Monday 11 November 2024 03:20 PM IST : By Preeta Jain

काहे की चिंता

1806218212

एक-एक कर सभी जाने लगे थे, जो रह गए थे वे भी जाने की तैयारी में थे। मालती जी नहीं रही थीं, अचानक से रात को सीने में दर्द उठा। विनोद जी आननफानन में हड़बड़ाए जल्दी से हॉस्पिटल ले गए, पर तब तक सब खत्म हो चुका था, उनकी जीवनसंगिनी अर्धांगिनी मालती जी उन्हें हमेशा के लिए अकेला छोड़ अपनी अंतिम यात्रा के लिए जा चुकी थीं। विनोद जी कुछ क्षण तो बुत बने जड़वत से खड़े रहे फिर अपने आपको संभाल दोनों बेटों मोहित व मयंक तथा बेटी नीरू को फोन कर ‘मां नहीं रहीं’ बता दिया।

मोहित तो दिल्ली में ही रह रहा था, तो झट से कुछ ही समय में हॉस्पिटल पहुंच गया, पर मयंक को भोपाल और नीरू को आगरा से आने में कुछ समय तो लगना स्वाभाविक था। तीनों बच्चे सपरिवार आए, मां को हार्दिक श्रद्धांजलि देते हुए अनंत यात्रा के लिए विदा कर दिया।

मालती जी के रहने से जिस घर में रौनक व कुछ ना कुछ करते रहने का शोर मचा रहता था, वहां आज सभी के मौजूद रहने के बावजूद एक गहन खामोशी का अहसास हो रहा था। सभी निशब्द से चुपचाप एक-दूसरे को देख रहे थे।

“मां के जाने का दुख तो था ही, पर इससे ज्यादा परेशानी इस बात की थी कि अब पापा कैसे रहेंगे? कहां-किसके संग रहेंगे? कैसे समय बीतेगा-दिनचर्या क्या रहेगी? वगैरह वगैरह।”

तेरहवीं तक तो रिश्तेदारों का आना-जाना लगा ही रहा, आपसी बातचीत कम ही हो पाती थी। वैसे तो रिश्ते-नातेदार भी अपनी तरफ से औपचारिकता निभा ही रहे थे कि विनोद जी अब अकेले कैसे रहेंगे? हम सबके संग ही अपने मनमुताबिक रह लिया करेंगे।

सबकी बातें सभी के विचारों से अवगत हुआ जा रहा था, हां में हां भी हो रही थी, किंतु विनोद जी ने तो सोचा हुआ था कि अब भविष्य कैसे बीतना है? कैसे शेष जिंदगी बितानी है?

खैर ! सभी पूजा-पाठ, विधि-विधान संपन्न हो गए, लोगों का आना-जाना भी धीरे-धीरे कम होता गया, सपरिवार तीनों बच्चे और विनोद जी ही रह गए। अभी 4-5 दिन तो बच्चे यहीं थे, तो इन्हीं दिनों में घर को कुछ हद तक व्यवस्थित करना था और जो भी आवश्यक कार्य थे, निपटाने ही थे।

ना तो जाने वाले को रोका जा सकता, ना ही उसके जाने के बाद जरूरी कामों को करने से बचा जा सकता है, बस ! यही सब सोच एक दिन रात को खाने के बाद विनोद जी ने बेटी को अपने हाथ की चाय बना कर सबको पिलाने को कहा।

चाय पीते हुए अतीत की यादों से भरी एक लंबी सांस ली, फिर भावुक हो कर दोनों बहुओं और बेटी से कहा, “बेटा, इस घर में तुम्हारी मां का जो कुछ भी है, अब तुम्हीं लोगों का है। उसके गहने, कपड़े व जो भी घर-गृहस्थी का सामान तुम लोग ले जाना चाहो, खुशी-खुशी अपने साथ लेते जाओ। अब तुम्हारी मां नहीं, पर उसकी यादें अपने संग सहेज कर रखना चाहो, तो अवश्य लेते जाओ नहीं तो कोई बात नहीं, यहीं इसी घर में रखा रहेगा। मेरी संगिनी मालती हमेशा से मेरे पास थी, अब भी मेरे लिए है और सदा रहेगी, क्योंकि वह तन से अलग हुई है, मन से तो संग ही है। जब भी तुम सब यहां आओगे, अपनी मां की अमूल्य वस्तुओं से भेंट कर नमन कर लिया करना, मैं उनकी देखभाल करता ही रहूंगा।”

