4 जनों के साथ देखा था।’’

15 जनवरी का जिक्र आते ही मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। माथे पर पसीने की बूंदें उभर आयी। उस दिन मैं अपनी फ्रेंड नेहा, आरव और उसके दोस्त अंकुर के साथ थी। ‘‘उस दिन हम कुछ फ्रेंड्स ऑफिस से लंच के लिए बाहर गए थे।’’

करन ने एक गहरी नजर मुझ पर डाली और बोला, ‘‘अच्छा, एक बात और, क्या आप यह शादी अपनी इच्छा से कर रही हैं।’’ मेरा दिल धक से रह गया, ‘‘क्या मतलब?’’ ‘‘मेरा मतलब है, घरवालों का कोई प्रेशर तो नहीं है ना आप पर।’’ जी चाहा, चीख-चीख कर कहूं, हां प्रेशर है। इच्छा हुई, करन को सब कुछ बता दूं फिर ख्याल आया, कहीं बात मम्मी-पापा के कानों तक पहुंच गयी तब वह उनसे क्या कहेगी। घरवालों की इज्जत के बोझ तले मेरी आवाज मन में घुट कर रह गयी। ‘‘आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं?’’ मैंने उससे पूछा।

‘‘आपका यह उदास उतरा हुआ मुख देख कर मुझे अहसास हुआ कि कहीं आप यह शादी किसी के दबाव में आ कर तो नहीं कर रहीं।’’ मैंने इंकार में सिर हिलाया। थोड़ी देर बाद करन और उसके घरवाले चले गए और जाते-जाते कह गए कि नैनसी उन्हें पसंद है। अब एक नयी समस्या मेरे आगे पैदा हो गयी थी। अगली सुबह ऑफिस पहुंचते ही मैं आरव को कैंटीन ले गयी और सब कुछ बता कर कहा, ‘‘आरव, अब प्रतीक्षा नहीं की जा सकती। तुम अपने मम्मी-पापा को दिल्ली बुला लो।’’

आरव मुझे सांत्वना देते हुए बोला, ‘‘परेशान मत हो नैनसी, मेरे घरवाले हमारी शादी के लिए तैयार हैं। मैं उनसे आज ही बात करूंगा।’’

दिनभर मेरा मूड ऑफ ही रहा, इसीलिए ऑफिस से जल्दी निकल कर हम दोनों मूवी देखने चले गए। शाम को मैं घर लौटी। डिनर कर अपने कमरे में पहुंची ही थी कि मोबाइल की घंटी बज उठी। किसी अनजान नंबर से फोन था।

‘‘हेलो स्वीटहार्ट, कैसी हो?’’ एक अजनबी आवाज सुनायी पड़ी।

‘‘कौन बोल रहा है?’’ मैं चौंकी।

‘‘तुम मुझे नहीं जानती नैनसी, पर मैं तुम्हें अच्छी तरह जानता हूं। मनोज सिन्हा की बेटी हो ना तुम।’’

‘‘देखो, तुम जो कोई भी हो, मुझे परेशान मत करो, अन्यथा पुलिस में कंप्लेेंट कर दूंगी।’’

दूसरी ओर से हल्की हंसी का स्वर उभरा फिर वह बोला, ‘‘भूल तुम्हारी नहीं है अब तुम्हें क्या पता, मेरे पास तुम्हारा एक राज है, वरना तुम पुलिस की धमकी ना देतीं।’’

‘‘राज ! कौन सा राज?’’ मेरा हृदय धड़कने लगा।

‘‘पंद्रह जनवरी को क्या तुम वास्तव में ऑफिस गयी थीं या फिर... नैनसी तुम्हारे पापा को यह 15 जनवरी का राज बता दिया जाए, तो कैसा रहे?’’

‘‘कौन हो तुम और तुम्हें यह सब कैसे पता? देखो, प्लीज मेरे पापा को कुछ मत बताना। उन्हें हार्ट अटैक पड़ चुका है,’’ मैं रुआंसी हो उठी।

‘‘तुम कहती हो तो नहीं बताऊंगा, किंतु राज को राज रखने की कीमत होती है मैडम और इस राज की कीमत है 50 हजार रुपए।’’ जैसे अनगिनत बिजलियां एक साथ टूट कर गिर पड़ी हों। ब्लैकमेलर के शब्द हथौड़े की तरह मेरे दिलोदिमाग में बज रहे थे।

