Friday 23 February 2024 11:30 AM IST : By Dr. Neerja Srivastava "Neeru"

वो खुली खिड़की भाग-1

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अंकुश आज भी जब शाम खिड़की पर आया, तो सामने वाले फ्लैट में वह गाेरी अजीब सी लड़की सिर पर चुन्नी डाल कर गले में लपेटे फिर उसी खिड़की के पास दो चाय के कप लिए बैठी मिली। निकुंज विला डी टावर की छठी मंजिल के फ्लैट की वह खिड़की ठीक उसके बी टावर के छठे माले की बेडरूम की खिड़की के सामने खुलती थी। उस लड़की के सामने रखा एक और कप, उसके पकड़ने के अंदाज से अपनी गरमाहट बयान कर रहा था। परदे की ओट में वह रोज की तरह आज भी दूसरे बंदे काे देख पाने की काेशिश करने लगा। बहुत देर के बाद भी कोई और दिखा नहीं। अब तक तो मेरी चाय ठंडी भी हो चुकी हाेगी। तभी छोटी बहन निशी ने पीछे से आ कर ‘भौं’ कह कर उसे डरा दिया, जो आज सुबह ही अपने पर्वतारोही ग्रुप के साथ डेढ़ महीने बाद लाैटी थी।

‘‘क्या करती है निशी, कोई देख लेता तो...’’ वह कांप कर संभला था।

‘‘अरे कौन है भैया, किसे चुपके-चुपके देख रहे थे,’’ वह शैतानी में फुसफुसाते हुए बाेल कर खिलखिला उठी।

‘‘सामने वाली खिड़की में।’’

‘‘...इक चांद सा चेहरा...’’ वह फिर हंसी।

‘‘तुझे मजाक सूझ रहा है... वाे देख उस घर में वह गोरी लड़की रहने आ गयी है। रोज सुबह-शाम इसी तरह से चाय के 2 कप टेबल पर रख कर बैठती है, जैसे कोई उसके साथ बैठा हो। बातें करती है, मुस्कराती है, पर कभी दिखता कोई नहीं...’’ उसने निशी को बताया।

‘‘हां भैया... बताया था ना आपने... चुड़ैलें अकसर खूबसूरत गोरी सी युवती का भेष रच लेती हैं। जरूर कोई भूत संग होगा। सालभर से खाली था, पता नहीं कब डेरा जमा लिया,’’ कह कर वह मुस्करायी।

‘‘मारूंगा...’’ उसने मारने के लिए झूठमूठ का हाथ उठाया।

‘‘दिल आ गया क्या उस पर भैया.. तो सोच लो उसका मियां भूत छोड़ेगा नहीं आपको।’’

वह झटके से उसे पकड़ने को बढ़ा, तो चेअर टकरा कर उलट गयी। आवाज लड़की तक भी पहुंच गयी, उसने पलट कर देखा था। निशी उसे फिर छेड़ कर नीचे भाग गयी, ‘‘मैं तो चली भैया ईवनिंग वाॅक पर, आप अंधेरे में हॉरर फिल्म के मजे लो...’’

इतनी दूर से भी आंखें मिलीं, तो वह सिहर उठा। थोड़ी देर बाद उसने देखा कि दोनों कप उठाते हुए उसने कुछ कहा और चली गयी।

अभी सालभर ही तो हुआ था उसे इस थ्री बीएचके फ्लैट में रहते। कब से खाली पड़ा था सामने वाला फ्लैट। निशी पता नहीं कहां से खबर लायी थी कि किसी लड़के ने आत्महत्या कर ली थी इसमें, तब से ही खाली पड़ा था। पहले ही बोला था ठीक सामने कोई आ गया रहने, तो सारी प्राइवेसी धरी रह जाएगी। अब महीनेभर से इस खुल गयी खिड़की ने उसके दिलोदिमाग में हलचल मचा रखी थी।

‘मम्मी-पापा उषा दी के पास 3-4 महीने के लिए अमेरिका चले गए, घर में वैसे ही सन्नाटा पसरा रहता है। अपनी खिड़की या बालकनी से बाहर भी नहीं देख सकता ढंग से। अब उनके आते ही घर बदल लेंगे हम... यह तो अच्छा हुआ निशी लौट आयी...’ अंकुश सोचे जा रहा था।

उस खिड़की से अगरबत्ती का धुआं नित्य की भांति गुलाब-मोगरे की खुशबू के साथ फैलने लगा था। ‘शायद तंत्र-मंत्र, जादूटोना करती हो... फिर गुलाबी परदे बंद हो जाते। तीन बजे रात तक उसकी लाइटें जली रहतीं, बीच-बीच में जोर से खिलखिलाने की, किसी से बातें करने की आवाजें आतीं, तो कभी गाने की... फिर बिलकुल खामाेशी... वह क्यों ध्यान दे रहा है उसके बारे में इतना ज्यादा। उस खुली खिड़की को देखते ही उसका दिल जोर से धड़कने लगता, दिमाग जैसे शून्य हो जाता।

