Wednesday 23 September 2020 11:33 PM IST : By Aarti Priyadarshini

सुनहरे पल

दस सालों के बाद कॉलेज के मित्र मन्नू से अन्नू की मुलाकात खास रही। मन्नू की प्रेरणा से उसके जीवन की दिशा ही बदल गयी, पर ये सुनहरे पल कहीं खो तो नहीं गए!

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अन्नू, अाज शाम 4 बजे उसी क्लब में अा जाअो, जरूरी बात करनी है। मेरे मोबाइल के इनबॉक्स में मन्नू का यह संदेश मेरे लिए कोई नयी बात नहीं थी। वह ज्यादातर मुझे एसएमएस ही भेजा करता था।  
अाज तो क्लब के गेट पर ही मिल गया वह, हाथाें में प्यारा सा पीला गुलाब लिए हुए।
 ‘‘बहुत खुश नजर अा रहे हो... क्या बात है?’’
‘‘अाज मुझे इस शहर में अाए अौर तुमसे मिले हुए पूरा 1 वर्ष बीत गया।’’
‘‘तो...’’ मैंने लापरवाही से कहा।
‘‘तो क्या... चलो अाज सेलिब्रेट करते हैं।’’
‘‘बात-बात में सेलिब्रेशन की अादत तुम्हारी गयी नहीं।’’
‘‘तो पिक्चर चलें... टिकट मैं ले कर अाया हूं।’’
‘‘ठीक है, मैं घर पर फोन करके बता देती हूं कि मैं देर से अाऊंगी, वरना सब बेकार में परेशान होंगे,’’ कहते हुए मैंने मोबाइल निकाल लिया।
फिल्म बिखरते दांपत्य एवं अवैध संबंधों पर अाधारित थी। रोमांटिक अौर संवेदनशील भी थी। इसलिए मैं थोड़ा असहज महसूस कर रही थी। टॉकीज से निकलते हुए मन्नू ने अाइसक्रीम खाने की जिद की, तो मैं टाल ना सकी अौर हम पास के ही एक रेस्टोरेंट में चले गए।
 ‘‘क्या बात है अन्नू, तुम्हारा मूड क्यों उखड़ा हुअा है... फिल्म पसंद नहीं अायी क्या...’’ मन्नू शुरू से ही इसी तरह मेरे चेहरे को पढ़ लेता है।
 ‘‘मुझे लग रहा है मन्नू... कि फिल्म की नायिका की तरह कहीं मैं भी कुछ गलत तो नहीं कर रही हूं।’’
‘‘कैसी बात कर रही हो अन्नू तुम...’’
‘‘हां मन्नू... मैं भी तो एक शादीशुदा होते हुए...तुम्हारे साथ...चोरी-छिपे...’’
‘‘देखो मन्नू, अात्मग्लानिभरी बातें मत करो। हम दोनों सिर्फ दोस्त हैं, अच्छे दोस्त अौर कुछ नहीं... रही बात चोरी-छिपे मिलने की, तो भले ही हमारा तरीका गलत है, लेकिन हमारा मकसद तो गलत नहीं है ना... हमारी दोस्ती बचपन की है। स्कूल अौर कॉलेज के दिन हमने साथ गुजारे हैं। जब उस समय हमारे कदम नहीं बहके, तो क्या अब... खैर छोड़ो यह सब... मूड मत खराब करो। मैं अभी अाइसक्रीम ले कर अाता हूं,’’ कहते हुए वह अंदर चला गया।
स्कूल अौर कॉलेज की बातों को छेड़ कर उसने मेरे दिल के पुराने जख्मों को कुरेद दिया। कोई चाहत यदि अधूरी रह जाती है, तो वह नासूर बन कर दिल में ही दफन हो जाती है। अाज मन्नू ने जब उस नासूर को कुरेद दिया, तो पुरानी यादों की एक फिल्म मेरी अांखों के सामने से गुजरने लगी...