“आप देखते रहोगे, मतलब आप यहां क्या अकेले रहोगे?” बीच में ही विनोद जी की बात काटते हुए मोहित बोला, “आप अब हम सभी के संग रहोगे, जहां मन लगे वहां रहना, नहीं तो तीनों के यहां आना-जाना करते रहना।”

मयंक और नीरू ने भी हां में हां मिलायी।

“पापा, आप अकेले ना रह सबके साथ ही रहोगे,” दोनों बहुओं व दामाद ने भी समर्थन किया।

“मेरे बच्चो, तुम लोगों ने इतना कह दिया, यही मेरे दिल को गदगद कर सुकून देने के लिए काफी है। रहूंगा तो मैं इसी घर में, जहां चारों ओर तुम्हारी मां दिखायी देती रहेगी, उसकी यादों के सहारे बाकी जीवन कटता रहेगा।”

“अरे ! नहीं पापा, ऐसा नहीं हो सकता,” बड़ी बहू बोली, “पापा, आपके खाने का क्या होगा? कैसे घर की साफ-सफाई और बाकी घर के काम व्यवस्थित ढंग से हो सकेंगे?”

छोटी बहू ने भी बड़ी की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “2-4 दिनों में जब भी हम जाएंगे, आप संग ही चलना। कुछ दिन तो साथ में रहिए, फिर बाद में देखते रहेंगे क्या करना है?”

सभी बारी-बारी से अपना मशविरा देते रहे, विनोद जी चुपचाप सुनते रहे।

सबके शांत होने के बाद अंत में विनोद जी ने बोलना शुरू किया, “बेटा, तुम सबको जितने दिन रहना है खुशी-खुशी रहो, पर जब लगने लगे कि अपने-अपने काम का अब हर्जाना या नुकसान हो रहा है, तो निश्चित रूप से बिना किसी चिंता-परेशानी के अपने घरों को जाओ, हम सबका आना-जाना मिलना-जुलना होता ही रहेगा। मैं यहीं इसी घर में रहूंगा। हां, तुम सबके पास आता-जाता रहूंगा।

“बहुत पहले ही मैंने व तुम्हारी मां ने सोच-समझ लिया था कि हममें से एक के ना रहने के बावजूद अपना बसा-बसाया आशियाना नहीं छोड़ेंगे। यह तो निश्चित ही है, विधि का विधान है कि जीवनसाथी में से एक को पहले जाना ही पड़ता है, एक अंतिम मोड़ पर अकेला रह जाएगा, जीवन का वास्तविक सच यही है। इसलिए मैंने और तुम्हारी मां ने तय कर लिया था कि ईश्वर की मर्जी के मुताबिक हममें से जो भी पहले जाएगा, उसको धैर्य व संयम के साथ विदा करेंगे। आत्मा की शांति हेतु प्रार्थना करेंगे व शांत रह कर समझदारी का परिचय देते हुए जिंदगी का हर पल जीते जाएंगे।

“करीब-करीब एक साल से हम दोनों अपने-अपने कार्य एक-दूसरे को समझा रहे थे, जिससे बिछड़ने के बाद किसी पर भी चाहे अपने बच्चे ही क्यों ना हों, निर्भर ना रहना पड़े। तुम्हारी मां को मैंने अपने समस्त बैंक अकाउंट, प्रॉपर्टी, शेअर, म्यूचुअल फंड आदि के बारे में सब समझा दिया था। इसके अलावा यदि बैंक लोन लिया हुआ है, तो उसकी किस्तों के बारे में तथा किसी को उधार दे रखा है, तो वह सब भी भली-भांति समझाया हुआ था। यहां तक कि तुम्हारी मां 2-3 दफा टैक्सी से अकेले बैंक जा कर रुपयों का हिसाब-किताब भी ठीक-ठाक तरीके से बिना किसी परेशानी व हिचकिचाहट के कर आयी थी। संपत्ति से संबंधित सभी आवश्यक कागजात अपने पास संभाल कर रख लिए थे। मैं निश्चिंत था यदि पहले चला गया होता, तो भी मालती किसी पर निर्भर ना रहते हुए बिना परेशान हुए स्वयं ही शेष जीवन बिता लेती।

