Friday 23 February 2024 11:51 AM IST : By Dr. Neerja Shrivastava "Neeru"

वो खुली खिड़की भाग-2

depression

अचानक मौसम बदलने लगा था और आंधी आने से सब जगह लाइट गुल हो गयी। ‘‘पहले ही कहा था पापा को पावर बैकअप यहां का ठीक नहीं, पर माने नहीं... यह फ्लैट ले ही लिया,’’ अंधेरे में तो अंकुश की हवा ही सरक जाती, हार्ट बीट तेज हो गयी... कहीं वह जादूगरनी, उलटे पैरों वाली चुड़ैल यहीं ना आ जाए। खिड़की से खिलखिलाने की आवाजें आने लगीं। वह खुली खिड़की तेज हवा से कभी पट से बंद होती, कभी खुल जाती।

‘‘ओ बेटा एक नहीं लगता है कई हैं...’’ उसने झट किचन में जा कर चाकू उठा लिया, लोहे, आग से दूर भागती है ना बलाएं... जय हनुमान ज्ञान गुन... हमेशा की तरह उसका रटना चालू हो गया, ठंडे मौसम में भी उसके पसीने छूट रहे थे।

‘कैसा मर्द है रे तू अंकुश, अभी भी बच्चा बना हुआ है डरपोक...’ मम्मी, पापा, दीदी, दाेस्त सहपाठी, हॉस्टल मेट, सबने कितना चिढ़ाया था उसे पर... मन का वहम टस से मस ना होता...

‘होती है भई होती है, सुपर नेचुरल पावर होती तो है ही।’

‘अरे तुझे खाली डराने से उनको क्या फायदा। अदृश्य हैं... मारना है, तो कभी भी मार सकती हैं फिर डरना किस बात से। कभी ना कभी मरना तो वैसे भी है। कैसा घोंचू है तू,’ वह आज अपने से ही तर्क कर खुद पर झल्लाने लगा था।

‘‘बचपन में दादी हमेशा कहती थीं, बहुत गोरी खूबसूरत चेहरे वाली जादूगरनियां कभी भी असली रूप में आ कर अपना काम कर डालती हैं,’’ वह बड़बड़ाए जा रहा था... ‘‘इतना बड़ा हो गया। पर मन के कोने में डरता अभी भी हूं। तुझे सब था पता मेरी मां...’’ इस डर के लिए हंसती, चिढ़ाती, डांटती मम्मा सुहासिनी याद आ रही थीं। अंकुश के लाख छिपाने पर भी उसकी कमजोरी घर में सबको पता थी, जिसका सभी समय-समय पर आनंद लेते रहते। चार साल का था अंकुश जब मां-बाप अपनी कंपनी से मिले बहुत अच्छे असाइनमेंट के तहत अंकुश और 6 साल की उषा को बाबा-दादी के पास छोड़ कर 3 साल के लिए ऑस्ट्रेलिया चले गए थे। सिर्फ 8 महीने की छोटी बेटी िनशी ही उनके साथ गयी थी। यहां पर प्यार करने वाली दादी के अतिरिक्त चाचा-चाची और उनके हमउम्र बच्चे भी थे। दोनों आसानी से रुक गए थे। नाैकर सुखदेव और उसकी पत्नी सीता से भी सभी बच्चे खूब हिलेमिले थे। सब कुछ तो ठीक था, पर यहां चाचा-चाची का टीवी हाॅरर शो दिलचस्पी से देखना, डरावने किस्से-कहानियां सुनना-सुनाना, दादी से परी-जादूगरनी की कथाएं सुनना, तो अंधविश्वास में डूबी सुखदेव और सीता का भूत-चुड़ैल के किस्सों का सत्य की तरह पराेसे जाना उसके बाल मन पर गहरा असर डाल गया। इतना बड़ा हो गया फिर भी दिल के कोने मंे बैठा उसका वह डर आज भी कहीं शेष रह गया था। उसे याद आता किसी पत्रिका, किताब में राक्षस, भूत, चुड़ैल या डरावनी काेई तसवीर एक बार दिख जाए, तो कैसे सिहर कर वह पन्ने पलट दिया करता, तो कभी झटके से किताब ही बंद कर देता।

‘यार लानत है, अब तो बड़ा हो चुका है, जॉब में आ गया तब भी... शादी कर लेगा तब भी।’

‘अव्वल तो शादी करूंगा नहीं, करूंगा भी तो किसी गोरी रूपसी से तो कतई नहीं, कब कौन जाने उलटे पांवाेंवाली निकल आए...’ सोचते ही उसके कान गरम हो उठे।

‘‘ये मरी लाइट भी ना... सोसाइटी के जेनरेटर काे भी ना जाने क्या हुआ इतनी देर...’’