कॉलेज के वे दिन, जब हमारी दोस्ती की मिसालें दी जाती थीं। पढ़ाई, नाटक या डांस... हर जगह हमारी यानी अन्नू अौर मन्नू की जोड़ी ही सुपरहिट होती थी। हमें स्टेप्स बताने के लिए हमारे डांस टीचर को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती थी। हमारे कदमों के सुरताल तो मानो एक-दूसरे का साथ देने के लिए ही बने थे। अगर कहीं असमानता थी, तो हमारी जाति में। मैं अनामिका मिश्रा एक पारंपरिक ब्राह्मण परिवार की लड़की, तो कहां मन्नू यानी मनीष मंडल एक अनुसूचित जनजाति परिवार का लड़का। जातपात की यह दीवार इतनी मोटी थी कि हमें एक-दूसरे की धड़कनें ही नहीं सुनायी दीं। इससे पहले कि मैं कुछ सोच पाती, पिता जी ने मेरी शादी अपने एक व्यापारी दोस्त के व्यापारी लड़के से कर दी। यों तो सुमित में कोई बुराई नहीं थी, मगर शायद उसके शरीर में दिल के स्थान पर भी दिमाग ही था। तभी तो वे केवल योजनाएं बनाते थे अौर मुझे उन पर अमल करना होता था।
संयुक्त परिवार की परंपराअों का घूंघट इतना लंबा था कि चारदीवारी के बाहर की दुनिया ही दिखायी देनी बंद हो गयी। बड़ी बहू की जिम्मेदारियों की पाजेब इतनी भारी थी कि पैर थिरकना ही भूल गए। मैंने खुद को अपने ही खोल में समेट लिया। दस वर्ष कैसे बीत गए पता ही नहीं चला। 9 वर्ष का बिट्टू अौर 7 वर्ष की सुरभि, दोनों ही इस वर्ष बोर्डिंग स्कूल में चले जाएंगे, क्योंकि सुमित के अनुसार एक सफल व्यवसायी बनने के लिए यही उचित था। फिर एक दिन सुरभि के स्कूल के वार्षिक उत्सव में मेरी मुलाकात मन्नू से हुई। वह शहर के एक क्षेत्रीय चैनल की तरफ से प्रोग्राम कवरेज के लिए अाया था। प्रोग्राम समाप्त होते ही भाग कर मेरे पास अा गया। अौपचारिकताअों के बाद उसने मुझसे पूछा कि अाजकल तुम क्या कर रही हो, तो मैंने अनायास ही बिट्टू अौर सुरभि की अोर उंगली उठा दी, ‘‘इन्हीं दोनों को पाल रही हूं।’’  
‘‘जॉब अच्छी है,’’ उसके कहने का तरीका कुछ ऐसा था कि मैं मुस्कराए बिना ना रह सकी। इसके बाद धीरे-धीरे हमारे मिलने का सिलसिला शुरू हुअा, तो मन्नू ने एक दिन मुझे अपने चैनल में काम करने का अॉफर दिया।  
‘‘हमारा न्यूज चैनल जल्दी ही शुरू हुअा है, इसलिए उसमें अधिक लोगों की अावश्यकता है। तुम्हारी अावाज तो वैसे भी काफी अच्छी है... हां, थोड़ा बोलने की प्रैक्टिस करनी होगी अौर एक-2 महीने कहीं ट्रेनिंग लेनी पड़ेगी, बस। तुम कहो तो मैं अाज ही अपने बॉस से बात करूं।’’
‘‘क्यों मेरा मजाक उड़ा रहे हो मन्नू। मैं अौर नौकरी... वह भी किसी न्यूज चैनल में। मेरे पति अौर घरवाले कभी नहीं मानेंगे। वैसे भी मेरी जैसी अौरत को कौन नौकरी देगा,’’ मैंने हताशाभरे स्वर में कहा।
‘‘क्यों... कॉलेज के दिनों में किसी भी प्रोग्राम का अनाउंसमेंट तो हम दोनों ही करते थे।’’
 ‘‘तब अौर अब में बहुत अंतर है मन्नू...’’ मुझे मन्नू की बातों में कोई उम्मीद नजर नहीं अा रही थी।
