
‘‘आप गलत समझ रहे हैं, फ्रेंड ही है वो।’’
‘‘खुशी जी ! हर व्यक्ति का आज है तो कल भी रहा होगा और कल भी होगा। कहां है वो फ्रेंड? क्या आपको छोड़ कर कहीं बाहर गया हुआ है,’’ आयुष ने सवाल दागा।
‘‘जी... जी उसने शादी कर ली।’’
‘‘ओह !’’
आयुष को एक पल को लगा, किसी ने उसके दिल पर कस कर मुक्का मार दिया हो। उसे समझ नहीं आ रहा कि वह उस लड़की से क्या कहे।
आयुष ने चुपचाप उस लड़की की पसंद का गाना लगाया और यादों के सागर में डूबने-उतराने लगा। वह भी तो इन दिनों इसी दर्द से गुजर रहा था। ना जाने क्यों उसे उस लड़की खुशी का दर्द अपना सा लगा था। कितना कुछ याद आने लगा उसे... कभी प्यार तो कभी नफरत, कभी मिलन तो कभी ना खत्म होने वाला लंबा इंतजार... उसने चुपचाप आंखें मूंद लीं अौर सोच में डूब गया। कुछ ख्वाहिशें बारिश की बूंदों की तरह होती हैं, जिन्हें पाने की जीवन भर चाहत होती है। उस चाहत को पाने में हथेलियां तो भीग जाती हैं, पर हाथ हमेशा खाली रहते हैं। उसके हाथ भी तो खाली थे अपनी मोहब्बत को पाने से... वह आज भी सोचता था उसका प्यार इतना कमजोर था कि वह हिम्मत नहीं कर पायी। बस कुछ सालों की ही तो बात थी, बस कुछ साल... सोचते-सोचते वह अतीत में पहुंच चुका था। आयुषी... हां... आयुषी नाम था उसका... आयुष की आयुषी !
‘‘कैसी लग रही हूं मैं...?’’ आयुषी ने मुस्कराते हुए आयुष से पूछा था। आयुष उसके चेहरे में खो सा गया था। लाल सुर्ख जोड़े, माथे पर सिंदूरी बिंदी और मेहंदी लगे हाथों में वह और भी खूबसूरत लग रही थी। मुकैश से कढ़ा उसका वो लाल दुपट्टा मानो आसमान के सितारे किसी ने टांक दिए हों या फिर उसके दुपट्टे में आ कर समा गये हों। उफ ! क्या बला की खूबसूरत लग रही थी वो... वह उसे एकटक देखता रहा और सोचता रहा... मेरा चांद किसी और की छत पर चमकने को तैयार था।
‘‘तुम... हमेशा की तरह खूबसूरत... बहुत खूबसूरत लग रही हो।’’
‘‘सच में !’’
‘‘क्या तुम्हें मेरी बात पर भरोसा नहीं, कोई गवाह चाहिए तुम्हें...’’ आयुष की आंखों में ना जाने कितने सवाल तैर रहे थे। ऐसे सवाल, जिनके जवाब उसके पास नहीं थे। आयुषी ने अचकचा कर अपनी आंखें फेर लीं और भरसक हंसने का प्रयास करने लगी। आयुष उस मासूम हंसी को कभी नहीं भूल सकता था। ना जाने क्या सोच कर वह एकदम से चुप हो गया। उस समय वे दोनों कमरे में अकेले थे, बारात आने वाली थी। सब तैयारी में इधर-उधर दौड़-भाग रहे थे। कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था, ऐसा सन्नाटा जिसको तोड़ने की हिम्मत ना आयुष की थी और ना ही आयुषी की। शायद बारात आ गयी थी, भीड़ का शोर बढ़ता जा रहा और आयुषी के चेहरे पर बेचैनी भी... वह तेजी से अपनी उंगलियों में दुपट्टे को लपेटती और फिर ढीला छोड़ देती। कुछ था, जो उसके हाथों से छूटने जा रहा था, पर आयुषी सोच रही थी माथे का सिंदूर रिश्ते की निशानी हो सकती है, पर क्या प्यार की भी..? तब आयुषी ने ही बोलना शुरू किया, ‘‘आयुष ! शायद तुम्हें मुझसे, अपने जीवन से शिकायत हो। शायद तुम्हें लगे भगवान ने हमारा साथ नहीं दिया, मैंने तुम्हारे साथ सही नहीं किया, पर एक बार खिड़की से बाहर उन चेहरों को देखो, जो मेरी खुशी के लिए कितने दिनों से भाग-दौड़ कर रहे हैं। मेरे पापा से मिल कर देखो, खुशी उनकी आंखों से बार-बार छलक आ रही है और मेरी मां... वे तो मेरी बलाएं लेती नहीं थक रहीं। आज अगर हमने उनकी मर्जी के खिलाफ जा कर चुपचाप शादी कर ली होती, तो इतने लोगों को दुख पहुंचा कर के हम नए जीवन की शुरुआत कर पाते? तुम्हें शायद मेरी बातें आज समझ में ना आएं, पर एक ना एक दिन तुम्हें लगेगा कि मैं गलत नहीं थी। हो सके तो मुझे भूल जाना...’’
