Saturday 04 June 2022 02:33 PM IST : By Indira Rathore

यंग क्लाइमेट एक्टिविस्ट हिना सैफी से खास मुलाकात

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चार बहनें, एक भाई, दादा-दादी और मम्मी-पापा हैं हिना सैफी के परिवार में। उत्तर प्रदेश के मेरठ से लगभग 18 किलोमीटर दूर एक गांव है सिसोला, जहां हिना अपने परिवार के साथ रहती हैं। यह पिछड़ा गांव है, जहां केवल एक मिडिल स्कूल है। पास में एक फुटबॉल मेकिंग फैक्टरी है और ज्यादातर गांववासी इसी फैक्टरी में दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। हिना के पिता लोहे का काम करते हैं और मां सिलाई करती हैं। बाकी बच्चों की तरह हिना भी फुटबॉल सिलाई से कुछ पैसे कमाती हैं, ताकि सबकी पढ़ाई-लिखाई चलती रहे। आठवीं के बाद उन पर पढ़ाई छोड़ने का दबाव पड़ा, लेकिन आगे पढ़ने की उनकी ललक थी और मां का सहयोग, जिस कारण उनकी पढ़ाई जारी रह सकी। अभी वे बीबीए कर रही हैं। भविष्य में वे समाज-सेवा के कार्य में ही आगे बढ़ना चाहती हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अपने परिवेश को सुधारने की जिम्मेदारी बहुत बड़ी है। 

ऐसे हुई शुरुआत

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हिना सैफी बताती हैं, ‘‘मैं सातवीं क्लास में थी, जब हम प्रोजेक्ट्स के लिए गांवों में सर्वे के लिए जाते थे। यह देखते थे कि कितने बच्चे स्कूल जा रहे हैं या नहीं। एक गांव में गंदगी का आलम देख कर मुझे बहुत दुख हुआ। मैंने इसे ले कर वहां के लोगों को समझाया और कुछ करने का विचार मन में आया। यह छोटी सी शुरुआत थी। मैं हमेशा से कुछ अलग करना चाहती थी। मैं जमीनी स्तर पर काम करके लोगों के व्यवहार को बदलना चाहती हूं। एनजीओ एन ब्लॉक के संस्थापक मुकेश कुमार ने मुझे आगे बढ़ने और शिक्षा हासिल करने में मदद की। उनकी मदद से ही मुझे एक प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन मिला और मेरी फीस माफ हो सकी। उन्होंने मेरे कार्यों को देखते हुए मुझे लखनऊ में होने वाले एक इवेंट में बुलाया। वहां मैंने छोटी सी स्पीच दी, जिससे वहां मौजूद क्लाइमेट एक्टिविस्ट सानिया अनवर काफी प्रभावित हुईं। उन्होंने मेरा नाम यूएन के क्लाइमेट चेंज लीडर्स के लिए प्रस्तावित किया।’’ 

सबकी है ये जिम्मेदारी

पर्यावरण को ले कर हर नागरिक को जागरूक होना चाहिए, यह मानना है हिना सैफी का। वह कहती हैं, ‘‘मैंने बहुत सी वर्कशॉप में हिस्सा लिया, सोलर एनर्जी, प्रदूषण नियंत्रण, एक्यूआई और साफ हवा को ले कर अपनी समझ को विकसित किया। मैं लोगों को बताती थी कि कैसे सोलर पंप या रूफटॉप सोलर इंस्टॉलेशन से प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है। ‘सूरज से समृद्धि’ कैंपेन के जरिये हम लोगों को सोलर पावर के बारे में बता रहे हैं। मेरठ में बढ़ते प्रदूषण को ले कर 2018 में मैं लोगों के साथ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास ज्ञापन ले कर गयी। इसके बाद वहां 2-3 एअर प्यूरिफायर लगे। हमारी टीम नुक्कड़ नाटकों, चौपाल, बैठकों, गीत-संगीत के जरिये लोगों को जागरूक करती है। मार्च, पैंफलेट्स के अलावा डोर टू डोर जा कर हम लोगों को जागरूक बना रहे हैं। उ. प्र. सरकार ने घोषणा की कि राज्य के 5-6 शहरों को सोलर सिटी बनाया जाएगा, तो मैंने मेरठ को भी इसमें शामिल करने के लिए लोगों को जागरूक करना शुरू किया।’’ 

सांसों को बचाना होगा

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हिना अपनी टीम के साथ कुछ समय पहले बनारस गयी थीं। वे कहती हैं, ‘‘लोगों को पता ही नहीं चल पाता कि प्रदूषण से उन्हें कितना नुकसान हो रहा है। हमने अस्सी घाट पर 10 दिन के लिए कृत्रिम लंग्स इंस्टॉल किए थे। इंस्टॉल करने के तीसरे दिन से ही उनका सफेद रंग मटमैला होने लगा और 10 दिन में वे पूरी तरह काले हो गए। हमारी कोशिश लोगों को यह समझाने की थी कि प्रदूषण हमें कैसे बीमार बना रहा है। हम पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देने और निजी गाड़ियों का प्रयोग कम करने के लिए लोगों को जागरूक करते हैं। मेरठ में सोलर पैनल लगाने को ले कर भी हम काम कर रहे हैं।’’ 

बी द चेंज कैंपेन 

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यूएन के क्लाइमेट चेंज लीडर- 2021 में चयन के बाद हिना सैफी की जिम्मेदारियां काफी बढ़ गयी हैं। कैंपेन का मकसद है, अलग-अलग शहरों से युवा लीडर्स को एक मंच पर एकत्र करना, ताकि पर्यावरण को ले कर सार्थक चर्चा हो सके। अभी 18 यंगस्टर्स इस कैंपेन का हिस्सा हैं। इसके लिए उन्हें एक महीने की ट्रेनिंग भी दी गयी है कि वे कैसे अपने कार्य को सशक्त तरीके से कर सकते हैं, कैसे उन समस्याओं का समाधान तलाश सकते हैं और अपनी प्रॉब्लम्स को ग्लोबल स्तर तक पहुंचा सकते हैं। यंग ब्रिगेड अपनी क्लाइमेट एक्शन स्टोरीज को शेअर करती है। हिना 2018 से 100 प्रतिशत उ. प्र. कैंपेन और द क्लाइमेट एजेंडा के साथ भी जुड़ी हुई हैं। 

लड़कियां किसी से कम नहीं

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हिना फोकस्ड हैं, अपनी बात को आत्मविश्वास और स्पष्टता के साथ रखती हैं। वे कहती हैं, ‘‘मैं ग्रामीण परिवेश से आती हूं, इसलिए कॉलेज आते-जाते सिर ढकती हूं, लेकिन इसे ले कर परिवार का कोई दबाव मुझ पर नहीं है। मेरे गांव की लड़कियां पढ़ाई नहीं कर पातीं,वे फुटबॉल सिल कर दहेज के पैसे इकट्ठा करती हैं। छोटे-छोटे बच्चे लालच में काम करते हैं, लेकिन उनकी उंगलियां खराब हो जाती हैं। मैं गांव के 20-25 बच्चों को पढ़ाती हूं। उन्हें एक्टिविटीज कराती हूं, ताकि वे खुश हो कर मेरे पास पढ़ने आएं। मैं अपने खानदान की पहली लड़की हूं, जो कॉलेज जा रही है और अपने काम के लिए शहर दर शहर घूम रही है। मेरे इस सफर में मेरा परिवार साथ खड़ा है। मैं लोगों की इस सोच को बदलना चाहती हूं कि लड़कियां कुछ नहीं कर सकतीं।’’