निशी ने आ कर पीछे से अंकुश को पकड़ लिया, ‘‘लो आ गयी भैया।’’

वह चौंक गया, एकदम वही खुशबू निशी के पास से भी आ रही थी... उसने उसे परे ढकेला था। एकदम से लाइट भी आ गयी।

‘‘क्या है भैया... देख लो, पैर सीधे ही हैं कोई चुड़ैल नहीं बन गयी,’’ वह चिढ़ा कर हंसी थी।

‘‘कहां रह गयी थी। अंधेरे में कुछ हो जाता तो... वैसी ही खुशबू तुझसे भी आ रही है... तुझे डर नहीं लगता... अरे जमाना खराब है, इसीलिए कह रहा था... और क्या...’’ इससे पहले वह उसके डर का और मजाक बनाती उसने बात घुमायी।

झमाझम बारिश शुरू हो गयी थी। परदा खिसका कर उसने खिड़की बंद कर दी और परदा फिर से लगा दिया। दिल को तसल्ली हुई कि वह खिड़की पहले ही बंद हो चुकी थी, ‘‘थैंक गॉड।’’

‘‘जा पहले कपड़े बदल ले, थोड़े छींटे तो पड़ ही गए हैं, सरदी चढ़ जाएगी, तो नाक बजा-बजा कर तंग करती फिरेगी। तब तक मैं कॉफी लाता हूं।’’

निशी चेंज कर आ गयी, मम्मी का फोन आ गया। ‘‘हां सब ठीक है मम्मा, भैया भी... टिफिन वाला बढि़या खाना दे जाता है टाइम से...सुबह मेड, भैया और मैं मिल कर सारे काम आराम से निपटा लेते हैं...’’

‘‘वह श्यामली तेरी दोस्त, जिसे चोट लग गयी थी, कहां है, कैसी है। ना हो उसे अपने पास ही बुला लिया कर, वहां कोई नहीं उसका, उसके सब गांव में है ना...’’ बारिश के शोर की वजह से फोन स्पीकर पर डाल रखा था।

अंकुश कॉफी ले आया था। स्पीकर पर डाला हुआ फोन बड़े ध्यान से सुन रहा था।

‘‘हां मम्मा, पर भैया कभी राजी नहीं होंगे...’’

‘‘बात करा, कहां है?’’

‘‘यहीं हैं... लो भैया बोलो...’’

‘‘उसकी वजह से तेरी बहन जिंदा है, वह खुद गर्त में चली गयी, चोट लगा ली और इसे बचा लिया। थैंक्स बोलना चाहिए उसको... अजीब सनक है तेरी... उसकी दोस्त है। आने को क्यों मना करता है उसकी किसी दोस्त को...।’’

‘‘अरे मम्मी उलटे पांव और इसी की तरह उलटी खोपड़ी की ही होगी, तभी गड्ढे में गिर गयी।’’

‘‘चुप कर इतनी प्यारी-प्यारी सुंदर लड़कियों को तूने अपनी खब्त में रिजेक्ट कर दिया। और हां निशी की दोस्त श्यामली को आने दिया कर घर, बेचारी चोट खायी वर्किंग वुमन हॉस्टल में अकेली पड़ी रहती है... निशी कभी ले आए घर, तो उस पर चिल्लाएगा नहीं, समझा... चल निशी को फोन दे,’’ अंकुश ने निशी को फोन दे दिया था।

‘‘तू स्पीकर बंद कर निशी... मुझे इससे बात नहीं करनी...’’ स्पीकर हट गया था।

करीब आधे-पौन घंटे तक मां-बेटी की बात चली, अंकुश घूरे जा रहा था कि कब उसका नंबर आएगा।

‘‘श्योर ओके बाय मम्मा लव यू... टेक केअर बाय,’’ फोन कट गया था।

‘‘हां तो बस तुझे ही तो उनकी केअर है मुझे थोड़े ही, फोन क्यों काटा तूने... मुझसे तो बस शादी को ले कर खफा हैं.

