Thursday 21 November 2024 12:57 PM IST : By Deepa Pandey

बिखरी हुई कड़ियां - अंतिम भाग

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नन्ही मनु अकसर उनके घर आ जाती, श्रुति को वह तीती कह कर बुलाती। श्रुति भी आजकल फुरसत में थी, वह भी नन्ही मनु के साथ खेल में मगन हो जाती।

श्रुति को तैयार हो कर बाहर निकलता देख कर मां ने कहा, “बेटा, तुम्हारी रेखा मौसी दिल्ली से अकेले आ रही हैं, उन्हें अपने घर की लोकेशन सेंड कर देना। वे टैक्सी कर आ जाएंगी।”

“मौसी अकेले आ रही हैं?” श्रुति ने पूछा।

“हां, दोनों बच्चे तो विदेश पढ़ने को भेज दिए उसने, अब घर में मन ऊब जाता है। मैंने ही कहा कि कुछ दिन के लिए यहां आ जाओ। तुम्हारे मौसा तो अपने व्यापार में ही व्यस्त रहते हैं।”

“मौसी ने कभी दिल्ली में भी अकेले ट्रेवल नहीं किया होगा। यहां भोपाल में हमारे घर कोलार रोड में क्या पहुंच पाएंगी। मैं उनकी फ्लाइट डिटेल ले लूंगी फिर टैक्सी से उन्हें ले आऊंगी। मौसी सिर्फ बातों की उस्ताद हैं, बाकी उन्हें कुछ आता-जाता नहीं,” श्रुति ने कहा।

“ऐसा नहीं कहते,” मां ने डपटा।

“मां, इनकी फ्लाइट 6 बजे शाम को पहुंचेगी। मैं और ज्योति, ईशिता की सरप्राइज बर्थडे पार्टी सेलिब्रेट करने जा रहे हैं। मैं मौसी को एअरपोर्ट से लेती हुई घर आ जाऊंगी,” श्रुति ने अपना पर्स संभाला और गेट से बाहर निकल गयी।

टैक्सी का इंतजार करते हुए उसने ज्योति को फोन मिलाया, “ज्योति, तू केक और स्नैक्स लेती आना, मुझे बैरागढ़ पहुंचने में समय लग जाएगा। ये टैक्सी भी कैंसिल दिखा रही है, देखो अब दूसरी बुक करती हूं।”

“टैक्सी क्यों लेनी, आइए मैं आपको ड्रॉप कर दूंगा,” अनुज ने अपनी कार उसके सामने रोक कर कहा।

“मुझे अपनी फ्रेंड के घर बैरागढ़ पहुंचना है, आपको देर हो जाएगी,” श्रुति ने कहा।

“आज संडे है। मैं तो यों ही बड़ा तालाब तक घूमने निकला था,” अनुज ने कहा।

“तीती,” पीछे सीट पर बैठी मनु चहक उठी।

ड्राइविंग सीट पर बैठ कर श्रुति ने मनु को आगे अपनी गोद में बैठा लिया।

“ये आगे बैठ कर सारे बटनों से छेड़खानी करती है, इसीलिए मैं इसे चाइल्ड सीट में बैठा कर ही घुमाने ले जाता हूं।”

“बच्चों की सेफ्टी के लिए यह जरूरी भी है,” श्रुति ने सहमति प्रदान की।

“ कॉन्ग्रेट्स मिस टॉपर !”

“थैंक्स।”

“आगे क्या विचार है?”

“एमबीए।”

“गुड, मैंने भी दिल्ली से एमबीए किया है।”

दोनों विभिन्न कालेजों की गुणवत्ता पर चर्चा करते रहे। बैरागढ़ पहुंच कर श्रुति ने मनु को पीछे सीट पर बैठा दिया। मनु अभी तक श्रुति के मोबाइल पर कार्टून देखती आ रही थी। उसने मोबाइल वापस करने से मना कर दिया। “लाओ इधर जिद नहीं करते,” अनुज ने डपटा तो मनु ने मोबाइल सीट के नीचे फेंक दिया।

दोनों एक साथ झुके तो श्रुति के चेहरे से अनुज का हाथ टकरा गया। उसकी बाजू पर बने काले सर्प के टैटू को देख कर वह चौंक उठी। उसके होंठों की लिपस्टिक सर्प के फन पर छप चुकी थी। एक पल को श्रुति ने उसे घूरा, फिर उसकी बांह एक हाथ से थामी और दूसरे हाथ से टैटू के ऊपर छपी लिपस्टिक पोंछ दी।

“ये घिसने से नहीं निकलेगा, परमानेंट टैटू है,” अनुज वस्तुस्थिति से अनजान था।

श्रुति मुस्करायी और अपना मोबाइल और पर्स संभालती हुई सहेली के अपार्टमेंट को मुड़ गयी। वह फ्लैट की घंटी बजाने को हुई तो पीछे से ज्योति भी पहुंच गयी।

