Wednesday 23 September 2020 11:31 PM IST : By Sushila Shrivastava

प्यारा रिश्ता

अवनीश ने अपनी बेटी शिप्रा की शादी धनाढ्य परिवार के योग्य लड़के निमेष से तय की, पर उनकी मांगों से परेशान हो उठे। उन सबको किसने उबारा?

pyara-rishta-1


‘‘मधु बेटी, जरा इधर तो अाना।’’
‘‘हां मां बस अभी अायी,’’ मधु मेकअप बॉक्स रखते हुए बोली। 
‘‘तूने अभी शिप्रा को तैयार नहीं किया।’’
 ‘‘तैयार तो कर दिया है, बस जरा अाप भी देख लो ना,’’ कह कर मधु मुस्करायी।
शांति इस समय बहुत व्यस्त थी। लड़केवाले छोटी बेटी शिप्रा को देखने अा रहे थे। सब कुछ इतनी जल्दी में प्रोग्राम बना कि सभी व्यस्त हो उठे। कुछ साफ-सफाई, नाश्ते अादि का प्रबंध अादि सब कुछ करना था। विशिष्ट मेहमानाें के अाने से कुछ विशेष काम तो बढ़ ही जाता है।
मां शांति ने शिप्रा को नजर भर देखा, कितनी सुंदर लग रही थी। बड़ी-बड़ी काली अांखें, दमकता चेहरा, गुलाबी होंठ नेचुरल लिप ग्लाॅस से अौर भी दमक उठे थे।
शांति शिप्रा के गले में सोने की चेन डाल मुस्करायीं। इनकी प्यारी बेटी को देख कोई उसे नापसंद कर ही नहीं सकता। वे बाहर जाने को मुड़ी ही थीं कि उसी समय अखिल मिठाई के डिब्बे लिए कमरे में अाया। शिप्रा पर नजर पड़ते ही मानो वह पलक झपकाना ही भूल गया। शिप्रा ने नजरें झुका लीं।
शांति जरा देर के लिए वहीं थम गयीं। फिर बोलीं, ‘‘अखिल, बाहर सब व्यवस्था हो गयी ना, लड़केवाले बस अाते ही होंगे।’’
अखिल को किसी ने धरातल पर ला पटका, ‘‘जी अांटी, सब काम हो गया।’’
‘‘ठीक है चलो बाहर देखें, लड़केवालाें के अाने का समय हो गया है।’’
वे अखिल को लगभग घसीटती हुई ले गयीं। शिप्रा उदास सी अखिल को देखती रही। अखिल की उदासी को भी शांति ने महसूस किया, पर क्या करतीं। अवनीश की जिद के अागे वह कुछ नहीं कर सकती।
अखिल बहुत ही अच्छा लड़का था, हैंडसम व केअरिंग भी। अभी शीघ्र ही उसे युनिवर्सिटी में लेक्चरर के पद पर कार्य मिला था। शिप्रा व अखिल साथ ही पढ़े थे।
अखिल के पिता दीपचंद्र एक डिग्री कॉलेज में जूनियर सेक्शन में मास्टर थे। अखिल व निखिल 2 भाई, सरिता, कविता 2 बहनें थी। बहनों की शादी हो गयी थी। निखिल अभी बीए में पढ़ रहा था। मास्टर जी का परिवार सरल, सीधा, संस्कारी था। दीपचंद्र जी कुछ ट्यूशन भी करते थे, जिससे उनकी गृहस्थी ठीकठाक चल रही थी।
अखिल अपने हंसमुख, सरल स्वभाव के कारण शिप्रा के भाई अतुल व पिता अवनीश को प्रिय था, उसके अाने से सभी लोग प्रसन्न हो उठते।
अवनीश सरकारी विभाग में उच्चाधिकारी थे। अत्यंत ईमानदार व उसूलवाले थे। बड़ी बेटी मधु की शादी भी एक उच्च परिवार में की थी। दामाद डॉक्टर था। अत्यंत सज्जन परिवार था। छोटी बेटी शिप्रा की शादी भी खूब धूमधाम से ऊंचे स्टेटसवाले परिवार में करना चाहते थे। अखिल उन्हें पसंद तो था, पर उन लोगों का स्टेटस ऊंचा नहीं था। शिप्रा कुछ कह नहीं सकती थी। मम्मी-पापा को वह बहुत ही प्यार करती थी। अखिल व शिप्रा ने अपने मन को समझा लिया अौर शांत मन से सब स्वीकार कर लिया।
बाहर से अवनीश की अावाज सुनायी दी, शायद लड़केवाले अा गए थे। शांति ड्रॉइंगरूम में चली गयीं।
निमेष व उसके परिवारवालों को शिप्रा बहुत पसंद अायी। निमेष अमेरिका से मैनेजमेंट की डिग्री ले कर अाया था अौर बंगलुरु में मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत था। सभी लोग सुलझे व अाधुनिक विचारों के लगे। शांति व अवनीश काफी खुश थे। उन्हें विश्वास था कि उनकी लाड़ली बिटिया वहां खुश रहेगी। निमेष की मां ने एक छोटा सा हार पहना कर शिप्रा को अाशीर्वाद दिया। अवनीश व शांति ने भी निमेष को टीका कर अंगूठी पहनायी। कुछ माह बाद शादी की तारीख तय कर दी गयी।
अब अवनीश शादी की तैयारी में जुट गए। वह सब कुछ बढ़िया से बढ़िया करना चाहते थे। तभी एक दिन निमेष के पापा का फोन अाया कि बारातियों के लिए 2 होटल का इंतजाम करके रखें।
शांति चिंतित हो उठीं, ‘‘हमने तो पहले ही यहां के सारे गेस्ट हाउसों में सबसे शानदार व काफी बड़े शालीमार गेस्ट हाउस को बुक कर रखा है। उसका क्या होगा?’’
