आईजी एअरपोर्ट पर उतरते ही दिल जाेर से धड़कने लगा। चार साल नौ महीने सत्ताइस दिनों बाद वह अपने देश की धरती पर पांव रख रही थी, उसे आज यह अनुभूति हुई कि वह अपने देश की धरती को कितना मिस कर रही थी। उसका मन कर रहा था कि जोर-जोर से सांस ले कर यह हवा अपने अंदर एकत्र कर ले। बाहर आ कर टैक्सी में बैठते ही जैकी ने कहा, ‘‘मयूर विहार फेस वन चलना है।’’
आर्यकी ने चौंक कर उसकी ओर देखा, तय तो यह हुआ था कि वे किसी होटल में रुकेंगे, पर उसके कुछ कहने से पूर्व ही जैकी ने सामान टैक्सी में रखा, उसे बैठने का संकेत किया और स्वयं बेटी को ले कर बैठ गया। आर्यकी यंत्रचालित सी बैठ गयी, पर जैकी के इस निर्णय ने उसे आशंका से घेर लिया। उसे अपनी चिंता नहीं थी, उसके साथ कैसा भी व्यवहार हो वह सह लेगी, पर यदि जैकी का किसी ने अपमान किया, तो वह जैकी से कैसे दृष्टि मिला पाएगी।
पांच वर्ष पूर्व के घटनाक्रम उसके मस्तिष्क के पटल पर किसी चलचित्र के समान उभरने लगे। पापा का स्थानांतरण कानपुर से दिल्ली हो गया था। उसने दिल्ली के नामी कॉलेज में प्रवेश लिया था और उत्साह के पंखों पर सवार कॉलेज पहुंची थीं। पर वहां पहुंच कर वह यथार्थ के ठोस धरातल पर आ गिरी थी। उसके जैसी अतिसाधारण रूपवाली मध्यमवर्गीय बहन जी टाइप लड़की वहां की आधुनिक धनाढ्य छात्राअों के मध्य अपनी मेधा से प्रवेश भले पा गयी हो, पर वह उनके लिए हंसों के मध्य कौवे जैसी ही थी। कुछ अपनी कमियों और कुछ अन्य सहपाठियों की उपेक्षा ने उसे हीन भावना से ग्रस्त कर दिया और वह भूल गयी कि वह कानपुर से स्वर्ण पदक पा कर ही यहां प्रवेश पा सकी है। ऐसे में उसने स्वयं को अपने खोल में समेट लिया। वह कक्षा में अलग-अलग चुपचाप सी रहती।
दो-तीन दिन किसी कारण से कॉलेज ना आ पायी। संयोग से अगले दिन प्रोफेसर सान्याल ने उससे उसी संदर्भ में प्रश्न पूछा, तो उसने बताया कि वह कॉलेज नहीं आ रही थी। सान्याल सर ने नाराज हो कर कहा, ‘‘तुम प्राइमरी की बच्ची नहीं हो कि तुम्हें यह बताया जाए कि ना आने पर अपने सहपाठियों से पूछ कर नोट्स पूरे कर लो। एम.फिल करने आयी हो और इतनी भी समझ नहीं है।’’
वह सिर झुका कर खड़ी हो गयी। लेक्चर समाप्त होने पर भी वह वहीं बैठी रही, अपमान से उसकी आंखों में आया पानी दिखा कर वह तमाशा नहीं बनना चाहती थी। तभी किसी ने नोट्स की कॉपी और एक रूमाल उसके सामने रख दिया। उसने आंख उठा कर देखा, तो एक नीग्रो लड़का जो उसी की बैच का था सामने खड़ा था। पहले तो उसे लगा कि वह उसका मजाक बनाने आया है, पर उसकी गंभीर मुद्रा ने आर्यकी को अपना विचार बदलने को विवश किया। ‘‘माई सेल्फ जैक्सन फर्नांडीज’’ कह कर उसने दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाया।
आर्यकी ने उससे हाथ मिलाते हुए अपना परिचय दिया। आज पहली बार इस कॉलेज में कोई अपनी पहल करके उससे बोला था। जैक्सन नाइजीरिया से भारतीय संस्कृति पर अध्ययन करने के उद्देश्य से भारत आया था और विदेशी होने के कारण अलग सा पड़ गया था। धीरे-धीरे जैक्सन व आर्यकी एक-दूसरे के लिए जैकी और योकी हो गए। पहली बार जैक्सन ने आर्यकी को पुकारा, तो बीच में ही ‘आर’ कह कर अटक गया फिर बोला, ‘‘आई मीन आर योकी।’’ आर्यकी अपने नाम के इस विच्छेद पर हंस पड़ी।
वह खिसिया कर बोला, ‘‘तुम्हारे पेरेंट्स ने तुम्हारा इतना कठिन नाम क्यों रख दिया कि कोई बुला भी ना सके।’’