‘‘यह तो बहुत ज्यादा है। कुछ कम...’’ मेरी बात बीच में काट कर वह बोला, ‘‘कल शाम ठीक 6 बजे रुपए ले कर ऑरबिट मॉल के टॉप फ्लोर पर आ जाना। मैं वहीं मिलूंगा। किसी को साथ लाने लाने की जुर्रत की या पुलिस को इन्फॉर्म किया, तो वह राज...’’ दूसरी ओर से फोन कट गया था।

कितनी देर तक मैं जड़वत बैठी रही। यह कैसी मुसीबत में फंस गयी थी मैं। क्या करूं कुछ समझ नहीं आ रहा था। आंखों में ही सारी रात कट गयी। अगले दिन आरव को बताया, तो वह सन्न रह गया। कुछ देर सोचने के बाद उसने कहा, ‘‘तुम रुपए ले कर ऑरबिट मॉल पहुंचना। मैं मॉल के सामनेवाली बिल्डिंग से उस पर नजर रखूंगा, ज्यों ही रुपए ले कर वह नीचे आएगा, मैं उसे पकड़ लूंगा।’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा।’’ मैंने दोपहर बैंक से 50 हजार रुपए निकाले। शाम 6 बजे मैं ऑरबिट मॉल के टाॅप फ्लोर पर पहुंची। मैं इधर-उधर देख रही थी। घबराहट में मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था। तभी मोबाइल बजा, ‘‘हेलो, मेरी बात ध्यान से सुनो। लिफ्ट से नीचे पहुंचो। मॉल के बाहर काले रंग की टैक्सी खड़ी है। उसमें बैठो। टैक्सी की पिछली सीट के दायीं ओर मैट के नीचे एक काली चाबी दिखायी देगी। वह हेड पोस्ट ऑफिस के लॉकर की चाबी है। 32 नं. लॉकर खोल कर ये रुपए उसमें रखो और चाबी वापस टैक्सी में रख देना,’’ ब्लैकमेलर ने कहा। हड़बड़ायी हुई मैं लिफ्ट द्वारा नीचे पहुंची। मॉल के बाहर एक काले रंग की टैक्सी खड़ी थी, जिसमें मुझे ड्राइवर बैठा दिखायी दिया। टैक्सी का दरवाजा खोल कर मैं उसमें जा बैठी। मैट के नीचे मुझे चाबी दिखायी दी। मैंने ड्राइवर से कहा, ‘‘हेड पोस्ट ऑफिस चलो,’’ और सीट पर सिर टिका कर बैठ गयी। कुछ देर बाद हेड पोस्ट ऑफिस आ गया। 32 नं. लॉकर में मैंने रुपए रखे और चाबी पुनः टैक्सी के मैट के नीचे रख दी। फिर दूसरी टैक्सी पकड़ मैं घर पहुंच गयी। तभी आरव का फोन आया, ‘‘सॉरी नैनसी, मैं ऑरबिट मॉल नहीं पहुंच पाया। देहरादून जा रहा हूं, मेरी बड़ी दीदी बीमार हैं।’’

आरव के यों जाने से मुझे बहुत क्रोध आया। सहसा मैं स्वयं को नितांत असहाय सा महसूस करने लगी। इस मुसीबत की घड़ी में वह मुझे अकेला छोड़ कर कैसे जा सकता है। जो कुछ भी हुआ, हम दाेनों की मर्जी से हुआ था। फिर सजा अकेले मैं ही क्यों भुगतूं। देहरादून में तो उसके मम्मी-पापा दोनों हैं फिर... यकायक दिमाग में बिजली सी कौंधी। कहीं इन सबके पीछे आरव ही तो नहीं। मैंने उसे बताया था कि मैं मम्मी-पापा से शादी में कुछ नहीं लूंगी। प्रकट में उसने मेरी बात से सहमति जतायी थी, किंतु पैसे के लिए किसी भी इंसान की नीयत खराब हो सकती है। नहीं-नहीं यह क्या सोच रही हूं मैं। आरव मुझसे इतना प्यार करता है। उस पर शक ! तभी मेरे दिमाग में करन की तस्वीर उभरी। उसने भी तो 15 जनवरी को मुझे देखा था। वह भी तो गुनहगार हो सकता है। पिछले 2 दिन से घटनाएं इतनी तेजी से घट रही थीं कि मेरा दिमाग सुन्न पड़ गया।

अगली रात अचानक फोन की घंटी बजी और वही स्वर सुनायी दिया, ‘‘हेलो स्वीटहार्ट, कैसी हो?’’