“इसी तरह मुझे भी तुम्हारी मां ने घर से संबंधित तमाम जरूरी जानकारी वक्त रहते भली-भांति समझा दी थीं। रोजमर्रा के खाने के लिए कुछ सब्जी, दाल, चावल व रोटी बनाना सिखा दिया था। इनके अलावा आलू के परांठे, खिचड़ी, दलिया तथा नाश्ते में अधिकतर खाने के लिए पोहा, उपमा और सैंडविच इत्यादि भी बता-समझा दिया था। कहां से राशन आता है? कैसे रसोई में डिब्बों आदि में भरा जाता है? यह भी बता दिया था। हां, खाना बनाने के बाद गैस स्टोव, प्लेटफॉर्म को साफ करना व घर की साफ-सफाई के बारे में भी बताया था, ताकि कभी सफाई के लिए मेड या बाई नहीं आए, तो घर गंदा ना रहे साफ-सुथरा ही रहे।

“यहां तक कि कपड़े वॉशिंग मशीन में धोना और फिर थोड़ी बहुत प्रेस करना भी सिखा गयी। तुम्हारी मां की तरह निपुणता-कुशलता से तो बिलकुल नहीं, परंतु अपने लायक तो खाना-पीना तथा घर-गृहस्थी के काम कर ही लूंगा। इस बहाने दिन आसानी से कटेगा और रात को टीवी देखने व मैगजीन आदि पढ़ने में समय निकल जाया करेगा, अकेलेपन का अहसास भी कम होगा। जीवन की सत्यता को समझ-पहचान बाकी जिंदगी के बारे में सोच-विचार कर महत्वपूर्ण निर्णय समय रहते ही कर लिए थे, इसलिए काहे की चिंता।

“मैं ठीक हूं और ठीक ही रहूंगा, इसलिए मेरी चिंता ना करते हुए बिना किसी तनाव के तुम सब भी अपने घर के कार्य, अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाओ। यदि किसी तरह की जरूरत पड़ी, तो तुम्हीं लोगों को बुलाऊंगा या तुम सभी के पास स्वयं आ जाऊंगा। यह जीवन तो चलता ही रहता है, कुछ विषम परिस्थितियों में थोड़े समय के लिए ही ठहराव आता है, फिर अपने-अपने रास्ते पर स्थिति के अनुसार सोच-समझ वैसा ही ढाल कर चलना पड़ता है, नहीं तो शेष जिंदगी बिताना मुश्किल हो कर एक-एक दिन सदी के माफिक महसूस होगा। एक बात और, जिंदगी तो जिंदादिली का दूसरा नाम है, हर मुश्किल का सामना करते हुए खुशी-खुशी जीने का नाम है, तो फिर जितने दिन अपने इस घर में रहना चाहो रहो, तत्पश्चात अपनी जिंदगी की गाड़ी को रफ्तार देते हुए आगे बढ़ो। मैंने और मालती ने समय रहते ही जिंदगी के वास्तविक सच को जान-समझ लिया था, जान गए थे कि संग चलते-चलते एक मोड़ पर रास्ते अलग हो जाएंगे, बिछड़ना ही होगा, इसलिए मिलजुल उस नए रास्ते की खोज कर ली थी, जिस पर बिना भटकते हुए चल कर जीवन का सफर अंत तक तय कर लें। तुम्हारी मां भी तुम सबसे यही चाह रही होगी। अतः उनकी इच्छा का मान रखते हुए हर कोई बेबस हुए बिना खुश व शांतिपूर्वक रहो, जीते जाओ।”

रात काफी हो चुकी थी, सभी सोने के लिए अपने कमरों में जाने लगे। आज सुकून की नींद आने वाली है, क्योंकि सबके मन से, सबके पास से एक अनकहा बोझ, अनचाहा कर्तव्य खुदबखुद अलग हो गया था। जीवन को आसान ढंग से जीने का, हर पल को अपने अनुसार बिताने का नया परिचय जो मिल गया था।