‘‘क्या अंतर है? अाज भी तुम्हारी अावाज वैसी ही सुरीली है, अौर... अौर तुम्हारी त्वचा से तो तुम्हारी उम्र का पता ही नहीं चलता है,’’ मनु ने विज्ञापनवाले अंदाज में कहा, तो मैं हंसे बिना ना रह सकी। मगर हंसते-हंसते अगले ही पल मेरी अांखों में अांसू अा गए अौर मैं हथेलियों में चेहरा छुपा कर सिसक उठी।  
‘‘तुम्हारी समस्या स्वयं की बनायी हुई है अनु, तुमने अपना कर्तव्य तो निभा लिया, लेकिन अपने अधिकारों का इस्तेमाल करना भूल गयी। सबको खुश करने के चक्कर में तुमने अपनी खुशियों का गला घोंट दिया। तुम्हारे घरवाले कोई अंतर्यामी नहीं हैं, जो बिना कहे तुम्हारी बात समझ जाएंगे। उन्हें समझाअो कि यदि तुम खुश रहोगी तभी तुम अपने घर-परिवार को भी खुश रख सकोगी। तुम अधिकारपूर्वक अपनी प्रतिभा का सदुपयोग करने की इजाजत मांगो। वे तुम्हारे अपने हैं। मुझे विश्वास है कि वह कभी भी तुम्हें ना नहीं कहेंगे।’’ मन्नू की बातों को सुन कर मेरे अंदर एक नयी ऊर्जा का संचार हुअा।
मेरे अात्मविश्वास ने सिर उठाया अौर मैंने सुमित से न्यूज चैनल में काम करने के बाद कही। पहले तो  वे नहीं माने, परंतु जब मैंने बिट्टू अौर सुरभि के चले जाने के बाद होनेवाले अपने अकेलेपन की बात कही, तो वे इनकार ना कर सके।
अाश्चर्य कि मम्मी जी अौर पापा जी ने भी कोई विरोध नहीं किया। फिर मन्नू ने ही अपने बॉस से कह कर मेरी नौकरी लगवायी अौर चैनल द्वारा चलाए जा रहे ट्रेनिंग स्कूल में मेरा नामांकन भी करवाया। तीन महीने कैसे बीत गए पता ही नहीं चला। मेरा खोया हुअा अात्मविश्वास वापस लाने में मन्नू मेरा सहायक बना अौर मेरी नियुक्ति दोपहर के समाचार पढ़ने के लिए हो गयी। लेकिन वहां के अत्याधुनिक माहौल में मैं अटपटा महसूस करने लगी। मेरी सलीके से की गयी चोटी अौर पारंपरिक अंदाज में बांधी गयी साड़ी ने मुझे पुरातनपंथी का खिताब दे डाला। मैं स्वयं को बदलना चाहती थी, मगर घरवालों का डर...
‘‘फिर वही डर... अाखिर वे लोग तुम्हारे दुश्मन तो नहीं हैं। तुम ही ने तो बताया है कि कितना प्यार करते हैं वे तुम्हें। फिर, समय के साथ चलने में कोई बुराई भी तो नहीं है, जिसके लिए उन्हें ऐतराज होगा।’’
मन्नू की दलीलों के अागे मैं फिर झुक गयी। शनिवार का पूरा दिन मैंने अॉफिस से छुट्टी ले कर मन्नू के साथ बिताया। वह मुझे शहर के सबसे अच्छे ब्यूटी पार्लर में ले गया। वहां मुझे कुछ इस तरह बदल दिया गया कि मैं स्वयं को भी नहीं पहचान सकी। गुलाबी रंग के ब्रांडेड टॉप अौर काली लॉन्ग स्कर्ट के साथ गोल्डन ब्लैक टच के गले में लिपटे स्टोल ने मेरी उम्र को 10 साल कम कर दिया। स्टेप कटिंग अौर कोक कलर से डाई किए गए कंधे तक झूलते मेरे बालों ने मेरे गोरे चेहरे की रंगत उभार दी थी।