“ये तूने ठीक सोचा सरप्राइज देने का, बेचारी सतना से भोपाल पढ़ाई के लिए ही तो आयी है। यहां अकेले ही बनाती खाती है, हम लोग तो अपने परिवार के साथ रहते हैं।”

“तुम लोग अचानक?” ईशिता ने चौंक कर कहा।

“हैप्पी बर्थडे इन एडवांस,” दोनों बोल पड़ीं।

“वेलकम-वेलकम,” कहते हुए अपनी टीशर्ट ठीक करता हुआ ऋषभ भी अंदर से निकल आया।

“हम तो सरप्राइज देने आए थे, खुद ही सरप्राइज हो गए तुम्हें यहां मौजूद देख कर,” ज्योति ने हैरानी से कहा।

श्रुति की तेज निगाहें कमरे का मुआयना करने लगीं। सेंटर टेबल पर रखी बर्फ, नमकीन, सोडा उन दोनों के बीच पक रही खिचड़ी की चुगली कर रहा था। उसके मन के भीतर कुछ दरक गया।

“मुझसे कह रही थी किसी को बताना नहीं और खुद ऋषभ को यहां बुला लिया। अरे एकांत का मजा ही कुछ और है,” ज्योति ने श्रुति से कहा।

उसकी बात सुन कर ईशिता और ऋषभ एक-दूसरे से नजरें चुराने लगे। श्रुति गंभीर हो उठी।

“मुझे किसी ने नहीं बुलाया। मैं खुद ही यहां आया हूं। तुम दोनों तो मेरे साथ चीयर्स करने से रही। ईशिता तो खुद ही बुला लेती है, साथ में बढ़िया खाना भी खिलाती है,” ऋषभ ने सफाई दी।

ज्योति को कुछ समझ नहीं आ रहा था। कुछ क्षण की चुप्पी के बाद श्रुति ने कहा, “फटाफट केक काटो, मुझे मौसी को रिसीव करने एअरपोर्ट भी
जाना है।”

रेखा मौसी हमेशा की तरह अपने वैभव का प्रदर्शन करती हुई नजर आ गयीं। वे अपनी महंगी साड़ी, गॉगल्स, डायमंड पेंडेंट सेट पहने हुए उसकी तरफ हाथ हिलाती हुई आ पहुंचीं।

“श्रुति, तू इतनी पतली क्यों हो गयी है। पढ़ाई का बोझ है या डाइटिंग करती है?” रेखा मौसी आदतनुसार बोलना शुरू कर चुकी थीं।

टैक्सी से उतर कर जैसे ही रेखा मौसी ने उसके गेट की तरफ कदम बढ़ाया, बगल के गेट से अनुज अपनी बाइक निकालता दिखा। मौसी को देख कर वह चहक उठा। तुरंत पास आ कर उनके पैर छूने लगा। मौसी भी उससे घुलमिल बातें करने लगीं।

श्रुति ने उन्हें अंदर चल कर बात करने को कहा तो अनुज को याद आया कि वह घर से सब्जी लेने बाहर निकला था। उसने मौसी से फिर मिलने का वादा किया और बाइक ले कर चला गया।

अंदर पहुंच कर सबसे मिलने के बाद मौसी ने अनुज का राग छेड़ दिया।

“दीदी, तुम्हें पता है ये अनुज बहुत ही प्यारा बच्चा है। दिल्ली में हमारे पड़ोस में ही तो इनका भी बंगला है। इसके पिता रिटायर्ड आईएएस हैं। सिर्फ अनुज की खुशी के लिए ये लोग भोपाल आ गए हैं।”

“लाड़ला बेटा होगा। इसी से जहां बेटे की नौकरी बीएचईएल लगी, वहीं ये भी चले आए,” रीना ने व्यंग्य किया।

“बेटे की नौकरी नहीं, बल्कि मनु की वजह से उन्हें यहां आना पड़ा। वह मनु को दिल्ली छोड़ने को तैयार ही नहीं हुआ,” रेखा ने कहा।

“अपनी बहन से इतना प्यार ऐसा तो पहली बार देख-सुन रहे हैं,” श्रुति ने आश्चर्य से कहा।

“बहन, कौन सी बहन? वह तो इकलौता लड़का है,” मौसी ने हैरानी से पूछा।

“अरे वो नन्ही बच्ची मनु, क्या वह दिल्ली में पैदा नहीं हुई थी?” श्रुति ने कहा।

“ अरे तुम लोगों को कुछ नहीं पता क्या, मनु के बारे में ?” मौसी ने आश्चर्य से पूछा।