‘‘क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि मेरा कोई तुम्हारा जैसा बुद्धू दोस्त होगा,’’ आर्यकी ने हंसते हुए कहा और उसकी नाक पकड़ कर हिला दी। दोनों हंसने लगे। कब दोनों एक-दूसरे के मात्र दोस्त से कुछ विशेष हो गए, वे स्वयं भी ना जान पाए। दोनों का ही काम एक दूसरे के बिना ना चलता। एक दिन भी ना मिलते, तो सब कुछ अधूरा सा लगता। आर्यकी ने कभी सोचा ना था कि उसे भी कोई इतना चाह सकता है और उसका मन भी कभी उसके बनाए बंधनों को तोड़ने की जुर्रत कर सकता है। उसके कॉलेज के आधुनिक वातावरण में लड़के-लड़की की दोस्ती कोई ऐसी घटना नहीं थी कि सुर्खियों में स्थान पाए, पर एक नाइजीरियन लड़के से भारतीय लड़की की अंतरंगता लोगों को रास ना आयी।
वे लड़के जो पीठ पीछे उसे खुदाई से निकली कह कर संबोधित करते थे, उनका अहं भी चोट खाने लगा। उन्होंने जैकी को आर्यकी से दूर रहने की चेतावनी दे दी और जो खुद दिन-रात ना जाने किन-किन नशे के आदी थे और आर्यकी से बोलते भी नहीं थे, उन्होंने आर्यकी के प्रति अपनी जिम्मेदारी का भार स्वतः ले लिया और उसे समझाते, ‘‘ये विदेशी यहां ड्रग्स बेचने आते हैं, पढ़ाई तो बहाना है। इनसे दूर ही रहो।’’ हो सकता है उनके कथ्य में कुछ प्रतिशत सत्यता हो, पर जैकी के लिए आर्यकी ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकती थी। उसके जैसा ईमानदार, समझदार और उसका ध्यान रखने वाला साथी कोई हो ही नहीं सकता।
बात कॉलेज तक ही सीमित होती, तो आर्यकी की प्यार की राह सरल होती, पर वह जैकी के साथ बाजार मूवी या मॉल में भी जाती, तो लोग मुड़-मुड़ कर देखते। एक दिन तो हद ही हो गयी जब आर्यकी एक रेस्तरां में, जहां वे दोनों प्रायः ही आते थे, जैकी की प्रतीक्षा कर रही थी, तो वहां का मैनेजर जो उन्हें भलीभांति जान गया था, आ कर आर्यकी से बोला, ‘‘मैडम, एक बात कहें।’’
‘‘हां-हां बताइए,’’ आर्यकी ने कहा।
मैनेजर ने हिचकते हुए कहा, ‘‘मैडम, बुरा मत मानिएगा, ये काले लोग ठीक नहीं हाेते। आप इसके चक्कर में ना पडि़ए।’’
आर्यकी को क्रोध आ गया। उसने आवेग में कहा, ‘‘प्लीज, माइंड योर बिजनेस। आपकी िहम्मत कैसे हुई मेरी पर्सनल बातों में इंटरफेअर करने की,’’ कह कर आर्यकी वहां से उसी समय बाहर आ गयी और फिर कभी वहां नहीं गयी।
एक दिन पार्टी में कुछ लड़कों ने आर्यकी के साथ जैकी को देख कर उसकी पिटाई कर दी। तब बड़ी मुश्किल से वह उसे बचा कर लायी। उसने पुलिस में शिकायत की, तो वे भी उल्टे उसे ही समझाने लगे। प्यार की पेंग बढ़ाते हुए आर्यकी भूल गयी थी कि उसका एक परिवार है, पर अब उसे चिंता हो गयी थी कि पापा-मम्मी मानेंगे कि नहीं फिर वह स्वयं को समझाती कि वह उसे प्यार करते हैं और उसकी खुशी में अवश्य साथ देंगे।
इस ऊहापोह से उबरने के लिए वह जैकी को ले कर घर पहुंच गयी और बिना किसी भूमिका के उसने बोल दिया, ‘‘पापा, मैं जैकी से शादी करना चाहती हूं।’’ उसका यह कथन उसकी अपेक्षा से कहीं अधिक विस्फोटक बम सिद्ध हुआ, कुछ क्षण तो पापा, मम्मी और मिहिका हतप्रभ खड़े रह गए फिर पापा जिस तरह अपनी सभ्यता-संस्कार को ताक पर रख कर चिल्लाए और जैकी का अपमान किया, वह आर्यकी की कल्पना से परे था।
आर्यकी ने बोलना चाहा, तो पहली बार उनका हाथ उस पर उठ गया। जब जैकी ने बीच में आ कर उसकी बात शांति से सुनने का अनुरोध किया, तो उन्होंने लगभग धक्के मार कर उसे घर से निकाल दरवाजे बंद कर लिए। अपनों द्वारा जैकी का यह अपमान देख कर वह लज्जा से गड़ी जा रही थी, क्या सोचता होगा जैकी, कैसा असभ्य परिवार है उसका। उसने हर उपाय किया, विनती की, रोयी, खाना छोड़ दिया, पर पापा टस से मस ना हुए। वे एक विधर्मी विदेशी को अपनी बेटी देने को तैयार ना हुए। भले कई वर्षों से जूते घिसने के बाद भी अति साधारण रंग-रूप की बेटी के लिए वह एक वर जुटा नहीं पाए थे और उसकी कुरूपता पर दुखी रहते थे। अब वही पापा कह रहे थे, ‘‘मैं उस काले भुजंग को अपनी बेटी कैसे दे सकता हूं।’’