कितनी आसानी से कह दिया था आयुषी ने, पर क्या यह इतना आसान था। आयुष मुस्करा कर रह गया, उसकी मुस्कराहट में आयुषी को ना पाने का गम, अपने बेरोजगार होने की मजबूरी बार-बार साल रही थी। आज खुशी जिन लोगों का दिल रखने की कोशिश कर रही थी, क्या किसी ने उसका दिल रखने की कोशिश की थी, पर वह भी किस हक से उसके माता-पिता से उसका हाथ मांगता। कौन अपनी बेटी का हाथ एक बेरोजगार के हाथ में देता, पर इस दिल का क्या, कैसे समझाए उसे?
आयुषी की बहनें जयमाल के लिए आयुषी को ले कर चली गयीं। आयुष काफी देर तक उस स्थान को देखता रहा, जहां आयुषी बैठी थी। उसके वजूद की खुशबू वह अभी तक महसूस कर रहा था। आयुषी सिर्फ उसके जीवन से नहीं गयी थी, उसके साथ उसकी खुशियां, उसके होने के मकसद को भी ले कर चली गयी। वह तेजी से उठा और भीड़ में गुम हो गया।
सारे दोस्त मंच पर फोटो खिंचाने के लिए इकट्ठा थे। वह झट से दोस्तों के साथ मंच पर चढ़ गया। ना जाने क्यों आयुषी का चेहरा उतर गया था। एक अजीब सा तनाव और गुस्सा आयुष के चेहरे पर था, जैसे किसी बच्चे से उसका पसंदीदा खिलौना छीन लिया गया हो। आयुष आयुषी के दूल्हे के पीछे जा कर खड़ा हो गया, जैसे वह खुद को बहला रहा था।
इस बात को बीते 5 वर्ष गुजर चुके थे, पर लगता कल की ही बात हो। ना जाने कितनी ही रातें उसने उसके खयालों में बिता दी थीं। उसके जाने से कुछ नहीं बदला था, रात भी आयी थी... चांद भी आया था, पर बस नींद नहीं आयी थी। कितनी बार... हां ना जाने कितनी ही बार वह नींद से जाग कर उठ जाता। तब एक बात दिमाग में आती, जब खयाल और सवाल मन में घुमड़ने लगे तो वो उन अनगिनत सवालों के जवाब बन कर ही सही... आ जाती। सच तो यह था कि कोई रात ऐसी नहीं थी, जब वह साथ नहीं होती थी। हां, ये बात अलग थी कि वह साथ हो कर भी साथ नहीं होती थी। आयुष को कभी-कभी लगता उसके बिना तो रात में भी रात नहीं होती, शायद इसी को इश्क कहते हैं... इतने दिन बीत जाने पर भी वह उसको माफ नहीं कर पाया था। शायद इसीलिए उसे उस लड़की खुशी चावला का दर्द अपना सा महसूस होने लगा था। वीमेंस हॉस्टल की पहली मंजिल के बाएं तरफ की उस आखिरी खिड़की से रोशनी अभी भी आ रही थी और वह परछाईं अभी भी उतनी ही बेचैन महसूस हो रही थी।
दिन गुजरते रहे, पर उस खिड़की के पीछे रोशनी और परछाईं की बेचैनी वक्त के साथ कम नहीं हुई। हां, खुशी चावला का फोन और गाने की फरमाइश अकसर ही आने लगे थे, पता नहीं क्यों आयुष को कभी-कभी लगता कि कहीं खिड़की के पीछे खुशी चावला तो नहीं। एक मन कहता कि उस खिड़की को खटखटाए और पूछे, ‘‘आखिर ऐसा कौन सा दर्द है, जो तुम्हें सोने नहीं देता। हो सके तो अपने दिल की बात किसी से कह कर तो देखो... बंद दरवाजों में सिर्फ घुटन होती है, अंधेरा होता है। कम से कम मन के रोशनदान ही खोल दो, उम्मीद की एक किरण को आने का रास्ता तो दो।’’
