दीवाली पर गिफ्ट का भला किसे इंतजार नहीं रहता, तो सन्मति को भी था, तो क्या गलत था। लेकिन शहर के दूसरे छोर पर रहनेवाली उसकी सहेली मौसमी का गिफ्ट उसके लिए दीवाली के बम की तरह उस पर फटा था। दरअसल दीवाली जितना रोशनी और धूमधड़ाकों का त्योहार है, उससे कहीं ज्यादा उपहारों के लेनदेन का उत्सव है, यह बात सन्मति बखूबी जानती थी। हर बार की तरह इस बार की दीवाली से 10 दिन पहले उसने उन 17 लोगों की लिस्ट तैयार की, जिन्हें दीवाली में गिफ्ट भेजे जाने थे। ज्यादातर गिफ्ट तो उसने हब्बीडार्ट कोरियर यानी पतिदेव के हाथों भिजवाए थे, कुछ खुद जा कर दे आयी थी।
अब दस्तूर तो यही है कि जिसे गिफ्ट भेजा है, बदले में वह भी जरूर भेजेगा या भेजेगी। और इसी परंपरा के तहत आया उसकी सहेली का गिफ्ट उसके सामने पड़ा उसे मुंह चिढ़ा रहा था। हुआ यह था कि सन्मति जितने गिफ्ट देने के लिए लायी थी, वे अलग-अलग कैटेगरी के थे। रिश्तेदारों के लिए अलग, मित्रों के लिए अलग, पड़ाेसियों के लिए अलग। जैसा रिश्ता, वैसा गिफ्ट ! जब सन्मति को सहेली का भेजा गिफ्ट मिला, तो उसकी पैकिंग देख कर उसे कुछ संशय हुआ, फिर सोचा कि उसके इलाके में भी तो ऐसे गिफ्ट रैपर मिल सकते हैं, जो यहां मिलते हैं। लेकिन अरमानों से खोले गए उपहार का वह पैकेट वही था, जो उसने अपने एक पड़ोसी को दिया था। भला यह कैसे मुमकिन है? पड़ाेसी ने उसकी सहेली को गिफ्ट चिपकाया हो, ऐसा हो नहीं सकता, क्योंकि पड़ोसी उसकी सहेली को कतई नहीं जानता था, तो फिर? संभावनाओं के कई द्वार उसके सामने खुले थे, लेकिन वह शून्य में विचर रही थी।
दीवाली के मौके पर मिले गिफ्ट को किसी और को चिपका देने का रिवाज सदियों पुराना है। एक जैसे 2-3 गिफ्ट आते ही एक्स्ट्रा गिफ्ट्स को तुरंत भूमिगत कर देना कुशल गृहिणी की पहली पहचान है। फिर उन उपहारों को किस तरह रीसाइकिल करना है, इसका आकलन करना चाहे होम साइंस के पाठ्यक्रम का हिस्सा ना रहा हो, पर महिलाओं में यह हुनर कूट-कूट कर भरा होता है। इसमें बेहद सावधानी बरतने की जरूरत होती है, ताकि गलती से किसी को उसी का गिफ्ट ना भेज दिया जाए, वरना किरकिरी होते देर नहीं लगेगी।
विश्वस्त सूत्रों से पता चला कि सन्मति ने गिफ्ट अपने पड़ोसी शुक्ला जी को दिया था, शुक्ला जी को पिछली दीवाली पर सन्मति से मिले गिफ्ट की क्वॉलिटी का कटु अनुभव था, सो उन्होंने वह पैकेट अपने दफ्तर के बड़े बाबू को टिका दिया। बड़े बाबू के भाई सन्मति के ही मोहल्ले में रहते थे और उन्होंने वही सेम गिफ्ट सेम दुकान से खरीद कर अपने भाई को दिया था। अब बड़े बाबू के पास एक जैसे दो गिफ्ट हो गए, तो उन्होंने एक अपने पड़ोसी सक्सेना जी को भेंट कर दिया। सक्सेना जी कोरियर कंपनी में काम करते थे, पैकेट हाथ में उठा कर ही अंदर का माल भांप लेने में सिद्धहस्त थे, सो उन्हें इस पैकेट में कुछ खास नहीं लगा, तो उन्होंने अपने कलीग को यह पकड़ा दिया। सक्सेना जी का कलीग सन्मति की सहेली मौसमी का पड़ाेसी था और नया गिफ्ट खरीदने की जहमत से बचने के लिए उसने वह पैकेट अपनी पड़ोसिन मौसमी की नजर कर दिया। आखिरकार इस पैकेट की यात्रा संपन्न हुई अपनी ओरिजिनल जगह पर, क्योंकि मौसमी ने वही पैकेट सन्मति को भिजवा दिया।