“तुझे तो पता ही है मैं किसी की निजी जिंदगी के विषय को ज्यादा नहीं कुरेदती,” रीना ने झुंझला कर कहा।

“वह तो अनुज की बेटी है,” मौसी ने धमाका किया।

“क्या !” रीना और श्रुति चौंक उठीं।

“वो तो आंटी को मम्मा बोलती है,” श्रुति ने कहा।

“उसे बोलना ही कितना आता है? फिर मम्मा बोले भी तो किसे? उसकी मां तो उसे जन्म देते ही इस दुनिया से चली गयी। बहुत प्यारी थी गरिमा। अनुज और गरिमा की जोड़ी को नजर लग गयी। दोनों ने एमबीए की पढ़ाई के दौरान ही विवाह कर लिया था और शादी के 7 महीनों के भीतर ही नन्ही मनु को जन्म दे कर मृत्यु के मुख में समा गयी। बड़ी जिद्दी और जल्दबाज लड़की थी। उसे हर बात की जल्दी रहती थी। बोलने की जल्दी, खाने की जल्दी, विवाह करने की जल्दी। देखो ना बच्चे को जन्म देने में भी जल्दी, सतमासे बच्चे को जन्म दे कर खुद तो चली गयी, पीछे छोड़ गयी अनुज और उसके परिवार के लिए मनु की जिम्मेदारी,” रेखा मौसी एक सांस में बोल गयीं।

“हमने क्या, मोहल्ले में किसी ने भी मनु के विषय में ऐसा सोचा ही नहीं, सभी को लगा बुढ़ापे की औलाद होगी,” रीना ने कहा।

“हां, वे बड़े भले लोग हैं। अनुज के घाव को कुरेदना नहीं चाहते हैं, इसी से मनु के विषय में चुप रहते होंगे।”

“मौसी, डिनर तैयार है चलो,” श्रुति की बात सुन कर सभी चल पड़े।

अपने बगल में लेटी मौसी को सोता हुआ छोड़ कर वह बालकनी में आ गयी। बगल की बालकनी में उसे अनुज खड़ा दिखायी दिया। आज उसे अनुज के देर रात तक बालकनी में खड़े रहने का राज समझ आ गया था। गरिमा से जुड़ी यादें उसे सोने नहीं देती होंगी। आज वह उसे देख कर बालकनी से हटी नहीं, बल्कि अपना हाथ हिला कर उसे हेलो बोला, प्रत्युत्तर में उसने भी हाथ हिला दिया।

वह कुरेद-कुरेद कर मौसी से गरिमा के विषय में अकसर पूछती रहती।

“चल, आज अनुज के घर चलते हैं। तुझे एक सरप्राइज मिलेगा वहां,” रेखा मौसी ने श्रुति से कहा।

“मौसी, प्लीज आप वहां गरिमा के विषय में कुछ ना कहना। जिस विषय को वे छेड़ना नहीं चाहते उसे क्यों दोहराना,” श्रुति ने अपने हाथ जोड़ते हुए कहा।

“चल पगली, उसकी मां से मेरी गहरी घनिष्ठता है। हम एक-दूसरे से कुछ नहीं छिपाते, लेकिन तेरे सामने अगर वह कुछ बताना ना चाहे तो मैं भी कुछ नहीं कहूंगी,” रेखा मौसी की इसी शर्त के साथ वह अनुज के घर चलने को तैयार हो गयी।

उसे देख कर मनु दौड़ कर उसकी गोद में समा गयी। दोनों एक कोने में रखे गुड़ियाघर के पास बैठ कर ऐसे खेलने लगीं, मानो हमउम्र हों।

रेखा और अनुज की मां की बातें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं। एक घंटे बाद श्रुति ने कहा, “मौसी, घर चलें?”

“मैं तो गप्पों में चाय पिलाना ही भूल गयी, तुम अनुज का अलबम श्रुति को दिखाना। मैं रसोई में कमला को पकौड़े बनाने को बोल कर आती हूं,” अलमारी में से अलबम निकाल कर वे रेखा को थमा कर रसोई में चली गयीं। श्रुति भी मौसी के बगल में बैठ कर अलबम देखने लगी।

“ये है तेरा सरप्राइज,” कह कर मौसी ने गरिमा की फोटो पर उंगली रख दी।

“इसकी शक्ल मुझसे कितनी मिलती है ना मौसी,” श्रुति ने आश्चर्य से कहा।

“मैं तो गरिमा से हमेशा ही कहती थी कि तू पिछले जन्म में जरूर श्रुति की बहन रही होगी,” रेखा ने कहा।

“सच मौसी, सुना तो था कि दुनिया में एक जैसी शक्ल के कम से कम सात लोग होते हैं, लेकिन देखा आज ही है। इसीलिए मुझे मनु में अपना बचपन दिखायी देता है, यह अपनी मां की तरह दिखती है,” श्रुति अपनी नजर फोटो से हटा ही नहीं पा रही थी।