रोज की तरह जब अपने ऑफिस से लौटा, तो एक बार उसकी निगाहें यकबयक खुली खिड़की की तरफ आज भी उठ गयीं... ‘बिल्डिंग का वॉचमैन तो इधर ही आ रहा है... पूछता हूं।’

‘‘अरे भाई, कौन आया है उस फ्लैट में...’’ उसने उस खिड़की की ओर इशारा किया, ‘‘कोई रहता नहीं था उसमें सालों से... बता ना भाई, पूरी फैमिली है क्या। मुझे दिखती तो भूतनी सी एक ही लड़की है... पर बातें करती रहती है किसी से...’’

‘‘क्या साहब, मैडम तो अकेली ही हैं। मम्मी-पापा साथ आए थे। पर वे उसी समय चले भी गए। कोई दाेस्त-रिश्तेदार आया होगा... वैसे उनके पांव तो मैंने भी नहीं देखे, क्या पता उल्टे...’’ कहते हुए वह हंसा था, ‘‘ठीक है, मैडम जी से बता दूंगा कि बी नंबर टावर वाले साहब पूछ रहे थे...’’ वह चुटकी ले कर फिर हंसा।

‘‘अरे, पागल हो क्या... मैं तो बस यों ही पूछ रहा था,’’ कह कर वह जेब में अकड़ के साथ एक हाथ डाले, दूसरे हाथ से गाड़ी की चाबी घुमाते हुए अपनी लिफ्ट की ओर मुड़ गया।

ऊपर पहुंचा, तो डोर लॉक था, रोज की तरह निशी ईवनिंग वाॅक के लिए गयी थी। बंद कमरे की अजीब सी गंध उसे जरा नहीं भाती। कंधे से बैग टेबल पर रखा। सारे खिड़की-दरवाजे खोल डाले। अपने कमरे की खिड़की खोल कर ठिठक गया। अभी तो खिड़की बंद है, लगता है कोई है नहीं, बढि़या...। हवा क्या मस्त है, वह डोर खाेल कर बालकनी में आ गया। बाल हवा में उड़ने लगे, तो वह आंख मूंद हाथ रेलिंग पर टिका माैसम का लुत्फ उठाने लगा। तभी उड़ती आयी चुन्नी ने उसके चेहरे को ढक लिया। अचानक कपड़े का स्पर्श व नथुनों में भरी जा रही चिरपरिचित गुलाब-मोगरे की मिलीजुली वही खुशबू... सिहर कर उसने झट आंखें खोल लीं।

‘ये चुन्नी कहां से आ गयी...’ करेंट सा लगा...सामने बिल्डिंग वाली की ही है... सफेद-लाल फूलों वाली... कई बार देखा है वह पहचान रहा था...मगर 40-50 फीट की दूरी से... इतनी तो हवा तेज नहीं...’ उसने नीचे-ऊपर, दाएं-बाएं देखा, सोचा नीचे डाल दे।

‘‘अ... भैया नीचे क्या डाल रहे हो... चुन्नी...। बड़ी प्यारी है,’’ उससे ले कर उसने बड़ी अदा से अपने ऊपर डाल कर देखा था। निशी वॉक से जल्दी लौट आयी थी।

‘‘क्या करती है दूसरे की चीजें यों पहनते नहीं...’’

‘‘अरे, तो क्या हुआ भैया... दूसरे की चीजें नीचे भी तो नहीं फेंकी जातीं...’’ वह मुस्करायी, ‘‘अभी चौकीदार को दे आती हूं, जिसकी होगी वह दे देगा।’’

अंकुश उसके साथ अंदर हो लिया, ‘‘बात सुन, यह चुन्नी उसी भूतनी की है। अकसर यही तो पहन कर खिड़की में बैठती है... पता नहीं क्या जादू किया होगा, वरना इतनी दूर उड़ कर सीधा हमारी... वही गुलाब-मोगरे की महक नहीं आ रही इससे... सूंघ ना मोटी...’’

‘‘हां सही भाई, आप तो फालतू में डरा रहे हो... मैं चौकीदार भइया को दे कर अभी आयी।’’

अंकुश ने बालकनी वाला डोर तुरंत बंद कर लिया। अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी उसे। वह फ्रेश हो कर काॅफी बना लाया।

निशी पता नहीं उसके घर ही तो देने नहीं चली गयी। अभी तक नहीं लौटी। अजीब घनचक्कर है... वह अजीब लड़की जाने क्या कर दे उसका...’’

क्रमश...