हाथ-पैर में पट्टी बांधे लंगड़ाती हुई जो लड़की निशी के साथ घर आयी, तो निशी ने उसे श्यामली कह कर परिचय कराया। अंकुश से दुआ-सलाम भी हुई और निशी की जान बचाने के लिए उसे थैंक्यू बोलना पड़ा। पर तुरंत दूसरी ओर देखने लगा कि जैसे सुंदरी मायावी जादूगरनी हो, कहीं उसे अपना असली रूप ही दिखा दे। पर लड़की तो अपलक उसे निहारती ही रही। उसकी देखी हुई फोटो से कहीं ज्यादा आकर्षक स्मार्ट युवक सामने खड़ा था।

‘अच्छी जिद पकड़ी उसने, जो मैं यहां चली आयी, वरना चूक जाती,’’ वह मन ही मन मुस्करायी।

‘‘देख लो भैया इसे, गोरी भी है सुंदर भी और पैर भी उलटे नहीं इसके... हा-हा...’’ उसने अंकुश के कान में फुसफुसाते हुए कहा।

‘‘किसी के सामने कुछ भी बक देती है... पर जान ले दिमाग से तो पैदल ही होगी... चुपचाप इसे अपने रूम में ले जा, मुझे कंप्यूटर ठीक करने दे, वैसे ही परेशान हूं...’’ वह भी फुसफुसाते हुए बोला। निशी और उसकी दोस्त एक-दूसरे को देख आंखों-आंखों में मुस्करायीं और कमरे में हो लीं। एक-दूसरे की हथेली टकरा कर ताली बजायी। अंकुश को तो जरा भी शक ना हुआ कि माजरा क्या है। दोनों दरवाजा बंद कर खिलखिला उठीं।

‘‘वाह ! कमरा तो बड़ा अच्छा सजा रखा है...वायलिन कौन बजाता है, तुम?’’

‘‘नहीं, मेरे एकमात्र सुपर अक्लमंद अंकुश भैया का ही है। उनके रूम से उठा लायी थी कि कम से कम सारेगामा तो बजा कर उनको अपनी अक्ल दिखा दूं, पर अभी तक बजा ही नहीं मुझसे...’’

‘‘ओ... और इतने सारे ये पजल्स स्क्वेअर्स?’’ वह उठा कर घुमाने लगी।

‘‘अंकुश भैया ही रोज इन्हें मेरे लिए बिगाड़ कर रख जाते हैं। कहते हैं सारे कलर्स अलग सेट कर दिखा, दिमाग तेज कर डफर... और मैं रात तक बड़ी मुश्किल से एक लगा पाती हूं,’’ वह हंसी थी, ‘‘मुआयना करो तब तक मैं कॉफी बना लाती हूं फिर आराम से बातें करते हैं।’’

निशी जब तक कॉफी, बिस्किट्स, पेस्ट्रीज ले कर आयी तब तक श्यामली ने पजल्स के कलर्स सेट ही कर दिए।

‘‘वाओ, कमाल... तुम तो...। अभी चिढ़ा कर आयी भैया को... कॉफी उन्हें भी दे आऊं,’’ उसने एक पजल भी उठा कर ट्रे में रख ली।

‘‘अंकुश भैया, यह देखो अपना पजल, आज मैंने सुबह ही सही-सही सेट कर ली,’’ वह टेबल पर कॉफी रखते हुए मुस्करायी थी।

वह हैरानी से उसे देखने लगा।

‘‘देख क्या रहे हो भैया, एक नहीं आज तीनों के कलर्स सेट कर लिए थे।’’

‘‘झूठी... इम्पॉसिबल... तेरी अकल मैं जानता हूं...’’