इतने मुकाम से गुजरने के बावजूद पैकेट हूबहू नया का नया दिख रहा था, तो इसकी वजह जान कर हैरानी हुई। जिस दुकान से वह गिफ्ट खरीदा गया था, वहां बोर्ड लगा था- हम पैकेट के माल की ही नहीं, गिफ्ट रैपिंग की भी गारंटी लेते हैं। अब बाजार में नित नए प्रयोग होते रहते हैं, पर यह प्रयोगधर्मिता कुछ अनूठी थी।
दीवाली पर री-गिफ्टिंग की परंपरा को हवा मिलावट का माल बेचनेवाले व्यापारियों ने भी दी है। जबसे बाजार में मिलावटी मावे से बनी मिठाइयों का बोलबाला हुआ है, लोग मिलावट के जहर से बचने-बचाने के लिए जूस के पैकेट, चॉकलेट या कुछ ऐसी ही गैर मिलावटी चीजों की तलाश में रहते हैं। इन चीजों की उम्र भी लंबी होती है कि दीवाली पर किसी वजह से ना दे पाए, तो भैया दूज या बाद के किसी मौके पर निपटा लिए जाते हैं। हालांकि ऐसी चीजों में अव्वल नंबर पर सोनपापड़ी है, जिसे कई बार अंतहीन यात्रा करनी पड़ती है। जब लंबे समय तक उपहार खराब नहीं होगा, तो वह नेचुरली लंबी यात्रा करेगा, यहां से वहां टिकाया जाता रहेगा। इसमें बुरा मानने की कतई जरूरत नहीं है, बस इतना ध्यान रखें कि उसकी पैकिंग से उसके फ्रेश होने का पता चलता रहे। कोई ना कोई तो एंड कंज्यूमर होगा, जो पैकेट के अंदर भी झांकेगा।
गिफ्ट में मिठाई या खाने-पीने की वस्तुएं ही नहीं, पहनने-ओढ़ने की चीजें भी आदान-प्रदान की जाती हैं। हालांकि इनकी री-गिफ्टिंग में साइज का लोचा होता है, लेकिन कुछ जांबाज किस्म की महिलाएं इसे टिकाने में भी गुरेज नहीं करतीं। सोनाली को उसकी ननद ने चूड़ियों का डिब्बा तीज पर गिफ्ट किया, जिसे सोनाली ने बड़े प्यार से संभाल कर रख दिया। ननद के जाने के बाद डिब्बा खोला, तो चूड़ियां सोनाली के साइज से बड़ी थीं। ऐसा नहीं था कि ननद को भाभी की चूड़ियों के साइज का पता नहीं था, पर उसने कहीं से आयी हुई चूड़ियां भाभी को टिका दीं। अब सोनाली क्या करे, या तो कुढ़ती रहे या इन चूड़ियों को किसी और को गिफ्ट कर दे। ननद से तो कह नहीं सकती, रिलेशन खराब होने का जोखिम है।
एक और किस्सा सुनिए बर्थडे गिफ्टिंग का। सोहन के जीजा उसके जन्मदिन पर आए, तो उसे सुंदर टी-शर्ट गिफ्ट की। सोहन बहुत खुश हुआ, लेकिन बाद में जब उसने टी-शर्ट पहनने की काेशिश की, तो वह उसमें डूब ही गया। टी-शर्ट का साइज एक्सएल था, जबकि सोहन को मीडियम साइज के कपड़े फिट आते थे। बेचारा सोहन ना तो जीजा से इसकी शिकायत कर सकता था, ना ही अपने गिफ्ट का मजा ले पाया। अब वह इसे किसी और को सरकाएगा नहीं तो क्या करेगा। प्यारे जीजा जी ने दिए हैं, तो टी-शर्ट को बदन पर हैंगर की तरह टांगेगा तो नहीं। अब एक की गलती की सजा किसी तीसरे को भुगतनी पड़ेगी।