पर ना वो खिड़की खुली और ना ही आयुष का सोचना बंद हुआ। इधर कुछ दिनों से खुशी... मतलब खुशी चावला का फोन नहीं आ रहा था। आयुष की नजर वीमेंस हॉस्टल की उस खिड़की पर गयी। आज भी उस कमरे में रोशनी थी, पर शायद उस कमरे में रहने वाले के दिल में कहीं ज्यादा अंधेरा था। वो परछाईं आज कुछ ज्यादा बेचैन थी। उसके माथे पर रखे हाथ और सिसकते शरीर को उसने अपने केबिन तक महसूस किया था। क्या वो रो रही थी पर क्यों... आखिर ऐसा क्या हुआ। आयुष बेचैन हो गया। ना जाने क्यों वह हॉस्टल के गेट की ओर बढ़ गया... तभी घड़ी ने 10 बजाए और वह ठिठक कर रुक गया। आयुष का मन ना जाने कैसा-कैसा हो रहा था। इधर खुशी चावला का भी फोन नहीं आ रहा था और इधर वो खिड़की वाली लड़की... सब ठीक तो है। कहीं खुशी ने अपने पुरुष मित्र की बेवफाई से दुखी हो कर कोई गलत कदम... नहीं-नहीं वह ऐसा नहीं कर सकती। आजकल के लड़के-लड़कियां बहुत प्रैक्टिकल होते है। एक गया तो दूसरा आ जाएगा, किसी एक के लिए कोई जिंदगी थोड़ी बर्बाद कर देगा। आयुष ने अपने दिल को समझाया और एक गहरी सांस ली। मन पर एक भारी बोझ लिए वह रेकॉर्डिंग रूम की ओर बढ़ गया।

‘‘गुड ईवनिंग, नमस्कार, सत श्री अकाल, आदाब... मैं हूं आपका दोस्त और होस्ट आयुष... हाजिर हूं आपका पसंदीदा प्रोग्राम ‘वो जब याद आए’ ले कर। दोस्तो, जिंदगी बहुत खूबसूरत है और हमें हर हाल में मुस्कराते हुए जीना चाहिए। जिंदगी तब और भी खूबसूरत हो जाती है, जब हमें अपनों का प्यार और अपनों का साथ मिलता है। ये वो पूंजी है, जिसे हमें जीवनभर संभाल कर रखना चाहिए। वे लोग बहुत भाग्यशाली होते हैं, जिन्हें मोहब्बत मिल जाती है, पर जिन्हें नहीं मिलती, उन्हें एक बार पलट कर जरूर देखना चाहिए कि उन्हें प्यार करने वाले केवल उसका प्रेमी या प्रेमिका नहीं, कुछ और भी लोग हैं, जो सिर्फ आपके लिए और आपका मुंह देख कर जीते हैं। मान लीजिए... एक बार के लिए मान लीजिए कि किसी वजह से आपको अपना प्यार नहीं मिल पाया तो क्या आपके जीने का उद्देश्य खत्म हो गया। इस पीढ़ी को समझना होगा कि मोहब्बत काे पा लेना ही उसकी मंजिल नहीं, बल्कि मैं तो ये कहूंगा हो सकता है कि उस ऊपर वाले ने आपका रॉन्ग नंबर मिलने से बचा लिया। उन्होंने आपके लिए इससे कुछ बेहतर सोच रखा है। आज हम बात करेंगे प्यार, इश्क और मोहब्बत के बारे में... दिलकश गानों के साथ आपका दोस्त आयुष हाजिर है, फिर देर किस बात की फोन उठाइए और मुझसे बातें कीजिए और मैं सुनाऊंगा आपकी पसंद के गाने... मुझे तुरंत फोन मिलाइए। तब तक आनंद लेते हैं एक खूबसूरत से गाने का।’’