‘‘तो भूत आ कर कर गया क्या? श्यामली तो बना ही नहीं सकती इतनी जल्दी मुझसे, ज्यादा गोरी मुझसे ज्यादा डफर आपके हिसाब से।

‘‘पागल, सुन लिया उसने तो...’’

‘‘कोई नहीं, मेरी ही दोस्त है जल्दी बुरा नहीं लगता उसे,’’ वह हंस पड़ी।

‘‘तीनों बना ली तूने !’’

निशि ने गर्व से कंधे उचकाए थे।

‘‘चल-चल झूठी... सही में, जिस दोस्त से बनवाया है एक दिन मिलाना।’’

‘‘कभी क्यों अभी ही मिला देती हूं... उसके लिए तो मिनटों का खेल है ये...’’ उसने अपने कमरे की ओर इशारा किया, मतलब श्यामली से था।

‘‘वह तो अभी आयी है, ऐसे कैसे मान लूंगा...पहले ला तीनों बिगाड़ देता हूं, फिर बनवा कर दिखा तब मानूंगा।’’

निशि को तीनों तीनों पजल, कलर्स अच्छी तरह गिचपिच करके थमा दिए, ‘‘अब बनवा कर दिखा।’’

‘‘कॉफी तो पी लेने दो भैया उसे... कहीं समझ जाएगी कि वह पैदल नहीं, बल्कि तुम ही भटकी हुई आत्मा हो,’’ वह छेड़ कर हंसी।

जब सामने बैठ कर श्यामली को पजल सेट करते देखा तब जा कर अंकुश को विश्वास हुआ, वरना उसे बात हजम नहीं हो रही थी। उसका वहम थोड़ा कम हुआ था, कोई जादूगरनी नहीं नाॅर्मल सी लड़की ही है।

‘‘पर इतने साफ रंग की है, श्यामली क्यों नाम रख दिया गया, यह समझ नहीं आता,’’ वह सोचता।
धीरे-धीरे वह श्यामली से घुलने-मिलने भी लगा। निशि की तरह ही उसके सिर पर भी टप्पा लगा दिया करता, वह भी उसे श्यामली ही बुलाने लगा। अब तो रोज ही कोई ना कोई अक्ल के टेस्ट लिया करता और श्यामली उनमें पास ही होती। कभी मिक्सी की निकली तार फिर जोड़ कर निशि की प्रॉब्लम दूर कर उसे हैरान करती, तो कभी वायलिन पर इक प्यार का नग्मा... धुन निशि को सिखाते हुए चौंका देती। अंकुश का गोरी सुंदरी... अक्ल से पैदल... चुड़ैलवाला वहम टूटने लगा था। श्यामली भी मजे लेती। तकरीबन हर तीसरे-चौथे दिन वह फ्री हो कर निशि के साथ उसके घर चली ही आती।

एक दिन उस खुली खिड़की की ओर इशारा करते हुए श्यामली ने पूछ ही लिया था अंकुश से, ‘‘कौन रहता है वहां...?’’

‘‘वाॅचमैन बता रहा था अकेली ही है लड़की वह पर... पता नहीं कौन रहती है... अकेली चुड़ैल जैसी, कोई गोरीचिट्टी जादूगरनी...’’

‘‘अकेली, गोरी का चुड़ैल जादूगरनी से यह कैसा कनेक्शन... मैं भी तो गोरी हूं और रूम पर अकेली भी रहती हूं... कहीं मैं भी तो...’’ श्यामली हंसी थी। उसके गोरे चेहरे पर उजले दांत और भी चमक रहे थे, पर अंकुश ने महसूस किया कि उसे श्यामली से डर नहीं लग रहा है।

‘‘अरे, तुमको तो निशि जानती है, मैं भी जान रहा हूं। तुम्हें नहीं पता अकसर आमने-सामने 2 कप ले कर एक लड़की बैठती है, जाने किस भूत-भूतनी से बातें करती है। दिखता कोई भी नहीं, कभी हंसती-खिलखिलाती, कभी रोती-गुनगुनाती रहती है... तुम भूल कर भी मत जाना उधर, निशि को भी मना कर रखा है। कभी लंबे बाल सुखा रही होती है, कभी छोटे... क्या बला है समझ नहीं आता। तुम भी देखो, और वही चुन्नी ले कर बैठती है। एक दिन उड़ कर यहां भी आ गिरी थी... शाम से ही एक अजीब सी गुलाब की खुशबू धुएं के साथ आने लगती है। निशि ने बताया नहीं...।’’ अंकुश ने उस ओर इशारा किया था। निशि बनाना कस्टर्ड प्यालियों में डाल कर ले आयी थी।

