Friday 22 December 2023 03:32 PM IST : By Gopal Sinha

हुनर मांगने का

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कॉलबेल की टन्‍न की आवाज सुन कर सलोनी ने दरवाजा खोला, तो सामने उनकी पड़ोसिन हेमलता खाली कटोरी लिए खड़ी थीं, ‘‘भाभी जी, थोड़ी चाय की पत्ती चाहिए, खत्‍म हो गयी मेरे घर में।’’ हफ्ते में हेमलता के घर तीसरी बार कोई जरूरी चीज खत्‍म हुई थी, और हर बार सलोनी ही इंस्‍टामार्ट बनती थी। इस बार सलोनी किसी बात पर उखड़ी हुई थी, सो कह दिया, ‘‘अरे भाभी जी, मेरे घर में भी चाय पत्ती आज खत्‍म हो गयी है, सॉरी।’’

हेमलता निराश हो गयी, पर घर पहुंचते ही बेटी को आवाज लगायी, ‘‘बेटा, खोल ले अपना ही डिब्‍बा चाय का, और बना कर ला दे मुझे कड़क चाय। ये सलोनी ना जाने घर की जरूरी चीजों का स्‍टॉक क्‍यों नहीं संभाल पाती।’’

वाह भई वाह ! उल्‍टा चोर कोतवाल को डांटे का लाइव नमूना हैं ये हेमलता मैडम।

खैर छोड़िए, मांगने को ले कर तमाम तरह के मुहावरे-लोकोक्तियां व गीत आपने सुने होंगे, मसलन बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले ना खीर, मांगो उसी से, जो दे दे खुशी से, मैंने तेरी जुल्‍फों से जुदाई तो नहीं मांगी थी, कैद मांगी थी रिहाई तो नहीं मांगी थी...

जो भी हो, ये पॉपुलर कथन इस बात की गवाही देते हैं कि मांगना एक कला है और जो जितनी सफाई से मांगे, वह उतना बड़ा कलाकार। वैसे कलाकारी सिर्फ मांगने में नहीं है, मांगने वाले को उसकी मनचाही चीज ना मिले और देनेवाले पर उसका यकीन भी ना टूटे, तो मेरी नजर में बड़ा कलाकार वो है, जो कुछ ना दे कर भी अपनी साख बनाए रख पाता है।

मांगना हमारी रग-रग में बसा है। सब्‍जी खरीदते हैं, तो धनिया-मिर्ची फ्री में मांगते हैं। खुद का अखबार व पत्रिकाएं ना खरीद कर पड़ोसी से मांग कर पढ़ते हैं। सुबह उठ कर नहा-धो कर भगवान के सामने याचक बन कर हाथ जोड़ कर खडे़ हो जाते हैं- हे भगवन... फिर तो भगवान के समक्ष हम क्‍या-क्‍या नहीं मांगते। निर्धन धन मांगता है, निसंतान संतान मांगता है, कमजोर ताकत की मांग करता है, बीमार सेहत की मांग ले कर गुहार लगता है... बेरोजगार नौकरी मांगता है, नौकरी से तंग आ चुके लोग वॉलेंटियरी रिटायरमेंट मांगते हैं... जवान बेटी का बाप बेटी की शादी के लिए योग्‍य वर मांगता है, तो प्रेमी-प्रेमिका अपने-अपने घरवालों के मान जाने की अर्जी लगाता है। भगवान भी किस-किस को तथास्‍तु कहें, वे तो बस मंद-मंद मुस्कराते रहते हैं। मंदिर के अंदर भक्‍त भगवान से कुछ मांग रहा होता है, वहीं मंदिर के बाहर भिखारी भक्‍तों से पापी पेट के सवाल पर मांगता रहता है। खैर, धार्मिक माहौल में मांगने के सिलसिले में कई बार मांगनेवाला अधार्मिक भी हो उठता है।