शाम को जब मैं घर पहुंची, तो अंदर जाने के लिए मैं एक कदम भी नहीं उठ पा रहे थे। कांपती टांगों को मैं घसीटने ही वाली थी कि तभी दरवाजा खुला अौर मिनाली बाहर निकली। एक क्षण के लिए तो वह चौंक गयी, मगर अगले ही पल, ‘‘वाअो... भाभी, यू अार लुकिंग सो स्मार्ट...। मम्मी... पापा... बाहर अाअो तो देखो, भाभी कितनी सुंदर लग रही हैं।’’ मिनाली की खुशी देख कर मैं थोड़ी संयत हो उठी।
लेकिन पिता जी ने जब मुझे ऊपर से नीचे तक घूर कर देखा, तो मैं सहम गयी, अौर वे ठहाका लगा कर हंस पड़े, ‘‘अरे ! मुझे तो पता ही नहीं था कि तुम्हें यह सब भी अाता है। डरने की कोई बात नहीं है। मैं तो तुममें अौर मिनाली में कोई फर्क ही नहीं समझता। वैसे भी अब तुम एक समाचार वाचिका हो। तुम्हें तो अपटूडेट बन कर रहना ही चाहिए।’’ लेकिन मां जी का चेहरा कुछ उतर सा गया था। इससे पहले कि वे कुछ बोलतीं सुमित अा गए। उन्होंने भी मुझे घूर कर देखा अौर बिना किसी प्रतिक्रिया के अंदर चले गए। मौके का फायदा उठा कर मैं भी मिनाली के कमरे में चली गयी। खाने की मेज पर भी सुमित ने मुझसे कुछ नहीं कहा, लेकिन जब मैं कमरे में पहुंची, तो उनका मुस्कराता चेहरा देख कर मुझे तसल्ली हुई।
‘‘मुझे नहीं पता था कि ऐसे कपड़ों में तुम इतनी सुंदर लग सकती हो, वरना...’’
 ‘‘वरना क्या...’’ सुमित की शरारतभरी निगाहों ने मुझे अचरज में डाल दिया।
 ‘‘...वरना मैं तुम्हें अपने अॉफिस की सेक्रेटरी बना लेता अौर तुम्हें दिन-रात यों ही देखा करता।’’

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‘‘धत्त...’’ सुमित ने मुझे गोद में उठाया, तो मैं शरमा गयी। शादी के बाद जिन सुनहरे पलों की कामना हर लड़की करती है, सही मायनों में वह पल मुझे अाज नसीब हुअा था। मैंने तो सोचा भी नहीं था कि मेरे घरवाले इस तरह से रिएक्ट करेंगे। बल्कि अब तो ऐसा लगता है जैसे वे लोग मुझसे कुछ ज्यादा ही घुलमिल गए हैं। पहले मिनाली मुझसे जरूरतभर ही बातें किया करती थी। लेकिन अब तो मुझे अपने दोस्तों से परिचय करवाती है, पार्टी अौर शॉपिंग में भी मुझे साथ ले कर जाती है। मां जी अौर पिता जी भी अपने दोस्तों के बीच मेरी तारीफ करते नहीं थकते। पिता जी तो मुझे सुपर वुमन कहते हैं। सुमित भी अब अॉफिस की हर बात मुझसे शेअर करते हैं अौर मेरी राय भी लेते हैं। घर का वातावरण देख कर मुझे बेहद सुकून अौर संतुष्टि मिलती है अौर यह सब तुम्हारे कारण हुअा है मन्नू, सिर्फ तुम्हारे कारण। लेकिन मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकती। मैं तो तुम्हें अपने परिवारवालों से मिला भी नहीं सकती हूं अौर ना ही उन लोगों को तुम्हारे बारे में बता सकती हूं। मुझे डर है कि कहीं कोई मेरे मन के चोर को मेरी अांखों में ना पढ़ ले, क्योंकि तुम्हें देखते ही मेरे मन की कोमल भावनाएं मेरी अांखों में हिलोरें मारने लगती हैं।