‘‘अरे आप भी ना भैया, एक नंबर के डरपोक, कुछ भी इमेजिन कर लेते हो। जा कर देख लो एक दिन, तो सारी असलियत पता चल जाएगी।’’

‘‘मै कोई डरता थोड़े ही हूं... बस बुरी बलाअों से तो दूर ही रहना चाहिए। दादी का मान रखता हूं, देखाे ये बाजू में बंधी ताबीज उनकी ही दी हुई है...’’

फिर एक दिन निशि ने कहा, ‘‘चलो ना चल कर देख ही आते हैं भैया, दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा...’’

‘‘हां-हां चलिए, मेरा वॉक भी हो जाएगा। आज मैं
भी देखूंगी जादूगरनी-चुड़ैल कैसी होती है,’’ श्यामली चहकी थी।

ना-ना करते हुए भी दोनों अंकुश को उस खुली खिड़की वाले फ्लैट पर घसीट ही लायीं।

निशि ने घंटी बजा दी थी।

‘‘देखो कोई बोल तो रहा है...’’ अंकुश ने कान दरवाजे पर लगाए, तो वह दबाव से खुल गया। वह एकदम पीछे हट गया, ‘‘दरवाजा तो खुला हुआ है...’’

श्यामली ‘‘कोई है, कोई है’’ कहती हुई निशि के साथ अंदर आ गयी, तो अंकुश को भी मर्दानगी में अंदर आना पड़ा। ‘‘उधर पिंक लाइट वाले रूम से आवाजें आ रही हैं देखते हैं...’’

‘‘यार चलते हैं, यों ही किसी के घर में घुसना ठीक नहीं। बाहर वेट करते हैं,’’ अंकुश बाहर जाने को हुआ, तो निशि ने रोक लिया और आगे बढ़ कर लाइट में गुलाबी हो रहा परदा खींच दिया।

‘‘अरे, यहां तो कोई नहीं दो खाली कप और ये बजता टेपरेकाॅर्डर... देखो ना भैया... अब तो पक्का कोई भूत-चुड़ैल है... नहीं... बस कोई मजाक कर रहा है।’’

श्यामली ने बड़ा बल्ब जलाया, तो गुलाबी कमरा सफेद रोशनी में नहा उठा। वह हंस पड़ी। दीवार पर विभिन्न वेशभूषा, अनेक केशविन्यास, अलग पोजेज में उसकी तसवीरें फ्रेम में सजी हुई लगी थीं। अंकुश हैरानी से कभी उसे कभी उसकी तसवीरों को देख रहा था।

‘‘इधर आइए वो देखिए मेरा विग... बड़े-बड़े फूलोंवाली उसी खुशबूदार चुन्नी के साथ हवाखोरी कर रहा है,’’ वह अंकुश को अपनी बालकनी में ले आयी थी।

‘‘मगर तुम्हारा तो... तुम तो हॉस्टल... तुम यहां...’’

‘‘अब मेरे भैया को अधिक परेशान ना करिए शुक्ति जी... सस्पेंस खोल ही देते हैं,’’ निशि ने हंस कर कहा।

‘‘शुक्ति जी... सस्पेंस... चक्कर क्या है ! तुम श्यामली नहीं...’’ वह दोनों से पूछ कर यकीन करना चाहता था। शुक्ति ने मुस्कराते हुए नहीं में सिर हिला दिया।