स्टूडियो एक रोमांटिक गाने में डूब गया। एक के बाद एक फोन आते जा रहे थे और आयुष उनसे बातें करता। फिर कभी उनकी फरमाइश या फिर खुद की पसंद का गाना सुनाता रहा। ना जाने कितने फोन कॉल्स आए, पर जिस फोन का इंतजार था, वह बादलों में चांद की तरह छिपा उसके साथ अठखेलियां कर रहा था। कोई इतना निर्मोही कैसे हो सकता था। हॉस्टल की उस खिड़की से अभी भी रोशनी आ रही थी। कार्यक्रम अपने अंतिम दौर में था। तभी स्टूडियो के सन्नाटे को तोड़ती फोन की आवाज गूंजी, ‘‘हेलो...’’
‘‘हेलो, मैं अारजे आयुष आपके पसंदीदा प्रोग्राम ‘वो जब याद आए’ ले कर हाजिर हूं। सबसे पहले आपका नाम और आप कहां से बोल रही हैं।’’
‘‘आयुष जी मैं... मैं खुशी बोल रही हूं।’’
आयुष खुशी से सीट से उछल पड़ा, उसकी जान में जान आ गयी। ईश्वर का लाख-लाख शुक्र है कि वह ठीक है। पागल है ये लड़की जान निकाल दी थी इसने, सामने होती तो कस कर एक थप्पड़ लगा देता। ये कोई तरीका है जब चाहा प्रकट हो गए अौर जब चाहा गायब... कितना कुछ कहना, समझना और पूछना था कि कहां गायब थी वह इतने दिन पर किस हक से, उसने तो उसे देखा भी नहीं था। उसकी नजर हॉस्टल की खिड़की की तरफ चली गयी। वह तो बस इतना ही जानता था कि वह इसी शहर में किसी वीमेंस हॉस्टल में रहती है। वैसे भी वह है कौन... हक क्या है उसका।
आयुष ने अपने आपको संभाला, ‘‘गुड ईवनिंग खुशी जी... कैसी हैं आप?’’
‘‘जी ठीक हूं,’’ उसकी आवाज में सूनापन था।
‘‘खुशी जी, आप तो अपने दोस्त और होस्ट को भूल ही गयीं।’’
‘‘ऐसा कुछ नहीं, थोड़ा व्यस्त थी।’’
‘‘ये तो बहुत अच्छी बात है, इस दुनिया में अपने को व्यस्त रखना एक बहुत बड़ा टास्क है और सुनाइए।’’
‘‘आज सोशल मीडिया पर उसकी फोटो देखी... वह अपनी बीवी के साथ था, मनाली घूमने गया है।’’
उसकी आवाज में दर्द था, जिसकी टीस आयुष ने भी महसूस की, ‘‘ओके, ये तो अच्छी बात है।’’
‘‘अपनी बीबी के साथ काफी खुश नजर आ रहा था।’’
‘‘होना ही चाहिए, नयी-नयी शादी हुई है। जिंदगी जीने का हक तो सभी को।’’
‘‘पर मैं... मैं?’’
खुशी का कंठ भर आया, आवाज लरजने लगी, खुशी की आवाज मद्धिम होती जा रही थी। उसे लग रहा था कि अगर उसने जरा भी सांत्वना दी तो वो रो पड़ेगी। आयुष ना जाने क्यों एकदम से कठोर हो गया था। आयुष उसकी हर बात को काटता जा रहा था। आयुष को लग रहा था उसे उसकी बात अच्छी नहीं लग रही थी पर... वह जानता था कि अगर उसके दर्द को सहारा दिया तो वह टूट जाएगी, बिखर जाएगी।
‘‘आप गलत समझ रहे हैं, फ्रेंड ही है वो।’’
‘‘खुशी जी ! हर व्यक्ति का आज है तो कल भी रहा होगा और कल भी होगा। कहां है वो फ्रेंड? क्या आपको छोड़ कर कहीं बाहर गया हुआ है,’’ आयुष ने सवाल दागा।
‘‘जी... जी उसने शादी कर ली।’’
‘‘ओह !’’
