
(अंतिम किस्त) आयुष ने कहना शुरू किया, ‘‘खुशी जी, एक बात बताइए... आपने ही कहा था वह आपका सिर्फ एक मित्र था और वह शादी करके आपसे दूर चला गया। आपको तो खुश होना चाहिए कि आपका दोस्त अपनी जिंदगी में खुश है। वह अपनी जिंदगी में आगे बढ़ चुका है। क्या आप उसको खुश देख कर खुश नहीं हैं?’’
‘‘ जी !’’ उसकी आवाज लड़खड़ा रही थी।
‘‘ऐसी कोई बात नहीं है। वह सिर्फ मेरा मित्र ही है, पर उसे जिंदगी में आगे बढ़ता देख मुझे बड़ा अजीब सा लगता है। मैं आज भी वही हूं, उसकी बातों, उसकी यादों में खोयी हुई हूं। उसने एक बार भी मेरे बारे में नहीं सोचा कि उसके जाने के बाद मेरा क्या होगा?’’
आयुष खामोशी से उसकी बात सुनता रहा, फिर पूछा, ‘‘एक बात बताइए, आपका दोस्त आपको क्यों छोड़ कर चला गया?’’
‘‘जी उसके परिवार वाले तैयार नहीं थे। अपने माता-पिता की इकलौती संतान था वह, उसने कहा था कि अपने माता-पिता के खिलाफ जा कर मुझसे शादी नहीं कर सकता। उसे मुझसे शादी नहीं करनी थी, तब उसने मुझसे इतने सारे वायदे क्यों किए।
दो साल तक वह मेरे साथ घूमता-फिरता रहा। हमने एक साथ जीवन बिताने के ना जाने कितने सपने
देखे थे, पर उसने एक बार भी पलट कर मुझे नहीं देखा कि मैं मर रही हूं या जी रही हूं। बस जाते-जाते उसने इतना ही तो कहा ‘भूल जाओ मुझे और हो सके तो खुश रहने की कोशिश करना। हमारा तुम्हारा साथ बस इतना ही था...’ पर क्या इतना आसान है उसे भूल जाना।’’
आयुष के सामने एक बार फिर उसका अतीत मुंह बाए खड़ा था। उसने भी तो यही कहा था... कुछ क्षण के लिए एक अजीब सा सन्नाटा पसर गया। आयुषी ने भी तो यही कहा था, पर क्या वह उसे भूल पाया था। हर सांस के साथ उसकी याद आती थी, क्या पहले प्यार को भुला पाना इतना आसान था। आयुष ने अपने सिर को एक झटका दिया, जैसे वह उन यादों से पीछा छुड़ा लेना चाहता था... उसने एक गहरी सांस ली और अपने मन को एकत्र किया।
‘‘खुशी जी, एक बात बताइए, माना आपका वो मित्र आपको छोड़ कर चला गया। उसने एक बार भी आपके बारे में नहीं सोचा। उसने एक बार भी पलट कर नहीं देखा कि आप मर रही हैं या जी रहीं, पर एक बार सोच कर देखिए क्या आप उसका बुरा चाहती हैं।’’
‘‘नहीं... बिलकुल नहीं,’’ खुशी आयुष की बात सुन छटपटा गयी।
‘‘क्या आप चाहती है कि उसका एक्सीडेंट हो जाए और वो इस दुनिया... !’’
‘‘पागल हो गए हैं आप, मैं सपने में भी ऐसा नहीं सोच सकती।’’
आयुष हल्के से मुस्करा दिया, ‘‘खुशी जी, आप उस लड़के से इतना प्रेम करती थीं कि उसके एक्सीडेंट की कल्पना मात्र से ही आप सिहर उठीं, फिर आप उससे नफरत कैसे कर सकती हैं? एक बात बताइए, अगर उसने अपने माता-पिता के खिलाफ जा कर आपसे शादी कर ली होती तो क्या आप और वह लड़का अपने जीवन में खुश रह पाते। क्या जिस खुशी की तलाश में आप इतने दिनों से भटक रही हैं, वह खुशी किसी के दिल को दुखा कर मिल पाती? हो सकता है ईश्वर ने आपके लिए इससे कुछ बेहतर सोच रखा है। मान लीजिए आपकी उससे शादी हो भी जाती, वह अपने माता-पिता का दिल दुखा कर आपके साथ आगे बढ़ भी जाता, पर जीवन के किसी ना किसी मोड़ पर अगर उसे यह अहसास हो जाता कि उसकी खुशियों का किला माता-पिता के अरमानों को कुचल कर बनाया गया है तो क्या वह या आप कभी जीवन में खुश रह पाते। हर रिश्ते को नाम देना जरूरी तो नहीं, पर उस रिश्ते की खुशी में हम खुश तो जरूर हो ही सकते हैं। क्या जीवनसाथी के रूप में ही हम किसी के हमराज और हमसफर बनें, दोस्त और शुभचिंतक बन कर भी तो हम साथ चल सकते हैं। आप एक बेहतर दोस्त भी तो साबित हो सकते हैं। प्यार का नाम सिर्फ पाना ही तो नहीं है।’’