‘‘मुझे डराने के लिए मिल कर यह तमाशा...’’ वह थोड़ा-थोड़ा समझते हुए हैरान था।

‘‘डराने के लिए नहीं, आपका डर भगाने और डर के कारण मुझे रिजेक्ट करने का मजा चखाने के लिए नाट्य एकेडमी की इस शुक्ति सिन्हा ने यह नाटक रचा...’’ वह खिलखिला उठी। उनका प्लान सही बैठा था। वह अपने अलग-अलग हेअर स्टाइल के विग बदल कर बाउंड्री से सटा कर चेअर पर ऐसे जानबूझ कर सुखाती कि लगे कोई बैठा हुआ है। वह उसे डरा कर, तंग कर थोड़ा और मजे लेना चाहती थी... उसके रिजेक्शन के दर्द को कहीं राहत मिल रही थी।

‘‘मगर...।’’
‘‘आज प्लान के मुताबिक मैंने अपना रूम पहले ही तैयार किया हुआ था। गुलाबी लाइट, गुलाब, मोगरे की अगरबत्तियां जला ली थीं। टेपरेकाॅर्डर का नाट्य संवाद भी उसके आते घंटी बजाते ही चालू करने के लिए गार्ड की ही ड्यूटी लगा रखी थी। दरवाजा यों ही भिड़ा कर छोड़ आयी थी,’’ वह अपने रहस्योद्घाटन पर ताली पीट कर देर तक हंसती रही।

‘‘क्या...! तुम वो नाट्य एकेडमी वाली... पुणेवाले सिन्हा जी की लड़की...’’ अंकुश को याद आ रहा था... कोई रिश्ता पहले उसके लिए आया था।

‘‘लाड़ली, इकलौती, सुंदर, सीप से गोरी बेटी शुक्ति सिन्हा, और वो खुली खिड़कीवाली चुड़ैल, भूतनी, जादूगरनी भी...’’ वह ठहाका मार कर बोली।

राज से परदा उठ चुका था। फिर तो निशि और शुक्ति ने उसे बैठा कर मजे से बाकी सारी कथा सुना डाली, ‘‘सारी मम्मा की ही प्लानिंग थी...’’

कैसे मम्मा ने निशि को फोन पर उस दिन क्या क्या कहा था... निशि ने यह भी स्पष्ट कर दिया था।

‘‘देख मेरी बात ध्यान से सुन निशि, वो जो पुणे की सिन्हा फैमिली... शुक्ति सिन्हा... मिस्टर सिन्हा का फोन आया था तेरी रुचिरा मौसी के पास, कह रहे थे, उनकी बिटिया को पहली बार तो कोई लड़का पसंद आया, अभी तक तो उसी ने सब लड़कों को रिजेक्ट किया। यह पहली बार हुआ कि किसी लड़के ने उसे मना किया है... जब मना करने की वजह उसे बतायी गयी कि कोई गोरी लड़की कब चुड़ैल, जादूगरनी का रूप धर ले, इस बात का डर आज भी उसके अंदर कहीं समाया हुआ है, तो वह खूब हंसी। उसने जिद पकड़ ली है अब शादी करेगी, तो सिर्फ अंकुश वर्मा से या करेगी ही नहीं,’’ मम्मी ने हंसते हुए बताया।

‘‘उसे अपनी ड्रामा एकेडमी के प्ले के लिए दिल्ली आना ही था, सो वह जानबूझ कर हमारी सोसाइटी के उस सामने बंद खिड़कीवाले घर में रहने आ गयी। मैं तो उसे उसकी उड़ आयी चुन्नी लौटाने घर भी गयी थी, पर क्या पता था... कह रही थी किसी मिशन पर दिल्ली आयी है... मैंने उसे बताया था मेरे भैया उसकी खुली खिड़की से और चुन्नी से इतना क्यों डर गए, तो वह खूब हंसी थी,’’ निशि खुश हाेते हुए बोली।

