Wednesday 23 September 2020 11:32 PM IST : By Rashmi Kao

सो स्वीट...

श्रीमती जी की समृद्ध काया की तरह उनका मिष्ठान्न प्रेम भी कम ना था। मैं इधर अपनी जेब की फिक्र में दुबला हुअा जा रहा हूं, उधर वे मीठा खा-खा कर दोहरी हो रही हैं।

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‘‘सो  स्वीट’’ इन दो लफ्जों को ले कर मैंने अपने कान पकड़ लिए हैं। हुअा यों कि कल सवेरे जब मेरी अांख खुली, तो बगल में रखी गरम चाय की प्याली को देखते ही मेरे मुंह से ये दो मीठे शब्द निकल गए। फिर क्या था श्रीमती जी ने अपनी बेसिरोपा बातें शुरू कर दीं। उन्हें लगा मैं सपनों की दीवारों पर कुछ लिखते-लिखते जगा हूं, जबकि असलियत यह थी कि मैं उन्हें उस गरम चाय के कप के लिए शुक्रिया अदा कर रहा था।
खफा तो मैडम पहले से ही थीं। बात यों शुरू हुई कि कल रात को खाने के बाद वह बोलीं कि अाज स्वीट डिश में केक खा लेती हूं, क्योंकि कल से मीठे को ले कर ‘ऑफ’ हूं। मुझे पता है उनके लिए मीठा नशा है। उन्हें कोई लत नहीं, सिर्फ मीठे की लत है। रोज मन बनाती हैं अौर रोज उनका फैसला चाशनी सा फिसल जाता है। अगले दिन फिर से ना चाहते हुए भी उनका हाथ वापस मीठे के कटोरे में जा कर फंस जाता है। उनकी हर साल न्यू इयर प्रतिज्ञा भी यही होती है, पर दो-तीन जनवरी से ही मैं फ्रिज का दरवाजा बार-बार खुलते बंद होते चुपचाप देखना शुरू कर देता हूं। पिस्तौल की शक्ल का ‘हैंड्स अप’ लिखा िफ्रज मैगनेट भी फ्रिज पर चिपका कर देख चुका हूं, पर श्रीमती जी हैं कि उन्हें ना पिस्तौल डराती है अौर ना मोटापा।ऐसे में मेरी बात का वजन कहां रह जाता है? फ्रिज के अंदर गरदन दे कर जब वे ितरंगी बर्फी के दो टुकड़े बैक टू बैक मुंह में ठूंसती हैं, तो उनकी तबीयत भी एकदम से हरी हो जाती है। वे लाल-पीली होना बंद कर देती हैं। गृहस्थी का सारा तनाव, क्लेश अौर टसुए कहकहों में बदल जाते हैं। मीठे से मिली जन्नत में वे मोटापे की उस परत को भी भूल बैठती हैं, जिसे खत्म करने की बातें वह 31 दिसंबर की रात को गाजर के हलवे को हलक से उतारते हुए कर रही थीं।
‘‘सो स्वीट’’ कहने से परहेज कर चुका हूं, तो वेंलेटाइन के महापर्व पर उन्हें ‘स्वीट हार्ट’ कहने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाया। उन्हें कैसे समझाता कि उनकी ड्रेस पहनने की फरमाइश में दिल्ली की जहरीली हवा भर गयी है। कैसे कहता कि जानेमन, तुम्हें जब भी शॉपिंग के लिए ले जाता हूं, तो तुम पहले ड्रेसेज को देख कर गहरी सांस भरती हो, फिर मीडियम साइज ड्रेसेज की कतार की तरफ बढ़ती हो। मजबूरी में लार्ज साइज उठा कर खुद को उसमें ठूंसने की कोशिश करती हो। बात नहीं बनती तो फिर ‘एक्स एल’ या ‘डबल एक्स एल’ के बीच झूलती हो। सच तो यह है कि मैं वहां खड़ा-खड़ा उनके अंदरूनी दर्द से पिघलने लगता हूं अौर श्रीमती जी के साइज में खुद के मन को टटोलता रह जाता हूं। वे सांस रोक कर ड्रेस में फिट होने की कोशिश करती हैं अौर मैं सांस रोके उनके छंटने का इंतजार। कैसे कहूं कि अाजकल डाइनिंग टेबल पर रखी चीनी मुक्त गोलियां भी मुझे मुंह चिढ़ाने से बाज नहीं अातीं।