जब-जब चुनाव नजदीक आते हैं, हमारे नेतागण वोटरों से उनके वोट की मांग करने की तमाम कवायदें करते हैं। कभी नजर ना आनेवाले इन नेताओं को अवतरित होते देख कर जनता अचंभित और दिग्‍भ्रमित रहती है और सोचती है कि किसे वोट दें, किसे नहीं, क्‍योंकि सारे नेता तो एक ही थैली के चट्टे-बट्टे होते हैं। ये नेता आम जनता से वोट मांगते हैं, वहीं बडे़ बिजनेस घरानों से अपनी पार्टी के लिए चंदा मांगने में नहीं हिचकते। अब राजनैतिक चंदा तो ऐसा है कि इस हाथ ले, उस हाथ दे। मैं तुम्‍हें चंदा दूंगा, तुम मुझे कॉन्‍ट्रैक्‍ट दिलवाओ। नेताओं और बिजनेसमैनों का भाईचारा कुछ इसी तरह चलता रहता है।

वैसे आम जनता भी कम नहीं होती। ट्रैफिक लाइट पर कॉन्‍स्‍टेबल नदारद हो, तो ट्रैफिक नियमों का उल्‍लंघन करती है और पकडे़ जाने पर हाथ जोड़ कर माफी मांगती रहती है। बदला लेने की नीयत से कुछ लोग इतने दुर्दांत हो उठते हैं, उसका ज्‍वलंत उदाहरण देखिए- एक आदमी के बार-बार मांगने की ‘तपस्या’ से प्रसन्न हो कर भगवान ने उसे वरदान दिया कि वह जो भी मांगेगा, उसे मिलेगा। लेकिन साथ में एक शर्त भी रखी कि वह जो कुछ भी मांगेगा, उसके पड़ोसी को उसका दोगुना मिलेगा। उस आदमी ने भगवान के वरदान को आजमाने के लिए अपने लिए एक कार मांगी। उसे तो कार मिली, पर उसके पड़ोसी को दो कारें मिल गयीं। उसने एक बंगला मांगा, तो उसके पड़ोसी को दो बंगले मिल गए। वह जो भी मांगता, उसके साथ उसके पड़ोसी को भी डबल मिल जाते। पिछले महीने तो उसके गुस्से का पारावार ना रहा, जब उसने अपने लिए एक किलो टमाटर मांगा और उधर पड़ोसी को 2 किलो टमाटर मिल गए। आखिरकार उसने तंग आ कर भगवान से कहा, ‘‘भगवान, मेरी एक किडनी फेल कर दो।’’ फिर क्‍या था, उसकी तो एक किडनी फेल हुई, उसके पड़ोसी की दोनों किडनियां काम से गयीं। यानी मांगनेवाले भगवान को भी धता बता जाते हैं।

आज बैंक आसानी से आपको कर्ज दे देते हैं, लेकिन किसी दोस्‍त को आजमाना हो, तो उससे कभी उधार मांग कर देखिए। पैसों की कीमत कभी-कभी दोस्‍ती से अधिक हो जाती है। लेकिन उधार देना जिगर का काम है, क्‍योंकि कभी-कभी उधार लेनेवाला कुछ इस तरह गायब हो जाता है, जैसे धूप पड़ने पर ओस की बूंदें। किसी शायर ने क्‍या खूब कहा है - प्‍यार गया, पैसा गया, और गया व्‍यापार। दर्शन दुर्लभ हो गए, जब से दिया उधार।

वाकई यह सच है कि उधार मांगनेवाले को सिर्फ एक बार मांगना पड़ता है, जबकि उधार देनेवाले को बार-बार मांगना पड़ता है। यही वजह है कि कई दुकानदार दुकान में तख्‍ती लगा देते हैं- उधार मांग कर शर्मिंदा ना करें। लो जी, उधार मांगने का चांस ही खत्‍म।

कई दुकानदार बडे़ डिप्‍लोमेट होते हैं, वे कुछ ऐसी तख्‍ती लटका देते हैं- ग्राहक राजा होता है, और राजा कभी उधार नहीं मांगता। अब मांग कर दिखाओ उधार। दुकानों पर सबसे आम सूचना उधार मांगनवालों के लिए होती है- आज नकद, कल उधार। अब लेते रहो उधार।