 ‘‘यह अकेले-अकेले तुम किससे बातें कर रही हो। ...अौर तुम्हारी अांखों में अांसू... कहीं तुम फिर से उसी फिल्म के बारे में तो नहीं सोच रही हो,’’ मन्नू ने अाइसक्रीम की ट्रे टेबल पर रखते हुए कहा।         
‘‘नहीं मन्नू, यह तो बस ऐसे ही... ’’ मैंने अतीत से बाहर निकलते हुए कहा।
अाइसक्रीम खाते-खाते मन्नू ने कहा, ‘‘वहां डांसिंग फ्लोर पर देखो अनु... सब कितने खुश हैं। चलो ना हम भी एक बार चल कर डांस पे चांस मार लेते हैं।’’
 ‘‘पागल हो गए हो तुम, बरसों बीत गए मुझे डांस छोड़े हुए।’’
 ‘‘तुमसे अलग होने के बाद तो मैंने भी कभी डांस नहीं किया अन्नू,’’ ना जाने क्यों मन्नू की अावाज कुछ ज्यादा ही संजीदा हो गयी।
 ‘‘अोफ्फो। माननेवाले तो तुम हो नहीं। चलो...’’ मैंने मन्नू का हाथ पकड़ते हुए कहा।
डांस के दौरान मैंने महसूस किया कि मन्नू की निगाहें सिर्फ मेरे चेहरे पर ही टिकी थीं। उसकी अांखों में भी अजीब सा सूनापन था।  
‘‘ऐसे क्या देख रहे हो मन्नू... पहले कभी देखा नहीं क्या।’’
 ‘‘हां। क्योंकि पता नहीं फिर कब यह चेहरा देखने को मिलेगा।’’
 ‘‘तुमने ऐसा क्यों कहा मन्नू...’’ मैं अचानक रुक गयी।
 ‘‘कुछ नहीं, चलो बैठ कर बातें करते हैं,’’ उसने मेरा हाथ पकड़ लिया।
 ‘‘बात बदलने की कोशिश मत करो। कोई ना कोई बात जरूर है। बताअो मुझे...’’ मैंने भी उसका हाथ छुड़ाते हुए कहा।
‘‘मैंने फॉरेन की एक मॉडलिंग एजेंसी में फोटोग्राफर के एक पद के लिए अप्लाई किया था। अौर मैं सेलेक्ट हो गया हूं। मुझे वहां जाना पड़ेगा,’’  मन्नू ने जब सपाट शब्दों में जवाब दिया, तो मैं सन्न रह गयी। मेरी हिचकियां बंधने लगीं।
‘‘रो मत अन्नू, तुम्हारे साथ गुजरा एक-एक पल मेरे लिए अनमोल है, अविस्मरणीय है या यों कहूं कि हर वह पल सुनहरा है, जो हम दोनों ने एक साथ बिताए हैं,’’ मन्नू ने मेरे अांसू पोंछते हुए कहा।
‘‘हमेशा से मैंने जो कल्पना की थी वह तुम्हारे कारण ही तो साकार हुअा है। तुमने मुझे मेरे अस्तित्व का बोध कराया है। तुम ही ने तो मेरी जिंदगी के सुनहरे सपनों को सुनहरे पलों में बदला है,’’ मैं टेबल पर सिर टिका कर सुबकने लगी।
‘‘अन्नू, हम दोनों ने दोस्ती का फर्ज निभाते हुए एक-दूसरे को बस सहारा दिया है, किसी ने किसी पर कोई अहसान नहीं किया है। इसलिए मन में कोई अात्मग्लानि नहीं रखना,’’ मन्नू ने मुझे चुप कराते हुए कहा।
‘‘मुझे विदेश जाने की प्रक्रिया पूरी करने में अभी 1 महीने का समय लगेगा, इसलिए मूड खराब मत करो। अरे यार, अब मुस्करा भी दो। बाकी जब मैं विदेश जाने लगूंगा उस दिन रो लेना,’’ मन्नू की बातें सुन कर मुझे हंसी अा गयी अौर मैंने मुस्कराते हुए अपना सिर उसके सीने पर रख दिया। उसने अधिकारपूर्वक मेरे चेहरे को अपने हाथों में ले कर मेरे ललाट पर एक प्रेमचिह्न अंकित कर दिया। मैंने अपनी पलकों को बंद करके एक अाह भरी... काश कि ये सुनहरे पल यहीं रुक जाएं।