मोटापे के साथ 2 चीजें चिपक कर अाती हैं- एक सेंस अॉफ ह्यूमर अौर दूसरा अॉप्टिमिज्म यानी अाशावाद। श्रीमती जी को मैं यह नहीं कह सकता कि ‘जी अाप तो बहुत मजाकिया हो’, क्योंकि उनका मजाक मुझे हमेशा महंगा पड़ता है, पर उनका अाशावाद मेरा हौसला जरूर बढ़ाता है। इसलिए मैंने उनके मूड को देख-परख कर डिनर की दावत दे दी। कहा, ‘‘चलो डिनर पर चलते हैं, पर मीठा नहीं खाएंगे। बिल दुबला रहेगा।’’
उन्होंने वक्र दृष्टि से मुझे देखा। मैंने उन्हें समझाना चाहा, बोला, ‘‘तुम्हारी नोटबंदी ने नाक में दम कर दिया था। जीएसटी ने रहीसही सांसें घोंट दीं हैं। अाजकल ईटिंग अाउट बहुत महंगा पड़ता है, तो मीठा ना खा कर बिल में कटौती हो सकती है अौर बॉडी फैट भी नहीं चढ़ता।’’
पर वे कहां माननेवाली थीं, बोली, ‘‘तुम चाहो, तो वक्त के फ्लैशबैक में मेरे कुछ किलोग्राम एडजस्ट कर लो। पर मैं मीठा खाए बगैर रेस्तरां से बाहर नहीं अाऊंगी। समझ लो जैसे तुम खाने के बाद सिगरेट पीते हो, मैं शीरा पीती हूं। मेरा मीठा बोलने का यही राज भी है।’’
मैंने तो सच्चे दिल से दावत दी थी, पर जेब का छेद मुझे डराने लगा। मैंने धीमे से कहा, ‘‘डार्लिंग, समाज की हवा बदल गयी है।’’
वे बोली, ‘‘एअर क्वॉलिटी खराब है, तो हुअा करे। मेरा मोटापा इस पॉल्यूशन का जिम्मेदार नहीं। जब तुम भी सरकार की तरह मेरे स्वाद की अाजादी स्वीकार नहीं कर सकते, तो मैं तुम्हारे लिए फिटनेस का झंडा उठा कर क्यों चलती रहूं। तुम डाइनिंग टेबल पर अा कर बैठते तो लॉन्ग डिस्टेंस पर हो, पर निगाहें मेरी प्लेट पर रखते हो। तुम घर के फाइनेंस मिनिस्टर हो सकते हो, पर मेरे हलक के दरबान नहीं। मैं एक साधारण सी मिडिल क्लास होममेकर हूं। टीअोपी की मारी हूं। तुम सरकार के साथ मिल कर मेरी प्लेट से कितना खींचोगे। प्लीज मेरी कमर की फैलती लाइनों को देखना बंद करो। ये सभी चिंता की ही लकीरें हैं, जिन्होंने माथे पर जगह ना ले कर कमर पर जगह बना ली है।’’
टीअोपी मेरे सिर के ऊपर से गुजर गया। मैंने बचपन में टॉप पढ़ा था, टॉप माने लट्टू। अब उनके टीअोपी का मतलब मेरी समझ से बाहर था। 
‘‘टीअोपी का क्या मतलब है?’’ मैंने पूछा।
श्रीमती जी बोलीं, ‘‘बड़े बौड़म हो। अखबार नहीं पढ़ते? टोमैटो, अनियन अौर पोटैटो से टॉप बनता है। ये किसान, किचन अौर कुर्सी का किस्सा है। तुम्हारी समझ में नहीं अाएगा।’’
श्रीमती जी के तर्कों ने मेरे मुंह पर ताला जड़ दिया। मेक इन इंडिया से मुझे बहुत उम्मीदें हैं, इसीलिए सोचा था कि कुछ नहीं तो श्रीमती जी का फिगर ही बना दूं। देश के निर्माण में मेरा यही योगदान सही, स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत। इसलिए मोटापे की जड़ें कहां हैं ढूंढ़ने निकल पड़ा था। मुझे क्या पता था कि श्रीमती जी मीठे पर इतनी फोकस्ड अौर भूख की कच्ची हैं। उनका कहना था कि वतन से इश्क का रास्ता भी पेट ही से हो कर जाता है। तिरंगी बर्फी अौर तिरंगे झंडे की अाड़ में दुबका बैठा सोच रहा हूं कि ऊपरवाले से ही ‘मन की बात’ कह दूं। सवाल पैदा होता है कि वह सुनेगा किसकी, क्योंकि उसके अासपास भी सभी तरह के मोटे हैं।
श्रीमती जी ने हमेशा की तरह एक बार फिर मेरा माइंड पढ़ लिया। बोलीं, ‘‘छोड़ो, क्यों फ्रिक करते हो। मेरा फिगर ही देखना है, तो थोड़ा ठहरो। मैं 20 किलोग्राम कमवाली 20 साल पहले की अपनी फोटो इंस्टाग्राम पर डालती हूं, देख कर खुश रहना,’’ वे मुस्करायीं अौर थ्रो बैक पिक्चर ढूंढ़ने में जुट गयीं। 
इंस्टाग्राम पर उनकी सालों पुरानी तसवीर देख कर मेरे मुंह से एक बार फिर सो स्वीट निकल गया।