 ‘‘अरे मैंने उन्हें समझाया था, परंतु उनका तर्क था, हमारे बहुत से मेहमान विदेशी होंगे। अतः इस मामले में मैं कोई समझौता करना नहीं चाहता,’’ अवनीश ने बड़े बुझे मन से कहा।
अवनीश अंदर ही अंदर बहुत ही परेशान थे। क्या करें, मन को समझा कर होटल बुक करवा दिया। लेकिन फरमाइशों का सिलसिला जारी रहा। कभी कीमती कपड़े, जेवर, अपने सभी रिश्तेदारों के लिए कीमती उपहार। निमेष को भी कीमती उपहार। शांति तो घबरा ही गयीं। रोने-रोने को हो अायीं। अभी से यह हाल है, तो अागे क्या होगा। सोच-सोच कर ही परेशान रहने लगीं।
शिप्रा की ननदें जब-तब फोन पर बातें करतीं। उनकी बातों का विषय अपना रहनसहन, खानपान से ही भरा रहता। यही हाल निमेष का था। यदाकदा वह शिप्रा से बातें करता, तो अपने विदेशी मित्रों, विदेश प्रवास व अपनी पसंद-नापसंद की ही बात करता। शिप्रा चुपचाप सुनती रहती।
शिप्रा बड़ी उलझन में रहती। उसे सब समझ में अा रहा था, मम्मी-पापा कितने परेशान हैं। उन लोगों की हमेशा की फरमाइशों से बजट ही असंतुलित हो रहा था। अवनीश शिप्रा की शादी में कोई कमी नहीं रहने देना चाहते थे। इसलिए अच्छे से अच्छा इंतजाम कर रहे थे।
इतवार का दिन था। अाज अवनीश की छुट्टी थी। शांति के साथ उन्होंने शॉपिंग का मन बनाया। शांति शिप्रा के लिए कुछ साड़ियां व मेकअप का सामान अादि लेने जा रही थीं। अतुल ड्रॉइंगरूम में बैठा टीवी देख रहा था। शिप्रा व मधु भी अनमने मन से बैठी थीं। शिप्रा काफी अपसेट लग रही थी। कॉलबेल बजी, शिप्रा ने ही दरवाजा खोला। अखिल था, अाते ही बोला, ‘‘अांटी, अंकल क्या कर रहे हैं, मैंने सोचा अाज छुट्टी है कुछ ना कुछ काम तो लगा ही है, चल कर देख लूं।’’
 ‘‘अाअो बैठो तो, मम्मी-पापा बाजार गए हैं,’’ अौर वह चुपचाप अा कर ड्रॉइंगरूम में बैठ गयी।
अखिल भी पीछे-पीछे जा कर बैठ गया अौर बेचैन हो कर बोला, ‘‘क्या बात है सब लोग इतने चुपचाप क्यों है?’’
‘‘कोई बात नहीं,’’ मधु का संक्षिप्त सा उत्तर था।
‘‘कोई बात तो जरूर है।’’
शिप्रा अब अपने को संभाल ना सकी व फूट पड़ी, ‘‘दरअसल उन लोगों की फरमाइशों से मम्मी-पापा बहुत परेशान हैं। ये लोग मुझसे छिपाने की कोशिश करते हैं, पर ऐसी बातें कहीं छिपती हैं। इन लोगों की मांगें दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही हैं। मम्मी उदास सी, चिंतित सी हमेशा रहती हैं।
पापा सदा ईमानदार उसूलोंवाले रहे, कहां से इतना करेंगे। रिश्वत का नाम सुनते ही क्रोध में अा जाते हैं। मैं तो उस परिवार से संबंध ही रखना नहीं चाहती। पर जानती हूं अपने मान-सम्मान के लिए ये लोग परेशानी झेलने के लिए तैयार रहेंगे,’’ शिप्रा सुबक उठी।
 ‘‘अच्छा मधु दीदी, जरा चाय बना कर ले अाअो,’’ अतुल वातावरण को हल्का करना चाह रहा था।
अखिल गंभीर हो उठा। वह चुपचाप कुछ देर बैठा रहा। मधु चाय ले अायी। सब लोग चुपचाप चाय पीते रहे।
‘‘ठीक है मैं कल अाऊंगा, कुछ समस्या सुलझाने की कोशिश करूंगा,’’ कह कर अौर कप धीरे से रख कर अखिल चला गया।
दूसरे दिन शाम को शांति व अवनीश ड्रॉइंगरूम में बैठे चाय पी रहे थे। तभी फोन की घंटी बजी। अवनीश ने बड़े अनमने ढंग से फोन उठाया। फोन निमेष के पापा का था। कह रहे थे, ‘‘मेरे सभी रिश्तेदारों का टीका कम से कम एक हजार एक से करिएगा।’’
शांति ने सुना तो परेशान हो उठीं। बोलीं, ‘‘हद हो गयी फरमाइश करते जा रहे हैं, अभी से यह हाल है, तो अागे क्या होगा।’’
वे रोने को हो गयीं। तभी अखिल ने प्रवेश किया। अखिल को देख शांति प्रसन्न हो उठीं।
‘‘अाअो अखिल, कैसे हो?’’