‘‘ओह, तुम फिर... देखो, अब मैंने रुपए निकाले, तो पापा को पता चल जाएगा,’’ गिड़गिड़ाते हुए मैं बोली।

‘‘ठीक है, रुपए ना सही, ज्वेलरी ही दे दो। अमीर बाप की बेटी हो। तुम्हें क्या फर्क पड़ता है। कल बैंक से अपनी ज्वेलरी निकाल कर ठीक 3 बजे सर्कुलर रोड के अंतिम छोर पर पहुंचना। वहां बाएं हाथ पर कूड़े का एक ड्रम रखा है। उसमें ज्वेलरी बॉक्स रख देना। तुमने अगर पुलिस को साथ लाने की गलती की, तो...’’ फोन कट गया। बिस्तर पर गिर कर मैं फूट-फूट कर रो पड़ी। मैं सोच भी नहीं सकती थी कि एक भूल की मुझे इतनी बड़ी सजा मिलेगी। एक ऐसे भंवर में मैं फंस चुकी थी, जिसकी कोई लहर किनारे की ओर नहीं जाती थी। रोते-रोते थक गयी, तो मन में विचार आने लगे। ब्लैकमेलिंग का कोई अंत नहीं है। पापा को नहीं तो साहस करके मम्मी को अपना राज बता ही देना चाहिए। तभी इस सबसे निजात मिलेगी। तभी मेरे मोबाइल की घंटी बज उठी। अगले दिन मैंने ब्लैकमेलर के कहे अनुसार बैंक के लॉकर से ज्वेलरी बॉक्स निकाल कर सर्कुलर रोड के कूड़े के ड्रम में रख दिया।

शाम को मैंने गोल्डन एवेन्यू कॉलोनी पहुंच कर एक फ्लैट की डोरबेल बजायी। चंद मिनटों में दरवाजा खुला। सामने अंकुर खड़ा था। ‘‘अरे नैनसी तुम, अचानक कैसे?’’ तभी अचानक पीछे से आरव और पुलिस इंस्पेक्टर राघव निकल आए, ‘‘यू आर अंडर अरेस्ट अंकुर।’’

‘‘परंतु किसलिए, आखिर मेरा कसूर क्या है?’’ अंकुर चिल्लाया।

‘‘नैनसी को ब्लैकमेल करने, उससे 50 हजार रुपए और ज्वेलरी एेंठने के जुर्म में,’’ इंस्पेक्टर कड़क कर बोले, ‘‘अब चुपचाप रुपए और ज्वेलरी निकाल।’’

‘‘आपके पास क्या सबूत है इंस्पेक्टर साहब कि नैनसी की ज्वेलरी मेरे पास है,’’ अंकुर ढिठाई से बोला। इंस्पेक्टर राघव बोले, ‘‘हर अपराधी स्वयं को चालाक समझता है, किंतु कानून की आंखों में धूल झोंकना आसान नहीं है। मैंने ज्वेलरी बॉक्स में एक छोटा सा जीपीएस ट्रैकर लगा दिया था, ताकि वह जहां भी जाए पुलिस को पता लग जाए।’’ यह सुनते ही अंकुर का चेहरा फक पड़ गया। राघव की एक ही घुड़की में उसने रुपए और ज्वेलरी बॉक्स निकाल कर दे दिए।

‘‘तुम उस दिन हमारे साथ थे। हमारा राज जानते थे। मैं कभी सोच नहीं सकता था, तुम ही हमारे साथ छल करोगे,’’ आरव के दिल की पीड़ा उसके चेहरे से साफ नजर आ रही थी।

‘‘अच्छा तो जनाब के पास जॉब नहीं है इसलिए ब्लैकमेलिंग से पैसे कमा रहे हैं। बरखुरदार, खूब नाम रोशन करोगे अपने मां-बाप का।’’ अंकुर का चेहरा शरम से झुक गया। इंस्पेक्टर राघव अंकुर को हवालात ले गए।

रात में जिस क्षण मैंने मम्मी को बताने का फैसला किया था उसी क्षण आरव का फोन आया था। इंस्पेक्टर राघव उसके दोस्त के फादर थे। उन्होंने आरव को आश्वासन दिया था कि वह ब्लैकमेलर को तो पकड़ ही लेंगे, साथ ही यह बात मीडिया में भी नहीं आने देंगे। नियति के एक चमत्कार से मेरी भंवर में डूबती कश्ती साहिल पर आ लगी थी।