आयुष को एक पल को लगा, किसी ने उसके दिल पर कस कर मुक्का मार दिया हो। उसे समझ नहीं आ रहा कि वह उस लड़की से क्या कहे।
आयुष ने चुपचाप उस लड़की की पसंद का गाना लगाया और यादों के सागर में डूबने-उतराने लगा। वह भी तो इन दिनों इसी दर्द से गुजर रहा था। ना जाने क्यों उसे उस लड़की खुशी का दर्द अपना सा लगा था। कितना कुछ याद आने लगा उसे... कभी प्यार तो कभी नफरत, कभी मिलन तो कभी ना खत्म होने वाला लंबा इंतजार... उसने चुपचाप आंखें मूंद लीं अौर सोच में डूब गया। कुछ ख्वाहिशें बारिश की बूंदों की तरह होती हैं, जिन्हें पाने की जीवन भर चाहत होती है। उस चाहत को पाने में हथेलियां तो भीग जाती हैं, पर हाथ हमेशा खाली रहते हैं। उसके हाथ भी तो खाली थे अपनी मोहब्बत को पाने से... वह आज भी सोचता था उसका प्यार इतना कमजोर था कि वह हिम्मत नहीं कर पायी। बस कुछ सालों की ही तो बात थी, बस कुछ साल... सोचते-सोचते वह अतीत में पहुंच चुका था। आयुषी... हां... आयुषी नाम था उसका... आयुष की आयुषी !
‘‘कैसी लग रही हूं मैं...?’’ आयुषी ने मुस्कराते हुए आयुष से पूछा था। आयुष उसके चेहरे में खो सा गया था। लाल सुर्ख जोड़े, माथे पर सिंदूरी बिंदी और मेहंदी लगे हाथों में वह और भी खूबसूरत लग रही थी। मुकैश से कढ़ा उसका वो लाल दुपट्टा मानो आसमान के सितारे किसी ने टांक दिए हों या फिर उसके दुपट्टे में आ कर समा गये हों। उफ ! क्या बला की खूबसूरत लग रही थी वो... वह उसे एकटक देखता रहा और सोचता रहा... मेरा चांद किसी और की छत पर चमकने को तैयार था।
‘‘तुम... हमेशा की तरह खूबसूरत... बहुत खूबसूरत लग रही हो।’’
‘‘सच में !’’
‘‘क्या तुम्हें मेरी बात पर भरोसा नहीं, कोई गवाह चाहिए तुम्हें...’’ आयुष की आंखों में ना जाने कितने सवाल तैर रहे थे। ऐसे सवाल, जिनके जवाब उसके पास नहीं थे। आयुषी ने अचकचा कर अपनी आंखें फेर लीं और भरसक हंसने का प्रयास करने लगी। आयुष उस मासूम हंसी को कभी नहीं भूल सकता था। ना जाने क्या सोच कर वह एकदम से चुप हो गया। उस समय वे दोनों कमरे में अकेले थे, बारात आने वाली थी। सब तैयारी में इधर-उधर दौड़-भाग रहे थे। कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था, ऐसा सन्नाटा जिसको तोड़ने की हिम्मत ना आयुष की थी और ना ही आयुषी की। शायद बारात आ गयी थी, भीड़ का शोर बढ़ता जा रहा और आयुषी के चेहरे पर बेचैनी भी... वह तेजी से अपनी उंगलियों में दुपट्टे को लपेटती और फिर ढीला छोड़ देती। कुछ था, जो उसके हाथों से छूटने जा रहा था, पर आयुषी सोच रही थी माथे का सिंदूर रिश्ते की निशानी हो सकती है, पर क्या प्यार की भी..? तब आयुषी ने ही बोलना शुरू किया, ‘‘आयुष ! शायद तुम्हें मुझसे, अपने जीवन से शिकायत हो। शायद तुम्हें लगे भगवान ने हमारा साथ नहीं दिया, मैंने तुम्हारे साथ सही नहीं किया, पर एक बार खिड़की से बाहर उन चेहरों को देखो, जो मेरी खुशी के लिए कितने दिनों से भाग-दौड़ कर रहे हैं। मेरे पापा से मिल कर देखो, खुशी उनकी आंखों से बार-बार छलक आ रही है और मेरी मां... वे तो मेरी बलाएं लेती नहीं थक रहीं। आज अगर हमने उनकी मर्जी के खिलाफ जा कर चुपचाप शादी कर ली होती, तो इतने लोगों को दुख पहुंचा कर के हम नए जीवन की शुरुआत कर पाते? तुम्हें शायद मेरी बातें आज समझ में ना आएं, पर एक ना एक दिन तुम्हें लगेगा कि मैं गलत नहीं थी। हो सके तो मुझे भूल जाना...’’