‘‘इकलौती लाड़ली है सिन्हा जी की, उन्होंने यहां उसका सारा प्रबंध किया, सामनेवाले फ्लैट में पहुंचा कर ही गए। सिन्हा जी ने हमसे एक बार फिर अंकुश को मना लेने की रिक्वेस्ट की है, समझी... लड़की, घर तो हम सबको ही बेहद पसंद है। तू तो गयी हुई थी, तुझे इस बारे में कुछ नहीं मालूम... अब तू जा कर फिर उससे मिल। बड़े पहाड़ चढ़ लिए हैं ना तूने, अब यह पहाड़ भी चढ़ जा उसके साथ। कोई तो प्लान होगा उसका... या उसे श्यामली ही बना कर घर ले जा, अंकुश ने उसे देखा भी नहीं है। अगले महीने की चौबीस को हमारी वापसी की टिकट हैं, करीब डेढ़ महीने ही तो हैं, हम पहुंच ही रहे हैं। तू तब तक संभाल लेना। उसकी किस्मत में गोरी सुंदरी ही लिखी है, तो क्या करेगा... अजीब खब्त है उसकी भी... अब देखूंगी सनकपना कब तक रह पाता है,’’ मम्मी उत्साह से खिलखिला पड़ीं।

‘‘हा... हा... ब्रीलियंट मम्मा। समझो डन...’’

‘‘पर होशियारी से। अंकुश को भनक भी नहीं लगनी चाहिए, बी केअरफुल...’’

निशि शुक्ति से दोबारा मिली, तो दोनों खूब हंसीं। जब निशि ने बताया कि 2 कप चाय ले कर उसका खिड़की पर बैठना, किसी से बातें करना, परदे के पीछे से खिलखिलाने, हंसने, रोने की आती आवाजें भैया को कितना डराती हैं, तो शुक्ति ने स्पष्ट कर दिया कि इसमें से कुछ ही उसके उसके नाट्य रिहर्सल का हिस्सा हैं, बाकी उसे डराने के लिए।

‘‘यह भी खूब रही... अच्छा चुन्नी भी उड़ कर खूब आयी कि भैया और घबरा गए।’’

‘‘डरपोक वर्मा का कुछ तो करना ही पड़ेगा। उनके फंडे तो क्लीयर करने ही पड़ेंगे... ब्यूटी विदाउट ब्रेन, मतलब ब्यूटीफूल्स... और... वॉइट ब्यूटीफुल्स आर विचेज।’’

‘‘शुक्ति को श्यामली बन कर अंकुश से मिलने की योजना पसंद आयी। नाटककार तो थी ही, बाकी सारा आपके सामने है... हा-हा भइया... कथा समाप्त।’’

निशि खूब हंसी, जिसका साथ शुक्ति ने भी हंसते हुए तालियां पीट कर दिया, फिर बोली, ‘‘रही दूसरी बात समझने की, तो जनाब डायलॉग्स ठीक से बोलने के लिए गुलाब-मोगरे से खुशबूदार माहौल बना कर रिहर्सल करती हूं... दो कप भी उसी खातिर रखती हूं... दूसरे पात्र के होने का अहसास होता रहता है मुझे, तो खिड़की के पास बैठ कर डायलॉग्स सही निकलते हैं... अभी भी डर रहे हो मुझसे क्या रूप बदलने वाली मायावी जादूगरनी कुछ कर ना दे...’’ उसने डराने के लिए बुरा सा चेहरा बना कर टेढ़ीमेढ़ी कर उंगलियां घुमायीं और जोरों से हंस पड़ी, तो निशि और अंकुश भी हंस पड़े। वह नीचे तक उन्हें छोड़ने आयी।

‘‘मैं कुछ ठान कर ही आयी थी यहां दिल्ली, मिशन खत्म... पर अब मेरा दूसरा काम भी खत्म हो रहा है, अगले हफ्ते मैं वापस मुंबई जा रही हूं। तुम्हें परेशान नहीं करूंगी अब... दोस्त तो रह ही सकते हैं हम। वहम निकल गया हो, तो मम्मा को बता देना...मैं वेट करूंगी तुम्हारी हां का,’’ वह मुस्करा उठी। उसने देखा निशि के साथ उसका भोलूचंद अंकुश भी उसे देख कर मुस्करा रहा था। शायद उसके दिमाग की खिड़की भी अब खुल चुकी थी।

‘‘हम भी चलेंगे तुम्हें एअरपोर्ट छोड़ने भूतनी, चुड़ैल, जादूगरनी श्यामली,’’ कह कर उसे पकड़ कर वह जोरों से हंसा था। मतलब बात बन गयी, तो खुशी से निशि और शुक्ति भी खिलखिलाए बिना न रह सकीं।