आयुष को लगा ना जाने क्यों महीनों से जमा हुआ वह गुस्सा, वह दर्द अचानक से पिघलने लगा था। आयुष अपनी बात कह कर चुप हो गया। खुशी भी कुछ समय के लिए सन्नाटे में आ गयी, शायद उसे अपने सवालों का जवाब मिल गया था और कहीं ना कहीं आयुष को भी... इतनी छोटी सी बात आज तक उसे क्यों नहीं समझ में आयी थी। आयुष और खुशी के एक जैसे दुख ने उन्हें एक कर दिया था और आज एक जैसे सुख ने भी उन्हें एक कर दिया था। आयुषी उस दिन उसे यही समझाने की कोशिश कर रही थी। उसने आयुषी में सिर्फ एक हमसफर की ही तलाश क्यों की? क्या वह एक अच्छे दोस्त नहीं बन सकते थे, आज उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था। आयुषी के रूप में उसने एक अच्छा दोस्त भी खो दिया था।
बस अब और नहीं, कल सुबह ही वह आयुषी को फोन करेगा और अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगेगा। जीवनसाथी तो नहीं पर एक शुभचिंतक, एक दोस्त के रूप में तो उनका रिश्ता कायम हो ही सकता है। आयुष ने एक खूबसूरत सा गाना खुशी के लिए बजाया। आज वह अपने आपको बहुत हल्का महसूस कर रहा था। कहीं ना कहीं वह खुश भी था और शायद खुशी को भी अपने सवालों का जवाब मिल गया था। आसमान साफ था और चांद पूरी रोशनी से नहाया हुआ था। सामने वीमेंस हॉस्टल की वह आखिरी खिड़की की लाइट महीनों बाद आज ना जाने क्यों बंद थी। आयुष आश्चर्य में था, शायद उस खिड़की के पीछे बेचैन परछाईं को भी अपने सवालों का जवाब मिल गया था। आज एक साथ एक नहीं तीन-तीन जिंदगियों को अपने सवालों के जवाब मिल गए थे। आयुष ने घड़ी पर नजर डाली, कार्यक्रम खत्म होने में कुछ ही मिनट बाकी थे, बस एक कॉल और एक गाने के साथ उसे कार्यक्रम समेटना था। तभी ‘‘ट्रिन-ट्रिन!‘‘ सन्नाटे को चीरती फोन की घंटी बजी।

‘‘हेलो ! क्या आपका होस्ट और दोस्त ये जान सकता है कि वह किससे बात कर रहा है।’’
‘‘जी ! मेरा नाम आयुषी है, आयुषी मित्तल।’’
आयुष को आवाज बहुत जानी-पहचानी सी लगी।
‘‘आयुष जी ! जिस कॉलेज में आप पढ़ा करते थे, मैं भी उसी कॉलेज में पढ़ती थीं। टू थाउसैंड एटीन बैच !’’
ये तो आयुषी की आवाज थी, उसकी आयुषी उसकी? आयुष ने अपने आपको संभालते हुए कहा, ‘‘जी आयुषी जी, कैसी हैं आप?’’
आयुष की अांखों के सामने आयुषी के साथ बिताए पल एक झटके के साथ गुजर गए।
‘‘आयुष जी ! मैं रोज आपका प्रोग्राम सुनती हूं।’’
‘‘पर आपने फोन तो कभी नहीं किया?’’ आयुष की आवाज में एक रूखापन था, रोकते-रोकते भी जज्बात बाहर निकल आए थे। उसने आपको संभाला, ‘‘खैर छोड़िए, कैसी हैं आप?’’
‘‘जी ठीक हूं। अभी आप किसी लिसनर को जिस तरह से समझा रहे थे, मैं अपने आपको रोक नहीं पायी। आप सबके दिल का हाल पूछते हैं, कभी अपने दिल का हाल भी तो हमें बताइए।’’
आयुष के चेहरे पर एक मुस्कराहट थी, जिसमें एक शरारत छुपी थी। आयुषी के लिए उसकी सारी नाराजगी दूर हो चुकी थी, उसने एक गहरी सांस ली। उसने बड़े अंदाज से आयुषी की बात का जवाब दिया, ‘‘दिल की दिमाग ने सुनी ही कब है। तजुर्बा कहता है कि मुहब्बत से किनारा कर लूं और दिल कहता है ये तजुर्बा दुबारा कर लूं।’’
आयुषी खिलखिला कर हंस पड़ी, उसकी हंसी की आवाज पूरे स्टूडियो में गूंज रही थी। आयुष भी उसके साथ हंस रहा था। आज उसके दिल से बोझ उतर चुका था और शायद आयुषी के साथ अायुष भी आज वर्षों बाद खुल कर दिल से मुस्कराया था। स्टूडियो में गाना बज रहा था, ‘‘कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो, क्या कहना है, क्या सुनना है, मुझको पता है, तुमको पता है, समय का यह पल थम सा गया है...’’
सचमुच आज समय थम गया था।