कितनी आसानी से कह दिया था आयुषी ने, पर क्या यह इतना आसान था। आयुष मुस्करा कर रह गया, उसकी मुस्कराहट में आयुषी को ना पाने का गम, अपने बेरोजगार होने की मजबूरी बार-बार साल रही थी। आज खुशी जिन लोगों का दिल रखने की कोशिश कर रही थी, क्या किसी ने उसका दिल रखने की कोशिश की थी, पर वह भी किस हक से उसके माता-पिता से उसका हाथ मांगता। कौन अपनी बेटी का हाथ एक बेरोजगार के हाथ में देता, पर इस दिल का क्या, कैसे समझाए उसे?
आयुषी की बहनें जयमाल के लिए आयुषी को ले कर चली गयीं। आयुष काफी देर तक उस स्थान को देखता रहा, जहां आयुषी बैठी थी। उसके वजूद की खुशबू वह अभी तक महसूस कर रहा था। आयुषी सिर्फ उसके जीवन से नहीं गयी थी, उसके साथ उसकी खुशियां, उसके होने के मकसद को भी ले कर चली गयी। वह तेजी से उठा और भीड़ में गुम हो गया।
सारे दोस्त मंच पर फोटो खिंचाने के लिए इकट्ठा थे। वह झट से दोस्तों के साथ मंच पर चढ़ गया। ना जाने क्यों आयुषी का चेहरा उतर गया था। एक अजीब सा तनाव और गुस्सा आयुष के चेहरे पर था, जैसे किसी बच्चे से उसका पसंदीदा खिलौना छीन लिया गया हो। आयुष आयुषी के दूल्हे के पीछे जा कर खड़ा हो गया, जैसे वह खुद को बहला रहा था।
इस बात को बीते 5 वर्ष गुजर चुके थे, पर लगता कल की ही बात हो। ना जाने कितनी ही रातें उसने उसके खयालों में बिता दी थीं। उसके जाने से कुछ नहीं बदला था, रात भी आयी थी... चांद भी आया था, पर बस नींद नहीं आयी थी। कितनी बार... हां ना जाने कितनी ही बार वह नींद से जाग कर उठ जाता। तब एक बात दिमाग में आती, जब खयाल और सवाल मन में घुमड़ने लगे तो वो उन अनगिनत सवालों के जवाब बन कर ही सही... आ जाती। सच तो यह था कि कोई रात ऐसी नहीं थी, जब वह साथ नहीं होती थी। हां, ये बात अलग थी कि वह साथ हो कर भी साथ नहीं होती थी। आयुष को कभी-कभी लगता उसके बिना तो रात में भी रात नहीं होती, शायद इसी को इश्क कहते हैं... इतने दिन बीत जाने पर भी वह उसको माफ नहीं कर पाया था। शायद इसीलिए उसे उस लड़की खुशी चावला का दर्द अपना सा महसूस होने लगा था। वीमेंस हॉस्टल की पहली मंजिल के बाएं तरफ की उस आखिरी खिड़की से रोशनी अभी भी आ रही थी और वह परछाईं अभी भी उतनी ही बेचैन महसूस हो रही थी।
दिन गुजरते रहे, पर उस खिड़की के पीछे रोशनी और परछाईं की बेचैनी वक्त के साथ कम नहीं हुई। हां, खुशी चावला का फोन और गाने की फरमाइश अकसर ही आने लगे थे, पता नहीं क्यों आयुष को कभी-कभी लगता कि कहीं खिड़की के पीछे खुशी चावला तो नहीं। एक मन कहता कि उस खिड़की को खटखटाए और पूछे, ‘‘आखिर ऐसा कौन सा दर्द है, जो तुम्हें सोने नहीं देता। हो सके तो अपने दिल की बात किसी से कह कर तो देखो... बंद दरवाजों में सिर्फ घुटन होती है, अंधेरा होता है। कम से कम मन के रोशनदान ही खोल दो, उम्मीद की एक किरण को आने का रास्ता तो दो।’’