अखिल दोनों के पांव छू कर सोफे पर बैठ गया।
‘‘अंकल, कल मैं अाया था, अाप लोग बाजार गए थे।’’
शांति ने चुपचाप चाय का कप उसकी अोर बढ़ाया, तो वह उनका चेहरा देखता ही रह गया। अांखें नम थीं।
‘‘यह क्या अांटी, अाप रो रही हैं?’’
‘‘कुछ नहीं,’’ कह कर शांति चुप रहीं।
अखिल चाय का कप रखते हुए बोला, ‘‘मैं जानता हूं अाप लोग मुझे कुछ नहीं बताएंगे, पर मुझे बहुत कुछ मालूम हो गया है। अंकल प्लीज, मेरे योग्य जो भी काम हो मुझे बताएंगे। हां, अार्थिक रूप से थोड़ा कमजोर हूं,’’ कह अखिल ने हाथ जोड़ दिए।
‘‘अरे यह क्या कर रहे हो,’’ अवनीश बुझे मन से बोले।
 शांति भी उदास मन से बैठी रहीं। उसके मन में ना जाने कितनी उथलपुथल मची थी। अखिल का शिप्रा से निस्वार्थ प्रेम था। क्या धन-ऐश्वर्य, ऊंचा स्टेटस मेरी बेटी को सुख व प्यार दे सकता है? अभी अखिल की नयी-नयी सर्विस है, मेहनती व ईमानदार है, अागे का भविष्य उज्ज्वल है। मैं भी कैसी मूर्खता करने जा रही थी। उसने मन में कुछ दृढ़ निश्चय किया। नहीं, अब वह अौर नहीं सोचेगी। ऐसा हीरा लड़का मेरे सामने है अौर मैं अन्यत्र भटक रही थी। अब मैं किसी की नहीं मानूंगी।
तभी अवनीश ने उसे पकड़ कर हिलाया, ‘‘क्या सोच रही हो।’’
वे बुदबुदायीं, ‘‘सुनो, मुझे नहीं लगता कि यह रिश्ता अौर अागे बढ़ पाएगा। मुझे यह रिश्ता बिलकुल मंजूर नहीं, मुझे नहीं लगता कि मेरी बेटी यहां सुखी रह पाएगी।’’
तभी वहां शिप्रा व मधु भी अा गयीं। सभी चकित से उसे देख रहे थे। तभी पति अवनीश की अोर उन्मुख हो कर शांति ने कहा, ‘‘यह हमारी भूल थी कि हम स्टेटस के चक्कर में ऐसे हीरे जैसे बेटे को पहचान ना सके,’’ वे भाव-विह्वल हो उठीं।
उसने शिप्रा को अपने निकट बुलाया अौर उसका हाथ अखिल के हाथ में रखते हुए बोली, ‘‘रिश्ता तो वहीं होना चाहिए, जहां धन से अधिक रिश्तों को महत्व दिया जाए अौर अखिल से ज्यादा अौर कौन इसे समझेगा। मुझे तुम दोनों का रिश्ता मंजूर है, मेरी बेटी का सदा ध्यान रखना।’’
सिद्धांतवादी अवनीश पहली बार हार गए अौर सभी लोग अाश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता से शांति को देख रहे थे।
मधु ने प्रसन्नता से ताली बजाते हुए कहा, ‘‘अखिल जी मुबारक हो, चलिए जल्दी से मम्मी-पापा के पैर छुइए अौर बारात लाने की तैयारी कीजिए।’’
शिप्रा कुछ सकुचायी सी, शरमायी सी मां से लिपट गयी। वह अखिल के साथ ही मां-पापा के पैर छूने को झुकी। अवनीश ने उसे गले लगाते हुए ढेरों अाशीर्वाद की वर्षा कर दी। उदासी के बादल जाने कहां चले गए थे। सब बड़े खुश व प्रसन्न थे।