Saturday 04 June 2022 01:58 PM IST : By Gopal Sinha

कुदरत का मिजाज क्यों हुआ गरम

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कुदरत वाकई हमसे नाराज है और उसकी यह नाराजगी हमें कई रूपों में झेलनी पड़ रही है। अगर हम अभी भी ना चेते, तो जलवायु के तापमान में हो रही निरंतर बढ़ोतरी हमारे अस्तित्व पर संकट पैदा कर सकती है। ग्लोबल वॉर्मिंग की शुरुआत 1880 में औद्योगिक क्रांति के बाद हुई। तबसे हर 10 साल में औसत वैश्विक तापमान में लगभग 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ाेतरी दर्ज की गयी। वैज्ञानिक आशंका जता चुके हैं कि 2035 तक औसत वैश्विक तापमान लगभग 0.3 से 0.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। 

क्यों बढ़ता है धरती का टेंपरेचर 

हमारे वातावरण में मौजूद कार्बन डाईऑक्साइड, मिथेन और ओजोन जैसी गैसें सूर्य की किरणों और उसकी गरमी को अपने अंदर सोख लेती हैं। इन्हें हम ग्रीनहाउस गैसें कहते हैं, जो जीवन को बनाए रखने के लिए धरती को संतुलित रूप से गरम रखती हैं। लेकिन हमारी कुछ गतिविधियां जैसे कल-कारखानों, कोयला, नेचुरल गैस, पेट्रोलियम ऑइल आदि जलाने से निकली गैसें और अनेक अन्य कारणों से वातावरण में इन गैसों की मात्रा जरूरत से ज्यादा बढ़ रही है, जिससे पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो रही है। वैज्ञानिक और जलवायु परिवर्तन से जुड़े विशेषज्ञ मानते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए इंसान ही पूरी तरह से जिम्मेदार है।

पर्यावरणविद डॉ. अनिल पी. जोशी कहते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेट चेंज को अब किसी भी हालत में हल्के में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि यह किसी क्षेत्र विशेष या समय विशेष की ही बात नहीं है। यह पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़े संकट के रूप में सामने आया है। इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ने भी दोहराया है कि हालात ठीक नहीं हैं। उनकी रिपोर्ट से पता चलता है कि आने वाला समय जनजीवन के लिए बहुत भारी होने वाला है। इससे कई बड़ी बातें होंगी। पहली बात यह कि जिस तरह से ग्लोबल वॉर्मिंग हो रही है, उससे तूफानों की संख्या बढ़ती चली जाएगी। नतीजा यह होगा कि इसके लिए हमारी तैयारी नहीं होगी और हमें भारी नुकसान भी झेलना पड़ सकता है। 

दूसरा, हम उस देश में रहते हैं, जो मानसून सेट फार्मिंग करता है। हमारे यहां खेती पूरी तरह सिंचाई पर आधारित नहीं है। यदि खेतीबाड़ी सिंचाई पर आधारित होती, तो भी नदियां सूखने की कगार पर आ चुकी हैं। सीधी सी बात है कि वर्षा का समय से ना होना हमारे देश की फार्मिंग सिस्टम के लिए बड़ी चुनौती है। 

तीसरी बात जो डरा रही है, वह यह है कि जब वर्षा होनी चाहिए, तब सूखा रहता है और जब पानी की जरूरत नहीं होती, तो इतनी बारिश हो जाती है कि बाढ़ का संकट पैदा हो जाता है। खासतौर पर फ्लैश फ्लड यानी कब बारिश हो जाएगी, इसकी कल्पना भी नहीं कर पाएंगे। 

इसमें सबसे बड़ा संकट हिमालय के संदर्भ में है। हिमालय को क्लाइमेट गवर्नर मानना चाहिए, क्योंकि करीब 4 करोड़ साल पहले यह हिमालय नहीं होता, तो इस देश का मानचित्र कुछ और होता। हिमालय के कारण नदियां बनीं। ब्रह्मपुत्र, गंगा, कावेरी, सिंधु ये सारी नदियां बना कर हिमालय ने इस देश की संरचना पर महत्वपूर्ण असर डाला। आज वही हिमालय संकट में चला गया है, क्याेंकि दुनियाभर में तापमान में 1 डिग्री बढ़त के जो भी मतलब निकलते हों, पर हिमालय में 1 डिग्री टेंपरेचर बढ़ता है, तो कल्पना कीजिए कि हिमखंडों का क्या होगा। अब खबरें निकल कर आ रही हैं कि ऊंचाई के इलाकों में झीलें ज्यादा बनने लगी हैं। एक लेक ने केदारनाथ त्रासदी में जो तांडव रचा था, वह हम सभी जानते हैं। 

हम ही हैं वजह 

डॉ. अनिल जाेशी कहते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग का सबसे बड़ा कारण हमारी वर्तमान जीवनशैली है, हमारे ठाठबाट हैं। हमने आवश्यकताओं से अधिक पृथ्वी को लीलना शुरू कर दिया है। प्रकृति किस हद तक इसे सहन करेगी? यही कारण है कि मानव जीवन पर संकट पैदा करनेवाली ऐसी घटनाएं होती रहेंगी।

kudrat-1 (बाएं से दाएं) डॉ. अनिल प्रकाश जोशी पर्यावरणविद, ग्रीनहाउस गैसों की अधिकता ग्लोबल वॉर्मिंग की प्रमुख वजह है।