पर ना वो खिड़की खुली और ना ही आयुष का सोचना बंद हुआ। इधर कुछ दिनों से खुशी... मतलब खुशी चावला का फोन नहीं आ रहा था। आयुष की नजर वीमेंस हॉस्टल की उस खिड़की पर गयी। आज भी उस कमरे में रोशनी थी, पर शायद उस कमरे में रहने वाले के दिल में कहीं ज्यादा अंधेरा था। वो परछाईं आज कुछ ज्यादा बेचैन थी। उसके माथे पर रखे हाथ और सिसकते शरीर को उसने अपने केबिन तक महसूस किया था। क्या वो रो रही थी पर क्यों... आखिर ऐसा क्या हुआ। आयुष बेचैन हो गया। ना जाने क्यों वह हॉस्टल के गेट की ओर बढ़ गया... तभी घड़ी ने 10 बजाए और वह ठिठक कर रुक गया। आयुष का मन ना जाने कैसा-कैसा हो रहा था। इधर खुशी चावला का भी फोन नहीं आ रहा था और इधर वो खिड़की वाली लड़की... सब ठीक तो है। कहीं खुशी ने अपने पुरुष मित्र की बेवफाई से दुखी हो कर कोई गलत कदम... नहीं-नहीं वह ऐसा नहीं कर सकती। आजकल के लड़के-लड़कियां बहुत प्रैक्टिकल होते है। एक गया तो दूसरा आ जाएगा, किसी एक के लिए कोई जिंदगी थोड़ी बर्बाद कर देगा। आयुष ने अपने दिल को समझाया और एक गहरी सांस ली। मन पर एक भारी बोझ लिए वह रेकॉर्डिंग रूम की ओर बढ़ गया।
‘‘गुड ईवनिंग, नमस्कार, सत श्री अकाल, आदाब... मैं हूं आपका दोस्त और होस्ट आयुष... हाजिर हूं आपका पसंदीदा प्रोग्राम ‘वो जब याद आए’ ले कर। दोस्तो, जिंदगी बहुत खूबसूरत है और हमें हर हाल में मुस्कराते हुए जीना चाहिए। जिंदगी तब और भी खूबसूरत हो जाती है, जब हमें अपनों का प्यार और अपनों का साथ मिलता है। ये वो पूंजी है, जिसे हमें जीवनभर संभाल कर रखना चाहिए। वे लोग बहुत भाग्यशाली होते हैं, जिन्हें मोहब्बत मिल जाती है, पर जिन्हें नहीं मिलती, उन्हें एक बार पलट कर जरूर देखना चाहिए कि उन्हें प्यार करने वाले केवल उसका प्रेमी या प्रेमिका नहीं, कुछ और भी लोग हैं, जो सिर्फ आपके लिए और आपका मुंह देख कर जीते हैं। मान लीजिए... एक बार के लिए मान लीजिए कि किसी वजह से आपको अपना प्यार नहीं मिल पाया तो क्या आपके जीने का उद्देश्य खत्म हो गया। इस पीढ़ी को समझना होगा कि मोहब्बत काे पा लेना ही उसकी मंजिल नहीं, बल्कि मैं तो ये कहूंगा हो सकता है कि उस ऊपर वाले ने आपका रॉन्ग नंबर मिलने से बचा लिया। उन्होंने आपके लिए इससे कुछ बेहतर सोच रखा है। आज हम बात करेंगे प्यार, इश्क और मोहब्बत के बारे में... दिलकश गानों के साथ आपका दोस्त आयुष हाजिर है, फिर देर किस बात की फोन उठाइए और मुझसे बातें कीजिए और मैं सुनाऊंगा आपकी पसंद के गाने... मुझे तुरंत फोन मिलाइए। तब तक आनंद लेते हैं एक खूबसूरत से गाने का।’’