रूपल का तो पूछिए मत। उसकी नयी-नयी शादी हुई, तो दोस्तों-रिश्तेदारों ने भर-भर के गिफ्ट दिए। बाद में उसने देखा कि उसे 3 मिक्सर ग्राइंडर, 4 इस्तरी, 6 डाइनिंग सेट और 15 बेडशीट्स भी मिली हैं। बेडशीट्स तो खैर काम आ जाएंगी, पर एक जैसे इलेक्ट्रिक उपकरणों का वह क्या करेगी। इसका एकमात्र हल रहा री-गिफ्टिंग। इधर का उधर टिकाओ और उधर का इधर ! रूपल ने भी इन्हें किसी तरह निबटा दिया।
हमारे एक परिचित दुकानदार ने तो कमाल कर दिया। उन्हें शादी की सालगिरह पर खूब गिफ्ट मिले, तो उनके दिमाग की बत्ती जली।अपने काम ना आनेवाली चीजों को उन्होंने एक-एक करके अपनी दुकान में बेच दिया। हींग लगे ना फिटकरी और रंग भी चाेखा आया। अब इनकी हिम्मत (लालच) इतनी बढ़ गयी है कि बच्चों के बर्थडे पर मिलनेवाले एक्स्ट्रा टॉयज दुकान पर बेच डालने की जुगत में लगे हैं। इसे नेगेटिव तरीके से ना सोचें, तो यह जबर्दस्ती की री-गिफ्टिंग से बचने का अच्छा आइडिया है, लेकिन ऐसा करने के लिए हिम्मत होनी चाहिए।
इस मामले में शीतल की राय एकदम अलग है। उसे गिफ्ट में कुछ लो क्वॉलिटी के सामान मिले, तो उसके पति ने कहा कि ये दोस्तों-रिश्तेदारों को गिफ्ट कर देते हैं। शीतल ने साफ मना कर दिया कि जो चीज आपको पसंद नहीं, आप जिनका इस्तेमाल नहीं कर सकते, उसे दूसरों को भी नहीं दे सकते। पड़े रहने दो इन्हें ऐसे का ऐसा। लेकिन ऐसा करने की भी हिम्मत होनी चाहिए।
कुछ कंजूस टाइप के लोग तो उपहारों के लेनदेन को ही सिरे से खारिज करते हैं। उनका मानना है कि जब गिफ्ट देने के बाद वापस मिलने की उम्मीद लगाए रखनी है, तो काहे काे लेने-देने का झंझट पालना। ना किसी को दो, ना कोई उम्मीद रखो। भई, अब ऐसी संतगीरी तो हर किसी से हो नहीं सकती !
एक और किस्म होती है मनुष्यों की, वे आपके हर उपहार में कोई ना कोई मीनमेख निकालेंगे... भानुमति को उसकी फ्रेंड ने एक ड्रेस गिफ्ट की, तो भानुमति अगले ही दिन उसके घर ड्रेस ले कर पहुंच गयी कि उसे कलर पसंद नहीं है, प्लीज बदलवा दो। फ्रेंड ने दुकान में रिक्वेस्ट करके दूसरे कलर की ड्रेस ला कर दी। अगले दिन भानुमति फिर नमूदार हुई और कहा कि इसकी फिटिंग सही नहीं है, अब बेचारी फ्रेंड का मुंह देखने लायक था। मोरल ऑफ द स्टोरी यह है कि ऐसे लोगों को गिफ्ट देने का ही नहीं, और देने की मजबूरी हो, तो सीधा कैश पकड़ा देने का। जो खरीदना है, खुद खरीद लो।

आप भी अपना फालतू गिफ्ट किसी को चिपकाने के आदी हैं, या भविष्य में टिकानेवाले हैं, तो जरा संभल जाइए। हो सकता है सन्मति की तरह आपका गिफ्ट आपके पास ही बूमरैंग इफेक्ट से वापस लौट आए। हो सकता है दोस्तों-रिश्तेदारों के बीच आपकी नेगेटिव इमेज बन जाए। चाहें, तो किरकिरी से बचने के कुछ तरीके आजमा सकते हैं। जिसे कपड़े, चूड़ियां या कोई पहननेवाली चीज गिफ्ट दे रहे हैं, उसके साइज का ही दें। चूहे को हाथी का झिंगोला उपहार देने की जरूरत नहीं है ! सोनपापड़ी आ जाए तो खा कर मजे लीजिए, उसे वायरल न्यूज की तरह इधर-उधर फैलाने के बजाय वहीं खत्म कर दीजिए। आप नहीं खाएंगे तो दूसरों से खाने की उम्मीद मत कीजिए !