श्रुति को दिल्ली के एक काॅलेज में एडमिशन मिल गया था। वह मौसी के साथ ही दिल्ली चली गयी।

“श्रुति, तुझे यहां तो वे सपने नहीं आते ना?” मौसी ने एक दिन अचानक पूछा।

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“मौसी, मुझे अकसर रंगबिरंगे फूलों पर मंडराती ढेर सारी तितलियों का सपना आया करता है। जानती हो मौसी, कभी आधी रात में सितारों के नीचे झूला झूलने का विचित्र सपना भी आता है। ये देखो मौसी, ये अनुज की छत पर रखा झूला, यह बिलकुल वैसा ही दिखता है,” श्रुति ने कहा।

“मुझसे झूठ बोल कर सोचती है कि मुझे डरा देगी,” मौसी ने कहा।

“अब आप सच ना मानो तो मैं क्या करूं?” कह कर श्रुति हंसने लगी।

अपना फर्स्ट सेमेस्टर पूरा कर श्रुति छुट्टियों में भोपाल लौट गयी।

ऋषभ ने मौका गंवाना उचित नहीं समझा। एक दिन अपनी मम्मी को ले कर श्रुति के घर आ धमका।

“हमारी खुशी तो इन बच्चों की खुशी में ही शामिल है। पिछले 6 महीनों से यह अपने पिता को मनाने में लगा है। हार कर उन्होंने भी यही कह दिया कि तुम अपनी मर्जी से जहां चाहो, नौकरी करने के लिए स्वतंत्र हो। बहन, बस आप लोग भी इस रिश्ते की स्वीकृति दे दें,” ऋषभ की मां ने कहा।

“अभी तो ये दोनों पढ़ाई कर रहे हैं। ऐसे में शादी की जल्दबाजी क्या उचित होगी?” रीना ने कहा।

“छोटी सी रस्म रख लेते हैं अगले हफ्ते, सगाई अभी कर देंगे। विवाह साल भर बाद कर देंगे,” ऋषभ की मां इस मौके को गंवाना नहीं चाहती थीं। रीना इस बात से सहमत हो गयी।

उधर ऋषभ श्रुति से कहने लगा, “मुझे पता है तुम ईशिता के घर पर वो ड्रिंक्स देख कर नाराज हो। मैंने तुमसे कुछ छिपाया नहीं था। मुझे लगा था, ईशिता हर बात तुम्हें बताती ही होगी।”

श्रुति ने कहा, “आइंदा से अपनी हर छोटी से छोटी बात भी मुझसे शेअर करना। यह याद रहे कि सगाई से ले कर शादी के बीच साल भर का अंतराल है।”

दोनों परिवार अगले हफ्ते होने वाली रस्म की तैयारी में जुट गए।

एक दिन रात के 8 बजे अनुज मनु के साथ उसका फर का तकिया और रंगबिरंगी तितली से सजा दोहर व छोटा सा बैग ले कर जब उनके घर आया तो वे लोग कुछ समझ ना सके।

“मम्मी को दिल का दौरा पड़ा है, वे अस्पताल में हैं। जल्द ही उनकी ओपन हार्ट सर्जरी करनी पड़ेगी। कुछ दिन आप मनु को संभाल लीजिएगा। एक-दो दिन में मैं मेड की व्यवस्था कर दूंगा। ये इस तकिया और दोहर के बिना सोती नहीं है,” कह कर अनुज ने कुछ जरूरी दवाइयां, कपड़े, कुछ खिलौनों के साथ मनु को साधिकार श्रुति को थमा दिया।

श्रुति कभी तितली वाले दोहर तो कभी फूलों सी नन्ही मनु को देखती रही।

आंटी अस्पताल से घर लौट आयीं, वे बेहद कमजोर हो गयी थीं। श्रुति और उसकी मां मनु को ले कर उनसे मिलने गयीं।

मनु निश्चिंत सी श्रुति की गोद में बैठी रही। अनुज की मां ने डबडबायी आंखों से रीना का हाथ पकड़ा और बोली, “किस मुंह से कहूं? अगर तुम श्रुति का हाथ मेरे बेटे के हाथ में थमा दो, तो मैं निश्चिंत हो कर जी सकूंगी, वरना अनुज की उजड़ी गृहस्थी मुझे जीने नहीं देगी।”

“ऐसा कैसे हो सकता है? इसकी सगाई हो चुकी है,” रीना ने अचकचा कर कहा।

“मुझे यह रिश्ता मंजूर है,” श्रुति की मंजूरी सुन कर रीना हैरान रह गयीं। श्रुति अपने सपनों की बिखरी हुई कड़ियां अब जोड़ चुकी थी।