स्टूडियो एक रोमांटिक गाने में डूब गया। एक के बाद एक फोन आते जा रहे थे और आयुष उनसे बातें करता। फिर कभी उनकी फरमाइश या फिर खुद की पसंद का गाना सुनाता रहा। ना जाने कितने फोन कॉल्स आए, पर जिस फोन का इंतजार था, वह बादलों में चांद की तरह छिपा उसके साथ अठखेलियां कर रहा था। कोई इतना निर्मोही कैसे हो सकता था। हॉस्टल की उस खिड़की से अभी भी रोशनी आ रही थी। कार्यक्रम अपने अंतिम दौर में था। तभी स्टूडियो के सन्नाटे को तोड़ती फोन की आवाज गूंजी, ‘‘हेलो...’’
‘‘हेलो, मैं अारजे आयुष आपके पसंदीदा प्रोग्राम ‘वो जब याद आए’ ले कर हाजिर हूं। सबसे पहले आपका नाम और आप कहां से बोल रही हैं।’’
‘‘आयुष जी मैं... मैं खुशी बोल रही हूं।’’
आयुष खुशी से सीट से उछल पड़ा, उसकी जान में जान आ गयी। ईश्वर का लाख-लाख शुक्र है कि वह ठीक है। पागल है ये लड़की जान निकाल दी थी इसने, सामने होती तो कस कर एक थप्पड़ लगा देता। ये कोई तरीका है जब चाहा प्रकट हो गए अौर जब चाहा गायब... कितना कुछ कहना, समझना और पूछना था कि कहां गायब थी वह इतने दिन पर किस हक से, उसने तो उसे देखा भी नहीं था। उसकी नजर हॉस्टल की खिड़की की तरफ चली गयी। वह तो बस इतना ही जानता था कि वह इसी शहर में किसी वीमेंस हॉस्टल में रहती है। वैसे भी वह है कौन... हक क्या है उसका।
आयुष ने अपने आपको संभाला, ‘‘गुड ईवनिंग खुशी जी... कैसी हैं आप?’’
‘‘जी ठीक हूं,’’ उसकी आवाज में सूनापन था।
‘‘खुशी जी, आप तो अपने दोस्त और होस्ट को भूल ही गयीं।’’
‘‘ऐसा कुछ नहीं, थोड़ा व्यस्त थी।’’
‘‘ये तो बहुत अच्छी बात है, इस दुनिया में अपने को व्यस्त रखना एक बहुत बड़ा टास्क है और सुनाइए।’’
‘‘आज सोशल मीडिया पर उसकी फोटो देखी... वह अपनी बीवी के साथ था, मनाली घूमने गया है।’’
उसकी आवाज में दर्द था, जिसकी टीस आयुष ने भी महसूस की, ‘‘ओके, ये तो अच्छी बात है।’’
‘‘अपनी बीबी के साथ काफी खुश नजर आ रहा था।’’
‘‘होना ही चाहिए, नयी-नयी शादी हुई है। जिंदगी जीने का हक तो सभी को।’’
‘‘पर मैं... मैं?’’
खुशी का कंठ भर आया, आवाज लरजने लगी, खुशी की आवाज मद्धिम होती जा रही थी। उसे लग रहा था कि अगर उसने जरा भी सांत्वना दी तो वो रो पड़ेगी। आयुष ना जाने क्यों एकदम से कठोर हो गया था। आयुष उसकी हर बात को काटता जा रहा था। आयुष को लग रहा था उसे उसकी बात अच्छी नहीं लग रही थी पर... वह जानता था कि अगर उसके दर्द को सहारा दिया तो वह टूट जाएगी, बिखर जाएगी।