जो भी हो, आपमें इतना मांगने का इतना हुनर होना चाहिए कि चाहे लाख ऐसी दिल तोड़नेवाली तख्तियां लटकी हों, आप साम-दाम-दंड-भेद अपना कर उधार ले जाएं।

कुछ लोगों में मांगने का इतना गहरा जज्‍बा होता है कि छोटी से छोटी जरूरत भी वे मांग कर ही पूरा करते हैं। कहीं आसपास जाना हो, तो लिफ्ट मांगने की फिराक में आपके रूटीन से अपना प्रोग्राम मैच कराने से गुरेज नहीं करते। इधर आप घर से निकले, उधर वे भी जाने को तैयार। आपकी भलमनसाहत का पारा भांप लेने के बाद कभी वे आपसे साइकिल मांग कर ले जाएंगे, तो कभी कार। कुछ मांग मर्दिनी आपसे मिक्‍सी मांग कर ले जाएंगी, तो कभी इस्‍तरी। आप पीसते रहिए सिलबट्टे पर धनिया-पुदीने की चटनी, वे तो महीनेभर का मसाला पीस कर ही मिक्‍सी आपको लौटाएंगी। मेरे पड़ोसी तो ऐसे मंगतराम हैं कि हमसे हमारे वाईफाई का पासवर्ड ही मांगने की जुर्रत कर बैठते हैं। जेंटलमैनशिप के नाते हमें उन्‍हें पासवर्ड देना ही पड़ता है, और जब भी हम पासवर्ड बदलते हैं, वे खीसें निपोरते हुए कहते हैं, ‘‘हमें पता चल गया कि आपने वाईफाई का पासवर्ड बदल लिया है। अब जल्‍दी से नया पासवर्ड दे दीजिए।’’ अब या तो हम भी उनकी तरह बेशरम हो कर उन्‍हें मना कर दें या पासवर्ड शेअर कर दें। अब हमसे बेशरम हुआ नहीं जाता, क्‍या करें दे देते हैं पासवर्ड उन्‍हें।

पड़ोसी को तो आप एक बार मना भी कर दें, मांगनेवाले रिश्‍तेदारों का क्‍या करें। जयश्री शादी करके ससुराल आयी, तो पहले ही दिन उनकी रिश्‍ते की एक ननद ने उनके सोने के इयररिंग्‍स यह कह कर मांग लिए कि भाभी जी, ये इयररिंग्‍स तो बडे़ सुंदर हैं, मैं एक-दो दिन पहन लूं क्‍या।

आज बरसों बीत गए, जयश्री के वे इयररिंग्‍स उन्‍हें वापस मय्यसर नहीं हुए। ये रिश्‍तेवालियां कभी आपसे महंगी साड़ी मांग कर ले जाएंगी, तो कभी आपकी सैंडलें। आप मना तो कर नहीं सकतीं, तो जी कड़ा करके देते जाइए और चीजों को भूलते जाइए। इन्‍हें गिफ्ट में कोई चीज देने और हड़प कर लेने का फर्क पता ही नहीं।

अपने यहां शादी तय हुई नहीं कि दहेज के लेनदेन का सिलसिला शुरू हो जाता है। वर पक्ष बड़ी सफाई से लंबी लिस्‍ट कन्‍या पक्ष को थमा कर कहता है, ‘‘देखिए, हमारी कोई मांग नहीं है। आप जो भी देंगे, अपनी बेटी की खुशी के लिए देंगे।’’ अब दहेज मांगने का यह तरीका कन्‍या पक्ष के लिए इतना दोधरी तलवार होता है कि ना निगलते बनता है, ना उगलते। इतना ही नहीं, शादी के बाद भी वर पक्ष द्वारा मांगने का क्रम बदस्‍तूर जारी रहता है, जिसे पूरा करना कन्या पक्ष की मजबूरी होती है। हालांकि आजकल की चंद चतुर चंट कन्‍याएं शादी होते ही अपने पति के साथ अलग गृहस्‍थी बसा कर आने मायकेवालों को राहत की सांस देती हैं।

मेरी राय है कि आप भी मांगिए, और ना मिले तो छीन लीजिए। याचक के बजाय हड़पक बनेंगे, तो सुख से जिएंगे।