मम्मी के रुदन, पापा के आक्रोश और मिहिका की दृष्टि में तिरस्कार ने आर्यकी के अंगद के पांव जैसे अटल निर्णय को कुछ क्षणों के लिए हिला दिया, पर जैकी की आंखों में अपने लिए प्यार, चिंता और हर मुसीबत में ढाल के समान खड़े होने के उसके जज्बे ने उसके निर्णय को अाैर भी दृढ़ कर दिया। अपने अतीत के आंचल से निर्दयता से हाथ छुड़ा कर उसने जैकी का हाथ थाम लिया। जैकी ने उसकी खुशी के हर संकट से जूझ कर भी भारत में ही रहने का निर्णय लिया था, पर जब अपने ही विरोध में खड़े हो गए, तो आर्यकी का साहस चुक गया, उसने कहा, ‘‘जैकी, अब हम तुम्हारे देश में रहेंगे।’’
जैकी ने कहा, ‘‘सोच लो, तुम अपनों से दूर नयी जगह रह पाओगी।’’
आर्यकी ने कहा, ‘‘अपना अब कोई बचा ही कहां।’’ उसकी वाणी अवरुद्ध हो गयी। जैकी ने उसे अपनी बांहों में समेट लिया, वह उसके कंधे पर सिर रख कर सिसक पड़ी।
नाइजीरिया में जैकी के घर वालों ने कोई विशेष स्वागत या प्रसन्नता तो नहीं व्यक्त की, पर आर्यकी के घर जैसा हंगामा भी नहीं हुआ। वे उससे एक अपरीचित जैसा व्यवहार ही करते रहे। इतने संघर्ष के बाद एक आशा का सूरज उदित हुआ। जैकी और आर्यकी दोनों को जर्मनी के एक विश्वविद्यालय में शिक्षक की नौकरी मिल गयी। अब जा कर उनका जीवन समतल राह पर आया। इसी बीच उनके जीवन में एक नन्ही परी ने आ कर उनको असीम सुख दिया था। पापा-मम्मी तो नहीं, पर मिहिका से कभी-कभी पहले फेसबुक पर फिर फोन पर बात होने लगी। आर्यकी को इसी में संतोष था, कम से कम अपनों का हाल तो मिल जाता था।
एक दिन मिहिका ने बताया कि अगले माह उसका विवाह है। यह सुन आर्यकी को प्रसन्नता और दुख दोनों की अनुभूति एक साथ हुई। जैकी उसके दुख को समझता था। उसने कहा, ‘‘हम लाेग मिहिका के विवाह में इंडिया चलेंगे।’’ आर्यकी उसका चेहरा देखने लगी, कैसा इंसान है यह इतने अपमान को भूल कर मेरे लिए वह मेरे घर जाने को तैयार है, पर वह इतनी स्वार्थी नहीं हो सकती। उसने मना कर दिया, पर जैकी टिकट ला कर ही माना। उसे विश्वास था कि पापा-मम्मी उनके सुखी संसार को देख कर क्षमा कर देंगे।
टैक्सी एक झटके से रुक गयी, आर्यकी का हृदय जोर से धड़कने लगा। यद्यपि उसने मिहिका को सूचना दे दी थी, पर फिर भी पापा कैसे स्वागत करेंगे, यह सोच कर वह घबरा रही थी। जैकी ने उसके कंधों को दबा कर उसे आश्वस्त किया। घंटी बजाने पर पापा ही बाहर आए। जैकी ने उन्हें कुछ कहने का अवसर दिए बिना उनके पांव छू लिए। आर्यकी आश्चर्य से जैकी को देखने लगी, पापा भी कुछ बोल नहीं पाए, बस उन्हें अंदर आने का रास्ता दे दिया। मम्मी नन्ही नातिन को देख कर स्वयं को रोक नहीं पायी और उसे अपनी गोद में ले लिया। मिहिका से उनके सुखी जीवन का समाचार तो मिलता रहता था, पर आज आर्यकी का सुख से दमकता चेहरा उसकी पुष्टि कर रहा था। पापा अभी भी अहं का मुखाैटा लगाए थे। मिहिका ने पूछा, ‘‘दीदी, मेरी भांजी का नाम क्या रखा?’’ तो जैकी ने कहा, ‘‘राधा।’’ यह सुन पापा चौंक पड़े और अहम का मुखौटा अपने आप ही गिर गया। अब राधा पापा के कंधों पर चढ़ी थी और हवा में मिलीजुली खिलखिलाहटें तैर रही थीं।