आखिर इस संकट को रोका कैसे जा सकता है। डॉ. अनिल जोशी का मानना है कि जिस धरती को 7 अरब से ज्यादा लोग भोगते हों, वे चाहे बड़े बदलाव ना कर पाएं, पर ऐसी छोटी-छोटी चीजों का त्याग कर दें, जिनसे पृथ्वी का बाेझ कम हो, तो कुल मिला कर बहुत बड़ा योगदान होगा। उदाहरण के लिए पानी की 2 बाल्टी इस्तेमाल करते हैं, तो एक बाल्टी से काम चलाइए। एअरकंडीशनर को 6 घंटे के बजाय 2-3 घंटे ही चलाइए। गाड़ी चलाते हैं, तो जब जरूरत ना हो, तो चार पहिए के बजाय दुपहिए से जाइए। जो दुपहिया चलाते हैं, वे साइकिल पर उतर जाएं। लेकिन इसके ठीक उल्टा हो रहा है। पर्यावरण सुरक्षा के लिए हमें अपने-अपने स्तर पर अपनी लालसाओं पर विराम लगाना ही होगा।

डॉ. अनिल जोशी बताते हैं कि 25 करोड़ साल पहले या तो एक ज्वालामुखी फटा था या पृथ्वी पर ऐसी घटना हुई, जिससे एक खास किस्म का बैक्टीरिया पनपा, जिसने अमीनो एसिड बनाया। उस बैक्टीरिया का नाम मिथेनोकार्सिनो था। उसने इतनी अमोनिया पैदा कर दी कि 90 प्रतिशत जीव-जंतु खत्म हो गए। एक मजेदार बात जानिए, 6 करोड़ साल पहले जो वन थे, अगर वे ज्वालामुखी के लावा में ना जलते, तो कोयला ना बनता। और जब कोयला आया, तो ऊर्जा का स्रोत होने के कारण इसने दुनिया की शक्ल बदल दी। आज वही कोयला गले की फांस बन गया है।

नमी से भी बढ़ता है तापमान 

कहते हैं एक तो करेला, दूजा नीम चढ़ा ! सूरज की गरमी ही नहीं, जलवायु परिवर्तन के लिए नमी और भाप भी काफी हद तक जिम्मेदार है। सैन डियागो स्थित एक संस्था के शोधकर्ता का मानना है कि क्लाइमेट चेंज के लिए टेंपरेचर और मॉइस्चर दोनों जिम्मेदार हैं। अभी तक ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए तापमान को ही कसूरवार माना जा रहा था, लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल, हवा में भाप के रूप में माैजूद पानी जब लिक्विड फॉर्म में आता है, तो गरमी और ऊर्जा पैदा करता है, जिससे नमी बढ़ती है। इस नमी के कारण गरमी तो बढ़ती ही है, बारिश भी होती है। एक आकलन के अनुसार, हवा में मौजूद नमी के कारण कुदरत का मिजाज 1.48 डिग्री गरम हो गया। 

क्या-क्या हैं खतरे 

- वातावरण का तापमान बढ़ता है, तो यह हीट स्ट्रोक का खतरा पैदा कर सकता है। 

- इससे दिल और सांस की बीमारियों के बढ़ने की भी आशंका है, क्योंकि बहुत अधिक गरमी में बॉडी को ठंडा करने के लिए दिल को अधिक मेहनत करनी पड़ सकती है।

- ग्लोबल वॉर्मिंग का दुनियाभर में कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, जिससे पौष्टिक खानपान में कमी आयी है। आने वाले वर्षों में लाखों लोग इसकी वजह से कुपोषण की चपेट में आ सकते हैं।

- गरमी बढ़ने से मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों की संख्या में वृद्धि होगी, जिससे दुनिया की बड़ी आबादी पर मलेरिया का खतरा बना रहेगा।

- तापमान बढ़ने से हवा और पानी का प्रदूषण बढ़ेगा, जो सेहत के लिए खतरनाक होगा।

- ऊंचाई पर हवा में तापमान बढ़ने से धरती के वातावरण में ओजोन गैस की मात्रा बढ़ेगी। वायुमंडल के ऊपरी भाग में कुदरती रूप से मौजूद ओजोन लेअर सूरज की हानिकारक यूवी किरणों से धरती को बचाती है। वही ओजोन वायुमंडल की निचली सतह में हो, तो प्रदूषण पैदा करती है, जिससे लंग्स को नुकसान पहुंचता है।

हम क्या कर सकते हैं 

- कोयले जैसे फ्यूल और बिजली का उचित उपयोग करें। जब जरूरत ना हो, तो बिजली के उपकरण बंद कर दें। 

- क्लाइमेट को नुकसान पहुंचाने वाली चीजों को रिसाइकिल करें, जैसे प्लास्टिक व पेपर की रिसाइकिलिंग करें।

- वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत जैसे सोलर हीटर का उपयोग करें। इनसे कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन नहीं होता। 

- पेड़-पौधे हमें ग्लोबल वॉर्मिंग से राहत दिला सकते हैं। इस संदर्भ में असोला भाटी वन्यजीव अभ्यारण्य की 1 लाख बीज गेंदों से हरियाली बढ़ाने की पहल सराहनीय है। मिट्टी और खाद से तैयार गेंद बना कर उसमें बीज डाल सुखा लिए जाते हैं। मानसून में इन गेंदों को जंगलों में फेंक दिया जाता है, जिससे बीज अंकुरित हो जाते हैं।