उसी दिन शाम को आरव अपने पेरेंट्स के साथ मम्मी-पापा से मिलने घर पर आया। आरव को देखते ही मम्मी की भावभंगिमा कठोर हो गयी। उसने उनका अभिवादन किया और अपना परिचय देते हुए बोला,‘‘अंकल, मैं आरव हूं और ये मेरे पेरेंट्स। आज ही देहरादून से आप दोनों से मिलने आए हैं।’’

‘‘हमसे मिलने?’’ मम्मी-पापा के चेहरे पर असमंजस के भाव थे।

‘‘आपकी तबीयत अब कैसी है?’’ आरव के पापा ने शालीनतापूर्वक बात शुरू की।

‘‘पहले से काफी बेहतर हूं।’’

‘‘दरअसल, आरव और नैनसी एक ही कंपनी में जॉब करते हैं और एक-दूसरे को बहुत पसंद भी करते हैं...’’

‘‘किंतु हमने अपनी बेटी का रिश्ता अपनी कास्ट में तय कर दिया है,’’ सुधा जी के स्वर की तल्खी किसी से छिपी ना रह सकी। मनोज जी ने नाराजगी से उन्हें देखा। आरव के पापा बोले, ‘‘जी, यह बात भी हमें पता है फिर भी हम आपसे बात करने आए हैं, क्योंकि आरव और नैनसी ने अपनी किस्मत का फैसला स्वयं कर लिया है। इन दोनों ने 15 जनवरी को कोर्ट मैरिज कर ली है।’’

‘‘क्या कहा? कोर्ट मैरिज !’’ मनोज और सुधा शॉक्ड रह गए। उन्होंने गुस्से से मेरी ओर देखा। मेरा चेहरा मलिन हो गया। ‘‘ऐसा कदम उठाने से पहले क्या तुम्हें हमसे बात नहीं करनी चाहिए थी।’’

‘‘पापा, मैंने मम्मी को कई बार कहा कि मैं शादी आरव से ही करूंगी। आरव मम्मी से मिलने भी आया, किंतु विजातीय होने के कारण मम्मी ने शादी से इंकार कर दिया। इसलिए हमने सोचा कि कोर्ट मैरिज करके आपको बता देंगे, किंतु अगले ही दिन आपको हार्ट अटैक पड़ गया और मैं आपसे कुछ नहीं कह पायी। मुझे क्षमा कर दीजिए पापा। आपसे यह बात छिपा कर मैंने भी बहुत मानसिक द्वंद्व झेला है,’’ कहते-कहते मैं रो पड़ी। ब्लैकमेलिंग की बात मैंने और आरव ने उन्हें नहीं बतायी, अन्यथा उनके दिल को गहरा आघात पहुंचता।

‘‘बच्चों को क्षमा कर दीजिए मनोज जी। यह हमारी भी आपसे विनती है,’’ आरव के पापा बोले। पापा कुछ क्षण खामोश रहे फिर स्नेह से मेरे सिर पर हाथ रखा और मम्मी से बोले, ‘‘भूल तुम्हारी भी है सुधा, तुमने मुझे नैनसी के मन की बात कभी नहीं बतायी। तुमने यह कैसे समझ लिया कि मैं विजातीय लड़के से अपनी बेटी का रिश्ता नहीं करूंगा। लड़के-लड़की के गुण देखने चाहिए। कास्ट से कुछ मिलता है क्या। हम पढ़े-लिखे लोग ही इस रूढि़वादी सोच से बाहर नहीं निकलेंगे, तो समाज में फैली ये कुरीतियां कैसे दूर होंगी। आज के इस दौर में बड़ों को भी बच्चों के दृष्टिकोण को समझना चाहिए।’’ मम्मी के चेहरे पर पश्चाताप के भाव थे।

‘‘अब आपका क्या इरादा है। आरव के पापा ने पूछा।

‘‘इरादा नेक है। आपका बेटा हमारा दामाद तो बन ही चुका है। अपनी बेटी को धूमधाम से विदा करने की तैयारी करनी है।’’ पापा की बात पर सबके साथ मम्मी भी मुस्करा दी और मिठाई लेने अंदर चली गयीं। मेरे और आरव के दिल में खुशी के सैकड़ों दीये जल उठे।