हिंदी साहित्य जगत के लिए वर्ष 2022 का यह समय गौरवान्वित करने वाला है। अपने अलग कथा-शिल्प के लिए जानी जाने वाली गीतांजलि श्री को अंततः उनके हिन्दी उपन्यास ‘रेत समाधि’ के अनुवाद टॉम्ब ऑफ सैंड के लिए अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरस्कार बुकर मिल गया है। यह पुरस्कार पहली बार दक्षिण एशिया, भारत और हिन्दी की किसी कृति को मिला है।
‘रेत समाधि’ की कहानी एक बुजुर्ग महिला के जीवन पर आधारित है, जो पति की मृत्यु के बाद अवसादग्रस्त हो जाती है। उनकी दुनिया उनके बिस्तर तक सीमित रह जाती है। लेकिन घटनाक्रम कुछ ऐसा बदलता है कि वह अपनी अविवाहित और लिव इन में रहने वाली बेटी के साथ रहने चली जाती हैं और वहां से उनकी इच्छाओं को पर मिलने लगते हैं। कहानी देश, जेंडर, सरहद और धर्म के इर्द-गिर्द घूमती एक संवेदनशील कहानी है। उनकी अन्य किताबों की ही तरह यहां भी स्त्री का मन है, भारत विभाजन और इससे पहले के भारत की कहानी है,एक नए ढंग का कथानक है और कहानी कहने का उनका अलहदा लहजा है, जो पाठक को ठहरकर सोचने और फिर-फिर पढ़ने के लिए बाध्य करता है। कहा जा सकता है कि इस पुस्तक में समूचे भारत की एक तसवीर निहित है। ऐसे वक्त में जब दुनिया में निराशा-हताशा अपने चरम पर है, साहित्य में सकारात्मकता का महत्व और बढ़ जाता है।
1990 के दशक में गीतांजलि श्री के दो उपन्यास आए थे- ‘माई’ और ‘हमारा शहर उस बरस’, जो हर हिन्दी साहित्य प्रेमी के निजी संकलन में अवश्य रहे होंगे। ‘माई’ का अंग्रेजी अनुवाद क्रॉसवर्ड अवॉर्ड के लिए नामित किया गया था। इन दोनों कहानियों ने पाठकों के मन को झकझोर डाला था। गीतांजलि अपने किरदारों के मन में इतनी गहराई तक पैठ जाती हैं कि ना तो किरदार अजनबी रह जाते हैं, ना लेखक और ना पाठक। ऐसा लगता है कि हम कहानी पढ़ नहीं रहे, उसे जी रहे हैं। उनकी पुस्तकों का अनुवाद आसान बिल्कुल नहीं हो सकता, उस स्तर की इंटेसिटी ला पाना, जो मूल कहानी में हो, लगभग नामुमकिन होता है। मगर यह वाकई सुखद है कि उनकी कृतियों के अंग्रेजी, फ्रेंच,जर्मन, कोरियन और सर्बियन आदि भाषाओं में अनुवाद हुए और वे भी उतने ही लोकप्रिय हुए। इस लिहाज से अनुवादक डेजी रॉकवैल का काम वास्तव में बहुत सराहनीय कहा जा सकता है। यूएस में रहने वाली डेजी की हिन्दी साहित्य पर गहरी पकड़ है और वह उपेन्द्रनाथ अश्क, उषा प्रियंवदा, भीष्म साहनी और कृष्णा सोबती जैसे लेखकों की कृतियों का भी अनुवाद किया है।

एक साक्षात्कार में गीताजंलि ने कहा कि ‘रेत समाधि’ का पहले भी फ्रेंच अनुवाद आना मोंतो ने किया है लेकिन बुकर के कारण अंग्रेजी अनुवाद की चर्चा ज्यादा हुई। बुकर मिलने से उनकी रचना को और विस्तृत फलक मिल सकेगा। अनुवादक डेजी रॉकवेल के शब्दों में, ‘रेत समाधि’ की कहानी किसी शानदार वाइन की तरह है, थोड़ी जटिल लेकिन समृद्ध। जितना हलक में उतरती जाती है, उतना ही स्वाद बढ़ता जाता है।